अपनी थाती-माटी से आज भी जुड़े हैं रवांल्टे
अपने पारंपरिक व्यंजनों और संस्कृति को आज भी संजोए हुए हैं रवांई-जौनपुर एवं जौनसार-बावर के बांशिदे
आशिता डोभाल
जब आप कहीं भी जाते हैं तो आपको वहां के परिवेश में एक नयापन व अनोखापन देखने को मिलता है और आप में एक अलग तरह की अनुभूति महसूस होती है. जब आप वहां की प्राकृतिक सुंदरता, संपन्नता, सांस्कृतिक विरासत, खान-पान, रहन—सहन, आभूषण और कपड़े—लत्ते इन चीजों से रू—ब—रू होते हैं तो वह आपको बार—बार अपनी ओर आकर्षित करते हैं और हमारा मन फिर उस स्थान पर जाने को लालायित हो उठता है. ऐसी ही एक सुंदर और सांस्कृतिक परिवेश से संपन्न घाटी है— 'रवांई घाटी' जो आज भी अपनी विरासतों को जिंदा रखे हुए हैं.
आज हम आपको रवांई के एक प्रसिद्ध व्यंजन से रू—ब—रू करवा रहे हैं. इसको रंवाई के व्यंजनों का राजा भी कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. बल्कि नाम लिखने से पहले मैं आपको बताना चाहूंगी कि रवांई घाटी में ...