धर्मस्थल

पाताल भुवनेश्वर : पृथ्वी के आदि और अंत का चित्रण 

पाताल भुवनेश्वर : पृथ्वी के आदि और अंत का चित्रण 

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ऋचा जोशी धरती पर एक जगह ऐसी भी है जहां एक ही स्थान पर पूरी सृष्टि के दर्शन होते हैं. सृष्टि की रचना से लेकर कलयुग का अंत कब और कैसे होगा इसका पूरा वर्णन यहां पर है. आइए आज आपको ऐसी जगह ले चलती हूं. बात हो रही है भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर की. पाताल भुवनेश्वर दरअसल एक प्राचीन और रहस्यमयी गुफा है जो अपने आप में एक रहस्यमयी दुनिया को समेटे हुए है.  ये गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फिट अंदर है. पाताल भुवनेश्वर दरअसल एक प्राचीन और रहस्यमयी गुफा है जो अपने आप में एक रहस्यमयी दुनिया को समेटे हुए है.  ये गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फिट अंदर है. 90 फिट नीचे गुफा में उतरने के लिए चट्टानों के बीच संकरे टेढ़ी मेढ़े रास्ते से ढलान पर उतरना पड़ता है. देखने पर गुफा में उतरना नामुमकिन सा लगता है लेकिन गुफा में उतरने पर शरीर खुद ब खुद गुफा क...
पूर्वजों की आस्था का केन्द्र : कटारमल सूर्य मंदिर

पूर्वजों की आस्था का केन्द्र : कटारमल सूर्य मंदिर

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शशि मोहन रावत ‘रवांल्‍टा’ जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी बेजोड़ वास्तुकला के लिए भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है. भारत के ओड़िसा राज्य में स्थित यह पहला सूर्य मंदिर है जिसे भगवान सूर्य की आस्था का प्रतीक माना जाता है. ऐसा ही एक दूसरा सूर्य मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊ मण्डल के अल्मोड़ा जिले के कटारमल गांव में है. यह मंदिर 800 वर्ष पुराना एवं अल्मोड़ा नगर से लगभग 17 किमी की दूरी पर पश्चिम की ओर स्थित उत्तराखण्ड शैली का है. अल्मोड़ा-कौसानी मोटर मार्ग पर कोसी से ऊपर की ओर कटारमल गांव में यह मंदिर स्थित है. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की. उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा-अर्चना करते रहे हैं. उन्होंने यहाँ की दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों एवं कला की प्रशंसा की है.  यह मंदिर...
एक ऐतिहासिक-पुरातात्विक नगरी ‘लाखामण्डल’

एक ऐतिहासिक-पुरातात्विक नगरी ‘लाखामण्डल’

धर्मस्थल
इन्द्र सिंह नेगी यमुना को यह वर प्राप्त है कि जिधर से भी इसका प्रवाह आगे बढ़ेगा, वहाँ समृद्ध सभ्यता/संस्कृति का विकास स्वतः ही होता चला जायेगा. उसके उद्भव से लेकर संगम तक के स्थान अपने आप में ऐतिहासिक-सामाजिक- सांस्कृतिक रूप से समृद्धशाली हैं. हिन्दुओं में यह भी मान्यता है कि ‘यम द्वितीया’ के दिन यमुना-स्नान से समस्त पापों से मुक्ति मिल, मोक्ष की प्राप्ति होती है. यमुना के तट पर 1095 मी. की ऊँचाई पर स्थित ‘लाखामण्डल’ नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक-धार्मिक व पुरातात्विक महत्व को सहेजे हुए हैं. देहरादून के जौनसार-बावर परगने की चकराता तहसील के अन्तर्गत ‘लाखामण्डल’ दिल्ली-यमुनोत्तरी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जनपद उत्तरकाशी के बर्नीगाड से लगभग 5 किमी. की दूरी पर स्थित है. बर्नीगाड़ देहरादून से मसूरी होकर लगभग 107 किमी. व विकासनगर की ओर से आने पर 122 किमी. की दूरी पर...
सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

उत्तराखंड हलचल, धर्मस्थल, साहित्‍य-संस्कृति
आस्था का अनोख़ा अंदाज  - दिनेश रावत देवलोक वासिनी दैदीप्यमान शक्तियों के दैवत्व से दीप्तिमान देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक, वैदिक एवं लौकिक विशष्टताओं के चलते सुविख्यात रही है। पर्व, त्यौहार, उत्सव, अनुष्ठान, मेले, थौलों की समृद्ध परम्पराओं को संजोय इस हिमालयी क्षेत्र में होने वाले धार्मिक, अनुष्ठान एवं लौकिक आयोजनों में वैदिक एवं लौकिक संस्कृति की जो साझी तस्वीर देखने को मिलती है वह अनायास ही आस्था व आकर्षण का केन्द्र बन जाती है। संबंधित लोक का वैशिष्टय है कि इस क्षेत्र में होने वाले तमाम आयोजनों में लोकवासियों तथा लोकदेवताओं के मध्य सहज संवाद, गीत—संगीत व नृत्य के कई नयनाभिराम दृश्य सहजता से सुलभ हो जाते हैं। श्रावण मास में मानो समूचा लोक शिवमय हो जाता है। श्रावण मास में जब लोक के ये देवी-देवता कैलाश प्रस्थान को तैयार होते हैं तो क्षेत्रवासी खासे चिंतित व भयभी...
गढ़वाल में बद्री-केदार तो कुमाऊं में प्रसिद्ध है छिपला केदार

गढ़वाल में बद्री-केदार तो कुमाऊं में प्रसिद्ध है छिपला केदार

धर्मस्थल
— दिनेश रावत भारत भू-भाग का मध्य हिमालय क्षेत्र विभिन्न देवी-देवताओं की दैदीप्यमान शक्ति से दीप्तिमान है। इसी मध्य हिमालय के लिए ‘हिमवन्त’ का वर्णन किया गया है. धार्मिक साहित्य यथा ‘केदारखंड’ (अ.101) में ‘हिमवत्-देश’ कभी केवल केदारदेश को ही माना गया है. हिमवन्त  के अंतर्गत अनेक पर्वतों का वर्णन है। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं— 1 गन्धमादनपर्वत— यह बदरिकाश्रम से संबद्ध गढ़वाल का महा-हिमवन्त है। ‘कैलासपर्वत श्रेष्ठे गन्धमादनपर्वत’ (केदारखण्ड, अ. 60). हरिवंश पुराण के अनुसार यह राजा पुरूरवा और गान्धर्वी उर्वशी का रमण-स्थल माना गया है. तीर्थयात्रा काल के दौरान पांडवों ने यहां प्रवेश किया था, जहां बदरीविशाल तथा नरनारायणाश्रम हैं. 2 शतश्रृंगपर्वत— इसे पांडु की तपस्या स्थली के रूप में जाना जाता है. संतान प्राप्ति की कामना के साथ पांडु ने इसी पर्वत पर कुन्ती व माद्री के साथ तपस्या की थी. जिसके उपरां...
लोक के विविध रंगों से रंगा एक महोत्सव

लोक के विविध रंगों से रंगा एक महोत्सव

धर्मस्थल
- दिनेश रावत उत्तराखंड का रवांई क्षेत्र अपने सांस्कृतिक वैशिष्टय के लिए सदैव विख्यात रहा है. लोकपर्व, त्योहार, उत्सव, मेले, थोले यहां की संस्कृति सम्पदा के अभिन्‍न अंग कहे जा सकते हैं. कठिन दैनिकचर्या की चक्की में पीसता मानव इन्हीं अवसरों पर अपने आमोद-प्रमोद, मनरंजन, मेल-मिलाप हेतु वक्त चुराकर न केवल शारीरिक, मानसिक थकान मिटाकर तन-मन में नयी स्फूर्ति का संचार करता था, बल्कि जीवन के लिए उपयोगी सामग्री का संग्रह भी. सुदूर हिमालयी क्षेत्र में होने वाले मेले, शहरी मेलों से पूरी तरह अलग लोक के विविध रंगों से रंगे नजर आते थे किन्तु वर्तमान में वैश्वीकरण की आबो-हवा के चलते लोक संस्कृति के संवाहक रूपी मेले से वर्तमान पीढ़ी का मोहभंग होता जा रहा है, जिसके चलते इनके अस्तित्व पर ही संकट के मेघ मंडराने लगे हैं. वर्षों पूर्व अपार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होने वाले कई मेले जहाँ अपने अस्तित्व के लिए जूझ...
जहां विराजते हैं सूर्य सुता यमुना व शनि

जहां विराजते हैं सूर्य सुता यमुना व शनि

धर्मस्थल
— दिनेश रावत देवभूमि उत्तराखंड के दिव्यधाम सदियों के लोगों के आस्था एवं विश्वास के केन्द्र रहे हैं. सांसारिक मोह-माया में फंसा व्यक्ति, आत्मीकशांति की राह तलाशते हुए अन्ततः इसी क्षेत्र का रूख करता है. कारण पंचब्रदी, पंचकेदार, पंचप्रयाग तथा अनेकानेक देवी-देवताओं के दैवत्व से दैदीप्यमान, ऋषि-मुनियों के तपोबल से तरंगित, पांडवों के पराक्रम को प्रतिबिंबित करती और प्राणी जगत को नवजीवन प्रदान करती गंगा, यमुना, अलकनंदा मंदाकिनी, भागीरथी, भिलंगना जैसी पावन सलीलाओं की सतत् प्रवाहमान अमृतमय जलधाराएं. उत्तराखंड के चार धामों में यमुनोत्री का महत्त्व इसलिए बढ़ जाता है कि इन चारों धामों की यात्रा का शुभारंभ यहीं से अर्थात माँ यमुना का पावन आशीष और सूर्य कुंड की तप्त जलधारा में स्नान करने के साथ ही माना जाता है. स्यानाचट्टी, रानाचट्टी, हनुमानचट्टी, नारदचट्टी से होते हुए जानकीचट्टी वह अंतिम पड़ाव है, जहां ...
त्रिजुगी नारायण के अवतार माने जाते हैं कौल देवता!

त्रिजुगी नारायण के अवतार माने जाते हैं कौल देवता!

धर्मस्थल
दिनेश सिंह रावत लोक मान्यतानुसार कौंल देवता का संबंध केदारनाथ से है. इन्हें त्रिजुगी नारायण का अवतार माना जाता है और इसी के चलते हर बारहवें वर्ष कौंल देवता से केदारनाथ की यात्रा करवाई जाती है। सालरा के अतिरिक्त आराकोट, बरनाली तथा धारा में भी कौंल देवता का प्राचीन मन्दिर अवस्थित हैं.   देवभूमि उत्तराखण्ड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के दूरस्थ विकास क्षेत्र मोरी के सालरा व बंगाण क्षेत्र में कौंल देवता को आराध्य इष्ट के रूप में पूजा जाता है. कौंल देवता के संबंध में यहां कुछ पौराणिक लोकगीत प्रचलित हैं जिनके अंश इस प्रकार से हैं- 'ऊब सालरे देवा, उन्द से मेसाई के घोर। तेरे देवरा कौंल देवा सांदौणी सादों, तू देंदू पुतर वर।।' अर्थात हे कौंल देवता! सालरा गांव में ऊपर आपका मन्दिर है, नीचे पूजारियों का घर. आपके मन्दिर में जो सच्चे मन से उपासना करता है, उसे आप पुत्र का वर देते हैं. सालरा गांव म...