स्मृति-शेष

एक ‘खामोश नायक’ का ‘जीवंत किवदंती’ बनने का जीवनीय सफ़र

एक ‘खामोश नायक’ का ‘जीवंत किवदंती’ बनने का जीवनीय सफ़र

स्मृति-शेष
डॉ. अरुण कुकसाल ‘श्री नलनीधर जयाल आज किन्नौर की खूबसूरत वादियों में एक ‘जिंदा कहानी’ के तौर पर लोगों के दिल-दिमागों, वहां के बाग-बगीचों, खेत-खलिहानों, स्कूलों, लोगों के शानदार रोजगारों और प्राकृतिक एवं मानवीय समृद्धि के अनेकों रंग-रूपों में रचे-बसे हैं. वह किन्नौर में एक ‘जीवंत किवदंती’ हैं. किसी भी इंसान के जीवन में सफलता का इससे सुंदर और क्या मुकाम हो सकता है, कि वह अपने कामों और नेक-नियत के बदौलत लोगों के दिल-दिमागों में एक जीवंत किवदंती ही बन जाए.’ (कुसुम रावत, पृष्ठ-130) जांबाज फाइटर पाइलट से लोकप्रिय पर्यावरणविद बनने के जीवनीय सफर के दौरान श्री जयाल काबिल नौकरशाह, साहसी पर्वतारोही, शानदार फोटोग्राफर, चर्चित लेखक, कुशल प्रशिक्षक, अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता, जिज्ञासू अघ्येता, और दूरदर्शी चिंतक रहे. उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के और भी आयाम हैं. परन्तु यह भी सच है कि उनका व्यक्तित्व प...
उत्तराखंड की संस्कृति पर गुमान था कवि गुमानी को

उत्तराखंड की संस्कृति पर गुमान था कवि गुमानी को

स्मृति-शेष
डॉ. मोहन चंद तिवारी अगस्त का महीना आजादी,देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावनाओं से जुड़ा एक खास महीना है. इसी महीने का 4 अगस्त का दिन मेरे लिए इसलिए भी खास दिन है क्योंकि इस दिन 24 वर्ष पूर्व 4 अगस्त,1996 को गुमानी पंत के योगदान पर राष्ट्रीय समाचार पत्र 'हिदुस्तान' के रविवासरीय परिशिष्ट में 'अपनी संस्कृति पर गुमान था कवि गुमानी को' इस शीर्षक से मेरा एक लेख छपा था. मैंने दूसरे समाचार पत्रों में भी इसे कई बार प्रकाशनार्थ भेजा था लेकिन उन्होंने छापा नहीं, क्योंकि ज्यादातर राष्ट्रीय स्तर के सम्पादकों की मानसिकता होती है कि वे कुमाऊंनी कवि या कुमाऊंनी साहित्य से सम्बंधित लेखों को आंचलिक श्रेणी का मानते हुए राष्ट्रीय समाचार पत्रों में ज्यादा महत्त्व नहीं देते हैं.हालांकि नवरात्र और शक्तिपूजा और पर्व-उत्सवों पर 'नवभारत टाइम्स' और 'हिंदुस्तान' आदि समाचार पत्रों में मेरे लेख सन् 1980 से छपते रहे हैं. क...
…जरा याद करो कुर्बानी

…जरा याद करो कुर्बानी

स्मृति-शेष
कारगिल विजय दिवस (26 जुलाई) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी आज पूरे देश में कारगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है.आज के ही दिन 26 जुलाई,1999 को जम्मू और कश्मीर राज्य में नियंत्रण रेखा से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके वेश में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया था. उसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष '26 जुलाई' का दिन ‘विजय दिवस’ के रूप में याद किया जाता है और पूरा देश उन वीर और जाबांज जवानों को इस दिन श्रद्धापूर्वक नमन करता है. भारतीय सेना का यह ऑपरेशन विजय 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था. इस कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए थे. कारगिल के इस युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने में उत्तराखंड के 75 जवानों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी थी. दो महीने से भी अधिक समय तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के वीर सपूतों न...
उत्तराखंड के अमर क्रातिकारी शहीद श्री देवसुमन 

उत्तराखंड के अमर क्रातिकारी शहीद श्री देवसुमन 

स्मृति-शेष
क्रातिकारी अमर शहीद श्री देवसुमन की पुण्यतिथि (25 जुलाई) पर विशेष डॉ. मोहन चन्‍द तिवारी “मां के पदों में सुमन सा रख दूं समर्पण शीश को” उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के लेखक और   जन्मभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी, क्रातिकारी जननायक, अमर शहीद श्री देव सुमन जी का आज बलिदान दिवस है. श्री देव सुमन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वे अमर शहीद हैं जिन्होंने न केवल अंग्रेजों का विरोध किया बल्कि टिहरी गढ़वाल रियासत के राजा की प्रजा विरोधी नीतियों का विरोध करते हुए सत्याग्रह और अनशन द्वारा अपने प्राण त्याग दिए. श्री देव सुमन जी की पूरी राजनीति महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों से प्रभावित थी. “मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैं जहां अपने भारत देश के लिए पूर्ण स्वाधीनता के ध्येय में विश्वास करता हूं और मैं चाहता हूं कि महराजा की छत्रछाय...
अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर उन्हें नमन करते हुए

अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर उन्हें नमन करते हुए

स्मृति-शेष
टिहरी बांध बनने में शिल्पकार समाज के जीवन संघर्षों का रेखांकन, साहित्यकार ‘बचन सिंह नेगी’ का मार्मिक उपन्यास 'डूबता शहर’ डॉ.  अरुण कुकसाल "...शेरू भाई! यदि इस टिहरी को डूबना है तो ये लोग मकान क्यों बनाये जा रहे हैं. शेरू हंसा ‘चैतू! यही तो निन्यानवे का चक्कर है, जिन लोगों के पास पैसा है, वे एक का चार बनाने का रास्ता निकाल रहे हैं. डूबना तो इसे गरीबों के लिए है, बेसहारा लोगों के लिये है, उन लोगों के लिए है जिन्हें जलती आग में हाथ सेंकना नहीं आता. जो सब-कुछ गंवा बैठने के भय से आंतकित हैं.....चैतू सोच में डूब जाता है, उनका क्या होगा? आज तक रोजी-रोटी ही अनिश्चित थी, अब रहने का ठिकाना भी अनिश्चित हो रहा है.’’  (पृष्ठ, 9-10) टिहरी बांध बनने के बाद ‘उनका क्या होगा?’ यह चिंता केवल चैतू की नहीं है उसके जैसे हजारों स्थानीय लोगों की भी है. ‘डूबता शहर’ उपन्यास में जमनू, चैतू, कठणू, रूपा, रघु,...
पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (8 जुलाई) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी आज उत्तराखंड की लोक संस्कृति के पुरोधा वंशीधर पाठक जिज्ञासु जी की पुण्यतिथि है. जिज्ञासु जी ने कुमाऊं और गढ़वाल के लोक गायकों, लोक कवियों और साहित्यकारों को आकाशवाणी के मंच से जोड़ कर उन्हें प्रोत्साहित करने का जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले अपने लोकप्रिय कार्यक्रम 'उत्तरायण' के माध्यम से देशभर में पहाड़ की संस्कृति का लंबे समय तक प्रचार-प्रसार किया,उसके लिए उन्हें उत्तराखंड के लोग सदा याद रखेंगे. जिज्ञासु जी को प्रारम्भ से ही कविताएं और कहानियां लिखने का बहुत शौक था. इसलिए इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी. वर्ष 1962 में उनके मित्र जयदेव शर्मा ‘कमल’ ने उन्हें आकाशवाणी में विभागीय कलाकार के रूप में आवेदन करने को कहा. उस समय 1962 में चीनी हमले के बाद भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश के सीमां...