धर्मस्थल

जसुली शौकयाणी की मन्याओं का इतिहास

जसुली शौकयाणी की मन्याओं का इतिहास

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  कुमाऊं में मनिया मंदिर: एक पुनर्विवेचना -4 डॉ. मोहन चंद तिवारी सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार 'मन्याओं' का सबसे अधिक निर्माण दारमा जोहार क्षेत्र की महान दान वीरांगना जसुली शौकयाणी के द्वारा किया गया. लला (आमा) के नाम से विख्यात जसुली शौकयाणी ने कुमाऊ, गढ़वाल, नेपाल तक मन्याओं because और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया. सोमेश्वर, जागेश्वर, बागेश्वर, कटारमल, द्वाराहाट आदि स्थान धार्मिक मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध होने के कारण इन मार्गों पर सबसे अधिक मन्याओं का निर्माण कार्य हुआ है. ज्योतिष अठारहवीं सदी या उससे पहले जब यातायात के संसाधन नहीं थे, तब व्यापारिक, धार्मिक, विवाह आदि यात्राएं पैदल ही की जाती थीं . ऐसे समय में पैदल मार्ग वाले निर्जन और धार्मिक महत्त्व के स्थानों में रात्रि विश्रामालयों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाना पुण्यदायी कार्य माना जाता था. धारचूला के ...
फेसबुक सर्वेक्षण : कुमाऊं में मन्या अवशेष…

फेसबुक सर्वेक्षण : कुमाऊं में मन्या अवशेष…

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कुमाऊं में मनिया मंदिर: एक पुनर्विवेचना -3 डॉ. मोहन चंद तिवारी द्वाराहाट के 'मनिया मंदिर समूह' के सन्दर्भ में पिछली दो पोस्टों में विस्तार से चर्चा की गई है.किंतु मन्याओं के बारे में इतिहास और पुरातत्त्व के विद्वानों द्वारा कोई खास जानकारी नहीं दी गई है. because इसी सन्दर्भ में फेसबुक के माध्यम से कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों में 'मन्या' सम्बन्धी जानकारी जुटाने का प्रयास किया गया. चिंता का विषय है कि आज हमारे पास कत्युरी नरेश मानदेव के द्वारा जैन श्रावकों अथवा शिल्पकारों के माध्यम से निर्मित द्वाराहाट के 'मनिया मन्दिर समूह' के अतिरिक्त कोई भी जीवंत साक्ष्य नहीं हैं. अधिकांश मन्याएं नष्ट हो चुकी हैं,उनका कोई नामोनिशान नहीं बचा है. कुछ धार्मिक स्थलों की मन्याओं का पुनर्निर्माण हो चुका है. ज्योतिष 'कुमाऊंनी शब्द सम्पदा', 'कुमाऊंनी' और 'पहाड़ी फ़सक' ग्रुपों से मन्याओं के बारे में विभि...
द्वाराहाट, सुरेग्वेल और जालली क्षेत्र की मन्याओं का इतिहास

द्वाराहाट, सुरेग्वेल और जालली क्षेत्र की मन्याओं का इतिहास

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कुमाऊं में मनिया मंदिर : एक पुनर्विवेचना-2 डॉ. मोहन चंद तिवारी द्वाराहाट के ऐतिहासिक स्थलों से सम्बंधित शोध योजना के अंतर्गत मैंने वर्ष 2017 के 30 मई से 3 जून, की अवधि में सुरेग्वेल  और जालली के मंदिर और वहां स्थित विलुप्त 'मन्याओं' का सर्वेक्षण किया, तो इस क्षेत्र के मन्या मंदिरों के बारे में अनेक नए तथ्यों का भी रहस्योद्घाटन हुआ. इस क्षेत्र के वरिष्ठ स्थानीय प्रबुद्धजनों से पता चला कि because द्वाराहाट और पाली पछाऊं के इलाके में 'मन्या' उस धार्मिक स्थान को कहते हैं, जहां यात्रीगण या मुसाफिर लोग रात्रि के समय विश्राम करते हैं. एक प्रकार से यह मंदिर के निकट रात्रि विश्राम हेतु बना धर्मशाला जैसा  विशेष कक्ष होता था. ज्योतिष द्वाराहाट का मनिया मन्दिर समूह द्वाराहाट प्राचीन काल से ही तीर्थनगरी के रूप में प्रसिद्ध रहा है. चारधाम यात्रा हो या कैलास मानसरोवर की यात्रा द्वाराहाट उन स...
द्वाराहाट के ‘मन्या’ मंदिर : एक पुनर्विवेचना

द्वाराहाट के ‘मन्या’ मंदिर : एक पुनर्विवेचना

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डॉ. मोहन चंद तिवारी बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व जब मैं अपनी पुस्तक ‘द्रोणगिरि:इतिहास और संस्कृति’ के लिए द्वाराहाट के मंदिर समूहों के सम्बंध में जानकारी जुटा रहा था, तो उस समय मेरे लिए 'मन्या' या 'मनिया'because नामक मंदिर समूह के नामकरण का औचित्य ज्यादा स्पष्ट नहीं हो पाया था. द्वाराहाट के इतिहास के बारे में जानकार विद्वानों से पूछने के बाद भी यह प्रश्न सुलझ नहीं पाया कि इन मंदिर समूहों को आखिर 'मन्या' क्यों कहा जाता है? इस क्षेत्र से जुड़े पुरातत्त्व विशेषज्ञ और स्थापत्य के जानकार भी द्वाराहाट के मनिया मंदिर के बारे में ज्यादा वास्तुशात्रीय जानकारी शायद इसलिए नहीं दे पाए क्योंकि द्वाराहाट क्षेत्र में विभिन्न मन्या स्मारकों के बारे में उनकी जानकारी का सर्वथा अभाव ही था. ज्योतिष हालांकि राहुल सांकृत्यायन, नित्यानन्द मिश्र, प्रो.राम सिंह आदि इतिहासकारों ने कुछ अप्रत्यक्ष जानकारी अवश्य दी है. क...
निर्धनों, वंचितों और समाज के शोषितों के न्याय प्रदाता राजा ग्वेल

निर्धनों, वंचितों और समाज के शोषितों के न्याय प्रदाता राजा ग्वेल

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डॉ. मोहन चंद तिवारी राजा ग्वेल देवता खुशहाल,समतावादी और न्यायपूर्ण, राज्य व्यवस्था के प्रतिमान हैं. राजा ग्वेलदेव ने समाज के रसूखदारों और दबंगों को खबरदार करते हुए कहा मेरे राज्य में कोई भी बलवान निर्बल को और धनवान निर्धन को नहीं सता सकता-  “न दुर्बलं कोऽपि बली मनुष्यो, बलेन बाधेत मदीयराज्ये.” ज्योतिष कुमाऊंनी दुदबोली के रचनाकार लोककवियों और स्थानीय जागर गाथाओं को आधार बनाकर आधुनिक संस्कृत साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् डा.हरिनारायण दीक्षित जी ने अपने महाकाव्य ‘श्रीग्वल्लदेवचरितम्’ में न्यायकारी महानायक ग्वेल देवता के जिस चरित्र का महामंडन किया है वह आधुनिक युगबोध की भ्रष्टाचार और शोषणपूर्ण राज्य व्यवस्था से सीधे संवाद करने वाला अति उत्तम महाकाव्य है. ज्योतिष यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे स्कूल और कालेज के राजनीतिशास्त्र के विद्द्यार्थियों को यूनान और मिश्र की मृत सभ्यत...
गोरिल के पिता हालराई थे या झालराई?

गोरिल के पिता हालराई थे या झालराई?

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एक गवेषणात्मक विवेचना डॉ. मोहन चंद तिवारी न्याय देवता गोरिल से सम्बंधित चर्चा के संदर्भ में प्रायः यह जिज्ञासा प्रकट की जाती रही है कि गोरिल के पिता का नाम हालराई था अथवा झालराई? यह जिज्ञासा इसलिए भी स्वाभाविक है कि मैंने प्रो.हरि नारायण दीक्षित जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘श्रीग्वल्लदेवचरितम्’ के संदर्भ में जो समालोचनात्मक चर्चा चलाई है,उसके अनुसार ग्वेलदेवता के पिता because का नाम हालराय ही है. किन्तु सामान्य रूप से देखा जाए तो ग्वेलदेवता के पिता के सम्बंध में दोनों प्रकार की मान्यताएं लोक प्रचलन में हैं. कहीं जागर कथाओं में ग्वेल देवता के पिता का नाम झालराई तो कहीं हालराई गाया जाता है. ग्वेलदेवता विषयक लिखित साहित्य में भी दो तरह के संस्करण प्रचलित हैं.कहीं झालराई को तो कहीं हालराई को गवेल्ज्यू का पिता कहा गया है. नेता जी इतिहासकार ई टी एटकिंसन, तारादत्त गैरोला, डा. देवसिंह पो...
पर्यावरण संरक्षिका मां दुनागिरि

पर्यावरण संरक्षिका मां दुनागिरि

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डॉ. मोहन चंद तिवारी द्रोणाचल पर बास तिहारा, उत्तराखण्ड तुझको अति प्यारा. देवि पूजि पद कमल तुम्हारे! पर्यावरण दिवस भारत में वैष्णव शक्तिपीठ के नाम से दो शक्तिपीठ हैं एक जम्मू कश्मीर स्थित वैष्णो देवी और दूसरा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में रानीखेत से 37 किमी की दूरी पर द्वाराहाट स्थित ‘द्रोणगिरि’ because शक्तिपीठ, जिसे स्थानीय भाषा में ‘दुनागिरि’ के नाम से भी जाना जाता है. स्कन्दपुराण के ‘मानसखण्ड’ में वर्णित ‘द्रोणगिरि’ पर्वत के भौगोलिक विवरण से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि रामायण के काल में हनुमान संजीवनी बुटी लेने के लिए हिमालय में जिस ‘ओषधिपर्वत’ पर गए थे वह पर्वत कहीं और नहीं बल्कि वर्तमान में उत्तराखंड के अल्मोड़े जिले में स्थित यही ‘द्रोणगिरि’ पर्वत था. पर्यावरण दिवस 'दुनागिरी' शक्तिपीठ द्वाराहाट से 14 किमी की दूरी पर हिमालय की गोद मे बसा अत्यंत सुन्दर,शान्त और दिव्य ऊर्जाओं से स...
काशी विश्वनाथ के समान उत्तराखंड का तीर्थधाम विभाण्डेश्वर महादेव

काशी विश्वनाथ के समान उत्तराखंड का तीर्थधाम विभाण्डेश्वर महादेव

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डॉ. मोहन चंद तिवारी ‘श्रीग्वल्लदेवचरितम्' महाकाव्य में विभाण्डेश्वर महादेव का तीर्थ माहात्म्य’ बहुत दुःख के साथ कहना पड़ता है कि आधुनिक संस्कृत साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान साहित्यकार और साहित्य अकादमी से सम्मानित रचनाकार डा. हरिनारायण दीक्षित because जी हमारे बीच नहीं रहे, पिछले वर्ष एक लंबी बीमारी के कारण उनका देहांत हो गया. किन्तु कवियश की कीर्तिस्वरूप वे आज भी जीवित हैं और हमारे देश के सांस्कृतिक मूल्यों से संवाद कर रहे हैं. निधन से कुछ महीने पहले जब मेरी उनसे फोन पर बात हुई तो मेरे द्वारा फेसबुक पर लिखी गई न्यायदेवता ग्वेलज्यू की धारावाहिक लेख माला से वे अतिप्रसन्न थे. न्यायदेवता गौरतलब है कि कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष तथा अनेक संस्कृत काव्यों, महाकाव्यों के लेखक रह चुके डा.दीक्षित ने उत्तराखंड की देवभूमि को अपने ग्वेल देवता के कृतित्व के माध्यम स...
कुमाऊंनी लोकसाहित्य में प्रतिबिंबित ग्वेलदेवता का राजधर्म

कुमाऊंनी लोकसाहित्य में प्रतिबिंबित ग्वेलदेवता का राजधर्म

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राज्य में किया दबंगई का उन्मूलन, प्रजा को दिलाया इंसाफ का राज डॉ. मोहन चंद तिवारी आज इस लेख के माध्यम से कुमाऊंनी भाषा के लोककवियों के आधार पर उत्तराखंड के न्याय देवता ग्वेलज्यू के राजधर्म की अवधारणा पर चर्चा की जा रही है. कुमाऊं भाषा के जाने माने रंगकर्मी तथा साहित्यकार स्व. श्री ब्रजेन्द्र लाल शाह  जी द्वारा रचित ‘श्रीगोलू-त्रिचालीसा में न्याय देवता ग्वेलज्यू के राजधर्म का भव्य निरूपण हुआ है. महाभारत के शांतिपर्व  में उल्लेख आया है कि राजधर्म में विकृति आने पर  सर्वत्र  समाज में 'मात्स्यन्याय' की प्रवृत्ति फैल जाती है. यानि जैसे बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है.उसी प्रकार अराजकता पूर्ण समाज में भी बाहुबली और धनबली जैसे ताकतवर लोग निर्बल और असहाय लोगों का शोषण करने लगते हैं और उन्हें सताने लगते हैं. कुमाऊं भाषा के जाने माने रंगकर्मी तथा साहित्यकार राज्य संस्था का मकसद ही है इस...
न्याय प्रियता ने राजा गोरिया को भगवान बना दिया   

न्याय प्रियता ने राजा गोरिया को भगवान बना दिया   

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डॉ. गिरिजा किशोर पाठक   18वीं सदी के जनेवा के महान becauseराजनीतिक दार्शनिक जॉन जैकब रूसो ने मनुष्य के बारे में कहा था कि ‘मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है किन्तु हर तरफ वह जंजीरों में जकड़ा राहत है.' मनुष्य स्वयं को जंजीरों में जकड़ा जाना इसलिए स्वीकार करता है और अपनी स्वतंत्रता को राज्य जैसी संस्था को इसलिए समर्पित कर देता है की राज्य उसके जीवन, संपत्ति, इज्जत, आबरू और सम्मान की रक्षा करे. कुमायूँ में राजतन्त्र के रूप में so कत्तूरी और चंद राजाओं ने राज किया. लगभग 24 (1790-1815 ) साल गोरखे राज किए. 1815 से 1947 तक अंग्रेजों के कमिश्नर राज किए. इस सम्पूर्ण काल में गोल्ज्यू के सिवा किसी राजा या शासक की जनसुनवाई और न्यायप्रियता का डंका कुमाऊ में नहीं बजा. ऐसा लगता है वह काल रामराज्य का स्वर्णिम युग रहा होगा. गोल्ज्यू गोल्ज्यू जहाँ से शिकायत becauseआती पगड़ी बांध अपने घोड़े पर सवार होकर चल ...