सूख न जाएं कहीं पहाड़ों के प्राकृतिक जलस्रोत : नौल व धार
अंतरराष्ट्रीय जल दिवस पर विशेष
चन्द्रशेखर तिवारी
उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक जलस्रोत नौल तथा ’धार्’ अथवा ’मंगरा’ के रुप में मिलते हैं। यहां के गांवो में नौल का सामाजिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपर्ण स्थान रहा है। यहां के कई नौल अत्यंत प्राचीन हैं। इतिहासविदों के अनुसार उत्तराखंड के कुमांऊ अंचल में स्थित अधिकांश नौल मध्यकाल से अठारहवीं शती ई. के बने हुए हैं। चम्पावत के समीप एक हथिया ’नौल्’, बालेश्वर का नौल, गणनाथ का उदिया नौल, पाटिया का स्यूनराकोट नौल तथा गंगोलीहाट का जाह्नवी नौल सहित कई अन्य नौलअपनी स्थापत्य कला के लिए आज भी प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि कभी अल्मोड़ा नगर में एक समय 300 से अधिक ’नौल’ थे, जिनका उपयोग नगरवासियों द्वारा शुद्ध पेयजल के लिए किया जाता था।
कुमाऊं अंचल के कई गांवों अथवा मुहल्लों का नामकरण ’नौल’ व ’धार्’ के नाम पर मिलता है यथा- पनुवानौल्...