स्मृति-शेष

शांति और मानवीय-चेतना के अभ्यासी आचार्य विनोबा भावे

शांति और मानवीय-चेतना के अभ्यासी आचार्य विनोबा भावे

स्मृति-शेष
विनोबा भावे की 125वीं जयंती  पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र एक ओर दुःस्वप्न जैसा कठोर यथार्थ और दूसरी ओर कोमल आत्म-विचार! दोनों को साथ ले कर दृढ़ता पूर्वक चलते हुए अनासक्त भाव से जीवन के यथार्थ से becauseजूझने को कोई सदा तत्पर रहे यह आज के जमाने में कल्पनातीत ही लगता है. परंतु ‘संत’ और ‘बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध भारतीय स्वातंत्र्य की गांधी-यात्रा के अनोखे सहभागी शांति के अग्रदूत श्री बिनोवा भावे की यही एक व्याख्या हो सकती है. but वे मूलतः एक देशज चिंतक थे जिन्होने स्वाध्याय और स्वानुभव के आधार पर अपने विचारों का निर्माण किया था. उनका गहरा सरोकार अध्यात्म से था पर उनका अध्यात्म जीवंत और लोक-जीवन से जुड़ा था. वे अपनी अध्ययन-यात्रा के दौरान विभिन्न धर्म-परम्पराओं के सिद्धांतों और अभ्यासों से परिचित होते रहे. अनेक भाषाएँ सीखीं और साधारण जीवन का अभ्यास किया. यात्रा उनकी अविचल निष्ठा लौ...
शहीद 30 ड्राइवर-कंडक्टर भाईयों को याद एवं नमन

शहीद 30 ड्राइवर-कंडक्टर भाईयों को याद एवं नमन

स्मृति-शेष
सतपुली त्रासदी की पुण्यतिथि (14 सितम्बर, 1951) पर विशेष डॉ. अरुण कुकसाल द्वी हजार आठ भादों का मास, सतपुली मोटर बोगीन खास.... हे पापी नयार कमायें त्वैकू, मंगसीरा मैना ब्यो छायो मैकू....... मेरी मां मा बोल्यान नी रयीं आस, सतपुली मोटर बोगीन खास. सतपुली (सतपुली नयार बाढ़ दुर्घटना-गढ़माता के निरपराध ये वीर पुत्र मोटर मजदूर जन यातायात की सेवार्थ 14 सितम्बर, 1951 ई. को अपनी गाड़ियों सहित सतपुली नयार नदी की प्रचन्ड बाढ़ में सदैव के because लिए विलीन हो गये. यह स्मारक उन बिछड़े हुए साथियों की यादगार के लिए यातायात के मजदूरों के पारस्परिक सहयोग से गढ़वाल 14 सितम्बर मोटर मजदूर यूनियन द्वारा स्थापित किया गया है- गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन द्वारा निर्मित.) नयार सतपुली बाजार से पूर्वी नयार नदी के दांये ओर बिजली दफ्तर परिसर में स्थापित स्मारक पर उक्त पंक्तियां लिखी हैं. आज से 69 सा...
स्वंत्रता संघर्ष के क्रांतिकारी जननायक पं.गोविंद बल्लभ पंत 

स्वंत्रता संघर्ष के क्रांतिकारी जननायक पं.गोविंद बल्लभ पंत 

स्मृति-शेष
पं. गोविंद बल्लभ पंत की जन्मजयंती (10 सितंबर) पर डॉ. मोहन चंद तिवारी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की संघर्ष पूर्ण कहानी आज भी लोगों के दिलों में क्रांति की अलख जलाती है. ऐसे ही स्वतंत्रता संघर्ष के  क्रांतिकारी जननायकों में से पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी की आज जन्म जयंती है. उत्तराखंड के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और भारत रत्न से सम्मानित पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी का जब हम एक क्रांतिकारी स्वंत्रता सेनानी के रूप में और एक व्यवहार कुशल राजनेता के रूप में मूल्यांकन करते हैं तो उत्तराखंड के जन नायक होने के नाते भी विशेष आदर का भाव उमड़ने लगता है. पंडित पंत जी का राजनीतिक जीवन शुचिता, कर्मठता और व्यवहारिक कुशलता की दृष्टि से भी एक मिसाल के तौर पर आज याद किया जाता रहा है.स्वाधीनता के लिए इस उत्तराखंड के  क्रांतिकारी योगदान को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है...
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक

स्मृति-शेष
विपिन त्रिपाठी की पुण्यतिथि (30 अगस्त) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी “गांव से नेतृत्व पैदा होने तक मैं गांव में रहना पसंद करूंगा. सत्ता पगला देती है. समाजवादी बौराई सत्ता से दूर रहें.”                                 -विपिन त्रिपाठी 30 अगस्त को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक और द्वाराहाट क्षेत्र के विकास पुरुष श्री विपिन त्रिपाठी जी की पुण्यतिथि है. उत्तराखण्ड की आजादी और वहां की जनता के मौलिक अधिकारों के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करने वाले जननायकों में कुछ ही ऐसे नेता हैं जिन्हें देवभूमि उत्तराखण्ड का गौरव माना जा सकता है, उनमें द्वाराहाट क्षेत्र के संघर्षशील नेता, जुझारू पत्रकार, ‘द्रोणांचल प्रहरी’ के संपादक, कर्मठ समाज सेवी, क्षेत्र के विधायक और उक्रांद के अध्यक्ष रहे स्व. विपिन त्रिपाठी जी का नाम सबसे ऊपर आता है. उत्तराखंड आंदोलन समेत समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जन आंदोलनो...
सत्ता के मद में सरकारों ने भुला दिया सालम के वीर शहीदों को

सत्ता के मद में सरकारों ने भुला दिया सालम के वीर शहीदों को

स्मृति-शेष
25 अगस्त के शहीदी दिवस पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज के ही के दिन 25 अगस्त,1942 को सालम के धामद्यो में अंग्रेजी सेना तथा क्रांतिकारियों के बीच हुए युद्ध में नर सिंह धानक तथा टीका सिंह कन्याल शहीद हो गए थे. किंतु देश इन क्रांतिकारियों के बारे में कितना जानता है? वह तो दूर की बात है उत्तराखंड के कुछ गिने चुने लोगों को ही यह याद है कि देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इन दो क्रांतिकारियों का आज शहीदी दिवस है.पर इतिहास साक्षी है कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में इन दोनों उत्तराखंड के क्रांतिकारियों का नाम  स्वर्णाक्षरों में लिख दिया गया है - नरसिंह धानक (1886-1942) टीका सिंह कन्याल (1919-1942) गौरतलब है कि नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी द्वारा मुंबई में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन शुरू करने के एक सप्ताह बाद  'करो या मरो' की गांधी जी की ललकार के साथ ही सालम की ज...
शिक्षा प्रसार का ऐसा जुनून प्रताप भैया में ही देखा जा सकता था

शिक्षा प्रसार का ऐसा जुनून प्रताप भैया में ही देखा जा सकता था

स्मृति-शेष
प्रताप भैया की 10वीं पुण्यतिथि पर विशेष भुवन चन्द्र पन्त लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति का ककहरा शुरू कर महज 25 वर्ष में उत्‍तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य और 35 वर्ष की उम्र में उत्‍तर प्रदेश में पहली बार बनी गैरकांग्रेसी सरकार में कैबिनेट मंत्री का ओहदा पा लेने वाले प्रताप भैया यदि राजनीति के लिए बने होते तो शायद शीर्ष तक पहुंचते. लेकिन चाटुकारिता से कोसों दूर राजनीति को उन्होंने मात्र समाजसेवा के माध्यम से ज्यादा तवज्जो ही नहीं दी. लखनऊ या दिल्ली में ही बैठकर राजनीति करते तो आजीविका का प्रश्न था, इसलिए जब मंत्री पद छोड़ा तो सीधे अपने वकालत के पेशे में जुट गये. जब लोग उनसे दिल्ली,  लखनऊ में बैठकर राजनीति करने की सलाह देते तो उनका उत्तर होता, समाजसेवा केवल पद पर बैठकर ही नहीं की जा सकती,  हां नीति निर्माण में सक्रिय भागीदारी अवश्य रहती है, जब कि एक वकील के पेशे के साथ भी समाजसेवा के सा...
जैंता एक दिन तो आलो, ऊ दिन यो दुनी में…

जैंता एक दिन तो आलो, ऊ दिन यो दुनी में…

स्मृति-शेष
'गिर्दा’ की पुण्यतिथि (22अगस्त) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी 22 अगस्त को उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की 10वीं पुण्यतिथि है. गिर्दा उत्तराखंड राज्य के एक आंदोलनकारी जनकवि थे, उनकी जीवंत कविताएं अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देतीं हैं. वह लोक संस्कृति के इतिहास से जुड़े गुमानी पंत तथा गौर्दा का अनुशरण करते हुए ही राष्ट्रभक्ति पूर्ण काव्यगंगा से उत्तराखंड की देवभूमि का अभिषेक कर रहे थे. हर वर्ष मेलों के अवसर पर देशकाल के हालातों पर पैनी नज़र रखते हुए झोड़ा- चांचरी के पारंपरिक लोककाव्य को उन्होंने जनोपयोगी बनाया. इसलिए वे आम जनता में ‘जनकवि’ के रूप में प्रसिद्ध हुए. आंदोलनों में सक्रिय होकर कविता करने तथा कविता की पंक्तियों में जन-मन को आन्दोलित करने की ऊर्जा भरने का अंदाज 'गिर्दा’ का निराला और रंगीला भी था. उनकी कविताएं बेहद व्यंग्यपूर्ण तथा तीर की तरह घायल करने ...
महात्मा रामरत्न थपलियाल-एक गुमनाम संत और वैज्ञानिक

महात्मा रामरत्न थपलियाल-एक गुमनाम संत और वैज्ञानिक

स्मृति-शेष
डॉ. अरुण कुकसाल महात्मा रामरत्न थपलियाल जी की लिखित सन् 1930 में प्रकाशित पुस्तक 'विश्वदर्शन' को पढ़कर दो बातें एक साथ मेरे मन-मस्तिष्क में कौंधी, कि हम कितना कम जानते हैं अपने आस-पास के परिवेश को, और अपनों को. दूसरी बात कि हमारे स्थानीय समाज में अपने घर-परिवार-इलाके-समाज के व्यक्तित्वों की विद्वता एवं उनके प्रयासों-कार्यों को यथोचित सहयोग-सम्मान देने की मनोवृत्ति क्यों नहीं विकसित हो पाई है? 'विश्वदर्शन' किताब दार्शनिक जगत की बहुचर्चित रचना है. विश्चस्तर पर यह पुस्तक जानी जाती है. 'महात्मा गांधी', 'महामना मदन मोहन मालवीय', 'रवीन्द्रनाथ टैगोर', 'पुरुषोत्तम दास टंडन', 'महिर्षि अरविन्द', आदि ने इस किताब पर महत्वपूर्ण प्रशंसनीय टिप्पणियां दी हैं. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद के कल्जीखाल विकासखंड के 'चिलोली' गांव में सन् 1901 में जन्मे, बड़े हुए और आजीवन अपने गांव में रहे महात्मा रामरत्...
“पहाड के गांधी” और उत्तराखंड आंदोलन के जन नायक इंद्रमणि बडोनी      

“पहाड के गांधी” और उत्तराखंड आंदोलन के जन नायक इंद्रमणि बडोनी      

स्मृति-शेष
बडोनी जी की पुण्यतिथि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 18 अगस्त को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में ‘पहाड के गांधी’ के रूप में याद किए जाने वाले श्री इन्द्रमणि बडोनी जी की पुण्यतिथि है. मगर दुःख के साथ कहना पड़ता है कि उत्तराखंड की जनता के द्वारा इस जन नायक की पुण्यतिथि जिस कृतज्ञतापूर्ण हार्दिक संवेदनाओं के साथ मनाई जानी चाहिए उसका अभाव ही नजर आता है. इससे सहज में ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की राजनीति आज किस प्रकार की विचारशून्य, स्वार्थपूर्ण और निराशा के दौर से विचरण कर रही है? इतिहास साक्षी है कि जो कौम या समाज अपने स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुला देता है, वह ज्यादा दिनों तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकता. उत्तराखंड की सम्पूर्ण जनता अपने महानायक के पीछे लामबन्द हो गयी थी. बीबीसी ने तब कहा था, ‘‘यदि आपने जीवित एवं चलते फिरते गांधी को देखना है तो...
‘विकट से विशिष्ट’ जीवन-यात्रा

‘विकट से विशिष्ट’ जीवन-यात्रा

स्मृति-शेष
पूर्णानन्द नौटियाल (सन् 1915 - 2001) डॉ. अरुण कुकसाल बचपन में मिले अभावों की एक खूबी है कि वे बच्चे को जीवन की हकीकत से मुलाकात कराने में संकोच या देरी नहीं करते. घनघोर आर्थिक अभावों में बीता बचपन जिंदगी-भर हर समय जीवनीय जिम्मेदारी का अहसास दिलाता रहता है. उस व्यक्ति को पारिवारिक-सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन करते हुए ही अपने व्यक्तिगत विकास की गुंजाइश का लाभ उठाना होता है. जीवनीय 'अभावों के प्रभावों' में उस व्यक्ति के साथ अन्य मनुष्यों का व्यवहार सामान्यतया तटस्थता के भावों को लिए रहता है. यह सामाजिक तटस्थता अक्सर निष्ठुरता के रूप में मुखरित होती है. लेकिन वह व्यक्ति अपने प्रति इस सामाजिक संवेदनहीनता को सहजता से ही ग्रहण करता है. एक शताब्दी पूर्व हमारे समाज में जन्मे पूर्णानंद नौटियाल जी को मेरी तरह आप भी नहीं जानते होंगे. यह स्वाभाविक भी है. क्योंकि हमारे परिवार-समाज में...