लोक पर्व-त्योहार

प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

लोक पर्व-त्योहार
चन्द्रशेखर तिवारी मनुष्य का जीवन प्रकृति के साथ अत्यंत निकटता से जुड़ा है। पहाड़ के उच्च शिखर, पेड़-पौंधे, फूल-पत्तियां, नदी-नाले और जंगल में रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं के साथ because मनुष्य के सम्बन्धों की रीति उसके पैदा होने से ही चलती आयी है। समय-समय पर मानव ने प्रकृति के साथ अपने इस अप्रतिम साहचर्य को अपने गीत-संगीत और रागों में भी उजागर करने का प्रयास किया है। उत्तराखंड पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनेक लोक so गीतों के रुप में ये गीत समाज के सामने पहुंचते रहे। उत्तराखण्ड के पर्वतीय लोकगीतों में वर्णित आख्यानों को देखने से स्पष्ट होता है कि स्थानीय लोक ने प्रकृति में विद्यमान तमाम उपादानों यथा ऋतु चक्र,पेड़-पौधों, पशु-पक्षी,लता,पुष्प तथा नदी व पर्वत शिखरों को मानवीय संवेदना से जोड़कर उसे महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उत्तराखंड लोकगीतों वर्णित बिम्ब एक अलौकिक but और विशिष्ट सुख का आभास कराते हैं। मा...
वक्त के साथ ‘फूलदेई’ भी बदल गई

वक्त के साथ ‘फूलदेई’ भी बदल गई

लोक पर्व-त्योहार
ललित फुलारा टोकरी और भकार- दोनों ही छूट गया. बुरांश और फ्योली भी आंखों से ओझल हो गई. बस स्मृतियां हैं जिन्हें ईजा, आंखों के आगे उकेर देती है. देहरी पर सुबह ही फूल रख दिए गए हैं. ईजा के साथ-साथ हम because भी बचपन में लौट चले हैं. तीनों भाई-बहन के हाथों में टोकरी है. टोकरी में बुरांश, फ्योली, आड़ू so और सरसों के फूल. गुड़ की ढेली और मुट्ठी भर चावल. गोद में परिवार में जन्मा नया बच्चा जिसकी पहली फूलदेई है. तलबाखई से लेकर मलबाखई तक हर घर में हम बच्चों की कितनी आवोभगत हो रही है. तन-मन में स्फूर्ती but भरती वसंत की ठंडी हवा में उल्लासित हमारा मन, अठन्नी और चवन्नी की गिनती के साथ ही गुड़ के ढेले में रमा हुआ है. पैसों की खनखनाहट के साथ ही हमारे सपने भी खनक रहे हैं. बहन के बालों में फ्योली का फूल लहलहा रहा है. भाई का मन गुड़ और मिठाई में रमा हुआ है. हर धैली पर फ्योली का फूल चढ़ाकर त...
सर्वहारा संस्कृति के ‘राष्ट्रदेवता’ शिव

सर्वहारा संस्कृति के ‘राष्ट्रदेवता’ शिव

लोक पर्व-त्योहार
महाशिवरात्रि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 11 मार्च के दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की तिथि को महा शिवरात्रि का पर्व है. वर्ष में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की because महाशिवरात्रि का विशेष माहात्म्य है. माना जाता है कि इस दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग के उदय से सृष्टि का आरम्भ हुआ. ऐसी भी लोक मान्यता रही है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था. महाशिवरात्रि से संबधित कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.इनमें से एक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन समुद्र मंथन के समय निकले कालकूट नामक विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था. क्यों की जाती है शिव की पूजा अर्द्धरात्रि में फाल्गुन मास की कृष्ण because चतुर्दशी की महाशिवरात्रि को 'ईशानसंहिता' में 'महानिशा’ कहा गया है. इसी घोर अन्धकार की अर्धरात्रि में शिव करोड़ों सूर्यों क...
वसन्त पंचमी : सारस्वत सभ्यता, समाराधना और साधना का पर्व

वसन्त पंचमी : सारस्वत सभ्यता, समाराधना और साधना का पर्व

लोक पर्व-त्योहार
वसन्त पंचमी पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज वसंत पंचमी का दिन सारस्वत समाराधना का पावन दिन है.वसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है. सरस्वती देवी का आविर्भाव दिवस होने के कारण यह because दिन श्री पंचमी अथवा वागीश्वरी जयंती के रूप में भी प्रसिद्ध है. प्राचीन काल में वैदिक अध्ययन का सत्र श्रावणी पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर इसी तिथि को समाप्त होता था तथा पुनः नए शिक्षासत्र का प्रारम्भ भी इसी तिथि से होता था. इसलिए वसन्त पंचमी को सारस्वत साधना का पर्व माना जाता है. इस दिन सरस्वती के समुपासक और समस्त शिक्षण संस्थाएं नृत्य संगीत का विशेष आयोजन करते हुए विद्या की अधिष्ठात्री देवी की पूजा अर्चना करती हैं. पावन ऋतु भारतीय परम्परा में देवी सरस्वती ज्ञान विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी ही नहीं बल्कि 'भारतराष्ट्र' को पहचान देने वाली देवी भी है. ऋग्वेद के अनुसार वंसत प...
‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी हमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है. उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' पर्व हो या बिहार का 'छठ पर्व' केरल का 'ओणम पर्व' because हो या फिर कर्नाटक की 'रथसप्तमी' सभी त्योहार इस तथ्य को सूचित करते हैं कि भारत मूलतः सूर्य संस्कृति के उपासकों का देश है तथा बारह महीनों के तीज त्योहार यहां सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते हैं. ‘पर्व’ का अर्थ है गांठ या जोड़. भारत का प्रत्येक पर्व एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर का गठजोड़ है because जिसके साथ पौराणिक परम्पराओं के रूप में प्राचीन कालखण्डों के इतिहास की दीर्घकालीन कड़ियां भी जुड़ी हुई हैं. पौराणिक ऐतिहासिक दृष्टि से सूर्योपासना से जुड़ा मकर संक्रान्ति या उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' का पर्व भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत र...
‘देवोत्थान’ एकादशी देवों के जागने का पर्व

‘देवोत्थान’ एकादशी देवों के जागने का पर्व

लोक पर्व-त्योहार
ऋतुविज्ञान का भी पर्व डॉ. मोहन चंद तिवारी "उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते. त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्." अर्थात् हे गोविंद, निद्रा को छोड़कर जागिए. प्रभो! यदि because आप ही सोए रहेंगे, तो इस संसार को कौन जगाएगा? यह संसार भी सोया ही रहेगा. सरकारी आज 25 नवंबर 2020, को कार्तिक so मास शुक्ल पक्ष की 'देवोत्थान' एकादशी है.आज के दिन श्रीहरि भगवान् विष्णु चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार,भगवान् विष्णु साल के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिये क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे उठ जाते हैं. इसलिए इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन से ही सनातन हिन्दू धर्म में विवाह आदि मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. एकादशी 'देवोत्थान' but एकादशी के दिन ही भगवान् विष्णु के स्व...
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर!

बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर!

लोक पर्व-त्योहार
दीपावली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र कहते हैं ‘भारत ’ यह नाम भरत नामक अग्नि के उपासकों के because समुदाय से जुड़ा है. वेदों के व्याख्याकार यास्क ने ‘भारत’ का अर्थ ‘आदित्य’ किया है. ब्राह्मण ग्रंथों में ‘अग्निर्वै भारत:’ ऐसा उल्लेख मिलता है. ‘भारती’ इस शब्द की व्याख्या करते हुए यास्क ‘भारत आदित्य तस्य भा: ‘ भारती वाक् और उससे जुड़े जन भी भारत हुए. ऋग्वेद में स्पष्ट उल्लेख आता है : ‘विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनं’. इन सबको देखते हुए प्रकाश के प्रति आकर्षण भारतीय परम्परा में आरम्भ से ही एक प्रमुख आधार प्रतीत होता है. प्रकाश के प्रमुख स्रोत  अग्नि देवता है. गौरतलब है कि अग्नि सबको पवित्र करने वाला ‘पावक’ है और शरीर के भीतर so (जठराग्नि!) और बाहर की दुनिया में बहुत सारे कार्य उसी की बदौलत चलते हैं. यहाँ तक की जल में भी वाड़वाग्नि होती है. आजकल के सुनामी इसे स्पष्टत: प्रदर्शित...
दीपावली : मन के अंधेरे कमरों की खिड़कियों में आशा और उजाले का एक दीप जलाना

दीपावली : मन के अंधेरे कमरों की खिड़कियों में आशा और उजाले का एक दीप जलाना

लोक पर्व-त्योहार
  सुनीता भट्ट पैन्यूली सभ्यता के विकास में आग का अविष्कार शायद मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त मानव मष्तिष्क और हृदय में क़ाबिज अंधेरों पर रोशनी से काबू पा लेना होगा तभी कालांतर से आज तक सौंधी-सौंधी मिट्टी गूंथी जाती है ,चाक घूमता रहता है अपनी संस्कृति को जीवित रखने और रोशनी को अपने अथक प्रयास से लपकने का संदेश देने के लिए. एक अदना दीया गोल गोल घूमकर आकार लेता है  जब चाक पर सूरज और चांद के साथ कदम से कदम मिलाकर इस जगत में  प्रकाश बिखेरने के लिये तो क्यों न हम सभी एक दीये से दूसरे दीये के साथ जुड़कर दीपमालाएं बन जायें  स्वस्थ समाज के निर्माण में रोशनी बनकर.. जलता दीया मुंडेर पर एक अदना सी ज्योत तमाम उजालों में  देदीप्यमान होकर अपना अलग ही अस्तित्व कायम करती है इंसानी हाथों का एक खूबसूरत सृजन, हमारी सभ्यताओं की अमिट छाप हमारे हाथों पर, अंधेरों से लड़कर उजालो...
दीपावली सामाजिक समरसता व राष्ट्र की खुशहाली का पर्व

दीपावली सामाजिक समरसता व राष्ट्र की खुशहाली का पर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ.  मोहन चंद तिवारी दीपावली का because पर्व पूरे देश में लगातार पांच दिनों तक हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला राष्ट्रीय लोकपर्व है.शारदीय नवरात्र में प्रकृति देवी के नौ रूपों से शक्ति और ऊर्जा ग्रहण करने के बाद भारत का कृषक समाज धन और धान्य की देवी लक्ष्मी के भव्य स्वागत में जुट जाता है. घर‚ खेत‚ खलिहान के चारों ओर सफाई का अभियान चलाया जाता है तथा नई फसल से बनवाए गए पकवानों से धान्य-लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. दीपावली दीपावली का पर्व धनतेरस because से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्त होता है.लेकिन दीपावली की तैयारी बहुत पहले से शुरू हो जाती है. लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई करते हैं. दीपावली से पहले घर, मोहल्ले, बाजार आदि सब साफ सुथरे और सजे हुए दिखाई देते हैं. दीपावली कृष्णपक्ष अन्धकार का प्रतीक है because और शुक्लपक्ष प्रकाश का. इन दो पक्षों की संक्रान्तियों में गतिशील...
जोयूं उत्तराखंड में मातृपूजा की वैदिक परम्परा

जोयूं उत्तराखंड में मातृपूजा की वैदिक परम्परा

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी समूचे देश में शारदीय नवरात्र का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. दुर्गा सप्तशती में इसे वार्षिक देवी पूजा की संज्ञा दी गई है.उत्तराखंड के द्वाराहाट क्षेत्र में जालली के निकट स्थित so जोयूं ग्राम आदिकालीन मातृ उपासकों का एक ऐसा ग्राम है,जहां आज भी शारदीय नवरात्र में प्रतिवर्ष मां जगदम्बा की सामूहिक रूप से अखंड जोत जलती है और अष्टमी एवं दशमी की वार्षिक पूजा का पर्व विशेष रूप से मनाने की परंपरा भी रही है. पलायन हालांकि यह ग्राम भी पलायन के अभिशाप के कारण उत्तराखंड के अन्य ग्रामों की भांति बदहाली के दौर से गुजर रहा है.  पिछले तीन चार सालों में सड़क चौड़ीकरण के दौरान पीडब्‍ल्‍यूडी so विभाग ने जोयूं मार्ग में पड़ने वाले वन वृक्षों को नष्ट कर दिया है और गांव में जाने के लिए पुश्तैनी मार्ग भी बेरहमी से तोड़ दिए हैं. ग्रामसभा की उपेक्षा के कारण नागरिक सुविधाओं का यहां सर्वथा...