पर्यावरण

सनातन संस्कृति के मूल में है पर्यावरण की रक्षा

सनातन संस्कृति के मूल में है पर्यावरण की रक्षा

पर्यावरण
भुवन चन्द्र पन्त दुनिया के पर्यावरण विज्ञानी भले आज पर्यावरण संरक्षण की ओर लोगों को चेता रहे हों, लेकिन हमारे मनीषियों को तो हजारों-हजार साल पहले आभास था कि पर्यावरण के साथ खिलवाड़ के क्या भयावह परिणाम हो सकते हैं? भारत की सनातन संस्कृति जो वेदों से विकसित हुई, उन वैदिक ऋचाओं का मूल कथ्य ही प्रकृति के साथ सन्तुलन से जुड़ा है. जिसने वेदों का जरा भी अध्ययन न किया, वे वेदों को हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थ मात्र समझने की भूल करते हैं, जब कि वैदिक ज्ञान, किसी धर्म अथवा सम्प्रदाय से परे वह जीवन शैली है, जो सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण का रास्ता दिखाती है. हकीकत तो ये है कि वेदों में पंच महाभूतों को ही देवतुल्य स्थान दिया गया है और इन्हीं को सन्तुलित करना चराचर जगत के लिए कल्याणकारी बताया गया है. वैदिक ऋचाओं में इन्द्र, अग्नि व वरूण आदि का ही उल्लेख मिलता है. ईश्वर के साकार रूप से परे वेदों में पृ...
पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी 5 जून को हर साल ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाने का खास दिन है. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से स्वीडन स्थित स्टॉकहोम में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन 5 जून, सन् 1972 को आयोजित किया गया था, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी के सिद्धान्त को वैश्विक धरातल पर मान्यता मिली. इसी सम्मेलन में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) का भी जन्म हुआ. तब से लेकर प्रति वर्ष 5 जून को भारत में भी ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है तथा प्रदूषण एवं पर्यावरण की समस्याओं के प्रति आम जनता के मध्य जागरूकता पैदा की जाती है.पर चिन्ता की बात है कि अब ‘पर्यावरण दिवस’ का आयोजन भारत के संदर्भ में महज एक रस्म अदायगी बन कर रह गया है. दुनिया के तमाम देश भी ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चिन्...
जनपद चमोली में लहलहाने लगा चाइनीज़ बैम्बू/मोसो बांस

जनपद चमोली में लहलहाने लगा चाइनीज़ बैम्बू/मोसो बांस

पर्यावरण
पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष जे. पी. मैठाणी उत्तराखण्ड में जनपद चमोली की टंगसा गाँव स्थित वन वर्धनिक की नर्सरी में उगाया गया चाइनीज़ बैम्बू बना आकर्षण का केन्द्र. चाइनीज़ बैम्बू को ग्रीन गोल्ड यानी हरा सोना कहा जाता है. यह नर्सरी गोपेश्वर बैंड से लगभग 6 किमी0 की दूरी पर पोखरी मोटर मार्ग पर स्थित है. रिवर्स माइग्रेशन कर आ रहे पहाड़ के युवा जिनके गाँव 1200 मीटर से अधिक ऊँचाई पर हैं उन गाँवों के लिए चाइनीज़ बैम्बू स्वरोजगार के बेहतर और स्थायी रास्ते खोल सकता है. हस्तशिल्प उत्पाद, फर्नीचर, होम स्टे की हट्स और घेरबाड़. हमने अपने जीवन में सामान्यतः कई तरह के बांस के पौधे या झुरमुट देखे होंगे. ये आश्चर्य की बात है कि बांस को कभी पेड़ का दर्जा दिया गया था, जिससे उसके काटने और लाने ले जाने के लिए वन विभाग से परमिट की आवश्यकता पड़ती थी. लेकिन कुछ समय पूर्व भारत सरकार द्वारा पुनः वन कानून में पर...
मेरी फूलदेई मेरा बचपन 

मेरी फूलदेई मेरा बचपन 

उत्तराखंड हलचल, पर्यावरण, साहित्‍य-संस्कृति
प्रकाश चंद्र पहाड़ का जीवन, सुख- दुःख और हर्षोउल्लास सब समाया होता है। जीवन का उत्सव प्रकृति का उत्सव है और प्रकृति, जीवन का अविभाज्य अंग। इसलिए पहाड़ी जीवन के रंग में प्रकृति का रंग घुला होता है। बिना प्रकृति के न जीवन है न कोई उत्सव और त्यौहार। पहाड़ों की रौनक उसके जीवन में है। पहाड़ों का जीवन उसके आस-पास प्रकृति में बसा है। हर ऋतु में पहाड़ों की रौनक, मिज़ाज, खिलखिलाहट अद्भुत एवं रमणीय होती है। इसी में पहाड़ का जीवन, सुख- दुःख और हर्षोउल्लास सब समाया होता है। जीवन का उत्सव प्रकृति का उत्सव है और प्रकृति, जीवन का अविभाज्य अंग। इसलिए पहाड़ी जीवन के रंग में प्रकृति का रंग घुला होता है। बिना प्रकृति के न जीवन है न कोई उत्सव और त्यौहार। पहाड़ों में लंबी सर्दी और बर्फबारी के बाद वसंत के आगमन का संकेत पहाड़ों पर खिलने वाले लाल, हरे, पीले, सफेद, और बैंगनी फूलों से मिल जाता है। अब तक बर्फ की सफे...