पुस्तक-समीक्षा

लंबे अंतराल तक जेहन में प्रभाव छोड़ती डॉ कुसुम जोशी के लघुकथा संग्रह की कहानियां

लंबे अंतराल तक जेहन में प्रभाव छोड़ती डॉ कुसुम जोशी के लघुकथा संग्रह की कहानियां

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डॉक्टर कुसुम जोशी का पहला लघुकथा संग्रह है 'उसके हिस्से का चांद'। इस संग्रह की लघुकथाएं बेहद सधी हुई हैं, जो कि लेखन की परिपक्वता, गहन अध्ययन और अनुभव की बारीकी से उपजी हैं। हर लघुकथा खत्म होने के लंबे अंतराल तक ज़ेहन में अपना प्रभाव छोड़ती हैं और हर कहानी का शीर्षक बेहद प्रभावशाली तरीके से उसका प्रतिनिधित्व करता है। इन लघु कथाओं को पढ़ते वक्त ऐसा महसूस होता है कि इनके पाठ और पुर्नपाठ की न सिर्फ आवश्यकता है बल्कि, इनको लेकर गहन विमर्श और शोध की भी जरूरत है। ये लघुकथाएं विषय विविधता, सोच की गहराई और अपने शिल्प व संवाद से न सिर्फ पाठकों को संतुष्ट करती हैं, बल्कि प्रभावित करते हुए समाधान भी दे जाती हैं। संवेदनात्मक स्तर पर ये लघु कथाएं जितने भीतर तक उद्वेलित करती हैं, उतना ही वैचारिक सवाल भी खड़ा करती हैं। नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं, तो विचारधारा का ढकोसलनापन भी उजागर करती हैं। इन लघु कथाओ...
मिट्टी में बीज की तरह रोपे गए हैं कविता में शब्दों के बीज

मिट्टी में बीज की तरह रोपे गए हैं कविता में शब्दों के बीज

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डॉ. शशि मंगल प्रकृति से अत्यंत प्रेम becauseकरने वाली डॉ. कविता पनिया शिक्षिका भी हैं और कवयित्री भी जहाँ वह अपने विद्यार्थियों को बहुत कुछ सिखाती हैं वहीं प्रकृति से बहुत कुछ सीखती हैं अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए उन्हें गढ़ने  के लिए जहाँ पढ़ती हैं वहीं अपने जीवन को गढ़ने के लिए प्रकृति को पढ़ने का प्रयास करती हैं और उसके अनेकानेक रूपों से अपने मन को तथा रचनाओं को गढ़ती हैं. कविता पनिया का becauseकाव्य संग्रह “कविमित्रा” राजमंगल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है यह संग्रह संपूर्ण प्रकृति को समर्पित है. जिसमें कविता पनिया ने प्रकृति का मानवीकरण बखूबी किया है और प्रकृति से संवाद भी खूब किया हैं संवाद से रची इस कविता की पंक्तियों को देखिए –            अरे टहनी जरा becauseबताओ तो            हर वसंत तुम इतना becauseक्यों संवरती हो            फूलों के भार से हवाओं संग because कितना लचकती हो ...
सुभाष जिनके जीवन से जुड़ी हैं ना जाने कितनी रहस्य की परतें

सुभाष जिनके जीवन से जुड़ी हैं ना जाने कितनी रहस्य की परतें

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रत्ना श्रीवास्तव आजादी की लड़ाई के becauseदौरान देश के शीर्ष नेताओं में थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस. 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में उनके निधन की खबर आई. लेकिन इसके बाद लगातार ये खबरें भी आती रहीं कि वो जिंदा हैं. ये दावे 80 के दशक तक होते रहे. ऐसा लगता है कि नेताजी का जीवन ना जाने कितनी ही रहस्य की परतों में लिपटा हुआ है. आजादी अलग-अलग देशों की आला soखुफिया एजेंसियों ने अपने तरीकों से इस तारीख से जुड़ी सच्चाई को खंगालने की कोशिश की. कुछ स्वतंत्र जांच भी हुई. कई देशों में हजारों पेजों की गोपनीय फाइलें बनीं. तमाम किताबें लिखीं गईं. रहस्य ऐसा जो सुलझा भी लगता है और अनसुलझा भी. butदरअसल जापान से ये खबर आई कि 18 अगस्त 1945 को दोपहर ढाई बजे ताइवान में एक दुखद हवाई हादसे में नेताजी नहीं रहे. हालांकि हादसे के समय, दिन, हकीकत और दस्तावेजों को लेकर तमाम तर्क-वितर्क, दावे और अविश्वास जारी हैं. ...
दमखम से भरी, सुलगती कविताओं का झुंड है “कविता पर मुकदमा”

दमखम से भरी, सुलगती कविताओं का झुंड है “कविता पर मुकदमा”

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सुनीता भट्ट पैन्यूली एक बेहद ख़ूबसूरत, मासूम-सी कविता जहां मुन्नी गुप्ता के कविता संग्रह “कविता पर मुकदमा” का संपूर्ण सार छुपा हुआ है आप सभी  पाठक भी पढिय़े न..! अपने फैसले के साथ जीना चांद होना है गर तुम जी सको चांद बनकर तो सारा आकाश तुम्हारा है… आकाश “कविता पर मुकदमा” संग्रह  सामान्य दैनिक जीवन की ऊहापोह और संघर्ष की अनूभूतियों का संग्रह ही नहीं हैं अपितु धुंआ निकालती, दमखम से भरी हुई, सुलगती कविताओं का झुंड है’,so जिनकी आंच की ज़द में आकर शायद समाज में कहीं बदलाव की किरण महसूस की जा सके या नये जाग्रत समाज का उन्नयन हो. उपरोक्त वर्णित कविता संदेश दे रही है कि अपने फैसलों और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना ही ओजस्वी और  सफल होना है अथार्त किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए निर्भीक चरित्र और  जीवन मुल्य के सिद्धांतो पर अडिगता अपरिहार्य है. यदि आप डटे रहते हैं अपने जीवन के सिद्धांत...
चकाचौंध से भरी दुनिया में उसके भीतर का अंधेरा

चकाचौंध से भरी दुनिया में उसके भीतर का अंधेरा

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"पति आमतौर पर सबसे अच्छे प्रेमी तब होते हैं, जब वे अपनी पत्नियों को धोखा दे रहे होते हैं"- मर्लिन मनरो प्रकाश उप्रेती मर्लिन के इस कथन को पूर्णतः सत्य because नहीं माना जा सकता लेकिन झुठलाया भी नहीं जा सकता है. पितृसत्ता का अभ्यास और स्त्री को भोग की वस्तु समझे जाने वाली मानसिकता की बारीक नस को यह वाक्य पकड़ता है. मर्लिन इस किताब को बहुत पहले 'गोरख पाण्डेय' हॉस्टल के कमरा नम्बर 45 में, पढ़ा था. तब किताब किसी फिल्म की भांति चल रही थी. हर अध्याय क्लाइमेक्स की उत्सुकता को बढ़ा देता था. इधर इसे दोबारा पढ़ा तो पाठ ही बदल गया. किसी भी रचना को समय, काल but और परिस्थितियों से काट कर नहीं देखा जा सकता है. तकरीबन एक दशक बाद जब इस किताब को दोबारा पढ़ा तो स्वाभाविक ही पाठ बदला था. अर्थ की कई छवियाँ और निर्मित हो गई थीं.  "सिर्फ 36 वर्ष की उम्र... और कितना लंबा जीवन! इतना लंबा कि वह उससे थक चली ...
इतिहास की दहलीज पर रोशनियों की दस्तक!

इतिहास की दहलीज पर रोशनियों की दस्तक!

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सुनीता भट्ट पैन्यूली किसी किताब की सरसता,रोचकता,कौतुहलवर्धता उस किताब के मूलतत्व अथार्त विषय, तथ्य, भाषा, प्रमाण कथ्य,उद्देश्य पर निर्भर करती है। अपनी “हाशिये पर रौशनी" ध्रुव गुप्त जी द्वारा because लिखे गये एतिहासिक, पौराणिक, अध्यात्मिक, संगीत, साहित्य, कला, पर्यावरण से संबद्ध छब्बीस आलेखों के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं जो पाठकों के मष्तिष्क में जिज्ञासा पैदा करने हेतु उपरोक्त मापदंड पर खरी उतरती है। परिवेश इसमें विभिन्न रंग, परिवेश because और अपनी-अपनी लियाकत की कहानी बयां करती चित्रों की विथिका या अंधेरी गुफाओं में रौशनी के पुंज से सराबोर विभिन्न व्यक्तियों के जीवन चरित्र पर आधारित चित्रावली एक दम नया अहसास, अनोखी अनुभूति है। विलुप्त किताब में इतिहास की because दहलीज पर रोशनियों की दस्तक है, उन हाशिये पर पड़ी महानतम आत्माओं पर जिनके अमुल्य व अतुलनीय योगदान व उनके महान व्यक्...
राजनैतिक पाठ में काश और कसक के बीच

राजनैतिक पाठ में काश और कसक के बीच

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प्रकाश उप्रेती बहुत दिनों से लंबित 'विजय त्रिवेदी' becauseकी किताब 'बीजेपी कल, आज और कल' को आखिर पढ़ लिया. इधर के दो दिन किताब को पचाने में लगे और अब उगल रहा हूँ. बीजेपी दस अध्यायों में विभाजित यह किताब ''1 मार्च 2019. रात के 9 बजकर 20 मिनट. अटारी-वाघा-बॉर्डर भारत-पाकिस्तान की सीमा पर बने इस बॉर्डर पर हजारों लोगों का जोश but और 'भारत माता की जय' के नारे गूँज रहे थे. शाम को हुई बारिश ने भले ही ठंडक बढ़ा दी थी, लेकिन माहौल में गजब की गर्माहट थी. 'विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान' की पाकिस्तान से वापसी की खबर का पूरा देश इंतजार कर रहा था." दृश्य से आरंभ होती है. इसके बाद किताब बीजेपी के भूत, वर्तमान और भविष्य का विश्लेषण करते हुए उसके इर्दगिर्द की राजनीति पर टीका करती हुई आगे बढ़ती है. इस दृश्य में वह सब कुछ जो राजनीति का वर्तमान है. विजय त्रिवेदी ने किताब में अपनी बातों को पुष्ट करने के...
कुछ अच्छी बातें सिर्फ गरीबी में ही विकसित होती हैं…

कुछ अच्छी बातें सिर्फ गरीबी में ही विकसित होती हैं…

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डॉ. अरुण कुकसाल ‘बाबा जी (पिताजी) की आंखों में आंसू भर आये थे. मैंने नियुक्ति पत्र उनके हाथौं में दिया तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया. वह बहुत कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन कुछ भी बोल नहीं पा रहे थे. सिर्फ़ मेरे सिर पर हाथ फेरते रहे... मैं उसी विभाग में प्रवक्ता बन गया था जिसमें मेरे बाबा जी चपरासी थे.’ गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर परिसर से अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए परम आदरणीय प्रोफेसर राजा राम नौटियाल की आत्म संस्मराणत्मक पुस्तक 'चेतना के स्वर' का यह एक अंश है. प्रो. नौटियाल के पिता स्व. पंडित अमरदेव नौटियाल के जीवन संघर्षों पर यह पुस्तक केन्द्रित है. जीवन की विषम परिस्थितियों के चक्रव्यूह को तोड़ते हुए अपने सपनों के चरम को छूने की सशक्त कहानी है यह पुस्तक. किताब का हर वाक्य जीवन के कठोर धरातल से उपजा हुआ है. बेहतर जीवन के लिए अनवरत मेहनत और ईश्वर के प्रति अट...
ट्यूलिप के फूल कहानी संग्रह

ट्यूलिप के फूल कहानी संग्रह

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कॉलम: किताबें कुछ कहती हैं… डॉ. विजया सती सुपरिचित लेखिका एम.जोशी हिमानी का नवीनतम कहानी संग्रह है– ट्यूलिप के फूल जो भावना प्रकाशन दिल्ली से 2020 में प्रकाशित हुआ. इससे पहले लेखिका एक कविता संग्रहों के अतिरिक्त उपन्यास ‘हंसा आएगी जरूर’ और कहानी संग्रह ‘पिनड्रॉप साइलैंस’ भी दे चुकी हैं. जीवन के आरंभिक पंद्रह वर्ष पहाड़ में जीकर चालीस से भी अधिक वर्ष महानगर में बिताने वाली कथाकार के रग-रग में पहाड़ सांस लेता है. वर्तमान जीवन की हलचल, विडंबनाओं, सुख-सुविधाओं के बावजूद लेखिका का मन अतीत में लौटता रहता है. वास्तव में इस जीवन-क्रम ने ही लेखिका को अनुभवों का अपार संसार दिया है – उनकी सभी कहानियां उनके जिए हुए जीवन से जुड़ी हैं, इसलिए उनमें अनुभव का ताप है. पहाड़-गाँव-शहर, घर-बाहर-कार्यालय, व्यक्ति-समाज-अर्थ तंत्र  ...इन सबके बीच आवाजाही से बनी हैं उनकी कहानियां. ट्यूलिप के फूल संकलन में ...
‘पत्थरों का उपासक, प्रकृति का पुजारी’

‘पत्थरों का उपासक, प्रकृति का पुजारी’

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डॉ. अरुण कुकसाल ‘सबकी अपनी जीवन कहानी होती है और सबका अपना संघर्ष होता है, सबके अपने सौभाग्य और सफलताएं होती हैं, तो अवरोध और असफलताएं भी. फिर भी हर जीवन अपने जमाने से प्रभावित होता है. अनेक जीवन अपने जमाने को जानने और बनाने में बीत जाते हैं और उनके जीवन को जमाना यों ही सोख लेता है... ऐसा ही इन पन्नों में एक सामान्य सा पर असाधारण जीवन पसरा है. कितना तो गुम भी गया होगा, पर जितना आ सका है पठनीय है और प्रेरक भी... किसी आत्मकथा को पढ़ना उस व्यक्ति को जानने-समझने के साथ उसके अन्तःमन में छिपे-दुबके अनेकों व्यक्तियों को जानना-समझना भी होता है. व्यक्ति जो दिखता है और व्यक्ति जो होता है, में एक छोटा-लम्बा जैसा भी हो पर फासला होता है. यही फासला व्यक्ति के सुख-दुःख और सफलता-असफलता का कारक भी है. आत्मकथा की शब्द-यात्रा पाठक को इन्हीं कारकों और उनसे उपजे व्यक्तित्वों से परिचय कराती है.  बहरा...