हिमाचल-प्रदेश

अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है लाहौल-स्पीति 

अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है लाहौल-स्पीति 

हिमाचल-प्रदेश
आदिकाल से देवताओं, गन्धर्वों, किन्नरों और मनुष्यों की मिली जुली जातियों का संगम स्थल रहा है लाहुल सुनीता भट्ट पैन्यूली देवभूमि हिमाचल प्रदेश जहां अपने because नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रचलित है वहीं इसी प्रदेश का एक विश्व-प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लाहौल-स्पीति अपनी अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता और संस्कृति के लिए जाना जाता है. हिमाचल लाहौल और स्पीति  भारत का एक ऐसा क्षेत्र so जिसके अस्तित्व की भारत के मानक-चित्र में उपस्थिति की जानकारी  संभवतः बहुत कम लोगों को है, हिमाचल प्रदेश की दो पृथक हिमालयी घाटियां लाहौल और स्पीति हैं जो भारत तिब्बत सीमा पर स्थित हैं. लाहौल घाटी जहां प्राकृतिक रूप से समृद्ध, चंद्र but और भागा नदियों द्वारा पोषित व फलीभूत है वहीं स्पीति अपने विस्तीर्ण बर्फीले रेगिस्तानों, लुभावने ट्रैक, घाटियों और मठों के लिए प्रसिद्ध है. रोहतांग दर्रे को पार करते ...
राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

Uncategorized, इतिहास, हिमाचल-प्रदेश, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी कुछ गीत हमारी चेतना में बचपन से रहे हैं। बाल-सभाओं से लेकर प्रभात फेरियों में हम उन गीतों को गाते रहे हैं। एक तरह से इन तरानों ने ही हमें देश-दुनिया देखने का नजरिया दिया। जब हम छोटे थे तो एक गीत अपनी प्रार्थना-सभा में गाते थे। बहुत मधुर संगीत और जोश दिलाने वाले इस गीत को हम कदम-ताल मिलाकर गाते थे। गीत था- 'कदम-कदम बढाये जा, खुशी के गीत गाये जा/ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पै मिटाये जा।' उन दिनों अन्तरविद्यालयी प्रतियोगिताएं होती थी, जो क्षेत्रीय से लेकर प्रदेश स्तर तक अलग-अलग चरणों में होती थी। उसमें विशेष रूप से एक प्रतियोगिता थी- 'राष्ट्र-गान गायन प्रतियोगिता।' इसे एक विशेष धुन और नियत समय 52 सेकेंड में पूरा करना होता था। इसमें झंडारोहण, सलामी, राष्ट्र गान की सावधान वाली मुद्रा के सभी मानकों पर भी अंक मिलते थे। इस प्रतियोगिता में हमारी टीम मंडल स्तर तक प्रथम आती थी। तब ...
किन्नौर का कायाकल्प करने वाला डिप्टी कमिश्नर

किन्नौर का कायाकल्प करने वाला डिप्टी कमिश्नर

संस्मरण, हिमाचल-प्रदेश
कुसुम रावत मेरी मां कहती थी कि किसी की शक्ल देखकर आप उस ‘पंछी’ में छिपे गुणों का अंदाजा नहीं लगा सकते। यह बात टिहरी रियासत के दीवान परिवार के दून स्कूल से पढ़े मगर सामाजिक सरोकारों हेतु समर्पित प्रकृतिप्रेमी पर्वतारोही, पंडित नेहरू जैसी हस्तियों को हवाई सैर कराने वाले और एवरेस्ट की चोटी की तस्वीरें पहली बार दुनिया के सामने लाने वाले एअरफोर्स पायलट, किन्नौर की खुशहाली की कहानी लिखने वाले और देश में पर्यावरण के विकास का खाका खींचने वाले वाले दूरदर्शी नौकरशाह नलनी धर जयाल पर खरी बैठती है। देश के तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने वाले इस ताकतवर नौकरशाह ने हमेशा अपनी क्षमताओं से एक मील आगे चलने की हिम्मत दिखाई जिस वजह से वह भीड़ में दूर से दिखते हैं। जीवन मूल्यों के प्रति ईमानदारी, प्रतिबद्वता व संजीदगी से जीने का सलीका इस बेजोड़ 94 वर्षीय नौकरशाह की पहचान है। यह कहानी एक रोचक संस्मरण है ...