माँ तुम झूठी हो!
डॉक्टर दीपशिखा जोशी
माँ तुम ने विदाई के समय गले लगा बोला था, जा बिटिया वहाँ तुझे मिलेगी दूसरी माँ. मुझ में और उन में कभी अंतर ना करना. जा बिट्टो तुझे कभी ना खलेगी मेरी कमी, ना आएगी याद! कुछ समय लगेगा ज़रूर, मगर तू निभा लेगी मुझे पता है. मैं भी एक दिन ऐसे ही आयी थी तेरी नानी के घर से. यही रिवाज है बिटिया! हमेशा ख़ुश रहना कह तूने अपने आंसू पोंछे थे. मुझे तो रोना आया ही नहीं माँ उस दिन. मुझे लगा तू सच बोलती होगी! मैं तो ख़ुशी-ख़ुशी तेरे दिखाए सपने देख हवा में उड़ी जा रही थी. जैसे तू मुझे हमेशा परियों की कहानियां सुनाती, जैसे दिखाती थी मंगल ग्रह पर कैसे होता होगा जीवन, बताती थी बहुत काल्पनिक किस्से मुझे प्रेरणा देने को. माँ मैंने सब सच माना. तेरी हर सीख मेरे जीवन के उसूल बन गयी. तू मेरी माँ, बहन, सहेली सबकुछ थी! जब तक थी मैं तेरे आँचल के नीचे मुझे कभी ज़िम्मेदारियों, समस्याओं, डर और वास्तव...