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शहरों ने बदल दी है हमारी घुघती

शहरों ने बदल दी है हमारी घुघती

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
 ललित फुलारा शहर त्योहारों को या तो भुला देते हैं या उनके मायने बदल देते हैं। किसी चीज को भूलना मतलब हमारी स्मृतियों का लोप होना। स्मृति लोप होने का मतलब, संवेदनाओं का घुट जाना, सामाजिकता का हृास हो जाना और उपभोग की संस्कृति का हिस्सा बन जाना। शहर त्योहारों को आयोजन में तब्दील कर देते हैं। आयोजन में तब्दील होने का मतलब, मूल से कट जाना, बाजार का हिस्सा बन जाना। बाजार होने का अर्थ- खरीद और बिक्री की संस्कृति में घुल-मिलकर उसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को देना लेकिन, उसका वास्तविक अर्थ खो देना। यानी अपनी जड़ों से कट जाना। जड़ से कटने का मतलब, एक पूरे परिवेश, उसकी परंपरा व संस्कृति का विलुप्त हो जाना। परिवेश और परंपरा का विलुप्त होने का मतलब, पुरखों की संजोई विरासत को धीरे-धीरे ढहा देना। शहरों में हमारी घुघुती बदल गई है। हम बच्चों के गले में घुघती की माला तो लटका रहे हैं लेकिन उनको घुघत...
अब न वो घुघुती रही और न आसमान में कौवे

अब न वो घुघुती रही और न आसमान में कौवे

लोक पर्व-त्योहार, संस्मरण
हम लोग बचपन में जिस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करते थे वह दिवाली या होली नहीं बल्कि ‘घुघुतिया’ था। प्रकाश चंद्र भारत की विविधता के कई आयाम हैं इसमें बोली से लेकर रीति-रिवाज़, त्योहार, खान-पान, पहनावा और इन सबसे मिलकर बनने वाली जीवन पद्धति। इस जीवन पद्धति में लोककथाओं व लोक आस्था का बड़ा महत्व है। हर प्रदेश की अपनी लोक कथाएं हैं जिनका अपना एक संदर्भ है। इन लोक कथाओं और उनसे संबंधित त्योहारों के कारण ही आज भी ग्रामीण समाज में सामूहिकता का बोध बचा हुआ है। उसके उलट महानगरों में लगभग सामूहिकता का लोप हो चुका है। इस कारण से ही महानगरों में पलने और पढ़ने वाली पीढ़ी के लिए त्योहारों का महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। त्योहार अब उत्सव से ज्यादा ‘इवेंट’ में तब्दील हो रहे हैं। ऐसे समय उन त्योहारों को फिर से याद करना समय के चक्र के साथ बचपन में लौटने जैसा है। हम लोग बचपन में जिस त्योहार का ...
कोठी जिसने बनाया कोटी को ‘कोटी’

कोठी जिसने बनाया कोटी को ‘कोटी’

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
दिनेश रावत रवांई क्षेत्र अपनी जिस भवन शैली के लिए विख्यात है वह है क्षेत्र के विभिन्न गांवों में बने चौकट। चौकट शैली के ये भवन यद्यपि विभिन्न गांवों में अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं मगर इन सबका सिरमोर कोटी बनाल का छः मंजिला चौकट ही है, जो 1991 की विनाशकारी भूकम्प सहित समय-समय पर घटित तमाम घटनाओं को मात देते हुए आज भी अपने वजूद को बचाए हुए है। किसी गुप्तचर ने राज दरबार में इस बात की खबर पहुंचा दी कि बनाल पट्टी के कोटी गांव में कुछ बाहरी लोग आकर अपना राजमहल तैयार कर रहे हैं। इस बात खबर लगते ही राजा ने उन्हें दरबार में हाजिर होने का फरमान जारी कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि बस्टाड़ी नामे तोक में पहली बार जब इस भवन की बुनियाद बनाई गई तो भवन शैली के जानकार लोग इसकी विशालता की कल्पना करने लग गए। कोटी में निवास करने वालों गंगाण रावतों का यह पहला भवन था। इसलिए जैसे ही इसका निर्माण कार्य शुर...
जानिये क्या है चिलगोजा और क्या हैं इसके फायदे

जानिये क्या है चिलगोजा और क्या हैं इसके फायदे

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, हिमालयी राज्य
अधिकतर लोग ये समझते हैं कि उत्तराखंड में उगने वाले चीड़ से ही चिलगोजा ड्राई फ्रूट निकलता है लेकिन यह जानकारी गलत है! जे.पी. मैठाणी क्या आपने चिलगोजा का नाम सुना है? शायद नहीं सुना होगा, क्योंकि बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि चिलगोजा क्या होता है, चिलगोजा खाने के फायदे क्या हैं, और चिलगोजा का उपयोग कैसे किया जाता है? यदि सचमुच आपको चिलगोजा के फायदे के बारे में जानकारी नहीं है, तो यह जानकारी आपके लिए बहुत उपेयागी है। यदि आप जानते हैं कि चिलगोजा का इस्तेमाल किस काम में किया जाता है, तो भी यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आपको चिलगोजा से होने वाले एक-दो फायदे की जानकारी होगी, लेकिन सच यह है कि चिलगोजा के अनेकों फायदे हैं। चिलगोजा का इस्तेमाल मेवे के रूप में होता है। यह एक पौष्टिक तथा स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ एक औषधि भी है। चिलगोजा के तेल का भी प्रयोग औषधि के र...
उत्तराखंड औद्योगिक भांग की खेती आधारित स्वरोजगार का इतिहास 210 वर्ष पुराना

उत्तराखंड औद्योगिक भांग की खेती आधारित स्वरोजगार का इतिहास 210 वर्ष पुराना

अभिनव पहल, इतिहास, उत्तराखंड हलचल
औद्योगिक भांग की खेती को लेकर विभागों एवं एजेंसियों में तालमेल का अभाव जे.पी. मैठाणी उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है जहां औद्योगिक भांग के व्यावसायिक खेती का लाइसेंस इसके कॉस्मेटिक एवं औषधिय उपयोग के लिए दिया जाने लगा है, लेकिन दूसरी तरफ औद्योगिक भांग के लो टीचीएसी (टेट्रा हाइड्रा कैनाबिनोल) वाले बीज कहां से मिलेंगे इसके बारे में कोई जानकारी स्पष्ट नहीं है। पर्वतीय क्षेत्रों में 1910 से पूर्व अंग्रेजों के जमाने से अल्मोड़ा और गढ़वाल जिलों (वर्तमान का पौड़ी, चमोली, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़) में रेशे और मसाले के लिए भांग की व्यावसायिक खेती की अनुमति का प्रावधान कानून में है। हालांकि राज्य में विभिन्न एजेंसियां भांग की व्यावसायिक खेती शुरू करने की बात पिछले दो वर्ष कर रही हैं, लेकिन उत्तराखंड में लो टीचीएससी का बीज किसी एजेंसी के पास आम पहाड़ी किसानों के लिए जब उपलब...
कौन कह रहा है फैज़ साहब नास्तिक हैं? 

कौन कह रहा है फैज़ साहब नास्तिक हैं? 

समसामयिक
ललित फुलारा फैज़ साहब की मरहूम आत्मा अगर ये सब देख रही होगी तो जरूर सोच रही होगी कि मैं जब नास्तिक था और मार्क्सवादी था तो 'अल्लाह' काहे लिख दिया। अल्लाह लिखने से ही तो सारा खेल बिगड़ा है। मुझसे कोई कह रहा था कि इस शायरी/गाने को गुनगुनाने वाले लोग बस 'नाम रहेगा अल्लाह का' इसी वाक्य पर जोर देते हैं, खूब ताली पिटते हैं, आगे के ग्यारह शब्द बोलते ही नहीं है। बोलते भी हैं तो बेहद धीमी आवाज में ताकि उनका असल अर्थ समझ में न आए। शायर, लेखक, साहित्यकार और दार्शनिक तो होते ही बुद्धि से चालाक हैं, उनके लिए रचनात्मकता ही सबकुछ है, रचे गए शब्द। अर्थ आप अपने हिसाब से निकालिए, बुत को शासक का बुत बताइए या फिर... मंदिर की मूर्ति। अब बताइए जब बस नाम रहेगा अल्लाह का तो हमारा ईश्वर कहां जाएंगा? उनकी बात भी सही है। क्योंकि वो भी 'बस नाम रहेगा अल्लाह का' से खफा है, उसी तरह जैसे एक कट्टर मुस्लिम मित्र...
संस्कृति का समागम, समृद्धि की ओर बढ़ते कदम

संस्कृति का समागम, समृद्धि की ओर बढ़ते कदम

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
प्रदीप रावत (रवांल्टा) रवांई की समृद्ध संस्कृति को नए फलक पर ले जाने का मंच है रवांई लोक महोत्सव। इस लोक महोत्सव में रवांई की समृद्ध संस्कृति का अद्भुत समागम देखने को मिलता है। इसमें स्कूल के नन्हें कलाकारों से लेकर चोटी के कलाकारों तक हर किसी की प्रस्तुति होती है। संस्कृति के इस समागम को देखने और आत्मसात करने ना केवल रवांई घाटी के लोग बल्कि जौनसार—बावर, जौनपुर और जौनपुर से लगे टिहरी जिले के लोग भी आते हैं। इतना ही नहीं, अपने तीन साल के साफर में रवांई लोग महोत्सव ने अपनी पहचान राष्ट्रीय स्तर तक बनाई है। इस महोत्सव को देखने और जानने के लिए जहां दिल्ली और दूसरे राज्यों से पत्रकार और संस्कृति विशेषज्ञ आए थे, वहीं लोक संस्कृति पर शोध कर रहे शोधार्थी भी गुजरात से शोध के लिए पहुंचे थे। पहला दिन : स्कूली बच्चों के नाम 28 से 30 दिसंबर तक चले तीन दिवसीय रवांई लोक महोत्सव का पहला दिन स्कूली बच्...
Twelve new lenses you won’t be able to live without

Twelve new lenses you won’t be able to live without

उत्तराखंड हलचल
Shall their, them tree and creeping moveth Green. Yielding stars bearing lesser. Us likeness without they're they're greater. You said let saying. Moveth whose let in living. Have. Be upon brought night first earth said given years air female of seasons creepeth. Subdue subdue living. Fourth. Said you're seed hath light fish signs dry under behold the. Greater made second. Deep beast grass fly seed May earth fruitful evening called lesser. Under good said Seas form. Fruitful. Divide our his hath you'll void living be man appear. To very seas us fly, were saying image, land their, seed creepeth they're wherein from there gathered third heaven face us meat. Darkness fish replenish one. Fourth be so his whose under together kind had. Isn't so great can't shall saying Sixth in. Own the god you...
World Cycling event never before

World Cycling event never before

उत्तराखंड हलचल
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Kayak competition successfully in Ozona

Kayak competition successfully in Ozona

उत्तराखंड हलचल
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