स्मृति-शेष

यों ही नहीं कहा गया था प्रताप भैया को पहाड़ का मालवीय

यों ही नहीं कहा गया था प्रताप भैया को पहाड़ का मालवीय

स्मृति-शेष
ग्यारहवीं पुण्यतिथि विशेष भुवन चंद्र पंत कहते हैं कि यदि एक महिला को शिक्षित करोगे तो उसकी आने वाली पूरी पीढ़ी शिक्षित होगी और यदि एक स्कूल खुलेगा तो 100 जेलों के स्वतः दरवाजे बन्द होंगे. शिक्षा सभ्य because समाज का वह प्रवेश द्वार है, जहां से व्यक्तित्व के विकास के सारे दरवाजे खुलते हैं. इसलिए विद्यादान को सर्वोपरि माना गया है. एक विद्यालय खोलना मतलब अनन्त काल तक उसके माध्यम से अनन्त पीढ़ियों का उद्धार. लेकिन यदि आपने सैंकड़ों स्कूल खोलकर समाज को शिक्षित करने का कार्य किया है, तो निःसंदेह इससे बड़ा परोपकार कोई हो नहीं सकता. नैनीताल नैनीताल के प्रताप भैया ने दर्जनों विद्यालय खोलकर ऐसा ही कुछ कर दिखाया, जिससे उन्हें उत्तराखण्ड के मालवीय कहा गया. इन विद्यालयों के प्रारंभिक दौर में घर-धर जाकर चन्दा इकट्ठा करने से लेकर आवश्यक संसाधन जुटाने को लेकर किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा यह तो या उन ...
‘गिर्दा’: उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि और युगद्रष्टा चिंतक भी

‘गिर्दा’: उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि और युगद्रष्टा चिंतक भी

स्मृति-शेष
गिर्दा' की 11वीं पुण्यतिथि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी     22 अगस्त को उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की 11वीं पुण्यतिथि है. गिर्दा उत्तराखंड राज्य के एक आंदोलनकारी जनकवि थे,उनकी जीवंत कविताएं अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देतीं हैं. वह लोक संस्कृति के इतिहास से जुड़े गुमानी पंत तथा गौर्दा का अनुशरण करते हुए ही राष्ट्रभक्ति पूर्ण काव्यगंगा से because उत्तराखंड की देवभूमि का अभिषेक कर रहे थे. हर वर्ष मेलों के अवसर पर देशकाल के हालातों पर पैनी नज़र रखते हुए झोड़ा- चांचरी के पारंपरिक लोककाव्य को उन्होंने जनोपयोगी बनाया. इसलिए वे आम जनता में ‘जनकवि’ के रूप में प्रसिद्ध हुए. संसाधनों आंदोलनों में सक्रिय होकर कविता करने तथा कविता की पंक्तियों में जन-मन को आन्दोलित करने की ऊर्जा भरने का गिर्दा’ का because अंदाज निराला ही था. उनकी कविताएं बेहद व्यंग्यपूर्ण तथा तीर क...
भारतराष्ट्र का गुणगान रवींद्रनाथ टैगोर का राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’

भारतराष्ट्र का गुणगान रवींद्रनाथ टैगोर का राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’

स्मृति-शेष
गुरुदेव रवींद्र की पुण्यतिथि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 7 अगस्त को गांधी जी को 'महात्मा' का सम्मान देने वाले कवि, उपन्‍यासकार, नाटककार, चित्रकार रवींद्रनाथ टैगोर की 80वीं पुण्यतिथि है. 7 अगस्त 1941 को गुरुदेव का निधन हो गया था. वे ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्‍होंने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपनी अनूठी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया. रवींद्रनाथ टैगोर भारत ही नहीं एशिया के प्रथम व्‍यक्ति थे, जिन्‍हें नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था. उन्हें 1913 में उनकी कृति 'गीतांजली' के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. कहा जाता है कि नोबेल पुरस्कार गुरुदेव ने सीधे स्वीकार नहीं किया. उनकी ओर से ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था और फिर उनको दिया था. टैगोर ने कविता, साहित्य, दर्शन, नाटक, संगीत और चित्रकारी समेत कई विधाओं में अपनी मौलिक प्रतिभा का ...
प्रेमचन्द का भारत-बोध

प्रेमचन्द का भारत-बोध

स्मृति-शेष
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के सिद्धहस्त कथाकार मुंशी प्रेमचंद का तीन दशकों का लेखन भारत की सामुदायिक समरसता का एक अद्भुत दस्तावेज प्रस्तुत करता है. बीसवीं सदी के आरंभिक काल की उनकी रचनाएं आम आदमी की ख़ास उपस्थिति को रेखांकित करती हैं. मोहक आख्यान के कथा-सूत्रों से अपने पाठक को बाँध कर चलने वाली उनकी कहानियां आदर्श और यथार्थ के बीच आवाजाही करते हुए एक संतुलित मानवीय दृष्टि विकसित करने की कोशिश करती हैं. उनके कथा-शिल्प की कलात्मक झंकृति एक अनोखे सौन्दर्य-बोध का संकेत देती हैं . वे साधारण सी साधारण वस्तु या घटना के व्याज से सहज और सीधा होते हुए भी हृदयस्पर्शी  चित्र उअस्थित करते है. उसकी ग्र्याह्यता का दायरा समाज के बड़े व्यापक वर्ग को सहज ही अपना मुरीद बना लेता है . होरी, घीसू-माधो या हामिद जैसे उनके रचे पात्र पाठकों के  मनो जगत में अविस्मरणीय प्रतीक बन बन कर जीते रह...
कारगिल के वीर सपूतों को भारतराष्ट्र का कोटि कोटि नमन

कारगिल के वीर सपूतों को भारतराष्ट्र का कोटि कोटि नमन

स्मृति-शेष
कारगिल ‘विजय दिवस’ पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज पूरे भारत में कारगिल विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है।आज के ही दिन 26 जुलाई,1999 को जम्मू और कश्मीर राज्य में नियंत्रण रेखा से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके वेश में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना द्वारा मार भगाया गया था। उसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष '26 जुलाई' का दिन ‘विजय दिवस’ के रूप में याद किया  जाता है और पूरा देश उन वीर और जाबांज जवानों को इस दिन श्रद्धापूर्वक नमन करता है। भारतीय सेना का यह ऑपरेशन विजय 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था। इस कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए थे। कारगिल के इस युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने में उत्तराखंड के 75 जवानों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी थी। दो महीने से भी अधिक समय तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना ...
“मां के पदों में सुमन-सा रख दूं समर्पण शीश को”

“मां के पदों में सुमन-सा रख दूं समर्पण शीश को”

स्मृति-शेष
क्रातिकारी श्रीदेव सुमन की 77वीं पुण्यतिथि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी अपनी जननी और जन्मभूमि के प्रति अपार श्रद्धा तथा बलिदान की भावना रखने वाले उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी, अमर शहीद श्री देव सुमन जी की आज पुण्यतिथि है. आज के ही दिन, 25 जुलाई,1944 को लगभग शाम के करीब चार बजे इस 28 वर्षीय अमर सेनानी नौजवान ने अपनी जन्मभूमि, अपने देश, अपने आदर्श की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. श्री देव सुमन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वे अमर शहीद हैं जिन्होंने न केवल अंग्रेजों का विरोध किया बल्कि टिहरी गढ़वाल रियासत के राजा की प्रजा विरोधी नीतियों का विरोध करते हुए सत्याग्रह और अनशन करते हुए अपने प्राण त्याग दिए. श्री देव सुमन जी की पूरी राजनीति महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों से प्रभावित थी. पर्यावरण “मैं इस बात को स्वीकार so करता हूं कि मैं जहां अपने भारत देश के ...
सांच ही कहत और सांच ही गहत है!

सांच ही कहत और सांच ही गहत है!

स्मृति-शेष
कबीर जयन्ती 24 जून  पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र आज जब सत्य और अस्तित्व के प्रश्न नित्य नए-नए विमर्शों में उलझते जा रहे हैं और जीवन की परिस्थितियाँ विषम होती जा रही हैं सत्य की पैमाइश और भी because जरूरी हो गई है. ऐसा इसलिए भी है कि अब ‘सबके सच’ की जगह किसका सच और किसलिए सच के प्रश्न ज्यादा निर्णायक होते जा रहे हैं. इनके विचार सत्ता, शक्ति और वर्चस्व के सापेक्ष्य हो गए हैं. इनके बीच सत्य अब कई-कई पर्तों के बीच ज़िंदा (या दफ़न!) because रहने लगा है और उस तक पहुँचना एक असंभव संभावना because सी होती जा रही है. शायद अब के  यथार्थप्रिय युग में सत्य होता नहीं है,  सिर्फ उसका विचार ही हमारी पहुँच के भीतर रहता है. सत्य की यह मुश्किल किसी न किसी रूप में पहले भी थी जब तुलनात्मक दृष्टि से सत्य-रचना पर उतने दबाव न थे जितने आज हैं. संस्कृति सत्य के लिए साहस की जरूरत के दौर में कबीर का स्मरण ...
हीरासिंह राणा की गायकी में बसी है पहाड़ से पलायन की टीस

हीरासिंह राणा की गायकी में बसी है पहाड़ से पलायन की टीस

स्मृति-शेष
प्रथम पुण्यतिथि (13जून)  पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी "त्यर पहाड़, म्यर पहाड़ हौय दुःखों को ड्यौर पहाड़"- जैसे गीतों द्वारा पहाड़ के पलायन की टीस को जन जन तक बांटने वाले लोक गायक हीरा सिंह राणा जी की आज 13जून को प्रथम पुण्यतिथि है. "लस्का कमर बांध, हिम्मत का साथ फिर भोल उज्याई होलि,कां ले रोलि रात" -जैसे अपने ऊर्जा भरे बोलों से पहाड़ के लोगों को because कमर कस के हिम्मत जुटाने का साहस बटोरने और रात के अंधेरे को भगाकर उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देने वाले उत्तराखंड लोक गायिकी के पितामह, लोक-संगीत के पुरोधा तथा गढ़वाली कुमाऊंनी और जौनसारी अकादमी,दिल्ली सरकार के उपाध्यक्ष श्री हीरा सिंह राणा जी का पिछले वर्ष 2020 को आज के ही दिन महाप्रयाण हुआ था. नेता जी लोक गायकी की पहचान बने राणा because जी का अचानक चला जाना उत्तराखण्डी समाज के लिए बहुत दुःखद था और पर्वतीय लोक संगीत के लिए अपूरणीय क्...
लोक कलाकार सीना दा अनंत यात्रा पर…

लोक कलाकार सीना दा अनंत यात्रा पर…

स्मृति-शेष
इन्द्र सिंह नेगी देश के विभिन्न भागों में अपने ढोल वादन की विशेष छाप छोड़ने वाले कालसी विकासखंड के गास्की गांव निवासी सत्तर वर्षीय सीना दा आज अनंत यात्रा पर चल लिए ......वो पिछले छ: because माह से टीबी व पेट के इन्फेक्शन से जूझ रहे थे तथा उनका इलाज एम्स ऋषिकेश से चल रहा था. विगत में हरिद्वार में हुए नमो नाद कार्यक्रम में उन्हे "गुरू" की उपाधि से विभूषित किया गया था. अंक शास्त्र सीना दा राज्य के उन गिने-चुने ढोल because वादन के विशेषज्ञों में सम्मिलित थे जिन्हे इस विधा की बारीक समझ थी, वो अपनी कला से लोगों का मन मोह लेते थे. नौबत, बधाई, धार्मिक अनुष्ठान, पंडवाणी, झैन्ता, रासो वादन आदि से लेकर लोक गायन तक में उन्हे महारत हासिल थी. अंक शास्त्र हमारी लोक विरासत के ये जानकर धीरे-धीरे अनंत यात्रा पर निकलते जा रहे और उनके साथ उनकी लोक कलायें भी समाप्त होती जा रही है, हमारी सरकारों के एजें...
प्रकृति से सहभाहिगता के पक्षधर मनीषी

प्रकृति से सहभाहिगता के पक्षधर मनीषी

स्मृति-शेष
चारु तिवारी ‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार. मिट्टी, पानी और बयार,  जिन्दा रहने के आधार.’  पर्यावरण और हिमालय की हिफाजत की समझ को विकसित करने वाले इस नारे के साथ एक पीढ़ी बड़ी हुई. इस नारे को जन-जन तक पहुंचाने वाले हिमालय प्रहरी सुन्दरलाल बहुगुणा के साथ. साठ-सत्तर के दशक में हिमालय और पर्यावरण को जानने-समझने की जो चेतना विकसित हुई उसमें सुन्दरलाल बहुगुणा के योगदान को हमेशा याद because किया जायेगा. पर्यावरण और हिमालय को जानने-समझने वालों के अलावा एक बड़ी जमात है जो उन्हें एक आइकॉन की तरह देखती रही है. कई संदर्भों में, कई पड़ावों में. उन्हें पहचान भले ही एक पर्यावरणविद के रूप में मिली, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, सामाजिक समरसता के लिये काम करने वाले कार्यकर्ता, महिलाओं और दलित समाज में गैरबराबरी लिये उन्होंने बड़ा काम किया. एक सजग पत्रकार के रू...