शास्त्र और सुघड़ के बरक्स लोक और अनगढ़

प्रकाश उप्रेती

‘उम्मीद’ और ‘सपना’ दोनों शब्द हर दौर में नए अर्थों के साथ because अपनी उपस्थिति साहित्य में दर्ज कराते रहे हैं. वेणु गोपाल की एक कविता है- “न हो कुछ / सिर्फ एक सपना हो/ तो भी हो सकती है/ शुरुआत/ और/ ये शुरुआत ही तो है कि / यहाँ एक सपना है”. वेणु यह सपना 20वीं सदी के अंतिम दशक में देख रहे थे. उस दशक को देखें तो वेणु का यह ‘सपना’ सिर्फ सपना नहीं है बल्कि वही उम्मीद है जो 21वीं सदी के दूसरे दशक में नरेंद्र बंगारी जगाते हैं.

ज्योतिष

इधर नरेंद्र बंगारी का कविता संग्रह ‘कठिन समय में उम्मीद’ नाम से प्रकाशित हुआ. ‘उम्मीदों’ के संग्रह की पहली कविता ही ‘काश!’ की पीड़ा से आरम्भ होती है. यही समय का अंतर्विरोध भी है.  इस कविता का शीर्षक ‘काव्य’ है. because यह कविता काव्य के ‘शास्त्र’ पक्ष की बजाय व्यावहारिक/ लोक पक्ष को उद्घाटित करती है. वैसे भी इस कविता संग्रह का केंद्रीय स्वर भाषा, भाव और अर्थ की दृष्टि से शास्त्र की बजाय लोक का ही है. हर तरह के वर्चस्व का विलोम इस संग्रह की कविताएँ रचती हैं. यथा-  because काश! कि शब्द होते अप्रितम/ अद्वितीय होती कविता/ समृद्ध होते लेखक/ और प्रसन्न होते पाठक/ …. किताब बनने से पहले होती मुनादी-/ कि स्टॉक सीमित है/ पहले ही करा लें अपनी बुकिंग/ कीमतें बढ़ जाएंगी/ और वेटिंग लंबी होगी/ पहले आएं, पहले पाएं/ नियम होता लागू/ और बंटते नम्बर के टोकन/ काश! कि शब्द होते अप्रितम. शब्दों के अप्रितम होने की कल्पना भी किसी उम्मीद से कम थोड़ा न है.

ज्योतिष

यही उम्मीद भाषा के वर्चस्व के बरक्स भी दिखाई देती है. यहां ‘गुठ्यार के फूल’ खिलते हैं, ‘साना हुआ नींबू’ और ‘भांग की चटनी’ की महक है, मनुष्य की सूरत यहाँ ‘चीड़ के बून की तरह’ है. यहाँ प्रचलित because और सुघड़ बिंबों और प्रतीकों के बरक्स  अनगढ़ चीजें हैं. यही इस कविता संग्रह की खूबसूरती है. इसमें सत्ता से सवाल भी है तो वहीं उम्मीद का कोना भी है. इस दौर में भी गाँधी इस संग्रह में आ ही जाते हैं. असहमतियों के बावजूद गाँधी का आना भी एक उम्मीद ही है. क्योंकि गाँधी व्यक्ति से अधिक विचार हैं. उस विचार की आज सबसे ज्यादा जरूरत है.

ज्योतिष

इस कविता संग्रह में कई महत्वपूर्ण कविताओं के बावजूद कुछ कमजोर कविताएं भी हैं. वह कविताएँ अर्थ व्यंजना की दृष्टि से कमजोर हैं. ऐसी कविताएँ कई जगह एकदम सपाट हो रही हैं तो कई जगह पैरोडी लगने लगती हैं. because साहिर की एक नज़्म है- “ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया/ये इंसाँ के दुश्मन समाजों की दुनिया/ये दौलत के भूखे  रिवाजों की दुनिया/ ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.” इस संग्रह की एक कविता ‘मुहब्बत की दुनिया’ है-  झूठ वालों के सिर पर/ ताजों की दुनिया/ आईनों से करते/ तकादों की दुनिया/ आँख पर पट्टियाँ धर/ समाजों की दुनिया/ वे सदियों पुराने / रिवाजों की दुनिया. ये दुनिया चलो हम/ बदल क्यों न देते? / बसा लें मुहब्बत / भरी एक दुनिया.  because यही कविता अपनी ध्वनि में साहिर की कविता के करीब लगती है. यह कवि ने सायास नहीं किया हो लेकिन पाठक को इस कविता को पढ़ते हुए साहिर के नज़्म की ध्वनि कानों में बराबर गूँजती रहती है.

ज्योतिष

यह कविता संग्रह एक तरह का ‘बीहड़ जंगल’ because है. जिसमें फूल भी हैं तो शूल भी हैं. वैसे इस कविता संग्रह का कोई एक स्वर नहीं है. इसमें हर तरह  की कविताएँ है लेकिन पूरे कविता संग्रह में एक बात है वह है- शास्त्र और सुघड़ के बरक्स लोक और अनगढ़ की केंद्रीयता. यही इस कवि में संभावनाओं की उम्मीद भी जगाता है.

ज्योतिष

(डॉ. प्रकाश उप्रेती दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं हिमांतर पत्रिका के संपादक हैं और
पहाड़ के सवालों को लेकर हमेशा मुखर रहते हैं.)

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *