पुस्तक लोकार्पण
- हिमांतर ब्यूरो, उत्तरकाशी
सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति (सेवा) के तत्वाधान में देवभूमि उत्तराखण्ड के पश्चिमोत्तर रवाँई क्षेत्र में होने वाले प्रमुख लोकोत्सव देवलांग के अवसर पर ‘देवडोखरी’ (बनाल) में अवस्थित रा.उ.मा.विद्यालय के सभागार में दिनेश रावत की पुस्तक ‘रवाँई के देवालय एवं देवगाथाएँ’ का लोकार्पण उत्तरकाशी जनपद के मुख्य शिक्षा अधिकारी विनोद प्रसाद सिमल्टी, साहित्यकार महाबीर रवांल्टा, पं. महीशरण सेमवाल, सुखदेव रावत, पं. शांति प्रसाद सेमवाल, पूर्व ब्लाक प्रमुख रचना बहुगुणा, पूर्व जिला पंचायत सदस्य नानई चंदी पोखरियाल, इ. चन्द्र लाल भारती एवं समिति के शशि मोहन रावत की उपस्थिति में किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया.
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कार्यक्रम के दौरान सुखदेव रावत ने
उपस्थितजनों का स्वागत संबोधन किया तो परिचय शशिमोहन रवांल्टा ने करवाया. ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’ ने पुस्तक एवं लेखक परिचय करवाते हुए बताया कि दिनेश रावत लोक के प्रति सदैव ही आस्थावान एवं संवेदनशील रहे हैं, जिसके परिणाम वे निरन्तर क्रियाशील बने हुए हैं और पुस्तकों के अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा सोशल साइडों पर संबंधित लोक एवं लोक संस्कृति पर केन्द्रित आलेख लिखते जा रहे हैं. अब तक कुल 5 पुस्तकें एवं सैकड़ों आलेख लिख चुके दिनेश रावत की रवाँई पर केन्द्रित यह दूसरी पुस्तक है, जो संबंधित क्षेत्र को गहनता से समझने में सहायक है.सामाजिक
इस दौरान कृतिकार दिनेश रावत ने
अपने रचनाक्रम एवं प्रकाशित पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पुस्तक में संबंधित क्षेत्र के देवालयों एवं देवगाथाओं को संकलित किया गया है जिसमें लोकगाथाओं, लोककथाओं, लोकगीतों एवं दंतकथाओं को सहारा लिया गया है ताकि हमारी लोक परम्पराएं अक्षुण्ण बनी रहे और आगत पीढ़ी अपनी परम्पराओं एवं प्रचलित धार्मिक प्रवृतियों से परिचित हो सके. उन्होंने इस दौरान इस बात पर भी बल दिया कि वर्तमान में जारी विकास की आपाधापी के बीच नई पीढ़ी अपने लोक से दूर होती जा रही है, जो भविष्य के लिए शुभ एवं सुखद नहीं है इसलिए जड़ों से जुड़ा रहना भी आवश्यक है और ये पुस्तक हमें हमारे गौरवमय अतीत से परिचित करवाते हुए जड़ों से जोड़ने में सहायक होगी ऐसा विश्वास है.सामाजिक
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित
जनपद के मुख्य शिक्षा अधिकारी विनोद प्रसाद सिमल्टी ने अपने वक्तव्य में कहा कि पुस्तक में संकलित सामग्री का अध्ययन करने से समूचे रवाँई में प्रचलित धार्मिक प्रवृतियों, मान्यताओं एवं परम्पराओं के दिग्दर्शन होते हैं. रवाँई की लोक संस्कृति, आचार-विचार, रीति-नीति, आस्था-अनुराग को समझने का एक नया नजरिया मिलता है. पुस्तक साहित्य प्रेमियों के साथ-साथ शोधार्थियों एवं इस क्षेत्र में अध्ययनशील लोगों के लिए उपयोगी ही नहीं बल्कि एक संदर्भ पुस्तक का कार्य करेगी.सामाजिक
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार
महाबीर रवांल्टा ने कहा कि लेखक दिनेश रावत का यह प्रयास निश्चित ही प्रशंसनीय है. पुस्तक में दिनेश रावत के द्वारा जिस गहनता के साथ रवाँई के देवालय एवं देवगाथाओं के बहाने संबंधित लोक एवं लोक संस्कृति की पड़ताल करते हुए प्रचलित धार्मिक प्रवृतियों, आस्था-विश्वास, पूजा-परम्परा तथा देवालयों की आंचलिक विशिष्टताओं को उद्घाटित किया गया है, वह निश्चित ही सराहनीय है. जो लेखक की प्रतिबद्धता, कठोर परिश्रम एवं शोधपरकता को दर्शाती है. समारोह में उपस्थित वयोवृद्ध पं. महीशरण सेमवाल ने क्षेत्रीय संस्कृति के लिए इसे शुभ एवं सुखद बताते भविष्य हेतु शुभकामनाएं दी. पं. शांति प्रसाद सेमवाल ने मंत्रोचारणों के साथ कार्यक्रम के का शुभारम्भ किया. ग्राम पंचायत प्रधान बलवंत रावत ने समारोह में उपस्थित सभी प्रबुद्धजनों का आभार व्यक्त किया तो ललिता रावत, आशा चैहान, प्रदीप रावत, सरत रावत, गीता आतिथ्य सत्कार में जुटे रहे.सामाजिक
इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता इन्द्र सिंह नेगी, अशिता डोभाल,
सीमा रावत, शिव प्रसाद गौड, नरेश नौटियाल, योगेश बंधानी, दिनेश नौटियाल, जगदीश भारती, डायट बड़कोट से डॉ. कोठारी, राजेश रावत, चंदी पोखरियाल, रूकम सिंह रावत, सुदर्शन रावत, जिनेन्द्र रावत, सरदार सिंह, धीरेन्द्र चैहान, अनिता रावत, अचंली देवी, प्रेमदेवी, संजय, सुशीला देवी, प्रवीन सेमवाल, सहित मीडियाकर्मी सुनील थपलियाल, भगवती रतूड़ी, जयप्रकाश बहुगुणा, वीरेन्द्र चैहान व क्षेत्र के अन्य कई प्रबुद्धजन उपस्थित रहे.सामाजिक
समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून
से प्रकाशित प्रस्तुत पुस्तक का आवरण पश्चिम बंगाल निवासी शिक्षक सोबनदास के द्वारा तैयार किया गया जबकि डिजाइंनिग शशि मोहन रवांल्टा द्वारा की गयी है. पुस्तक के आरम्भ में डॉ. प्रयाग जोशी व महाबीर रवांल्टा के द्वारा पुस्तक के संबंध में अपने विचार व्यक्त किये गये हैं.