पर्यावरण

2020 रहा मानव इतिहास का सबसे गर्म साल 

2020 रहा मानव इतिहास का सबसे गर्म साल 

पर्यावरण
निशांत फ़िलहाल मानव इतिहास में अब तक का सबसे गर्म साल 2016 को माना जाता था. लेकिन अब, 2020 को भी अब तक का सबसे गर्म साल कहा जायेगा. दरअसल यूरोपीय संघ के पृथ्वी अवलोकन कार्यक्रम (अर्त ऑब्ज़र्वेशन प्रोग्राम), कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने घोषणा कर दी है कि ला-नीना, एक आवर्ती मौसम की घटना जिसका वैश्विक तापमान पर ठंडा प्रभाव पड़ता है, के बावजूद 2020 के दौरान असामान्य उच्च तापमान रहे और पिछले रिकॉर्ड-धारक 2016 के साथ अब 2020 भी सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया है. यह घोषणा एक चिंताजनक प्रवृत्ति की निरंतरता की पुष्टि करती है, पिछले छह वर्ष लगातार रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहे हैं. यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए देशों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है, जो मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं. जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि पेरिस समझौते को पूरा करने के लिए वर्तमान ...
जलवायु परिवर्तन से दुनिया को 2020 में हुई अरबों की हानि: रिपोर्ट

जलवायु परिवर्तन से दुनिया को 2020 में हुई अरबों की हानि: रिपोर्ट

पर्यावरण
निशांत रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित दस मुख्य घटनाओं की पहचान की गई है, जिनमें से प्रत्येक में 1.5 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है. because इन मुख्य घटनाओं में से नौ 5 बिलियन डॉलर से अधिक के नुकसान का कारण बनीं. बाढ़, तूफान, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और आग ने दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले ली. गहन एशियाई मानसून दस सबसे कम खर्चीली घटनाओं में से पांच से पीछे था. रिकॉर्ड तोड़ तूफान के मौसम और आग के कारण अमेरिका सबसे अधिक लागतों से प्रभावित हुआ था. जलवायु क्रिश्चियन एड की एक नई रिपोर्ट, because लागत 2020 की गणना: एक वर्ष की जलवायु टूटने से वर्ष की सबसे विनाशकारी जलवायु आपदाओं में से 15 की पहचान होती है. इन घटनाओं में से दस की लागत 1.5 बिलियन डॉलर या उससे अधिक है. इनमें से नौ में कम से कम 5 बिलियन डॉलर की क्षति होती है. इनमें से अधिकांश अनुमान केवल बीमित घाटे पर आधारित हैं, जिसका अ...
भारत क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स की टॉप टेन रैंकिंग में शामिल

भारत क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स की टॉप टेन रैंकिंग में शामिल

पर्यावरण
दस सबसे अव्वल देशों में भारत के साथ मोरक्को और चिली जैसे दो और विकासशील देश, दुनिया का कोई मुल्क पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुकूल नहीं निशांत पेरिस समझौते के because पांच साल बाद भी कोई देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है. वहीं तीन विकासशील देश, क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्सस्ट की टॉप टेन  रैंकिंग में शामिल हैं.  इनमें मोरक्को -7वें, चिली -9वें और भारत 10वें स्थान पर है. पेरिस इस बात की जानकारी मिली because आज जारी हुए क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स2021 से, जिसे जर्मनवाच और न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट ने क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (CAN) के साथ मिलकर प्रकाशित किया गया है. पेरिस यह रिपोर्ट 2030 के लिए जलवायु because लक्ष्यों पर यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन और 12 दिसंबर को पेरिस समझौते की पांचवीं वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र जलवायु महत्वाकांक्षा शिखर...
ब्रिटेन की जलवायु नीति ने बनाया तमाम देशों पर सही फ़ैसले लेने का दबाव

ब्रिटेन की जलवायु नीति ने बनाया तमाम देशों पर सही फ़ैसले लेने का दबाव

पर्यावरण
12 दिसंबर को आयोजित होगा 'क्लाइमेट एम्बिशन समिट'  निशांत जलवायु को लेकर ब्रिटेन के ऊंचे लक्ष्‍यों के कारण दुनिया के बाकी देशों पर आगामी 12 दिसम्‍बर को आयोजित होने वाली क्‍लाइमेट एम्‍बीशन समिट से पहले जलवायु सम्‍बन्‍धी चुनौती के सामने उठ खड़े होने का दबाव बढ़ गया है. ब्रिटेन ने सही दिशा में आगे बढ़ने का मौका लपक लिया है. उम्मीद है कि इससे अन्य देशों को भी वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही रखने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरणा मिलेगी. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने प्रदूषणकारी तत्‍वों के उत्सर्जन में कटौती करने के ब्रिटेन के 2030 तक के लक्ष्य में उल्लेखनीय बढ़ोत्‍तरी करेंगे, ताकि अगले दशक में कार्बन मुक्ति के प्रयासों को तेज किया जा सके और अगले साल ग्लासगो में आयोजित होने जा रही सीओपी 26 में जलवायु परिवर्तन से निपटने की दौड़ की वैश्विक अगुव...
‘अब तक का सबसे गर्म महीना रहा सितम्‍बर’

‘अब तक का सबसे गर्म महीना रहा सितम्‍बर’

पर्यावरण
आर्कटिक में बर्फ न्‍यूनतम स्‍तर पर निशांत कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने becauseआज ऐलान किया कि सितंबर 2020 दुनिया में अब तक का सबसे गर्म सितंबर रहा. सितंबर 2020 पूरी दुनिया में सितंबर 2019 के मुकाबले 0.05 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म रहा. जिससे इस तरह इस बीच, साइबेरियन आर्कटिक में तापमान में सामान्य से ज्यादा की बढ़ोत्‍तरी जारी रही और आर्कटिक सागर पर बर्फ का आवरण दूसरे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया. सी3एस इसके विश्लेषण से मिले डाटा से जाहिर होता है कि सितंबर 2020 मानक 30 वर्षीय जलवायु संदर्भ अवधि के तहत सितंबर में दर्ज किए गए औसत तापमानों के मुकाबले 0.63 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. becauseइस तरह सितंबर 2019 के मुकाबले इस साल इसी महीने में तापमान 0.05 डिग्री सेल्सियस और सितंबर 2016 के मुकाबले 0.08 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. इससे पहले सितम्‍बर 2019 सबसे गर्म सितम्‍बर रहा, ...
जलवायु परिवर्तन हिमालय के भूगर्भीय जलस्तर को घटा रहा है : शोध

जलवायु परिवर्तन हिमालय के भूगर्भीय जलस्तर को घटा रहा है : शोध

पर्यावरण
ग्लेशियर पिघलने से जल स्रोतों की स्वतंत्रता पर गंभीर संकट… निशांत पानी के चश्मे हिमालय क्षेत्र के ऊपरी तथा बीच becauseके इलाकों में रहने वाले लोगों की जीवन रेखा हैं. लेकिन पर्यावरणीय स्थितियों और एक दूसरे से जुड़ी प्रणालियों की समझ और प्रबंधन में कमी के कारण यह जल स्रोत अपनी गिरावट की ओर बढ़ रहे हैं. भूमिगत जल यह कहना है इंडियन स्‍कूल ऑफ बिजनेस के भारती but इंस्‍टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में रिसर्च डायरेक्‍टर एवं एडजंक्‍ट एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्‍टर अंजल प्रकाश का. ऑब्‍जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित डॉक्‍टर अंजल प्रकाश के इस अध्ययन के मुताबिक़ पानी के यह चश्मे जलापूर्ति के प्रमुख स्रोत है और वह भूतल और भूगर्भीय जल प्रणालियों के अनोखे संयोजन से फलते-फूलते और बदलते हैं. so माकूल हालात में जलसोते या चश्मे के जरिए भूगर्भीय जल रिसकर बाहर आता है. यह संपूर्ण हिमालय क्षेत्र के तमाम शहर...
संकट में है आज हिमालय पर्यावरण

संकट में है आज हिमालय पर्यावरण

पर्यावरण
‘हिमालय दिवस’ (9 सितम्बर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज हिमालय दिवस है.पिछले कुछ वर्षों से देश भर में, खासकर उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में 9 सितम्बर को ‘हिमालय दिवस’ मनाया जा रहा है. हिमालय दिवस की शुरुआत 9 सितंबर,2010 को हिमालय पर्यावरण को समर्पित जाने माने पर्यावरणविदों सर्वश्री सुन्दर लाल बहुगुणा, सुरेश भाई, राजेन्द्र सिंह,पद्मश्री डॉ.अनिल प्रकाश जोशी आदि द्वारा की गई थी. इन पर्यावरणविदों का एक मंच पर आना इसलिए हुआ था कि तब सरकारें हिमालय पर्यावरण के संरक्षण व विकास को लेकर नाकाम ही साबित हो रही थी. ये पर्यावरणविद् सम्पूर्ण हिमालय में हिमालय दिवस के माध्यम से ऐसी जन चेतना जागृत करने के लिए एक मंच पर आए थे ताकि हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों और उसकी जैव विविधता की रक्षा की जा सके. 'हिमालय दिवस' मनाने से अति संवेदनशील हिमालय पारिस्थितिकी और पर्यावरण का कुछ भला हुआ होता तो इ...
प्रदूषित गंगा और हम!

प्रदूषित गंगा और हम!

पर्यावरण
कमलेश चंद्र जोशी कहते हैं प्रकृति हर चीज का संतुलन बनाकर रखती है. लेकिन अधिकतर देखने में यह आया है कि जहां-जहां मनुष्य ने अपना हाथ डाला वहां-वहां असंतुलन या फिर समस्याएं पैदा हुई हैं. इन समस्याओं का सीधा संबंध मनुष्य की आस्था, श्रद्धा, स्वार्थ या तथाकथित प्रेम से रहा है. गंगा को हमने मॉं कहा और गंगा के प्रति हमारे प्रेम ने उसको उस मुहाने पर लाकर छोड़ दिया जहां उसकी सफ़ाई को लेकर हर दिन हो-हल्ला होता है लेकिन न तो हमारे कानों में जूं रेंगती है और न ही सरकार के. गंगा को हमने उसके प्राकृतिक स्वरूप में प्रकृति की गोद में बहने के लिए छोड़ दिया होता और उसके पानी का इस्तेमाल सिर्फ अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए किया होता तो आज गंगा इस दशा में न होती कि उसकी सफाई के लिए प्रोजेक्ट चलाने पड़ते. ये सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि गंगा को हमने अपनी अंधी आस्था और स्वार्थसिद्धी का विषय बनाकर उसका दोहन करना शु...
अपने अस्तित्व और जीवन के सार को बचाने के लिये सामूहिक रूप से प्रकृति के संरक्षण हेतु जुटना होगा – डॉ. जोशी

अपने अस्तित्व और जीवन के सार को बचाने के लिये सामूहिक रूप से प्रकृति के संरक्षण हेतु जुटना होगा – डॉ. जोशी

पर्यावरण
“हिमालय और प्रकृति” की थीम पर मनाया जाएगा 11वां हिमालय दिवस हिमांतर ब्‍यूरो जीवन और अर्थव्यवस्था के परिग्रह के परिणामस्वरूप ही विश्व पर कोविड-19 महामारी की मार पड़ी है. मानव इतिहास में अब तक की सबसे खराब इस महामारी ने पूरे विश्व को पंगु बना दिया है और हर तरह की गतिविधि पर रोक लगा दी. हमेशा की तरह इस बार भी दुनिया भर में प्रकृति की बिगड़ते हालातों पर केवल बहस ही हुई है. इसी बीच सोशल मीडिया पर प्रकृति के सुधरते हालातों से संबंधित विभिन्न खबरें भी वायरल हुईं. कहीं ना कहीं हमें ये तो पता है कि हमने प्रकृति के साथ जो भी ज्‍यादतियां की हैं कोरोना उसी का नतीजा है. हम इस तथ्य को समझने में पूरी तरह असफल रहे हैं कि आखिरकार वो प्रकृति ही है जो हमारे भाग्य को निर्धारित करती है और अगर हम अपनी सीमाओं को पार करेंगे तो प्रकृति ही उसका हिसाब करेगी. इस दौरान खासतौर से जब कोविड-19 एक असाधारण वैश्विक आ...
ग्रेटा थनबर्ग: पर्यारण के लिए चिंतित एक आवाज

ग्रेटा थनबर्ग: पर्यारण के लिए चिंतित एक आवाज

पर्यावरण
कमलेश चंद्र जोशी “My name is Greta Thunberg. I am sixteen years old. I come from Sweden and speak on behalf of future generations. I know many of you don’t want to listen to us. You say we are just children. But we are only repeating the message of the united climate science.” सोलह साल की ग्रेटा थनबर्ग लंदन की संसद में इस संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करती है. उसकी किताब “No one is too small to make a difference” अलग-अलग मंचों से दिये गए उसके भाषणों का संग्रह है जो उसकी पर्यावरण को लेकर बुलंद की गई आवाज को दर्शाती है. स्कूली हड़ताल से शुरूआत करती हुई ग्रेटा स्वीडन की संसद के सामने हड़ताल के बाद दुनिया की नजर में आती है और उन तमाम बच्चों के लिए प्रेरणा बन जाती है जो अपने भविष्य और पर्यावरण को बचाने के लिए दुनिया भर की सरकारों से सवाल पूछने लगते हैं. हमारा घर यानी की पृथ्वी पर्य...