- राजीव सक्सेना
जैसे समुद्र छुपा लेता है सारे शोर…
नदियों, जीव जंतुओं के..
कविताएं भी मेरे लिए समुद्र से कम न थी!
मैं भी कविता होना चाहती हूं…
कविता को लेकर ये आसक्ति… ये प्रेम… ये जूनून अभिव्यक्त हुआ है कवयित्री निमिषा सिंघल की अपनी ही एक रचना में. ‘जब नाराज होगी प्रकृति’ शीर्षक से, सर्वप्रिय प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित उनके काव्य संग्रह में निमिषा सिंघल ने न सिर्फ प्रकृति के प्रति लगाव बल्कि ईश्वर से संवाद और सामाजिक अवधारणाओं को भी अपनी कलम के जरिए गंभीरता से रेखांकित किया है.
निमिषा, कहीं सुबह को अपने तरीके से परिभाषित करती हैं…
सूरज ने प्रेम दर्शाया है,
फूलों, कलियों को दुलराने
मस्त मगन पवन आया है…
तो कहीं मौसम के मिजाज के बहाने ज़िंदगी के फ़लसफ़े को कुछ यूं उज़ागर करती हैं
नित नए रंग बदलती है जिंदगी..
ठीक ही समझा आपने मौसम की
तरह मिजाज बदलती है जिंदगी…
निमिषा सिंघल की कविताओं में ईश्वर के प्रति आस्था व्यक्त करती हुई रचना भी है तो ईश्वर से संवाद भी है…
ऊंचाइयों पर पहुंच नीचे झांकने पर
महसूस होता है डर, घबराहट..
मुझे असहाय सा पा…
फिर खींच लेते हैं मेरे ईश्वर अपनी ओर…
ईश्वर से उनका संवादों में उनका व्यथित मन खुलकर सामने आता है…
मौन खड़े, चुपचाप विध्वंस देखते हो
सुकून बेचते हो अपने सानिध्य तले..
कविताओं के प्रवाह में बहते हुए निमिषा, कभी अपने अनुभवों के कई सारे समीकरण रचती हैं…
जिंदगी में मिलने वाले, कई लोगों में से कुछ
लाइब्रेरी में धूल खाती उन किताबों की तरह होते हैं..
जीने साल- छह महीने में धूल झाड़ साफ कर लिया जाता है …
अवसाद के पल में दुखी लोगों के लिए उनकी सलाह होती है..
मुस्कुराहटें कीमती बहुत…
रो-रो कर इन्हें न गंवाओ तुम
मानो न बुरा हर एक बात का…
थोड़ी सी खुशी ढूंढ लाओ तुम…
एमएससी यानी साइंस… बीएड यानी अध्यापन संबंधी… एमफिल… यानी दर्शनशास्त्र जैसे विविध विषयों में स्नातक निमिषा..
शास्त्रीय संगीत में प्रवीण एक कुशल गायिका भी है.. खुद उन्होंने जीवन को कई रूपों में जिया हैं… कई तरह के अनुभव लिए हैं… देश की अनेक पत्रिकाओं में रचनाओं के सतत प्रकाशन और उन्हें मिले सम्मान और पुरस्कारों ने निमिषा सिंघल की कलम को परिपक्व बनाने में खासा योगदान दिया है…
प्रेम सरीखे..कोमल लेकिन संवेदनशील विषय को निमिषा ने शाब्दिक कोमलता के साथ ही छुआ है…
संस्कार, संभव संयोग है प्रेम…
लावण्य, माधुर्य, कौमार्य सा प्रेम ..
निर्वाक, निर्बोध, निर्विकल्प है प्रेम..
यामिनी, मंदाकिनी, ज्योत्सना सा प्रेम…
उम्मीद की किरण… शीर्षक से अपनी एक कविता में निमिषा कहती हैं…
झंझावात तूफानों से घिरी थी जिंदगी
प्रेम रस में नहाने आई है
आज फिर उम्मीद मुझे तेरी ओर लाई है…
हाशिए पर बैठी निम्न मध्यवर्गीय महिलाओं की स्थिति पर कलम के ज़रियेआक्रोश अभिव्यक्त करते हुए निमिषा सिंघल ने जैसे यथार्थ को ही उद्घाटित कर दिया…
चूल्हे पर खाना बनाती स्त्री
राख में उंगलियों से बना रही थी चित्र..
जैसे पूरी ज़िंदगी का चलचित्र खींच रही हो…
निमिषा,अपनी रचनाओं के माध्यम से मन की छटपटाहट को कागज़ के कैनवास पर एक पोर्ट्रेट की तरह शिद्दत से उकेरती हैं… उनकी कविताओं में… गरीबी का जीवंत रेखांकन है… तू सामाजिक विद्रूपता, विषमताओं का बदरंग सा ताना बाना भी है… कहीं वो… थर्ड जेंडर यानी किन्नर को लेकर दुख की अभिव्यक्ति देती हैं… यह कहते हुए…
इन की पैदाइश भी बदकिस्मती….
और मौत उससे भी बड़ा परिहास…
तो कहीं अपनों से ही पीड़ित, प्रताड़ित, निष्कासित बुजुर्गों को लेकर अपनी पीड़ा यूं बयां करती हैं…
मुस्कुराने की कोशिश करती
उन बूढ़ी थकी आंखों में
था इंतजार अपनों का…
कविता संग्रह के आखिरी कुछ पृष्ठों में निमिषा ने क्षणिकाओं के माध्यम से, चंद शब्दों और पंक्तियों में कई सारे विषयों को शामिल किया है.. बहुमुखी प्रतिभा संपन्न निमिषा सिंघल का ये काव्य संग्रह.. जीवन से जुड़ी तमाम सच्चाईयों का एक भावुक किस्म का दस्तावेज है जो सहज सरल भाषा के प्रभाव में कविता प्रेमियों को अपने साथ बहा ले जाने में सक्षम साबित हुआ है…
सर्वप्रिय प्रकाशन की यह पेशकश अपने आवरण और भीतरी प्रश्नों की आकर्षक छपाई की वजह से भी पाठकों को प्रभावित करती है. साहित्य की काव्य विधा में अपनी जगह तलाशती कवयित्री निमिषा सिंघल और प्रकाशक साधुवाद और बधाई के हक़दार हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)