स्मृति-शेष

असहमति के साथ चलने वाला साथी

असहमति के साथ चलने वाला साथी

स्मृति-शेष
प्रखर समाजवादी एवं उत्तराखंड राज्य आंदोलन के शिल्पी बिपिन त्रिपाठी की जयन्ती (23 फरवरी) पर विशेष चारु तिवारी अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट विकासखंड में एक छोटी सी जगह है बग्वालीपोखर. वहीं इंटर कालेज में हम लोग पढ़ते थे. कक्षा नौ में. यह 1979 की बात है. पिताजी यहीं प्रधानाचार्य थे. उन्होंने बताया कि पोखर में विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. डीडी पंत आने वाले हैं. पिताजी कर्इ बार उनके बारे में बताते थे. जब वे डीएसबी कालेज, नैनीताल because में पढ़ते थे तब पंतजी शायद वहां प्रवक्ता बन गये थे. हम गांवों के रहने वाले बच्चे. हमारे लिये वैज्ञानिक जैसे शब्दों का मतलब ही किसी दूसरे लोक की कल्पना थी. बड़ी उत्सुकता हुई उन्हें देखने की. बग्वालीपोखर उस समय बहुत छोटी जगह थी. बस कुछ दुकानें. एक रामलीला का मैदान. पुराने पोखर में. उसके सामने एक धर्मशाला. उसके बगल में जशोदसिंह जी की दुकान. वहीं पर एक चबूतरा. ...
कौन कहता है मोहन उप्रेती मर गया है!

कौन कहता है मोहन उप्रेती मर गया है!

स्मृति-शेष
लोक के चितेरे मोहन उप्रेती की जयंती (17 फरवरी, 1928) पर विशेष चारु तिवारी उस शाम मैं गुजर रहा था उद्दा की दुकान के सामने से, अचानक दुकान की सबेली में खड़े मोहन ने आवाज दी- ‘कहां जा रहा है ब्रजेन्द्र? यहां तो आ.’ क्या है यार? because घूमने भी नहीं देगा.’ और मैं खीज कर उदेसिंह की दुकान के सामने उसके साथ घुस गया. उसके सामने ही लगी हुर्इ लकड़ी की खुरदरी मेज थी. मोहन कुछ उत्तेजित-सा लग रहा था. मेज को तबला मानकर वह उसमें खटका लगाकर एक पूर्व प्रचलित कुमाउनी गीत को नितान्त नई धुन तथा द्रुत लय में गा रहा था. वह बार-बार एक ही बोल को दुहरा रहा था. उस गीत की नर्इ और चंचल because धुन मुझे भी बहुत अच्छी लग रही थी. गीत था- अपनेपन बेडू पाको बारामासा हो नरैण काफल पाको so चैता मेरी छैला. रूणा-भूणा because दिन आयो हो नरैण पूजा but म्यारा मैता मेरी छैला. मोहन बार-बार यही धुन दुहरा रहा था. ‘अर...
उत्तराखंड आंदोलन के जननायक इन्द्रमणि बडोनी   

उत्तराखंड आंदोलन के जननायक इन्द्रमणि बडोनी   

स्मृति-शेष
जन्मजयंती पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 24 दिसम्बर उत्तराखंड राज्य आंदोलन because के जननायक श्री इन्द्रमणि बडोनी जी की जन्मजयंती है.उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में बडोनी जी ‘पहाड के गांधी’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं. उत्तराखंड मगर दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इस जननायक की जन्मजयंती पर जिस कृतज्ञतापूर्ण हार्दिक संवेदनाओं के साथ उत्तराखंड की जनता के द्वारा इस महानायक को याद किया जाना चाहिए था but उस तरह की जनभावनाओं का उत्तराखंड समाज में अभाव ही नजर आता है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की राजनीति आज किस प्रकार की वैचारिक शून्यता और अवसरवाद के दौर से गुजर रही है? because इतिहास साक्षी है कि जो कौम या देश अपने स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुला देता है वह ज्यादा दिनों तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकता. नदी उत्तराखंड की सम्पूर्ण जनता अपने because इस मह...
बुझ गई पहाड़ पर लालटेन…

बुझ गई पहाड़ पर लालटेन…

स्मृति-शेष
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि : प्रसिद्ध कवि और लेखक मंगलेश डबराल का निधन   चारु तिवारी बहुत विचलित करने वाली खबर आ रही है. हमारे अग्रज, प्रिय कवि, जनसरोकारों के लिये प्रतिबद्ध मंगलेश डबराल जी जिंदगी की जंग हार गये हैं. पिछले दिनों वे बीमार हुये तो लगातार हालत बिगड़ती गई. बीच में थोड़ा उम्मीद बढ़ी थी लेकिन आज ऐसी खबर मिली जिसे हम सुनना नहीं चाहते. उनका निधन हम सबके लिये आघात है. मंगलेश डबराल जी को विनम्र श्रद्धांजलि. बीमार यह 1998 की बात है. वे मुझे अचानक भरी बस में मिल गये. नोएडा से दिल्ली आते वक्त. उन दिनों शाहदरा से नोएडा के लिये एक बस लगती थी. इसे शायद एक नंबर बस कहते थे. यह हमेशा खचाखच भरी रहती थी. पांव रखने की जगह नहीं होती. शाम के समय तो बिल्कुल नहीं. मैं जहां से बस लगती थी, वहीं से बैठ गया था. दो-तीन स्टॉप के बाद वो भी बस में चढ़े. मेरी सीट के बगल में लोगों से पिसकर खड़े हो गय...
सामाजिक समता के शिल्पकार बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर

सामाजिक समता के शिल्पकार बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर

स्मृति-शेष
अम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस पर विशेष       डॉ. मोहन चंद तिवारी भारतीय संविधान के निर्माता भारतरत्न बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर भारत में एक ऐसे वर्ग विहीन समाज की संरचना चाहते थे जिसमें जातिवाद, वर्गवाद, सम्प्रदायवाद तथा because ऊँच-नीच का भेद नहीं हो और प्रत्येक मनुष्य अपनी अपनी योग्यता के अनुसार सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए स्वाभिमान और सम्मानपूर्ण जीवन जी सके. दलितों को स्वावलम्बी बनाने के लिए अम्बेडकर ने दलित समाज को त्रिसूत्री आचार संहिता प्रदान की जिसके तीन सूत्र हैं - शिक्षित बनो, संगठित होओ तथा संघर्ष करो. बाबा साहेब ने इस त्रिसूत्री आन्दोलन के माध्यम से समाज के उपेक्षित, कमजोर तथा so सदियों से सामाजिक शोषण से संत्रस्त दलित वर्ग को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य ही नहीं किया बल्कि एक समाज सुधारक विधिवेत्ता की हैसियत से भी उन्होंने दलितवर्ग को भारतीय...
शैलेश मटियानी जन्मतिथि पर भावपूर्ण स्मरण

शैलेश मटियानी जन्मतिथि पर भावपूर्ण स्मरण

स्मृति-शेष
जन्मतिथि (14  अक्टूबर) पर विशेष डॉ. अमिता प्रकाश “दुख ही जीवन की कथा रही क्या कहूँ आज जो नहीं कही.” निराला जी की ये पंक्तियाँ जितनी हिंदी काव्य के महाप्राण निराला के जीवन को उद्घाटित करती हैं उतनी ही हमारे कथा साहित्य में अप्रतिम स्थान रखने वाले so रमेश चंद्र सिंह मटियानी का, जिन्हें विश्व साहित्य शैलेश मटियानी के नाम से जानता है. जुआरी बिशन सिंह के बेटे और बूचड़ के भतीजे कि रूप में दुत्कारित यह ’मुल्या छोरा’ किस so प्रकार हिंदी साहित्याकाश का दैदिप्यमान नक्षत्र बना यह अपने आप में कम रोचक कथा नहीं है. उनका साहित्य वस्तुतः उनके जीवन का विस्तार है जो कुछ भोगा वही शब्दों में ढाला. because उनके पास लेखन के लिये इतना भी समय नहीं था कि वह अपने लेखन का सौंदर्यीकरण कर पाते,  दस -बीस पृष्ठ लिखे नहीं कि दो पैसे की चाह में उन्हें छपवाने भेज दिया करते थे. मत लेखन उनके लिए जुनून के साथ-सा...
नहीं रहे हिमालय पर्यावरणविद् भूवैज्ञानिक प्रो. वल्दिया

नहीं रहे हिमालय पर्यावरणविद् भूवैज्ञानिक प्रो. वल्दिया

स्मृति-शेष
डॉ. मोहन चंद तिवारी अत्यंत दुःखद समाचार है कि हिमालय पर्यावरणविद् अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भूवैज्ञानिक पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित प्रोफेसर खड्ग सिंह वल्दिया का 83 साल की उम्र में कल 29 सितंबर को निधन हो गया.वे इन दिनों बेंगलुरु में थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे.प्रो.वल्दिया उत्तराखंड के पिथौरागढ़ सीमांत जिले आठगांव शिलिंग के देवदार (खैनालगांव) के मूल निवासी थे. वह कुमाऊं विवि के कुलपति भी रहे थे. पिथौरागढ़ सन्त 2015 में भूगर्भ वैज्ञानिक because प्रो.के.एस. वल्दिया को भूगर्भ क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर पद्म भूषण सम्मान मिला था.इससे पहले 2007 में उन्हें भूविज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए पद्मश्री सम्मान मिला था. प्रो.वल्दिया भू वैज्ञानिक होने के साथ साथ कवि और लेखक भी थे. प्रो.वल्दिया ने कुल चौदह पुस्तकें लिखी, जिनमें मुख्य पुस्तकें हैं ...
उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी एवं राज संत हरिदत्त काण्डपाल

उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी एवं राज संत हरिदत्त काण्डपाल

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (24 सितम्बर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 24 सितम्बर उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राज संत श्री हरिदत्त काण्डपाल जी की पुण्यतिथि है. स्व. हरि दत्त कांडपाल ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पूरे पाली पछाऊं क्षेत्र में आजादी के becauseआंदोलन की अलख जलाई.आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेज हुक्मरानों की नाक में दम कर दिया था,जिसकी वजह से उन्हें कई बार कठोर कारावास हुई.आजादी के बाद स्व. हरिदत्त कांडपाल 1957 से 1974 तक लगातार द्वाराहाट क्षेत्र के विधायक रहे. यूपी शासनकाल में वह वनमंत्री भी थे. जागरी गौरतलब है कि अंग्रेजी हुकुमत के दौरान गांधी जी के आह्वान पर उत्तराखंड में स्वराज प्राप्ति के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के जन आंदोलन के रूप में सल्ट क्रांति और सन 1942 में समूचे देश में 'भारत छोड़ो' आंदोलन का जो बिगुल बजा,उसमें पाली पछाऊं व द्वाराहाट- soरानीखेत क्षेत...
युवा मन के शेर: शमशेर 

युवा मन के शेर: शमशेर 

स्मृति-शेष
वराहमिहिर डॉ. अरुण कुकसाल  ‘आज शाम ठीक 4 बजे चौघानपाटा में... के खिलाफ आम जन की आवाज बुलंद करने के लिए शमशेर बिष्ट एवं उनके साथी एक सभा को संबोधित करेगें.’ रैमजे इंटर कालेज, अल्मोडा के मेन फाटक पर हाथ में छोटा चैलेंजर (माइक) लिए एक युवा बाजार में चलते-फिरते लोगों को शाम की सभा की सूचना दे रहा था. शमशेर बिष्ट नाम becauseसे मैं अखबारों और पत्रिकाओं के माध्यम से वाकिफ था. वैसे पुरानी टिहरी में रहते हुए चिपकों की पद यात्राओं और कार्यक्रमों में जब भी कुमाऊं की बात आती तो उसमें शमशेर बिष्ट का जिक्र जरूर होता था. मैं बिल्कुल पास जाकर उस युवा को देखता हूं. दमदार आवाज, खूबसूरत चेहरा, छोटी और तीखी आखें, दशहरे के हल्के सर्द दिनों की सरसरी हवा उस युवा के माथे पर आये लम्बे-घने बालों को लहराते हुए उड़ा रही थी. पर उससे बेखबर वो शक्स शाम की सभा के बारे में और भी बातें बताता जा रहा था. बेखबर यार...
आज बहुत याद आते हैं ‘हिरदा कुमाउंनी’

आज बहुत याद आते हैं ‘हिरदा कुमाउंनी’

स्मृति-शेष
हीरा सिंह राणा के जन्मदिन (16 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी 16 सितंबर को उत्तराखंड लोक गायिकी के पितामह, लोकसंगीत के पुरोधा तथा गढ़वाली-कुमाउंनी  और जौनसारी अकादमी, दिल्ली सरकार के उपाध्यक्ष रहे श्री हीरा सिंह राणा जी का जन्मदिन है. बहुत  दुःख की बात है कि कुमाउंनी लोक संस्कृति को अपनी पहचान से जोड़ने वाले 'हिरदा कुमाउंनी ' आज हमारे बीच नहीं हैं. becauseअभी कुछ महीने पहले उनका निधन हो गया है. विश्वास नहीं होता है कि “लस्का कमर बांध, हिम्मत का साथ फिर भोल उज्याई होलि,  कां ले रोलि रात”- जैसे ऊर्जा भरे बोलों से जन जन को कमर कस के हिम्मत जुटाने का साहस बटोरने और रात के अंधेरे को भगाकर उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देने वाले 'हिरदा' इतनी जल्दी अपने चाहने वालों से विदा ले लेंगे. लोक संस्कृति के संवाहक राणा जी का अचानक चला जाना समूचे उत्तराखण्डी समाज के लिए बहुत दुःखद है और पर्वतीय ...