उत्तराखंड में रोजगार की रीढ़ बन सकती है : माल्टा और संतरे की खेती

उत्तराखंड के गांवों में खुद बनाएं माल्टा और संतरा प्रजाति की पारिवारिक नर्सरियां

jp Maithani

जे. पी. मैठाणी

एक कोशिश आप सभी कीजिये एक हम भी कर रहे हैं – ये सभी फोटो हमारे एक फल संरक्षण केंद्र – पीपलकोटी के हैं – जिसका संचालन हमारी प्रशिक्षक श्रीमती भुवना देवी कर रही हैं. आजकल पूरे पहाड़ में अलग अलग स्थानों पर छोटे बड़े केन्द्रों पर ग्रामीण और युवा उद्यमी फल संरक्षण केंद्र के रूप में काम कर रहे हैं. इन केन्द्रों पर लोग दूर दूर से आते हैं- संतरा, कागजी नीम्बू, हिल लेमन यानी गलगल आदि फलों को जूस या स्क्वाश बनवा कर अपने अपने गांवों को वापस चले जाते हैं, लेकिन अगर इस फल संरक्षण केन्द्रों पर कोई भी ग्रामीण उद्यमी, युवा आदि जूस निकलने के बाद फलों के पल्प से बीज अलग निकाल कर अपने अपने गाँव ले जाकर अगर छोटी-छोटी नर्सरी बना दें तो बीजू पौधों की एक बढ़िया नर्सरी जिसमे 200 से लेकर 1000 तक बीजू पौधे हर गाँव में उगाये जा सकते हैं. हालांकि ये पौधे ग्राफ्टेड पौधे जैसे अच्छे पौधे तो नहीं देंगे, लेकिन कागजी और गल-गल हिल लेमन बड़े नीम्बू के पौधे बढ़िया हो जाएंगे और माल्टा की हो सकता है गुणवत्ता थोड़ा कम हो जाए या बढ़िया हो जाए.

बीजों का उपचार

नर्सरी छोटी हो या बड़ी हो- बीजों का उपचार बेहद जरूरी है, इसलिए जब आप संतरा प्रजाति के बीज एकत्र कर लें, उनको धूप पर बिलकुल न सुखाएं, उनको हलके पल्प में गीला ही रखिये और हो सके तो बोने से पहले इन गीले बीजों को अगर हो सके तो किसी फंफूद्नाशक जैसे-डायथेंन एम् – 45, बावस्टीन, मेन्कोजेब, कार्बेन्डाजिम के पाउडर की 2 चुटकी जो कि,  2000 बीजों के लिए पर्याप्त है तथा 5 किलो बीज के लिए- 20 ग्राम फंफूद नाशक का पाउडर पर्याप्त है, इस दवा से बीजों को उपचारित कर लीजिये, अगर फंफूद नाशक न हो तो गौमूत्र का प्रयोग कीजिए. अब उपचारित किये गए इन बीजों को क्यारियों में बोना है.

Malta fruit seeds

क्यारियां/ मदर बेड कैसे बनाएं 

जब हमने 2000 बीज उपचारित कर दिए अब इनको छोटी छोटी क्यारियों में बोने की तैय्यारी शुरू कर देते हैं – क्यारियों की लम्बाई- अधिकतम 4 फीट  और चौड़ाई कम से कम- 2 फीट – क्यारी बनाने से पहले एक क्यारी में कम से कम 10-15 किलो गोबर की सड़ी काली खाद मिला लें- सारे कंकड़ पत्थर हटा दीजिये – खर पतवार बिलकुल नहीं होनी चाहिए, अब क्यारी में 3-3 इंच पर कुदाल से लाइन बना लीजिये. जो बीज आपने उपचारित किये थे उनको एक चौड़े बर्तन में फैला लीजिये और उसमे साफ़ छनी हुई मिटटी या रेत को बीजों के साथ मिला दीजिये आप देखेंगे पल्प और जूस में भीगे ये फिसलन भरे बीज- भूर-भूरे हो गए हैं. अब इनको लाइन से क्यारियों में बो दीजिये. एक बार सिंचाई कर दीजिये, पहाड़ों में इस दौरान काफी ठंडा रहता है इसलिए फिर आपको हर 15 दिन बाद ही एक बार और फिर सीधे फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में ही सिंचाई करनी पड़ेगी. मैदानी क्षेत्रों की क्यारियों में हर माह में कम से कम 2 बार सिंचाई जरूरी होगी. दिसंबर-जनवरी में बोये गए ये बीज मार्च से जमने लगते हैं- अब आपको विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि अगर लाइन में एक ही जगह पर कई बीज एक साथ जम गए तो आपके पौधों की गुणवत्ता पर फरक पड़ेगा. ये बात- संतरा, कागजी नीम्बू, गलगल  यानी हिल लेमन और नारंगी संतरा- चकोतरा सभी पर समान रूप से लागू होती है. अब आपको पौध नर्सरी बनानी है.

कैसे बनाये संतरा प्रजाति की नर्सरी या पौधशाला 

अब उधर देखिये आपकी नर्सरी की बीज्वाड़- तैय्यार हो गयी है.  इधर आपको नर्सरी की 2000 थैलियां या नर्सरी बैग, जो कम से कम- 6 इंच X 6 इंच की हों इन थैलियों के लिए पहले मिटटी का मिश्रंण बना लीजिये. मिश्रण कैसे बनाएं- जैसे 60% छानी हुई मिटटी- कम से कम 10 कट्टे, 20% रेत- 3 कट्टे और 20% गोबर की सड़ी हुई खाद 3 कट्टे कुल 16 कट्टे साथ में कम से कम 2 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट, 1 किलो पोटाश और  2 किलो ग्रो मोर को मिलकर थैलियों में भरने के लिए मिश्रण बना लीजिये और फिर इस मिश्रण से  2000 नर्सरी बैग को पूरा का पूरा भर दीजिये- ध्यान  रखिये इन थैलियों में कम से कम 6 छेद होने चाहिए, ताकि अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए ! एक बार सारी की सारी थैलियों को 10-10 की लाइन में ढंग से क्यारी में लगा लीजिये और ध्यान रखिये पौधों का रोपण करने से पहले कम से कम 20 लीटर पानी में 20 ग्राम फंफूदनाशक को मिलकर पूरे के पूरे 2000 नर्सरी पाली बैग की पानी के फव्वारे से सिंचाई कर लीजिये फिर अगले दिन शाम को बीज्वाड़ से या मदर बेड से उँगलियों या लकड़ी की सहायता से सावधानी से छोटी-छोटी पौध  को उखाड़कर पाली बैग में एक एक कर उंगली या लकड़ी से बीच में गहरा कर उसमें एक एक पौध प्रत्यारोपित कर दीजिये. ये पौध को आपने कम से कम हर हफ्ते एक बार सिंचित करना होगा फिर बाद में एक माह बाद एक बार 20 लीटर पानी में 10 ग्राम फंफूद नाशक को 20 लीटर पानी में और 5मिली लीटर कीटनाशक का 20 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों के ऊपर छिड़काव कर दीजिये, ध्यान रहे थैलियों में घास -खर पतवार न जमे इसलिए समय समय पर निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होगी ! इस प्रकार अगले जुलाई तक आपके पास कम से कम 8 से 12 इंच की पौध तैयार हो जायेगी. वैसे तो इन पौधों को एक साल तक नर्सरी में रखा जाना चाहिए लेकिन अगर इसी वर्ष की जुलाई में ही पौधे बाँट दें तो ये आसानी से लग जायेंगे !

कैसे करें पौधों का रोपण 

बरसात के समय पौधा रोपण का सही समय है. इसलिए जून में ही 2 फीट चौड़ा x 2 फीट गहरा x 2 फीट लम्बा का गड्ढा बना लें उस गड्ढे में 20 किलो गोबर की खाद गड्ढे से निकली मिटटी के साथ मिलाकर वापस गड्ढे को भर लीजिये और मानसून की पहली बारिश के बाद पौधे रोपित कर दीजिये इस प्रकार रोपे गए पौधों में से कागजी नीम्बू तीसरे  साल के अंत तक और माल्टा, हिल लेमन , चकोतरा और नारंगी 4 साल बाद फल देने लगेंगे.

Malta – Santara – Of Uttarakhand – Malta, scientifically known as Citrus sinensis (L.) Osbeck is an important seasonal citrus fruit familiar to the hilly areas of Uttarakhand, India. The fruit is nutritive, rich in vitamins usually eaten during winters and preferred by the local people of Uttarakhand hills due to its distinct sweet-sour taste. This fruit tree is commonly found in scattered manner in kitchen gardens and home gardens, however, it could not attain a significant place in urban as well as in local markets which has reduced its popularity as a commercial fruit crop.

हर साल पौधे के नीचे थावले जरूर बनाएं कम से कम 50 किलो गोबर की सड़ी खाद डालिए , पेड़ की कटाई छंटाई समय समय पर करते रहिये , पेड़ के मोटे तनों पर स्टेम पेस्ट या बोडो पेस्ट की पुताई कीजिये, अगले 5-6 वर्षों में हर कागजी के पौधे से कम से कम- 7 किलो से 20 किलो कागजी नीम्बू, 70-90 किलो नारंगी, 150 किलो तक माल्टा, 80-90 किलो तक गल गल या हिल लेमन और 180 किलो तक चकोतरा का उत्पादन ले सकते हैं, हर 15-20 साल बाद बढ़िया उत्पादन के लिए  संतरा प्रजाति के पेड़ नए लगाने चाहिए.  इस तरह से एक फल संरक्षण केंद्र से लाये गए बीजों से आप पहाड़ में एक नए प्रयास को गति दे सकते हैं, छोटे छोटे बगीचे बन सकते हैं वन पंचायतों के माध्यम से जंगलों में भी गल गल आदि के पौधे लगा सकते हैं साथ ही उत्तराखंड में स्वरोजगार और उध्यानिकी के क्षेत्र में  नए आयाम स्थापित कर सकते हैं.

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