साहित्यिक-हलचल

विधवा नारी के उत्पीड़न की करुण कथा है उपन्यास ‘ओ इजा’

विधवा नारी के उत्पीड़न की करुण कथा है उपन्यास ‘ओ इजा’

साहित्यिक-हलचल
 (शम्भूदत्त सती का व्यक्तित्व व कृतित्व-1) डॉ. मोहन चन्द तिवारी कुमाउनी आंचलिक साहित्य के प्रतिष्ठाप्राप्त  रचनाकार शम्भूदत्त सती जी की रचनाधर्मिता से  पहाड़ के स्थानीय लोग प्रायः कम ही परिचित हैं, किन्तु पिछले तीन दशकों से हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक कुमाउनी आंचलिक साहित्यकार के रूप में उभरे सती जी ने अपनी खास पहचान बनाई है. असल में शम्भूदत्त सती जी पहाड़ की माटी से जुड़े एक कुशल लेखक ही नहीं बल्कि उत्कृष्ट कोटि के अनुवादक, धारावाहिक फ़िल्मों के लेखक और पहाड़ की लुप्त होती सांस्कृतिक और परम्परागत धरोहर के संरक्षक गीतकार भी रहे हैं. मेरी सती जी से व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात आज तक नहीं हुई किन्तु फेसबुक में कुमाउनी साहित्य के सन्दर्भ में लिखे मेरे लेखों पर उनके द्वारा की गई सारगर्भित टिप्पणियों से मैं उनकी साहित्यिक प्रतिभा से से सदा अभिभूत रहा. उनके 'ओ इजा' उपन्यास के द्वारा कुमाउनी ...
हम छुं पहाड़ि

हम छुं पहाड़ि

साहित्यिक-हलचल
कुमाऊनी कविता  अमृता पांडे हम पहाड़िनाक काथे-काथ् खाणपिणे की नि कौ बात् ठुल्ल गिलास में भरि चाहा कत्तु गज्जब हुनि हम पहाड़ी आहा, कप में चाहा पि जै नि लागें गिलास में मांगनूं चुड़कन चाहा ककड़ी को रैत, झलमल राई लूण,हल्द,मिर्च लै मिलायी पूरी ,आलू टमाटर सब्जी़ दगड़ खाई मस्तमौला भयां हम पहाड़ी. मिल-बांटि बैर खांण वाले भयिं.   परुलि इजा चाहा बणायि माया आलुक गुटुक लै आयि बसंती लै कै चना-चबैना पोटलि में धर लाई , घास काटि,पुला बणायिं बीच में थोड़ा टाइम निकालि झटपट आलु खायिं, चाहा पिवायि फिर अपुण काम में लग गयिं. आजाल है रे छि धान रोपाई गोपालदा खेतम बे पाणि चुरायि है गयिं वि आगबबूला दि हालि वयिं बे द्वि-चार गायि माया, बसन्ती वयिं रे गयि् परुलि सरपट घरहुं भाजि आइ. (हल्द्वानी नैनीताल, देवभूमि उत्तराखंड)...
गढ़वाली रंगमंच व सिनेमा के बेजोड़ नायक :  बलराज नेगी

गढ़वाली रंगमंच व सिनेमा के बेजोड़ नायक :  बलराज नेगी

साहित्यिक-हलचल
जन्मदिन (30 जून)  पर विशेष महाबीर रवांल्टा गढ़वाली फिल्मों के जाने माने अभिनेता और रंगकर्मी बलराज नेगी का जन्म 30 जून 1960 को चमोली जिले के भगवती (नारायणबगड़) गांव के इन्द्र सिंह नेगी व धर्मा देवी के घर में हुआ था.सात भाई और दो बहिनों के परिवार में वे चौथे स्थान पर थे. आपके पिता गांव में परचून की दूकान चलाते थे. बलराज की आरंभिक शिक्षा नारायणबगड़ में हुई फिर डीएवी कालेज देहरादून से पढ़ने के बाद दिल्ली के करोड़ीमल कालेज से आपने स्तानक किया. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान बलराज का रुझान नाटकों की ओर होने लगा और इन्होंने इसी क्षेत्र में कुछ करने का मन बना लिया. चंद्रा अकादमी ऑफ एक्टिंग मुंबई में प्रवेश लेने से पूर्व आपको किरण कुमार, राकेश पांडे, योगिता बाली जैसे कलाकारों की कसौटी से गुजरना पड़ा था. फिल्म एवं टेलीविजन  संस्थान पुणे के पूर्व प्रिंसिपल गजानन जागीरदार के मार्गदर्शन में आप...
‘दुदबोलि’ के रचना शिल्पी, साहित्यकार और समलोचक मथुरादत्त मठपाल

‘दुदबोलि’ के रचना शिल्पी, साहित्यकार और समलोचक मथुरादत्त मठपाल

साहित्यिक-हलचल
80वें जन्मदिन पर विशेष डा. मोहन चंद तिवारी 29 जून को जाने माने कुमाऊंनी साहित्यकार श्रद्धेय मथुरादत्त मठपाल जी का जन्मदिन है. उत्तराखंड के इस महान शब्दशिल्पी,रचनाकार और कुमाउनी दुदबोलि को भाषापरक साहित्य के रूप में पहचान दिलाने वाले ऋषिकल्प भाषाविद श्री मथुरादत्त मठपाल जी का व्यक्तित्व और कृतित्व उत्तराखंड के साहित्य सृजन के क्षेत्र में सदैव अविस्मरणीय ही रहेगा. मठपाल जी इतनी वृद्धावस्था  में भी निरन्तर रूप से साहित्य रचना का कार्य आज भी जारी रखे हुए हैं. वे सात-आठ घन्टे नियमित पठन, पाठन, लेखन का कार्य करते हुए देववाणी कुमाऊंनी और हिंदी साहित्य की आराधना में लगे रहते हैं. पिछले वर्ष जन्मदिवस पर उनके पुत्र नवेंदु मठपाल की पोस्ट से पता चला कि एक साल के दौरान ही मथुरादत्त मठपाल जी के द्वारा तीन नई किताबें प्रकाशित हुई ,जिनके नाम हैं-1.'रामनाम भौत ठूल', 2.'हर माटी है मुझको चंदन' (हिंदी...
निस्पृह प्रेमगाथा की शानदार प्रस्तुति

निस्पृह प्रेमगाथा की शानदार प्रस्तुति

साहित्यिक-हलचल
पुस्तक समीक्षा दिनेश रावत 'एक प्रेमकथा का अंत' महाबीर रवांल्टा की नवीन प्रकाशित नाट्य कृति है, जिसका ताना—बाना लोक की भावभूमि पर बुना गया है. गजू—मलारी की निश्चल प्रेमगाथा जहाँ नाटक की सुघट आत्मा है तो परिवेश और प्रचलित शब्दावली सौष्ठव. निश्चित ही ये गजू—मलारी की वही प्रेमगाथा है जिसे कभी प्रेम की पराकाष्ठा तय करने के लिए तो कभी आमोद—प्रमोद या मनरंजन के लिए सदियों से समान रूप से गाया, दोहराया जाता रहा हैं परन्तु सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य की सांसारिक चहल—पहल से दूर दूरस्थ ग्राम्य अंचल दोणी—भितरी में घटित, प्रेम को नव आयाम प्रदान कर नई परिभाषा गढ़ती प्रस्तुत कृति की नायिका मलारी जहाँ बिना कुछ देखे, भोगे ही परलोक वासिनी बन स्वर्ण प्रतिमा के रूप में गजू की कंठ माला बन गजू के साथ बुग्यालों के विरंजन में विलीन हो जाती है तो प्रसंग गीत, गाथाओं में गूंथने के बाद भी सम्बंधित लोक की परिधि ...
वो गाँव की लड़की

वो गाँव की लड़की

साहित्यिक-हलचल
एम. जोशी हिमानी गाँव उसकी आत्मा में इस कदर धंस गया है कि शहर की चकाचौंध भी उसे कभी अपने अंधेरे गाँव से निकाल नहीं पाई है वो गाँव की लड़की बड़ी बेढब सी है खाती है शहर का ओढ़ती है शहर को फिर भी गाती है गाँव को उसके गमले में लगा पीपल बरगद का बौनसाई जब पंखे की हवा में हरहराता है और उसके बैठक में एक सम्मोहन सा पैदा करता है वो गाँव की लड़की खो जाती है चालीस साल पहले के अपने गाँव में और झूलने लगती है अपने खेत में खड़े बुजुर्ग मालू के पेड़ की मजबूत बाहों में पड़े प्राकृतिक झूलों में अब किसी भी गाँव में उसका कुछ नहीं है सिवाय यादों के वो लड़की थी इसलिए किसी खसरा-खतौनी में उसका जिक्र भी नहीं है शहर में ब्याही वो गाँव की लड़की अपनी साँसों में बसाई है अब तक काफल, बांज, चीड़-देवदार बड.म्योल उतीस के पेड़ों को सभी नौलों धारों गाड़-गधेरों और बहते झरनों को ...
आपका बंटी: एक समझ

आपका बंटी: एक समझ

साहित्यिक-हलचल
पुस्तक समीक्षा  डॉ पूरन जोशी  आपका बंटी उपन्यास प्रसिद्ध उपन्यासकार कहानीकार मनु भंडारी द्वारा रचित है. मनु भंडारी, उनीस सौ पचास के बाद जो नई कहानी का आंदोलन हमारे देश में शुरू हुआ उसकी एक सशक्त अग्रगामियों में से हैं. कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी के साथ उनका नाम एक प्रमुख स्तंभ के रूप में लिया जा सकता है. जिस दौर में मनु भंडारी ने लिखना शुरू किया वह भारत के लिए एक नितांत नया समय था, देश औद्योगिकरण नगरीकरण और आधुनिकता की नई इबारतें लिख रहा था. ऐसे समय में देश में सभी वर्गों को लेकर के एक नई बहस की आवश्यकता थी. पुरुष-स्त्री अन्य सभी वंचित वर्ग मिलकर के एक नए भारत की नई तस्वीर बनाने में लगे हुए थे. ऐसे समय में साहित्य में महिला विमर्श के स्वर बुलंद करने वाली मनु भंडारी प्रथम पंक्ति की साहित्यकारों में आती हैं. जब महिलाएं बड़ी संख्या में अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने निकल रही...
लॉक डाउन से पहले मिले बड़े लेखक का बड़ा इंटरव्यू

लॉक डाउन से पहले मिले बड़े लेखक का बड़ा इंटरव्यू

साहित्यिक-हलचल
ललित फुलारा धैर्य से पढ़ना पिछली बार हिमांतर पर आपने 'ईमानदार समीक्षा' पढ़ी होगी. अब वक्त है 'बड़े लेखक' का साक्षात्कार पढ़ने का. लेखक बहुत बड़े हैं. धैर्य से पढ़ना. लेखक बिरादरी की बात है. तीन-चार पुरस्कार झटक चुके हैं. राजनीतिज्ञों के बीच ठीक-ठाक धाक है. सोशल मीडिया पर चेलो-चपाटों की भरमार. संपादकों से ठसक वाली सेटिंग. महिला लेखिकाओं के बीच लोकप्रियता चरम पर. विश्वविद्यालयों में क्षेत्र और जात वाला तार जुड़ा हुआ है. कई संगठनों का समर्थन अलग से. अकादमी से लेकर समीक्षकों तक फुल पैठ. पूरी फौज है. बौद्धिक टिप्पणी के लिए अलग. गाली-गलौच के लिए छठे हुए. सेल्फी और शेयरिंग के लिए खोजे हुए. फिजिकल अटैक के लिए कभी-कभार वाले. साक्षात्कारकर्ता से टकरा गए थे किसी रोज लॉकडाउन से पहले. मार्च का महीना था. गले में गमछा और हाथ में किताबें लिए सरपंच बने फिर रहे थे. थोड़ी-सी नोंकझोक के बाद ऐसी दोस्ती हुई ...
‘आसमान की किताब’ और ‘घुघूति-बासूति’

‘आसमान की किताब’ और ‘घुघूति-बासूति’

साहित्यिक-हलचल
व्योमेश जुगरान हाल में दो ई-किताबों से सुखद सामना हुआ– ‘आसमान की किताबः बसंत में आकाश दर्शन’ और ‘घुघूति-बासूति’. संयोग से दोनों की विषयवस्तु बच्चों से संबंधित है और दोनों ही कृतियों का यह पहला भाग है. लेखक आशुतोष उपाध्याय और हेम पन्त अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुसार स्वयंसेवी ढ़ंग से बाल विकास व बाल शिक्षण की दिशा में सक्रिय हैं. बाल विकास एक ऐसा विषय है जिसे लेकर हम अपने इर्द-गिर्द ठोस चिंतन की कमी लगातार महसूस करते रहते हैं. ऐसे में इस पक्ष से जुड़ी भिन्न तरह सामग्री का महत्व काफी बढ़ जाता है. ‘आसमान की किताब’ जैसा अनूठा रचनाकर्म डॉ. डी.डी. पंत स्मारक बाल विज्ञान खोजशाला, बेरीनाग उत्तराखंड की प्रस्तुति है. इसमें नक्षत्रों और ग्रहों के बारे में बेहद रोचक जानकारियां दी गई हैं. ये जानकारियां खगोल विज्ञान के स्रोतों पर आधारित हैं और तारों के अनूठे पैटर्न /रेखांकन के जरिये गूढ़ बातों को सर...