लोक पर्व-त्योहार

यतो धर्मस्ततो  जय: 

यतो धर्मस्ततो  जय: 

लोक पर्व-त्योहार
विजया दशमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारतीय लोक-जीवन में गहरे पैठे हुए हैं और उनकी कथा आश्चर्यजनक रूप से हजारों वर्षों से विभिन्न रूपों में आम जनों के सामने न केवल आदर्श प्रस्तुत करती so रही है बल्कि उसे जीवन के संघर्षों के बीच खड़े रहने के लिए सम्बल भी देती आ रही है. विजयादशमी की तिथि श्री राम की कथा का एक चरम बिंदु है जब वे आततायी रावण से धरती को मुक्त करते हैं और ऐसे राम राज्य की स्थापना करते हैं so जिसमें जन जीवन संतुष्ट और प्रसन्न है. उसे दैहिक, दैविक या भौतिक किसी तरह  का ताप  नहीं है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वराज के रूप में राम राज्य की कल्पना की थी . पर इस कल्पना को साकार करने के मार्ग में हम अभी भी बहुत दूर खड़े हैं. राम श्रीराम की कथा आज भी अत्यंत so लोकप्रिय है. अब दशहरा के पूर्व धूम धाम से दुर्गा पूजा का उत्सव भी जुड़ गया है. द...
राष्ट्ररक्षा और पर्यावरण संचेतना का पर्व शारदीय नवरात्र

राष्ट्ररक्षा और पर्यावरण संचेतना का पर्व शारदीय नवरात्र

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी 17 अकटूबर, 2020 से शारदीय नवरात्र का शुभारम्भ हो रहा है. हर वर्ष शारदीय नवरात्र के अवसर पर पूरे देश में दुर्गापूजा का महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. श्रद्धालुजन शक्तिपीठों because और देवी के मन्दिरों में जाकर आदिशक्ति भगवती से प्रार्थना करते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक प्रकोप शान्त हों‚ तरह तरह की व्याधियों और रोगों से छुटकारा मिले‚ प्राणियों में आपसी वैरभाव समाप्त हो और पूरे विश्व का कल्याण हो. नवरात्र नवशक्तियों के सायुज्य का पर्व है जिसकी एक-एक तिथि में एक-एक शक्ति प्रतिष्ठित रहती है- "नवशक्तिभिः संयुक्तं नवरात्रं तदुच्यते." जलविज्ञान शास्त्रकारों के अनुसार ‘शयन’ और ‘बोधन’ दो प्रकार के नवरात्र होते हैं. ‘शयन’ चैत्र मास में होता है जिसे वासन्तीय नवरात्र कहते हैं और ‘बोधन’ आश्विन मास में होता है जिसे शारदीय नवरात्र कहते हैं. शरद ऋतु देवताओं की रा...
विकृत इतिहास चेतना की भेंट चढ़ता ‘खतड़ुवा’ पर्व

विकृत इतिहास चेतना की भेंट चढ़ता ‘खतड़ुवा’ पर्व

लोक पर्व-त्योहार
पशुधन की कुशलता की कामना का पर्व  है 'खतडुवा' डॉ. मोहन चंद तिवारी 'कुमाऊं का स्वच्छता अभियान से जुड़ा 'खतडुवा' because पर्व वर्षाकाल की समाप्ति और शरद ऋतु के प्रारंभ में कन्या संक्रांति के दिन आश्विन माह की प्रथमा तिथि को मनाया जाने वाला एक सांस्कृतिक लोकपर्व है. अन्य त्योहारों की तरह 'खतड़ुवा' भी एक ऋतु से दूसरी ऋतु के संक्रमण का सूचक है. प्रारंभ से ही यह कुमाऊं, गढ़वाल व नेपाल के कुछ क्षेत्रो में मनाया जाने वाला पारंपरिक त्यौहार है. कुमाऊं 'खतड़ुवा' शब्द की उत्पत्ति “खातड़” या but “खातड़ि” शब्द से हुई है. कुमाऊं में 'खातड़' यानी रजाई-गद्दे को कहा जाता है. चौमास में सिलन के कारण ये सभी रजाई-गद्दे आदि बिस्तर सिल जाते हैं. इसलिए खतुड़वे के दिन प्रातःकाल ही घर की सभी वस्तुओं को इस दिन धूप दिखाकर सुखाया जाता है. मास गौरतलब है कि अश्विन मास की शुरुआत so(सितम्बर मध्य) से पहाड़ों में ...
हमारी समृद्ध परंपरा और खुशहाली के प्रतीक हैं हमारे त्यौहार

हमारी समृद्ध परंपरा और खुशहाली के प्रतीक हैं हमारे त्यौहार

लोक पर्व-त्योहार
लगातार 6 दिनों तक मनाया जाता है 'मगोच' डॉ. दीपा चौहान राणा हमारे उत्तराखंड में 12 महीनों के बारह त्यौहार मनाए जाते हैं और हर त्यौहार का अपना एक खास महत्व है. हम उत्सवधर्मी लोग हैं. हमारे रीति—रिवाज हमारी संस्कृति की एक खास पहचान हैं. butहमारे यहां तीज—त्यौहार, उत्सव तो बहुत हैं लेकिन आज मैं एक विशेष त्यौहार की बात कर रही हूं, वह त्यौहार जो हर वर्ष 25 गते पौष यानी 9 जनवरी से हमारे पहाड़ों (रवांई-जौनपुर एवं जौनसार-बावर) में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वह त्यौहार हैं 'माघ के मगोच'. माघ मतलब जनवरी का महीना और मगोच का मतलब त्यौहार! त्यौहार मगोच लगातार 6 दिनों तक चलने वाला एक विशेष त्यौहार है. becauseइसमें लोग हर दिन के त्यौहार अगल—अलग नाम देते है और दिन अलग—अलग पकवान बनाते हैं. यह त्यौहार पीढ़ी—दर—पीढ़ी हमारी परंपरा के अनुसार बनाए जाते हैं. इनकी शुरुआत कई वर्ष पूर्व हमारे ...
‘हस्त’ नक्षत्र में ही क्यों होता है कूर्माचल के सामवेदी ब्राह्मणों का ‘उपाकर्म’?

‘हस्त’ नक्षत्र में ही क्यों होता है कूर्माचल के सामवेदी ब्राह्मणों का ‘उपाकर्म’?

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी जन्माष्टमी की भांति इस बार हरतालिका का पर्व भी दो दिन मनाया जा रहा है, 21 अगस्त को और 22 अगस्त को. वैसे कलेंडर और पंचांगों में हरतालिका तीज (हरताई) इस बार 21अगस्त की बताई गई है और 22 अगस्त को सामवेदी ब्राह्मणों का 'उपाकर्म' पर्व बताया गया है.वर्त्तमान समय में 'उपाकर्म' का अर्थ है यज्ञोपवीत धारण और रक्षासूत्र बन्धन का धार्मिक अनुष्ठान. प्रायः देखा गया है कि हरतालिका तीज और हस्त नक्षत्र एक ही तिथि को आते हैं. किन्तु इस बार ग्रह नक्षत्रों की कुछ विचित्र स्थिति चल रही है. तिथि और नक्षत्र एक दूसरे से अलग हो रहे हैं.यही कारण है कि इस बार जन्माष्टमी की तिथि को रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं मिल पाया.वैसा ही कुछ हरतालिका और हस्त नक्षत्र को लेकर भी इस साल हो रहा है.दोनों अलग अलग दिन आ रहे हैं.हरतालिका 21 अगस्त को है किंतु हस्त नक्षत्र में उपाकर्म का प्रातःकालीन मुहूर्त 22 अगस्त...
“इजा मैंले नौणि निकाई, निखाई”

“इजा मैंले नौणि निकाई, निखाई”

लोक पर्व-त्योहार
घृत संक्रान्ति 16 अगस्त पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी ‘घृत संक्रान्ति’ के अवसर पर समस्त देशवासियों और खास तौर से उत्तराखण्ड वासियों को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि कृषिमूलक हरित क्रान्ति से पलायन करके आधुनिक औद्योगिक क्रान्ति के लिए की गई दौड़ ने हमें इस योग्य तो बना दिया है कि हम पहाड़ों की देवभूमि में देशी और विलायती शराब की नदियां घर घर और गांव गांव में बहाने में समर्थ हो गए हैं पर ये देश का कैसा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के नौनिहालों को शुद्घ घी की बात तो छोड़ ही दें गाय और भैंस का ताजा और शुद्ध दूध भी नसीब नहीं है. संक्रान्ति के दिन उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल में प्रतिवर्ष  ‘घृत संक्रान्ति’ का लोकपर्व मनाया जाता है.  इस पर्व को अलग अलग स्थानों में ‘सिंह संक्रान्ति’, 'घ्यू संग्यान', अथवा 'ओलगिया' के नाम से भी जाना जाता है. मूलतः यह वर्षा ऋतु (चौमास) में मनाया जाने वाला ऋतुपर्...
‘धर्म की स्थापना और दुष्टों के विनाश के लिए मनुष्य का रूप धरते हैं’

‘धर्म की स्थापना और दुष्टों के विनाश के लिए मनुष्य का रूप धरते हैं’

लोक पर्व-त्योहार
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष ज्योतिर्मयी पंत कृष्ण जन्माष्टमी, कृष्ण जयंती, गोकुलाष्टमी आदि कई नामों से सुप्रसिद्ध यह दिन हिन्दुओं  का एक अति विशिष्ट पर्व है. इस दिन विष्णु भगवान ने धरती पर श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया. यह विष्णु का आठवाँ  अवतार माना जाता है. इसी दिन को कृष्ण  के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसे जन्माष्टमी भी कहा जाता है. भगवान कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि जब-जब धरती पर धर्म का ह्रास होता है. पाप और अत्याचार बढ़ जाते हैं तब-तब धर्मकी रक्षा और सज्जनों के परित्राण के लिए वह स्वयं मानव रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं ... यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति  भारत.. अभ्युथानमधर्मस्य  तदात्मानम सृजाम्यहम्   परित्राणाय साधूनाम् , विनाशाय च दुष्कृताम् . धर्म संस्थापनाय संभवामि युगे युगे. इसी कारण द्वापर युग में जब धरती पर अनेक असुर देवों और  लोगों को...
‘धर्म’ की सामाजिक विकृतियों से संवाद करते आए हैं कृष्ण

‘धर्म’ की सामाजिक विकृतियों से संवाद करते आए हैं कृष्ण

लोक पर्व-त्योहार
गीता का कालजयी चिंतन-1 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के अवसर पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व समूचे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. द्वापर युग में कंस के अत्याचार और आतंक से मुक्ति दिलाने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए इसी दिन विष्णु के आठवें अवतार के रूप में भगवान् कृष्ण ने जन्म लिया था. गीता में भगवान् कृष्ण का कथन है कि "जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तो मैं धर्म की स्थापना के लिए हर युग में अवतार लेता हूं- “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत. अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्.. परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् . धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे.."            -श्रीमद्भगवद्गीता‚ 4.7-8   गीता के परिप्रेक्ष्य में अवतार की अवधारणा यहां सज्जन के संरक्षण और दुर्जन के ...
‘गिदारी आमा’ के विवाह गीत

‘गिदारी आमा’ के विवाह गीत

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी "पिछले लेखों में शम्भूदत्त सती जी के 'ओ इजा' उपन्यास के सम्बन्ध में जो चर्चा चल रही है,उसी सन्दर्भ में यह महत्त्वपूर्ण है कि इस रचना का एक खास प्रयोजन पाठकों को पहाड़ की भाषा सम्पदा और वहां प्रचलित लोक संस्कृति के विविध पक्षों तीज-त्योहार, मेले-उत्सव खान-पान आदि से अवगत कराना भी रहा है.जैसा कि लेखक ने अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है- “पाठकों के समक्ष यह उपन्यास प्रस्तुत करते हुए मैं इस बात का निवेदन करना चाहता हूँ कि दिनोंदिन गांवों का शहरीकरण होने के कारण उसकी बोली, खान-पान, रहन-सहन, लोक-परम्पराएं और लोक भाषाएं विलुप्त होती जा रही हैं.इसलिए यहां मैंने कुमाऊंनी बोली (जो लगभग विलुप्त होने के कगार पर है) को अपनी बात कहने का माध्यम बनाकर प्रस्तुत उपन्यास में कुमाऊंनी हिंदी का प्रयोग किया है.” इस उपन्यास में 'झंडीधार' गांव की 'आमा' का एक किरदार कुछ ऐसा ही है,जो गा...
स्मृति मात्र में शेष रह गए हैं ‘सी रौता’ और थौलधार जातर

स्मृति मात्र में शेष रह गए हैं ‘सी रौता’ और थौलधार जातर

लोक पर्व-त्योहार
दिनेश रावत सी रौता बाई! सी रौता!! कितना उल्लास, उत्सुकता और कौतुहल होता था. गाँव, क्षेत्र के सभी लोग ख़ासकर युवाजन जब हाथों में टिमरू की लाठियाँ लिए ढोल—दमाऊ की थाप पर नाचते, गाते, थिरकते, हो—हल्ला करते हुए अपार जोश—खरोश के साथ गाँव से थौलधार के लिए निकलते थे. कोटी से निकला यह जोशीला जत्था बखरेटी से होकर थौलधार पहुँचता था. रास्ते भर में उनका उन्मुक्त नृत्य देखते ही बनता था. थौलधार पहुँचने पर तो इनके जोश को मानो चिंगारी मिल जाती थी. लोक वादक तन—मन को उत्साहित करने वाले ताल बजाते और जोशीले युवाओं के जत्थे उनके पीछे—पीछे हो नाचते, गाते रहते. नृत्याभिन शैली एकदम आक्रामक होती थी. ठीक वैसे ही जैसे किसी पर विजय प्राप्ति के लिए चल रहे हों. इस दौरान कुछ खास पंक्तियों को गीत या नारों के रूप में पूरे जोशीले अंदाज़ में जोर—जोर से गाया, दोहराया जाता था, जिसके बोल होते थे— 'सी रौता बाई! सी रौता!!' थ...