पुस्तक-समीक्षा

…कविताएं नहीं लिखी है बल्कि आत्मा लिख दी!

…कविताएं नहीं लिखी है बल्कि आत्मा लिख दी!

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पुस्तक समीक्षा : आत्मा का अर्धांश नीलम पांडेय नील, देहरादून, उत्तराखंड आत्मा का अर्धांश के रचनाकार पेशे से वानिकी वैज्ञानिक because शिशिर सोमवंशी का बचपन का काफी समय उत्तराखंड की पहाड़ियों में बीता है. जिसका प्रभाव उनकी कविताओं में प्रकृति और प्रेम के निश्छल सौंदर्य बोध से प्रतीत होता है. ज्योतिष वे मुख्यतः प्रेम, प्रकृति, और मानवीय संबंधों की जटिलता because पर लिखते रहे हैं. जैसे-जैसे मैंने शिशिर जी को पढ़ना शुरू किया तो एक ऐसे व्यक्तिव को समझना शुरू किया जो कविताओं की रहस्यमय दुनिया से इस तरह जुड़े हुए हैं जहां उनको पढ़ते हुए लगता है कि कवि ने कविताएं नहीं लिखी है बल्कि  आत्मा लिख दी है और आत्मा का संबंध तो युगों से होता है. ज्योतिष नया कुछ नहीं सभी मर रहे हैं धीरे - धीरे, किन्तु मैं बहुत तीव्रता से मरने लगा हूं.......... ज्योतिष शिशिर की कुछ कविताएं गहन विमर्श को प्रोत्साहित...
एक वर्जित क्षेत्र की कथा यात्रा

एक वर्जित क्षेत्र की कथा यात्रा

पुस्तक-समीक्षा
आशुतोष उपाध्याय तिब्बत पुरातन काल से ही वर्जित because और रहस्यमय रहा है. एक अत्यंत कठिन और दुर्गम भूगोल जहां जीवित रहने के लिए शरीर भी अपनी जैविक सीमाओं का विस्तार चाहता है. यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं कि बेहद दुष्कर व जन विरल होने के बावज़ूद तिब्बत यूरेशियाई ताक़तों की टकराहट और ज़ोर-आज़माइश का अखाड़ा बना रहा. आज 21वीं सदी में दुनिया के ‘ग्लोबल’ हो जाने के बाद भी तिब्बत की वर्जनाएं कमोबेश जस की तस हैं. ज्योतिष मेरे लिए तिब्बत से पहला परिचय उन शरणार्थी परिवारों के ज़रिये हुआ, जो पिछली सदी के 60वें दशक में दलाई लामा के पीछे चलकर भारत पहुंचे और विभिन्न पहाड़ी इलाकों में बसाए गए. हमारे छोटे से पहाड़ी क़स्बे में भी कुछ तिब्बती परिवारों की आमद हुई. कुछ अलग तरह की वेशभूषा पहने तिब्बती महिलाएं सड़क के किनारे औरतों व बच्चों के सस्ते सामान और कुछ हिमालयी मसाले आदि बेचा करती थीं. because उनके घरों में ...
अमृत पर्व कुम्भ: सनातन संस्कृति, परम्परा और ज्ञानामृत चेतना से पुनः संवाद….

अमृत पर्व कुम्भ: सनातन संस्कृति, परम्परा और ज्ञानामृत चेतना से पुनः संवाद….

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. मोहन चंद तिवारी नववर्ष 2022 के अवसर पर, जब देश अपनी आजादी के 75वें अमृत महोत्सव की वर्षगांठ भी मना रहा है, यह बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि इस नए वर्ष में मेरी because चिर प्रतीक्षित पुस्तक "अमृत पर्व कुम्भ: इतिहास और परम्परा" देश के लब्धप्रतिष्ठ प्रकाशन, ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली के माध्यम से सुधीजन पाठकों के करकमलों में शीघ्रातिशीघ्र पहुंचने वाली है. ज्योतिष हमारे देश के बुद्धिजीवियों और सन्त महात्माओं ने आदिकाल से चली आ रही  कुम्भ परम्परा को महज एक धार्मिक मेले की नजरिए से ही देखा है, जिसका आयोजन चार तीर्थ स्थानों पर तीन सालों के अंतराल पर किया जाता है. किन्तु इस कुम्भ अवधारणा के पीछे नदियों के संरक्षण, प्रकृति संरक्षण,  नदीमातृक संस्कृति और पर्यावरण चिंतन because और अखंड राष्ट्रीय एकता का जो विचार हजारों वर्षों से इस भारत देश को राष्ट्रीय अस्मिता के भाव से जोड़ रहा था उसे ...
संस्मरणों, यात्राओं और अनुभवों का पुलिंदा है हिमालय दर्शन

संस्मरणों, यात्राओं और अनुभवों का पुलिंदा है हिमालय दर्शन

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूली जैसा कि लेखक दिगम्बर दत्त थपलियाल लिखते हैं - “जिस हिमालय की हिम से ढकी चोटियां मेरी अन्तश्चेतना और अनुभुतियों का अविभाज्य अंग बन गयी हैं, जहां एक क्वारी धरती गहरे नीले आकाश के नीचे सतत सौन्दर्य रचना में डूबी रहती है, उसकी विभूति और वैभव को किस प्रकार इन पृष्ठों पर उतारु? मैं चाहता हूं, हर कोई उस ओर चले, पहुंचे और देखे. अनुभव करे कि वहां परिचय की छोटी-छोटी सीमायें टूट जाती हैं. छोटे-छोटे आकाश नीचे,बहुत नीचे छूट जाते हैं और शुरू होती,एक विराट सुन्दर सत्ता. जिसके प्रभाव में हमारी नगण्य अस्मिता अनन्त के छोर छूने लगती है.” ज्योतिष दिगम्बर दत्त की “हिमालय दर्शन” (Himalayas: In the pilgrimage of India)  पर्यटन साहित्य पर लिखा गया एक महत्त्वपूर्ण व शोधपरक दस्तावेज है.  दिगम्बर दत्त because थपलियाल की विद्वता, तथ्यनिष्ठा, व उत्तराखंड के हिमालय की यात्राओं के असंख्य अनुभव...
भाषा और अनुवाद का विराट व कौतूहल वर्धक संसार…! 

भाषा और अनुवाद का विराट व कौतूहल वर्धक संसार…! 

पुस्तक-समीक्षा
बहुविविध आयाम और उदेश्य हैं यह देवेशपथ सारिया जी के रचनात्मक संसार से परिचित होकर  मुझे ज्ञात हुआ सुनीता भट्ट पैन्यूली कविताएं महज़ कल्पनाओं,मिथक और आस-पास के वातावरण से शरीर ही नहीं धारण करतीं अपितु कविताओं का उद्देश्य किसी संसार की व्यापकता में उसके सामाजिक रूप, संस्कृति, उसके प्राकृतिक सौंदर्य,मानव स्वभाव  और वहां के भौगोलिक वातावरण से पाठकों को परिचित कराना भी है. चाहे वह साहित्यिक क्षेत्र हो, समकालीन व because साम्राज्यवादी व्यवस्था हो कवि की मनोदशा या उसके सामाजिक जीवन का संघर्ष हो या उसकी अपने देश के प्रति प्रेम की प्रगाढ भावना हो अथवा उसका वैयक्तिक संघर्ष हो, जिसकी उदेश्य पूर्ति के लिए किसी भी भाषाओं में लिखी गयी कविताओं की विश्वव्यापी संप्रेषणीयता के लिए उनका अनुवाद एक विशिष्ट कारक है जो कविताओं की मूल जड़ों और उसके आच्छन्न उदेश्यों को हर प्रांत व दुनिया के जनमानस तक पहुंचाने ...
देव कन्या ने उतारा ‘देवभूमि हिमाचल’ का नकाब!

देव कन्या ने उतारा ‘देवभूमि हिमाचल’ का नकाब!

पुस्तक-समीक्षा, हिमाचल-प्रदेश
गगनदीप सिंह इस किताब की सबसे बड़ी सफलता ये हैं कि इसका विमोचन हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने हाथों से किया था. मुख्यमंत्री ने लेखिका के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि लेखिका ने अपनी कहानियों के माध्यम से पहाड़ी महिलाओं के संघर्षों और मनोदशाओं को चित्रित करने में सफलता प्राप्त की है. उन्होंने कहा कि because कहानियां अच्छी तरह से तैयार की गई हैं और भाषा, शैली और स्वर में सरल हैं, और लेखक ने पहाड़ियों में प्रचलित कलात्मक प्रयोग, परंपराओं और रीति-रिवाजों को एक नई ऊंचाई दी है. ज्योतिष देव कन्या ठाकुर ने अपनी कहानियों में जो विषय चुना है, उस पर हिमाचल में आम तौर पर चर्चा वर्जित हैं, वर्जित इस रूप में हैं कि अगर आप इस विषय पर खुल कर बोलोगे, because रीति-रिवाज के नाम से थोपे जा रहे सामंती मूल्यों के खिलाफ बोलोगे तो इसके नतीजे आपको भुगतने होंगे. ज्योतिष देव कन्या ठा...
स्मृति-कथाओं के जीवंत शब्द-चित्र- ये चिराग जल रहे हैं

स्मृति-कथाओं के जीवंत शब्द-चित्र- ये चिराग जल रहे हैं

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल ‘जिस मकान पर आपके बेटे ने ही सही, बडे़ फख्र से ‘बंसीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ की तख़्ती टांग दी थी, उसमें देवकी पर्वतीया का खून-पसीना लगा है. यह नाम कभी आपने ही because उन्हें दिया था लेकिन नेम प्लेट पर अपने नाम के साथ इसे भी शोभायमान करना आप भूले ही रहे (पृष्ठ-41).’’ ज्योतिष ‘ये चिराग जल रहे हैं’ किताब में उक्त पक्तियां नवीन जोशी जी ने बंसीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी के लिए लिखी हैं. पर ये उन सब सार्वजनिक ‘चिरागों’ पर हू-ब-हू लागू होती हैं जो अब हमारे जीवन में नहीं हैं एवम् उन पर भी जो हमारे आस-पास मौजूद हैं और जिनके आभा-मंडल से हम गदगद होते रहते हैं. पर कभी ख्याल किया कि because उन चिरागों की सीधी तपिश को जीवन-भर झेलने वाले उनके परिजन हमारे चिन्तन में कितनी जगह पाते हैं? चिरागों की रोशनी कायम रहे, इसके लिए दिन-रात खपने वाले उनके परिजनों के विकट जीवन संघर्षों का वास्तविक हितेषी और ...
कच्चे रास्ते पक्के सबक – दीपा तिवारी

कच्चे रास्ते पक्के सबक – दीपा तिवारी

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कैलास मानसरोवर यात्रा पर एक उपयोगी यात्रा-पुस्तक डॉ. अरुण कुकसाल कैलास पर्वत (ऊंचाई समुद्रतल से 22,028 फीट) और मानसरोवर (ऊंचाई समुद्रतल से 14,950 फीट) हिन्दू, बोनपा, बौद्ध और जैनियों की आस्था के सर्वोच्च तीर्थस्थल हैं. हिन्दुओं के लिए यह शिव का विराट रूप है. तिब्बत के बोनपा यहां स्वास्तिक में विराजमान अपने देवों दैमचौक और दोरजे फांगमो के दर्शन करते हैं. because बौद्ध बुद्ध की तपस्थली और जैन प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव की निर्वाण भूमि यहां मानते हैं. जीवनदायनी नदियां करनाली, सतलज, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु नदियों का उद्गम क्षेत्र यही है. ज्योतिष एक आम हिन्दू, तिब्बती, जैन और बौद्ध व्यक्ति के लिए कैलास - मानसरोवर जाना मन की संपूर्ण मनोकामनाओं का तर जाना है. हिमालय प्रेमी और घुमक्कड़ों के लिए because कैलास - मानसरोवर की यात्रा जीवन की अमूल्य निधि को हासिल करना है. वर्षों से मेरा भी ख़्वाब है क...
वियोगी मन की ‘आह’ से नहीं बल्कि ‘बेचैनी’ से उपजी कविताएँ 

वियोगी मन की ‘आह’ से नहीं बल्कि ‘बेचैनी’ से उपजी कविताएँ 

पुस्तक-समीक्षा
 प्रकाश उप्रेती यह दौर कहन का अधिक है. सब कुछ एक साथ कह जाने की होड़ में बहुत कुछ छूट रहा है. साहित्य में भी यही परम्परा दिखाई दे रही है. यहाँ भी ठहराव और अर्थवता की जगह आभासी दुनिया ने ले ली है. रामचन्द्र शुक्ल जिस कवि कर्म को समय के साथ कठिन आंक रहे थे वह आज ज्यादा आसान दिखाई दे रहा है. ठीक इससे पहले की सदी जिसे कथा साहित्य की सदी कहा गया. वह जीवन के जटिल और संश्लिष्ट यथार्थ को अभिव्यक्त करने में काफी हद तक सफल रही. कविता इसमें कहीं चूक गई. इसीलिए सदी के अंत तक एक ओर ‘कविता के अंत’ की बात हो रही थी तो दूसरी तरफ ‘कविता की वापसी’ की घोषणा हो रही थी. आलोचक कविता का अंत लिख रहे थे तो वहीं कवि, कविता की वापसी करवा रहे थे. एक ही समय में कविता दो राहों पर थी. कहा जा रहा था कि कविता संचार के मकड़जाल में तेजी से बदलते समय को पकड़ने में चूक रही है और वह अपने समय के यथार्थ को नहीं पकड़ पा रही है. गद...
हिमालय को जानने-समझने की कोशिश

हिमालय को जानने-समझने की कोशिश

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल ‘हिमालय बहुत नया पहाड़ होते हुए भी मनुष्यों और उनके देवताओं के मुक़ाबले बहुत बूढ़ा है. यह मनुष्यों की भूमि पहले है, देवभूमि बाद में, क्योंकि मनुष्यों ने ही अपने विश्वासों तथा देवी-देवताओं को यहां की प्रकृति में स्थापित किया. हिमालय के सम्मोहक आकर्षण के कारण अक्सर यह बात अनदेखी रहती आयी है. यह आशा करनी so ही होगी कि हिमालय की सन्तानों और समस्त मनुष्यों को समय पर समझ आयेगी, पर यह याद रहे कि यह समझ न अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में उपलब्ध है और न कोई बैंक या बहुराष्ट्रीय कम्पनी इसे विकसित कर सकती है. यह समझ यहां के समाजों और समुदायों में है, वहीं से उसे लेना होगा. बस, हमें और हमारे नियन्ताओं को इस समझ को समझने की समझ आये.’ शिव शेखर पाठक की ‘दास्तान-ए-हिमालय’ किताब में लिखी उक्त पक्तियां आम जन से लेकर अध्येताओं के हिमालय के प्रति विचार और व्यवहार को सचेत करती है. हिमालय पृथ्वी का मा...