पुस्तक-समीक्षा

युवाओं की दुविधा को कम करने वाली है अक्षिता बहुगुणा और डॉ राजेश नैथानी की किताब  ‘प्रो. ड्रौउ’

युवाओं की दुविधा को कम करने वाली है अक्षिता बहुगुणा और डॉ राजेश नैथानी की किताब ‘प्रो. ड्रौउ’

पुस्तक-समीक्षा
अरविंद मालगुड़ी भारत युवाओं का देश है, जहां का हर युवा पढ़ लिख कर अपने सपनों को पंख दे सफलता की उड़ान भरना चाहता है। परन्तु अगर सही दिशा और मार्गदर्शन न मिले तो भ्रम की because स्थिति  पैदा हो जाती है। उत्तराखण्ड के दो लेखकों अक्षिता बहुगुणा और डॉ राजेश नैथानी की पुस्तक "प्रो. ड्रौउ करियर कोचिंग" युवाओं को इसी भ्रम से निकाल पेशेवर पाठ्यक्रमों के अलावा सभी व्यावहारिक  करियर विकल्पों का पता लगाने में मदद करती है। इसके साथ ही आवश्यक कौशल और मूल्यों पर प्रकाश डालती है। एकाग्रता इन दोनों लेखकों का समृद्ध अनुभव पुस्तक में अच्छी तरह से परिलक्षित होता है। डॉ राजेश नैथानी  जो कि शिक्षा के क्षेत्र में भारत ही नहीं, कई अन्य देशों का व्यावहारिक अनुभव रखते हैं because और भारत के शिक्षा मंत्रालय में  बतौर सलाहकार का अनुभव रखते हैं।  वहीं दूसरी लेखिका अक्षिता बहुगुणा का भी शिक्षा के क्षेत्र में खासा अ...
उत्तराखंड के लोक और देव परंपरा को समझने के लिए एक ज़रूरी क़िताब

उत्तराखंड के लोक और देव परंपरा को समझने के लिए एक ज़रूरी क़िताब

पुस्तक-समीक्षा
पुस्तक समीक्षा चरण सिंह केदारखंडी कोटी बनाल (बड़कोट उत्तरकाशी) में 7 जून 1981 को जन्मे दिनेश रावत पेशे से शिक्षक और प्रवृति से यायावर और प्रकृति की पाठशाला के अध्येता हैं जिन्हें because अपनी सांस्कृतिक विरासत से बेहद लगाव है. अंक शास्त्र “रवांई के देवालय एवं देवगाथाएं” नवम्बर 2020 में प्रकाशित लोक संस्कृति पर उनकी दूसरी किताब है इससे पहले रावत जी “रवांई क्षेत्र के लोकदेवता और लोकोत्सव” पुस्तक लिख चुके हैं जो because उनकी दूसरी किताब की प्रेरणा बनी है. समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून और संस्कृति विभाग उत्तराखंड के आर्थिक अनुदान से प्रकाशित 294 पृष्ठ की इस किताब में 5 अध्याय हैं और कवर पेज (महासू देवता) सोबन दास जी का बनाया हुआ है... अंक शास्त्र उत्तराखंड समूचे भारत के साथ साथ हिमालयी राज्यों में भी अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक अस्मिता के लिए जाना जाता है. भावना के उदात्त स्फुरणों में...
संघर्ष, साहस, संयम और साहित्य के साधक

संघर्ष, साहस, संयम और साहित्य के साधक

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल ‘सामाजिक जीवन में आम नागरिकों के साथ, मनसा-वाचा-कर्मणा अन्याय/अव्यवस्था के विरोध में मैं हमेशा खड़ा रहता हूं. (‘मेरा जीवन प्रवाह‘ आत्मकथा, चमन लाल प्रद्योत, पृष्ठ-233) जीवन पृष्ठभूमि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी एवं साहित्यकार श्री चमन लाल प्रद्योत का जन्म 3 मई 1936 को ग्राम- भीमली तल्ली (पालसैंण तोक), पट्टी- पैडुलस्यूं, जनपद- पौडी गढवाल में हुआ. प्रद्योत के पिता बूथा लाल और माता दीपा देवी का एक सामान्य किसान परिवार था. जब प्रद्योत लगभग तीन साल के थे because तो उनके माता-पिता सपरिवार पालसैंण तोक छोड़ कर गोदीगदना तोक में नया मकान बना कर रहने लग गये.  अन्य ग्रामीणों की तरह ही खेती, पशुपालन के साथ राजमिस्त्री के कार्य से परिवार का भरण-पोषण होता था. स्वरोजगार शिक्षा विकट आर्थिक अभावों के रहते हुए प्रद्योत अपनी 9 साल की उम्र तक स्कूल नहीं जा पाये...
मालिनी का आंचल…

मालिनी का आंचल…

पुस्तक-समीक्षा
नीलम पांडेय ‘नील’ डा. डी. एन. भटकोटी जी के प्रबंध काव्य संग्रह मालिनी (भरत-भारत) पूर्व लिखित गघ एवं काव्य संग्रह से काफी भिन्न और नवीन है. पूर्व में लिखित अधिकतर काव्य संग्रह में जिस प्रकार दुष्यन्त केन्द्र बिन्दु थे, उसी प्रकार मालिनी (भरत-भारत) काव्य संग्रह में शकुन्तला प्रधान नायिका है. डा. भटकोटी जी ने शकुन्तला को प्रधानता देते हुऐ, because एक पहाड़ की स्त्री के रूप में उसकी मनःस्थिति का अवलोकन किया है. समस्त काव्यखंड की अन्र्तवस्तु, अभिव्यक्ति, शिल्प तथा भाव स्तर बेहद अलग है, या यूँ कहें कि यह अपनी परम्परागत शैली को बनाऐ रख कर की गयी नवीनतम विधा है. भटकोटी उक्त संग्रह में रचनाकार का लम्बा रचनात्मक संर्घष नजर आता है, यहां पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि आदरणीय डी. एन. भटकोटी जी लिखते हुऐ अपने मन की सतह पर उग आयी विचारों की तहों को खोलने के प्रयास में रहते हैं, जिनमें उनका खुद का ग...
लोक-परंपरा और माटी की खूशबू…

लोक-परंपरा और माटी की खूशबू…

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूली रंग हैं, मौसम हैं, तालाब हैं पोखर हैं, मछली है, खेत हैं, खलिहान हैं, पुआल है, मवेशी, कुत्ता, गिलहरी हैं, ढिबरी है, बखरी है, बरगद है, पीपल हैं, पहाड़ हैं, पगडंडियां हैं, because आकाश है, ललछौंहा सूरज है, धूप है, बादल हैं, बुजुर्ग मा-बाबूजी हैं, बच्चे हैं, बीमारी है, षोडशी है, मेहनतकश जुलाहे की दिनचर्या है, भूख है, चुल्हा है, राख है तवा है, गोल रोटी है, मजबूरी है, संताप है, भूख है, परंपरायें हैं, रस्म हैं रिवाज हैं, लोक-परंपराओं और माटी की खूशबू है. किताबी तिलिस्म ऐसा एक किताबी तिलिस्म soजिसमें सिमट आया है सबकुछ इंसानी जज़्बात, रिश्तों की जद्दोजहद, रोज़मर्रा की खींचतान जिंदगी से, साक्षात्कार दैनिक जीवन-मुल्यों का और विशेषकर आदमी की  दैनंदिन उपभोग की मूलभूत आवश्यकताओं का. उपरोक्त जो भी मैंने लिखा but है मित्रों परिचय करा रही हूं मैं आदरणीय श्लेष अलंकार द्वारा लिखी गय...
जब नाराज होगी प्रकृति …

जब नाराज होगी प्रकृति …

पुस्तक-समीक्षा
राजीव सक्सेना जैसे समुद्र छुपा लेता है सारे शोर... नदियों, जीव जंतुओं के.. कविताएं भी मेरे लिए समुद्र से कम न थी! मैं भी कविता होना चाहती हूं... कविता को लेकर ये आसक्ति... ये प्रेम... ये जूनून अभिव्यक्त हुआ है कवयित्री निमिषा सिंघल की अपनी ही एक रचना में. 'जब नाराज होगी प्रकृति' शीर्षक से, सर्वप्रिय प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित उनके काव्य संग्रह में निमिषा सिंघल ने न सिर्फ प्रकृति के प्रति लगाव बल्कि ईश्वर से संवाद और सामाजिक अवधारणाओं को भी अपनी कलम के जरिए गंभीरता से रेखांकित किया है. निमिषा, कहीं सुबह को अपने तरीके से परिभाषित करती हैं... सूरज ने प्रेम दर्शाया है, फूलों, कलियों को दुलराने मस्त मगन पवन आया है... तो कहीं मौसम के मिजाज के बहाने ज़िंदगी के फ़लसफ़े को कुछ यूं उज़ागर करती हैं नित नए रंग बदलती है जिंदगी.. ठीक ही समझा आपने मौसम की तरह मिजाज बदलती है जिंदगी....
भारतीय हिमालय क्षेत्र से मानवीय पलायन के बहुआयामों पर सार्थक चर्चा करती पुस्तक

भारतीय हिमालय क्षेत्र से मानवीय पलायन के बहुआयामों पर सार्थक चर्चा करती पुस्तक

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल अपने गांव चामी की धार चमधार में बैठकर मित्र प्रो. अतुल जोशी के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय हिमालय क्षेत्र से पलायन: चुनौतियां एवं समाधान- Migration from Indian Himalaya Region: Challenges and Strategies' का अध्ययन मेरे लिए आनंददायी रहा है. इस किताब के because बहाने कुछ बातें साझा करना उचित लगा इसलिए आपकी की ओर मुख़ातिब हूं. उत्तराखंड ‘मेरी उन्नति अपने ग्राम और इलाके की उन्नति के साथ नहीं हुई है, उससे कटकर हुई है. जो राष्ट्रीय उन्नति स्थानीय उन्नति को खोने की कीमत पर होती है, वह कभी स्थाई नहीं because हो सकती. उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों का देश की उन्नति में कितना ही बड़ा योगदान हो, उत्तराखंड की समस्याओं से अलगाव और उन्नति में योगदान से उदासीनता उनके जीवन की बड़ी अपूर्णता है. यह राष्ट्र की भी बड़ी त्रासदी है.’ वरिष्ठ सामाजिक चिंतक और अर्थशास्त्री प्रो. पी. सी. जोशी...
गढ़वाली भाषा और साहित्य को समर्पित बहुआयामी व्यक्तित्व- संदीप रावत

गढ़वाली भाषा और साहित्य को समर्पित बहुआयामी व्यक्तित्व- संदीप रावत

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल प्रायः यह कहा जाता है कि जो समाज में प्रचलित और घटित हो रहा है, वह उसके समसामयिक साहित्य में स्वतः प्रकट हो जाता है. परन्तु इस धारणा के विपरीत यह भी कहा जा सकता है कि जो सामाजिक प्रचलन में अप्रासंगिक हो रहा है, ठीक उसी समय उसकी अभिव्यक्ति उसके साहित्य और संगीत में प्रमुखता से होने लगती है. लोक भाषायें और संगीत सामाजिक जीवन व्यवहार से हट रही हैं, परन्तु लोकभाषा और संगीत रचने का शोर चहुंओर है. गढ़वाळि भाषा-संगीत के विकास की बात करने वाले आये दिन और मुखर हो रहे हैं, पर उसको सामाजिक व्यवहार में लाने में उनमें से अधिकांश के प्रयास बस किताबी ही हैं. शरद लोक साहित्यकार संदीप रावत जैसे विरले ही हैं जो गढ़वाळि भाषा को पूरे समर्पण भाव से जवान हो रही पीढ़ी की मुख्य जुबान बनाने का प्रयास कर रहे हैं. गढ़वाळि साहित्य की प्रत्येक विधा में पारंगत उनकी लेखनी में कमाल का आकर्षण है. गढ़वाळि...
कुमाऊंनी महाकाव्य ‘न्यायमूर्ति गोरल’

कुमाऊंनी महाकाव्य ‘न्यायमूर्ति गोरल’

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. कीर्तिवल्लभ शक्टा रचित ग्वेल देवता महाकाव्य की समीक्षा डॉ. मोहन चंद तिवारी ग्वेल देवता की लोकगाथा को आधार बनाकर अब तक दुदबोली कुमाऊंनी भाषा के स्थानीय लेखकों के द्वारा अनेक कविताएं, लघुकाव्य, खंडकाव्य, चालीसा तथा महाकाव्य विधा में साहित्यिक रचनाएं लिखी गई हैं और निरंतर रूप से आज भी लिखी जा रही हैं. किन्तु इन सबके बारे में एक व्यवस्थित जानकारी का अभाव-सा है. अब तक गोरिल देवता के सम्बन्ध में जो रचनाएं मेरे संज्ञान में आई हैं, उनमें गोलू देवता पर रचित काव्यों में कविवर जुगल किशोर पेटशाली रचित 'जय बाला गोरिया' और कुमाऊंनी लोक संस्कृति के रंगकर्मी त्रिभुवन गिरी महाराज द्वारा रचित 'गोरिल' महाकाव्य लोकविश्रुत रचनाएं हैं. इनके अलावा केशव दत्त जोशी द्वारा रचित 'ग्वल्ल देवता की जागर', कृष्ण सिंह भाकुनी विरचित 'श्री गोल्ज्यू काथ सौती राग', मथुरा दत्त बेलवाल रचित 'जै उत्तराखंड जै ग्वेल देव...
‘लोक में पर्व और परम्परा’

‘लोक में पर्व और परम्परा’

पुस्तक-समीक्षा
‘जी रया जागि रया, यो दिन यो मास भेंटने रया, दुब जस पनपी जाया’ अरुण कुकसाल हिमालयी क्षेत्र एवं समाज के जानकार लेखक चन्द्रशेखर तिवारी की नवीन पुस्तक ‘लोक में पर्व और परम्परा’ कुमाऊं अंचल के सन्दर्भ में एक सामाजिक, सांस्कृतिक so और पर्यावरणीय विवेचन प्रस्तुत करती है. कुमाऊंनी जनजीवन के जीवन-मूल्यों एवं जीवंतता को यह पुस्तक खूबसूरती से बताती है. कुमाऊं अंचल के पर्व, परम्परा और संवाहक खंडों के फैलाव में 8 अध्यायों की यह पुस्तक है. पर्व खंड में- हरेला, सातूं-आठूं और गंगा दशहरा, परम्परा खंड में- कुमांऊ के विवाह संस्कार, नौल-धार और कुमाऊं के वस्त्राभूषण तथा संवाहक खंड में- लोकगायिका नईमा खान उप्रेती और कबूतरी because देवी के बारे में इस किताब में बेहतरीन जानकारी है. किताब में समाज वैज्ञानिक के बतौर चन्द्रशेखर तिवारी ने अपनी लेखकीय दृष्टि को पूरी तरह से शोधपरख रखा है. किताब का प्रकाशन...