समसामयिक

मेघ पिता है धरती माता, ‘पितृदेवो भव’

मेघ पिता है धरती माता, ‘पितृदेवो भव’

समसामयिक
‘फादर्स डे’ 20 जून पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 20 जून को महीने का तृतीय रविवार होने के कारण ‘फादर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है. ‘फादर्स डे’ पिताओं के सम्मान में मनाया जाने वाला दिवस है जिसमें पितृत्व (फादरहुड) के because प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाने की भावना संन्निहित रहती है. दुनिया के अलग अलग देशों में अलग अलग दिन और अलग अलग परंपराओं के कारण ‘फादर्स डे’ मनाया जाता है. नेता जी सबसे पहला ‘फादर्स डे’ अमेरिका की सोनोरा स्मार्ड डोड ने अपने पिता विलियम जैक्सन स्मार्ट की याद में 19 जून,1910 को मनाना शुरू किया था. क्योंकि उस साल इसी दिन जून का because तीसरा रविवार था. तबसे अमेरिका में जून के तीसरे रविवार को ‘फादर्स डे’ मनाया जाने लगा. जर्मनी में ‘फादर्स डे’ (वेतरताग) मनाने की परंपरा चर्च और यीशू मसीह के स्वर्गारोहण से जुड़ी हुई है. यह हमेशा ‘होली थर्स डे’ यानी पवित्र गुरुवार क...
हिंदी पत्रकारिता का काल, कंकाल और महाकाल

हिंदी पत्रकारिता का काल, कंकाल और महाकाल

समसामयिक
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष प्रकाश उप्रेती हिन्दी पत्रकारिता का सफर कई उतार-चढाव से होकर गुजरा है. उसका कोई स्वर्ण काल जैसा नहीं रहा है और होना भी नहीं चाहिए लेकिन पत्रकारिता का भक्तिकाल शाश्वत सत्य है. वह लगभग इन 200 वर्षों की यात्रा में नजर आता है.मासिक, साप्ताहिक और दैनिक से लेकर 24x7 तक सफर कई तरह की विषम परिस्थितियों से गुजरा है. because बंगाल गज़ट से उदंत मार्तण्ड, सरस्वती, आज,  नई दुनिया, हिंदुस्तान से लेकर जनसत्ता तक प्रिंट मीडिया का सफर रहा तो वहीं दूरदर्शन से लेकर आजतक और फिर 24x7 तक इलोक्ट्रोनिक मीडिया ने अपनी यात्रा तय की. इस यात्रा के दौरान पत्रकारिता ने एक तरफ जहाँ ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़े होकर जनपक्षधरता दिखाई तो वहीं  मीडिया ने आजादी के आंदोलन में  भी महत्वपूर्ण  भूमिका निभाई. लेकिन आजाद भारत में सरकार ने आपातकाल घोषणा के साथ ही पत्रकारिता का गला भी घोंट डाला. स...
अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही पत्रकार का धर्म

अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही पत्रकार का धर्म

समसामयिक
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष डॉ. राकेश रयाल हिंदी भाषा में 'उदन्त मार्तण्ड' के नाम से पहला समाचार पत्र आज के ही दिन 30 मई 1826 में निकाला गया था. इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है. because हिंदी भाषा के प्रथम पत्रकार (सम्पादक)  पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कोलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था. इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे. इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष नाम और सम्मान है. कोलकत्ता का हिंदी भाषा बाहुल्य क्षेत्र न because होने तथा हिंदी भाषा के कम पाठकों के चलते यह समाचार एक वर्ष कुछ माह ही प्रकाशित हो पाया. पत्र को हिंदी भषा क्षेत्रों में भेजने के लिए डाक सेवा का सहयोग लिया जाता था, लेकिन राजस्व के अभाव में उन्हें इसे बंद करना पड़ा. अंक शास्त...
गधेरों से उठता सिर्फ धुआँ…

गधेरों से उठता सिर्फ धुआँ…

समसामयिक
प्रकाश उप्रेती पहाड़ के गाँव महामारी के कई रूपों से लड़ रहे हैं. स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का आलम सरकार दर सरकार दर जर्ज़र होता गया. तहसील और जिले के अस्पतालों में डॉ. के नाम रेफर बाबू हैं और दवा के नाम पर कैल्शियम की गोलियां. अखबारों में अस्पताल के अभाव में दम तोड़ते लोग, प्रसव पीड़ा में रास्ते में ही बच्चे को जन्म देती because माताओं की तस्वीरें छपती रही हैं लेकिन हमारे हुक्मरानों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. विधायक से लेकर सांसद तक दून और दिल्ली में मौज करते रहे . हमारे इलाके के सांसद महोदय को लोग पहचानते भी नहीं  है. वह भी इलाके को नहीं पहचानते हैं . सूर्य देव पिछले साल मेरी ईजा पर सुअर ने हमला कर दिया था. उनके इलाज के लिए मैं भिकियासैंण, चखुटिया और रानीखेत के सरकारी अस्पतालों में गया और वहाँ जो स्थिति देखी वह भयावह थी. उसके बाद कई तहसीलों में जाकर अस्पतालों पर लिखा भी लेकिन उससे किसको क्...
कोरोना महामारी और हमारा हेल्थ सिस्टम

कोरोना महामारी और हमारा हेल्थ सिस्टम

समसामयिक
कमलेश चंद्र जोशी कभी-कभी यूँ लगता है जैसे एक स्वप्न सा चल रहा है. जिसमें एक महामारी दुनिया भर में फैली है जिस वजह से लोग घरों में कैद है. ऐसा लगता है जैसे अभी सपना टूटेगा, आँख खुलेगी because और एक गहरी साँस भरते हुए दिल के किसी कोने से आवाज आएगी उफ़्फ क्या भयानक सपना था. सपने सपने में कई-कई बार तो यही होता है हमारे साथ कि हम खुद को बचाने के लिए छटपटा रहे होते हैं और आँख खुलते ही राहत महसूस करते हैं कि यह हकीकत नहीं है. becauseकाश कि यह महामारी सपना होती! लेकिन सपनों सी यह बीमारी जानलेवा हकीकत बन गई है जिस पर इंसान का बस नहीं चल रहा. हमारे पूरे सिस्टम की पोल इस बीमारी ने खोलकर रख दी है. साथ ही यह भी कि इंसानियत अभी मरी नहीं है. हजारों लोग हैं जो रात-दिन एक कर अपनी पूरी मदद लोगों तक पहुँचा रहे हैं. सपने आपको शायद याद न हो लेकिन जब चीन में महामारी फैलने की चटकारेदार खबरें भारतीय मीडि...
रोटी और कोविड आपदा से जूझता आम इंसान

रोटी और कोविड आपदा से जूझता आम इंसान

समसामयिक
भावना मासीवाल आपदा में संपदा बनाना किसी से सीखना हो या विपदा को कैसे अपने हित के अनुरूप काम में लेना हो, इसमें मनुष्य सर्वोपरि प्राणी है. बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है, but आज हम सभी कोविड-19 के जिस भयावह दौर से गुजर रहे हैं जहाँ हर दूसरा व्यक्ति अपने प्राणों की रक्षा के लिए अन्य पर निर्भर है. ऐसे में कहीं ऑक्सीजन सिलेंडर स्टोर हो रहे हैं तो कहीं आई.सी.यू बेड तो कहीं संबंधित दवाएँ. कहीं ऑक्सीजन के ट्रक चोरी हो रहे हैं तो कहीं कोविड की दवाएं, मौजूदा हालात में स्वास्थ्य संबंधित एवं सामान्य जरूरत की चीजों के दाम एका-एक आसमान छूने लगे हैं. कोविड सरकारी तंत्र के पास सुविधाएँ नहीं है और प्राइवेट सेक्टर उसे बाज़ार और पूँजी का हिस्सा बना मुनाफ़ा कमा रहा है. इससे पूर्व भी पिछले वर्ष इसी विपदा से निपटने so और स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के कितने ही आश्वासन और वादे किये गए थे. जिसे उसी...
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कोरोना में क्या काम कर रहे हैं RSS स्वयंसेवक

संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कोरोना में क्या काम कर रहे हैं RSS स्वयंसेवक

समसामयिक
ललित फुलारा, नई दिल्ली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर का कहना है कि वैश्विक कोरोना महामारी के दौरान संघ के कार्यकर्ता सक्रिय तौर पर सामाजिक कार्यों में जुटे हुए हैं. आरएसएस कार्यकर्ता जरूरतमंदों को ऑक्सीजन सिलेंडरों की सप्लाई से लेकर जरूरी दवाओं की व्यवस्था करने में जुटे हुए हैं. उन्होंने कहा कि इस महामारी के because दौरान केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के साथ ही देशभर में संघ कार्यकर्ता भी अपने-अपने स्तर के कार्यों में लगे हुए हैं. संघ कार्यकर्ता इस विकट आपदा के दौरान डॉक्टरी सहायता मुहैया कराने में भी जुटे हुए हैं. उन्होंने कहा कि संघ कार्यकर्ता सेवा भारती के जरिए देशभर के प्रभावित इलाकों में 12 प्रकार के कार्यों में जुटे हुए हैं. इनमें प्लाज्मा डोनेशन का कार्य भी शामिल है. भटकोटी संघ के कार्यकर्ताओं ने बनाये आइसोलेशन केंद्र आंबेकर ने बताया कि संघ ...
अवसाद पैदा करने वाले इस दौर में अपने बच्चों से बात कीजिये

अवसाद पैदा करने वाले इस दौर में अपने बच्चों से बात कीजिये

समसामयिक
कमलेश चंद्र जोशी देश बहुत गंभीर समस्याओं से गुजर रहा है. कोरोना महामारी की दूसरी लहर क़हर बनकर देश पर टूट पड़ी है जिस वजह से तस्वीर और भयावह होती जा रही है. तमाम दोस्तों से बात करता हूँ तो पता चलता है किसी को नौकरी नहीं मिल रही तो किसी की नौकरी जा चुकी है या फिर सैलरी में कट लग चुका है because और किस दिन नौकरी से निकाल दिये जाएँ इसका भी पता नहीं है. जब वह जमीनी हकीकत बताते हैं तो एक सिहरन सी पैदा होने लगती है. असंगठित क्षेत्र के लघु मध्यम उद्योग व छोटी कंपनियों में से बहुतायत में ताले लग चुके हैं. जमीनी हकीकत अगर सरकारी कागजों में उतर पाती तो समझ आता कि जीडीपी रसातल पर पहुँच चुकी है. रोजगार के जो आंकड़े कागजों पर हैं वो सिर्फ दिखावटी हैं. जीडीपी रसातल बेरोजगारी पिछले 45 वर्षों के उच्चतम शिखर पर है. सर्विस सेक्टर की बात करूँ तो तमाम प्राइवेट कंपनियों ने पिछले साल ही मार्च-अप्रैल माह मे...
वरिष्ठ पत्रकार मनजीत नेगी ने पीएम मोदी को भेंट की अपनी पुस्तक ‘साधु से सेवक’ की पहली प्रति

वरिष्ठ पत्रकार मनजीत नेगी ने पीएम मोदी को भेंट की अपनी पुस्तक ‘साधु से सेवक’ की पहली प्रति

समसामयिक
पीएम मोदी की आध्यात्मिक यात्रा पर आधारित है पुस्तक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लिखी है पुस्तक की प्रस्तावना. पीएम मोदी ने अपने उत्तराखंड से जुड़ाव और शुरुआती सफर को याद करते हुए कई आध्यात्मिक स्थलों का जिक्र किया हिमांतर ब्‍यूरो, नई दिल्‍ली वरिष्ठ पत्रकार मनजीत नेगी ने अपनी नई पुस्तक 'साधु से सेवक' की पहली प्रति सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भेंट की. यह पुस्तक नरेंद्र मोदी के शुरुआती जीवन की आध्यात्मिक यात्रा पर आधारित है. इसमें विशेष रूप से उत्तराखंड में विभिन्न स्थलों में बिताए गए दिनों और घटनाओं को प्रस्तुत किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुलाकात के दौरान अपने उत्तराखंड से जुड़ाव और शुरुआती सफर को याद करते हुए कई आध्यात्मिक स्थलों का जिक्र किया. साथ ही पिथौरागढ़ जिले के नारायण आश्रम, रामकृष्ण कुटीर अल्मोड़ा, केदारनाथ स्थित गरूड़चट्टी और दयानंद आश...
किरण नेगी के हत्यारों को फांसी देने की मांग को लेकर उत्तराखंडी समाज ने निकाला कैंडल मार्च

किरण नेगी के हत्यारों को फांसी देने की मांग को लेकर उत्तराखंडी समाज ने निकाला कैंडल मार्च

समसामयिक
तमाम समाजिक संगठनों और लोगों ने उत्तराखंड एकता मंच से न्याय के लिए गुहार लगाई पंकज ध्यानी, नई दिल्ली दिल्ली-एनसीआर में काम कर रहे सामाजिक संगठन और उत्तराखंड के लोगों ने जंतर मंतर में कैंडल मार्च निकाला. सभी ने एक स्वर में मांग की है कि उत्तराखंड की बेटी किरण नेगी के साथ जिन दरिन्दों ने गैंगरेप किया और हैवानियत की सारी हदें पार की, इन दरिंदों को जल्द से जल्द फांसी की सजा दी जाए. उत्तराखंड कैंडल मार्च में उत्तराखण्ड की बेटी किरन नेगी के माता-पिता ने कहा कि हमें देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का न्याय हमारे हक में होगा. उत्तराखंड आपको बता दें की उत्तराखंड की बेटी किरण नेगी 9 फरवरी 2012 को गुड़गांव स्थित कंपनी से काम करके अपनी तीन सहेलियों के साथ रात करीब 8:30 बजे नजफगढ़, छावला कला कॉलोनी पहुंची थी कि तभी कार में सवार तीन ...