साहित्‍य-संस्कृति

बुद्ध का स्मरण संतप्त जीवन की औषधि है

बुद्ध का स्मरण संतप्त जीवन की औषधि है

साहित्‍य-संस्कृति
बद्ध पूर्णिमा पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  हम सभी अच्छी तरह जीना चाहते हैं परन्तु दिन प्रतिदिन की उपलब्धियों का हिसाब लगाते हुए संतुष्टि नहीं होती है. दिन बीतने पर खोने पाने के बारे में सोचते हुए और जीवन में अपनी भागीदारी पर गौर करते हुए आश्वस्ति कम और आक्रोश, because घृणा, असहायता, कुंठा और शिकायतों का ढेर लग जाता है. मन के असीम स्वप्न और सीमित भौतिक यथार्थ के बीच प्रामाणिक, समृद्ध और पूर्ण जीवन की तलाश तमाम भ्रांतियों और अंतर्विरोधों से टकराती रहती है. आज जब सब कुछ ऊपर नीचे हो रहा है तो क्या सोचें और क्या चुनें यह मुश्किल चुनौती होती जा रही है. दी हुई परिस्थितियों में कुशलतापूर्वक कैसे जियें यह इस पर निर्भर करता है कि हमारी दृष्टि कैसी है. हम स्वयं अपने शरीर की और अपने because विचारों की चेतना भी रखते हैं और अपने अनुभवों की समझ भी विकसित करते रहते हैं. हम कहाँ स्थित हैं ? क्या पाना...
जीवन का प्रयोजन है आत्म विस्तार  

जीवन का प्रयोजन है आत्म विस्तार  

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस के किष्किंधा काण्ड में प्रश्न करते हैं कि शरीर धारण करने का क्या परिणाम है और कहते हैं  इसका प्रयोजन राम भक्ति है : धरे कर यह फलु भाई, because भजिय राम सब काम बिहाई . यहाँ  शरीर की उपादेयता या देह धारण करने की फलश्रुति सब कुछ छोड़ कर श्रीराम के भजन में प्रतिपादित करती है. शरीर का अर्थ है एक भौतिक रचना जो गोस्वामी जी के शब्दों में ‘क्षिति (भूमि), जल, पावक (अग्नि), गगन (आकाश) समीरा (वायु) ’ के सूत्र के अंतर्गत निर्मित और संचालित होती है. यह शरीर हमें एक ठोस आधार प्रदान करता है और ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की सहायता से हम विभिन्न कार्य संपादित करते हैं. मानस (अंत:करण), बुद्धि और अहंकार मिल कर हमारे लिए सोचना और कल्पना करना संभव बनाते हैं. ज्योतिष कालिदास की मानें तो शरीर ही धर्माचरण का प्रमुख साधन है: शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम ! ...
अल्मोड़ा अंग्रेज आयो… टैक्सी में

अल्मोड़ा अंग्रेज आयो… टैक्सी में

साहित्‍य-संस्कृति
विनोद उप्रेती ‘वागाबोंड’ अल्मोड़ा में अंग्रेज टैक्सी से आया या घोड़े पर, यह तो काल-यात्रा से ही पता लगेगा लेकिन उसका यहां तक पहुंचना, औपनिवेशिक विस्तार के बहुत बड़े आख्यान का छोटा सा हिस्सा भर है. जब अंग्रेज अल्मोड़ा आ रहा था, तब वह because सातों महाद्वीपों पर कहीं न कहीं और भी जा रहा था. ग्लोब के हर हिस्से में अपनी श्रेष्ठता की गंद मचाता वह कुदरत पर विजय हासिल करने के दंभ में चोटियों पर झंडे गाड़ रहा था, सागरों में नावें तैरा रहा था, और मछलियाँ मार रहा था.  पाताल से हीरे-जवाहरात चुरा रहा था, और जंगली जानवरों की खाल उतार जूते और बेल्ट बना रहा था. ज्योतिष इस ताकतवर लालची की भूख अनंत थी जो आज दुनियाभर के शासकों को संक्रमितकर धरती का नाश कर रही है. लेकिन इस ब्लैकहोल जैसी ताकत के पीछे-पीछे अन्वेषकों की जमातें भी संसार भर में घूमने लगीं. because हालाँकि इन खोजियों में से अधिकतर उसी रोग के मरीज ...
देवलांग से रू-ब-रू करवाता दिनेश रावत द्वारा लिखित एक तथ्यात्मक गीत

देवलांग से रू-ब-रू करवाता दिनेश रावत द्वारा लिखित एक तथ्यात्मक गीत

साहित्‍य-संस्कृति, सोशल-मीडिया
पूर्णता एवं तथ्यात्मकता के साथ देवलांग की विशेषताओं से परिचय करवाता दिनेश रावत का यह गीत शशि मोहन रवांल्टा सीमांत जनपद उपर साहित्यकार दिनेश रावत द्वारा लिखित गीत अब तक का सबसे पूर्णता एवं तथ्यात्मकता गीत है. रवांई घाटी के सुप्रसिद्ध देवलांग उत्सव की विशेषताओं को दर्शाता यह गीत रामनवमी के अवसर पर लॉन्च किया गया. because गीत साहित्यकार दिनेश रावत ने लिखा, जिसे रवांई घाटी सुप्रसिद्ध गायिका रेश्मा शाह ने आवाज दी और राजीव नेगी ने संगीतबद्ध किया है. गाने को इस तरह से पिरोया गया है कि उसमें देवलांग के आयोजन को आसानी से समझा जा सकता है. देवलांग पर लिखे गए इस गीत को हारूल शैली में गाया व संगीतबद्ध किया गया है. हरताली गीत में देवलांग की तैयारियों से लेकर देवलांग के खड़े होने और वहां से आखिर ओल्ला को मड़केश्वर महादेव तक ले जाने की पूरी जानकारी दी गई है. देवलांग के आयोजन में एक—एक गाँव की हिस्से...
ऐश्वर्य और सहज आत्मीयता की अभिव्यक्ति श्रीराम

ऐश्वर्य और सहज आत्मीयता की अभिव्यक्ति श्रीराम

साहित्‍य-संस्कृति
राम नवमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  सनातनी यानी सतत वर्त्तमान की अखंड अनुभूति के लिए तत्पर मानस वाला भारतवर्ष का समाज देश-काल में स्थापित और सद्यः अनुभव में ग्राह्य सगुण प्रत्यक्ष को परोक्ष वाले व्यापक और सर्व-समावेशी आध्यात्म से जुड़ने का माध्यम because बनाता है. वैदिक चिंतन से ही व्यक्त और अव्यक्त के बीच का रिश्ता स्वीकार किया गया है और देवता और मनुष्य परस्पर भावित करते हुए श्रेय अर्थात कल्याण की प्राप्ति करते हैं (परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ - गीता). इस तरह यहाँ का आम आदमी लोक और लोकोत्तर (भौतिक और पारलौकिक) दोनों को निकट देख पाता है और उनके बीच की आवाजाही उसे अतार्किक नहीं लगती. सृष्टि चक्र और जीवन में भी यह क्रम बना हुआ है यद्यपि सामान्यत: उधर हमारा ध्यान नहीं जाता. ज्योतिष उदाहरण के लिए सभी प्राणी अन्न से उत्पन्न और जीवित हैं, अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है. वर्षा ...
युवा उम्र के छिछोरेपन एवं जीवन संघर्ष का अद्भुत उपन्यास है ‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी’

युवा उम्र के छिछोरेपन एवं जीवन संघर्ष का अद्भुत उपन्यास है ‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी’

साहित्‍य-संस्कृति
डॉक्टर कुसुम जोशी युवा लेखक ललित फुलारा का प्रथम उपन्यास ''घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी" पढ़ा, छात्र जीवन की वास्तविकता के साथ- साथ युवा मन की कल्पनाओं के ताने- बाने के साथ बुना गया यह एक ऐसा उपन्यास है जिसमें प्रवाह है और एक सांस में पढ़ने को प्रेरित करता है, भाषा सामान्य बोलचाल और भारतीय पुरुषों के जबान में रची- बसी गालियां जो राह चलते सुनाई पड़ती है, कह सकते हैं कि ये अल्हड़ और युवा उम्र के छिछोरेपन और जीवन संघर्ष का एक अद्भुत उपन्यास है जो पात्रों की सामाजिक पृष्ठभूमि, समय काल, ज्ञान-अज्ञान को प्रतिबिंबित करता है। (Book Review of Ghasi Lal Campus Ka Bhagwadhari) यह उन युवाओं का उपन्यास है जो सूदूर गांवों -कस्बों से जीवन को एक धार देने के लिए चले आते हैं और बहुत सारे काल्पनिक सपनों के साथ रूमानियत के संसार में विचरते हुए जब यथार्थ के धरातल में आकर अपनी क्षमताओं को परखते हैं तब तक ब...
नर से नारायण की यात्रा

नर से नारायण की यात्रा

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव (swatantrata ka amrit mahotsav) भारत की देश-यात्रा का पड़ाव है जो आगे की राह चुनने का अवसर देता है. इस दृष्टि से पंडित दीन दयाल उपाध्याय की चिंतनपरक सांस्कृतिक दृष्टि में जो भारत का खांचा था बड़ा प्रासंगिक है. वह समाजवाद और साम्यवाद से अलग सबके उन्नति की खोज पर केन्द्रित था. वह सर्वोदय के विचार को सामने रखते है और सोच की यह प्रतिबद्धता भारतीय राजनैतिक सोच को औपनिवेशक सोच से अलग करती है. उनका स्पष्ट मत था कि समाजवाद और साम्यवाद सिर्फ शरीर और मन तक सीमित हैं और इच्छा (काम) because और धन (अर्थ) तक ही चुक जाते हैं. वे मनुष्य के समग्र अस्तित्व की उपेक्षा करते हैं. एक व्यापक आधार चुनते हुए वह मानव अस्तित्व के सभी पक्षों अर्थात शरीर, और मन के साथ बुद्धि तथा आत्म का भी समावेश करते हैं. इन्हीं के समानांतर धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष के पुरुषार्थों को भी...
हिंदी का विश्व और विश्व की हिंदी

हिंदी का विश्व और विश्व की हिंदी

साहित्‍य-संस्कृति
विश्व हिन्दी दिवस (10 जनवरी) पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र  वाक् या वाणी की शक्ति किसी से भी छिपी नहीं है. ऋग्वेद के दसवें मंडल के वाक सूक्त में वाक् को राष्ट्र को धारण करने और समस्त सम्पदा देने वाले देव तत्व के रूप में चित्रित करते हुए बड़े ही सुन्दर ढंग से कहा गया है : अहं राष्ट्री संगमनी वसूनाम्. यह वाक की जीवन और सृष्टि में भूमिका को रेखांकित करने वाला प्राचीनतम भारतीय संकेत है. हम सब यह देखते हैं कि दैनंदिन जीवन के क्रम में हमारे अनुभव वाचिक कोड बन कर एक ओर स्मृति के हवाले होते रहते हैं तो दूसरी ओर स्मृतियाँ नए-नए सृजन के लिए खाद-पानी देती रहती हैं . अनुभव, भाषा, स्मृति और सृजन की यह अनोखी सह-यात्रा अनवरत चलती रहती है और उसके साथ ही हमारी दुनिया भी बदलती रहती है. यह हिंदी भाषा का सौभाग्य रहा है क़ि कई सदियों से वह कोटि-कोटि भारतवासियों की अभिव्यक्ति, संचार और सृजन के लिए एक प्रमुख...
नए साल का जन एजेंडा क्या कहता है

नए साल का जन एजेंडा क्या कहता है

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  नया ‘रमणीय’ अर्थात मनोरम कहा जाता है. नवीनता अस्तित्व में बदलाव को इंगित करती है और हर किसी के लिए आकर्षक होती है. अज्ञात और अदृष्ट को लेकर हर कोई ज्यादा ही उत्सुक और कदाचित भयभीत भी रहता है. यह आकर्षण तब अतिरिक्त महत्व अर्जित कर लेता है जब कोविड जैसी लम्बी खिंची महामारी के बीच सामान्य अनुभव में एकरसता और ठहराव आ चुका हो. पर काल-चक्र तो रुकता नही  और सारा वस्तु-जगत बदलाव की प्रक्रिया में रहता है. गतिशील दुनिया में द्रष्टा की दृष्टि और और सृष्टि  दोनों ही परिवर्तनशील हैं और परिवर्तन में  संभावनाओं  की गुंजाइश बनी रहती है. इसलिए नए का स्वागत किया जाता है. नए वर्ष की आहट सुनाई पड़ रही है. इस घड़ी में सबका स्वागत है. इस अवसर पर देश की स्थिति पर गौर करते हुए वे अधूरे काम भी याद आ रहे हैं जो देश और समाज के लिए अनिवार्य एजेंडा प्रस्तुत करते हैं. कोविड-19 महामारी के  के  घाव ...
सनातन हिन्दू धर्म की आत्मा है गीता : महात्मा गांधी

सनातन हिन्दू धर्म की आत्मा है गीता : महात्मा गांधी

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी हिन्दू-धर्म का अध्ययन करने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक हिन्दू के लिए यह गीता एकमात्र सुलभ ग्रंथ है और यदि अन्य सभी धर्मशास्त्र जलकर भस्म हो जाये तब भी इस अमर ग्रंथ के because सात सौ श्लोक यह बताने के लिए पर्याप्त होंगे कि हिन्दू-धर्म क्या है? और उसे जीवन में किस प्रकार उतारा जाए? मैं सनातनी होने का दावा करता हूँ; क्योंकि चालीस वर्षो से उस ग्रंथ के उपदेशों को जीवन में अक्षरशः उतारने का मैं प्रयत्न करता आया हूँ. - महात्मा गांधी आधुनिक युग में भारतीय पुनर्जागरण की वैचारिक परंपरा को सुदृढ आधार देने के लिए एव आध्यात्मिक भारत के पुनर्निर्माण के लिए जो जन आंदोलन चले उन्हें प्रोत्साहित करने में गीता के चिंतन की अहम भूमिका रही थी. गीता के निष्काम कर्मयोग से प्रेरणा लेते हुए ही आधुनिक युग के विचारकों, समाज सुधारकों और स्वन्त्रता आंदोलन के because सेनानियों ने ब्रिटिश साम्...