सेहत

मानसिक स्वास्थ्य है विकसित भारत की आधारशिला

मानसिक स्वास्थ्य है विकसित भारत की आधारशिला

साहित्‍य-संस्कृति, सेहत
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्तूबर 2024) पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र, शिक्षाविद् एवं पूर्व कुलपति हमारे स्वास्थ्य का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. आदमी स्वस्थ्य न रहे तो सारे सुख  और  वैभव व्यर्थ हो जाता है. आज  अस्वास्थ्य की चुनौती दिनों-दिन गहराती जा रही है और आधि और व्याधि, मन और शरीर दोनों के कष्ट बढ़ते जा रहे हैं. तनाव, कुंठा और प्रतिस्पर्धा के बीच मन की प्रसन्नता से हम सभी दूर होते जा रहे हैं. स्वास्थ्य की इन चुनौतियों  को हम खुद बढ़ा रहे हैं. सुकून, ख़ुशी, आश्वस्ति और संतुष्टि के भाव दूभर हो रहे हैं. आयुर्वेद कहता है कि यदि आत्मा, मन और इंद्रियाँ प्रसन्न रहें तो ही आदमी स्वस्थ है: प्रसन्नात्मेंद्रियमन: स्वस्थमित्यभिधीयते . ऐसा स्वस्थ आदमी ही सक्रिय हो कर उत्पादक कार्यों को पूरा करते हुए न केवल अपने लक्ष्यों की पूर्ति कर पाता है बल्कि समाज और देश की उन्नति में योगदान भी कर पा...
अध्ययन: आयुर्वेदिक औषधि में पाये गये रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के गुण

अध्ययन: आयुर्वेदिक औषधि में पाये गये रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के गुण

सेहत
चूहों पर अंतरराष्ट्रीय मनकों के आधार पर चौदह रोग प्रतिरोधको को चिन्हित कर वाज्ञानिकों द्वारा मैसूर में किया गया अध्ययन. आयुर्वेद द्वारा रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के दावे गाहे बेगाहे किए जाते रहे है लेकिन उक्त तथ्य को सिद्ध कर दिखाया है मैसूर में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित चिकित्सकीय अनुसंधान केंद्र में कार्यरत वैज्ञानिकों के एक समूह ने जिन्होंने चौदह रोग प्रतिरोधक के स्थापित मानको पर एक आयुर्वेदिक औषधि के प्रभाव का अध्ययन किया. अट्ठाईस दिनों तक चलने वाले इस परियोजना में पाया गया कि आयुर्वेदिक औषधि के सेवन के उपरांत चूहों में इम्यूनोग्लोब्लिन ए, एम और जी की मात्रा बढ़ जाती है तथा साथ ही न्यूट्रोफ़िल नामक रक्त के सफ़ेद कणो में रोगों से लड़ने हेतु चेन बनाने के गुण विकसित हो रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है. इसी प्रकार इस अध्ययन में आयुर्वेदिक औषधि का उल्लेखनीय असर नेचुरल किलर सेल,...
आखिर क्या है “हिमालयन अरोमा”!

आखिर क्या है “हिमालयन अरोमा”!

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हिमांतर.कॉम (himantar.com) पर ‘हिमालयन अरोमा’ नामक एक पूरी सीरिज जल्द ही… भारत एक विविध देश है because और कई संस्कृतियों, धर्मों और व्यंजनों का घर है. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध हर व्यंजन एक दूसरे से अलग है और इसकी अलग-अलग विशेषताएं हैं. भारतीय व्यंजनों में से प्रत्येक को वर्षों से सावधानीपूर्वक विकसित किया गया है और रसोइयों के स्थान और इलाके सहित कई कारक भोजन की विशिष्टता और विशिष्टता को दर्शाते हैं. ज्योतिष इसका सबसे अच्छा उदाहरण because 'हिमालयी' व्यंजन है. यदि हम हिमाचल प्रदेश के अत्यंत गंभीर और चरम मौसम को ध्यान में रखते हैं, तो हम समझ सकते हैं कि 'हिमालयी' व्यंजन कितने अलग हैं और कितने खास हैं. यहां सबसे लोकप्रिय लेकिन व्यापक रूप से मनाए जाने वाले 'हिमालयी' व्यंजनों के बारे में कुछ प्रसिद्ध तथ्य हैं. ज्योतिष क्या आपने कभी हिमालयन भोजन का स्वाद चखा है और सोचा है...
पहाड़ में महिलाओं के मासिक धर्म के वो पांच दिन

पहाड़ में महिलाओं के मासिक धर्म के वो पांच दिन

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मासिक धर्म स्वच्छता दिवस (28 मई) पर विशेष नीलम पांडेय ‘नील’ कुछ सालों पहले उत्तराखण्ड के गाँवों में कोई नई दुल्हन जब ससुराल में प्रवेश करती थी – उसकी पहली माहवारी, जिसे लोक भाषा में धिंगाड़ होना, छूत होना, अलग होना, because दिन होना या मासिक आदि नामों से जाना जाता है, के लिए एक अलग ही माहौल तैयार किया जाता था. माहवारी माहवारी के पहले दिन से ही उसे पता चल जाता था कि अब जब भी उसे माहवारी आती रहेगी, उसको माहवारी के नियमों को ओढ़ना होगा और खुद को उसमें रचना, बसाना होगा. because अपने दर्द और स्त्री सम्मान को भूलकर उसे अपनी सदियों से चली आ रही परंपराएं जीवित रखनी होंगी. शायद इन्हीं परंपराओं के कारण उस स्त्री को कभी अपने दर्द और सम्मान का अहसास भी नहीं हुआ या उसको उस समय इन नियमों के विरूद्ध जाने की हिम्मत नहीं हुई होगी. माहवारी गावों में इन प्रथाओं को खूब अच्छे से मानने वाली, ...
रोगों को जड़ से मिटाने में कारगर हैं होम्योपैथी दवाएं

रोगों को जड़ से मिटाने में कारगर हैं होम्योपैथी दवाएं

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विश्व होम्योपैथी दिवस पर विशेष डॉ. दीपा चौहान राणा  होम्योपैथी (Homeopathy) एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है. होम्योपैथिक दवाइयां किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है. चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन (Dr. Christian Friedrich Samuel Hahnemann)  हैं, इनका जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी में हुआ था, इन्होंने सन 1796 में होम्योपैथी की उत्पत्ति की. यह चिकित्सा के 'समरूपता के सिंद्धात' पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियां उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं. औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है. जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए. अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए...
उत्तराखंड का स्वाद: सिलबट्टा नमक…

उत्तराखंड का स्वाद: सिलबट्टा नमक…

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नितीश डोभाल "नमक स्वाद अनुसार" because आपने ये बात कहीं न कहीं जरूर सुनी होगी और इसी से हमको नमक की जरूरत का भी पता चलता है. सदियों से नमक हमारे भोजन का बड़ा ही महत्वपूर्ण अंग रहा है. खाने की ज्यादातर चीजों में नमक का प्रयोग ही इसकी उपयोगिता को सिद्ध करने के लिए काफी है. नमक न केवल खाने में स्वाद बढ़ाता है बल्कि because यह खाने की कुछ चीजों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के काम भी आता है. हमारे रोज के भोजन में इस्तेमाल होने के अलावा नमक दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों और घरेलू नुस्खों में भी प्रयोग किया जाता है. नमक वैसे तो नमक के कई प्रकार हैं, साधारण समुद्री नमक, हिमालयन नमक, कोशर नमक, सेंधा नमक आदि. इन सब में सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है because साधारण नमक. साधारण नमक से जुड़ी कई कहावतें, किस्से-कहानियाँ हमको सुनने को मिल जाती हैं जिससे पता चलता है कि नमक का मानव जीवन के साथ गहरा संबंध ...
मानसिक स्वास्थ्य के लिए चाहिए शान्ति और सौहार्द

मानसिक स्वास्थ्य के लिए चाहिए शान्ति और सौहार्द

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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र बचपन से यह कहावत सुनते आ because रहे हैं “जब मन चंगा तो कठौती में गंगा” यानी यदि मन प्रसन्न हो तो अपने पास जो भी थोड़ा होता है वही पर्याप्त होता है.  पर आज की परिस्थितियों मन चंगा नहीं हो पा रहा है और स्वास्थ्य और खुशहाली की जगह रोग व्याधि के चलते लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है. लोगों का मन खिन्न होता जा  रहा है और वे निजी जीवन में भी असंतुष्ट रह रहे हैं और संस्था तथा समुदाय के लिए भी उनका योगदान कमतर होता जा रहा है. समाज के स्तर  पर जीवन की गुणवत्ता घट  रही है और हिंसा, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म, अपराध और सामाजिक भेद-भाव जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं. चिंता की बात यह है की उन घटनाओं के प्रति संवेदनशीलता भी घट रही है और उनकी व्याख्या अपने लाभ के अनुसार की जा रही है. बचपन हम एक because  नए ढंग का भौतिक आत्मबोध ...