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तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का मतलब

तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का मतलब

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
30 मई शहादत दिवस पर विशेष आज 30 मई है. तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का दिन. टिहरी राजशाही के दमनकारी चरित्र के चलते इतिहास के उस काले अध्याय का प्रतिकार करने का दिन. उन सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि, जिन्होंने हमें अपने हक-हकूकों के लिये लड़ना सिखाया. चारु तिवारी  अरे ओ जलियां बाग रियासत टिहरी के अभिमान! रवांई के सीने के दाग, तिलाड़ी के खूनी मैदान! जगाई जब तूने विकराल, बगावत के गणों की ज्वाल. उठा तब विप्लव का भूचाल, झुका आकाश, हिला पाताल. मचा तब शोर भयानक शोर, हिला सब ओर, हिले सब छोर. तिड़ातड़ गोली की आवाज, वनों में गूंजी भीषण गाज. रुधिर गंगा में स्नान, लगे करने भूधर हिमवान. निशा की ओट हुई जिस ओर, प्रलय की चोट हुई उस ओर. निशाचर बढ़ आते जिस ओर, उधर तम छा जाता घन-घोर. कहीं से आती थी चीत्कार, सुकोमल बच्चों की सुकुमार. विलखती अबलायें भी हाय! भटकती फिरती थी ...
सूखे नहॉ बिन जीवन सूखा

सूखे नहॉ बिन जीवन सूखा

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—12 प्रकाश उप्रेती हम इसे 'नहॉ' बोलते हैं. गाँव में आई नई- नवेली दुल्हन को भी सबसे पहले नहॉ ही दिखाया जाता था. शादी में भी लड़की को नहॉ से पानी लाने के लिए एक गगरी जरूर मिलती थी. अपना नहॉ पत्थर और मिट्टी से बना होता था. एक तरह से जमीन के अंदर से निकलने वाले पानी के स्टोरेज का अड्डा था. इसमें अंदर-अंदर पानी आता रहता था. हम इसको 'शिर फूटना' भी कहते थे. मतलब जमीन के अंदर से पानी का बाहर निकलना. नहॉ को थोड़ा गहरा और नीचे से साफ कर दिया जाता था ताकि पानी इकट्ठा हो सके और मिट्टी भी हट जाए. कुछ गाँव में नहॉ के अंदर चारों ओर सीढ़ीनुमा आकार दे दिया जाता था. यह सब गाँव की आबादी और खपत पर निर्भर करता था. हमारा नहॉ घर से तकरीबन एक किलोमीटर नीचे 'गधेरे' में है. सुबह- शाम नहॉ से पानी लाना बच्चों का नित कर्म था. बारिश हो या तूफान नहॉ से पानी लाना ही होता था. इस...
रत्याली के स्वाँग

रत्याली के स्वाँग

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—7 रेखा उप्रेती ‘रत्याली’ मतलब रात भर चलने वाला गीत, नृत्य और स्वाँग. लड़के की बरात में नहीं जाती थीं तब महिलाएँ. साँझ होते ही गाँव भर की इकट्ठी हो जातीं दूल्हे के घर और फिर घर का चाख बन जाता रंगमंच… ढोलकी बजाने वाली बोजी बैठती बीच में और बाकी सब उसे घेर कर… दूल्हे की ईजा अपना ‘रंग्याली पिछौड़ा’ कमर में खौंस, झुक-झुक कर सबको पिठ्या-अक्षत लगाती … नाक पर झूलती बड़ी-सी नथ के नगीने लैम्प की रौशनी में झिलमिलाते रहते. बड़ी-बूढ़ियाँ उसे असीसती, संगिनियाँ ठिठोली करतीं तो चेहरा और दमक उठता बर की ईजा का… सबको नेग भी मिलता, जिसे हम ‘दुण-आँचोव’ कहते… शगुन आँखर देकर ‘गिदारियाँ’ मंच खाली कर देतीं और विविध चरणों में नाट्य-कर्म आगे बढ़ने लगता. कुछ देर गीतों की महफ़िल जमती, फिर नृत्य का दौर शुरू होता… नाचना अपनी मर्ज़ी पर नहीं बल्कि दूसरों के आदेश पर निर्भर करता. ‘आब तू उठ’ कहकर...
पिंगट (टिड्डी) किशन जी की दाई…

पिंगट (टिड्डी) किशन जी की दाई…

संस्मरण
नीलम पांडेय “नील” सुबह एक हरे रंग की पिंगट (टिड्डी) को देखते ही मेरा बेटा बोला, अरे इसको मारो इसने देश में कोहराम मचा रखा है. तभी मेरा पुस्तैनी पिंगट प्रेम कूद कर बाहर आ गया... ना ना बिल्कुल मत मारना इसको, ये भगवान किशन जी की ग्वाई (दाई) है, मेरी आमा इसकी पीठ पर तेल लगाती थी, क्योंकि इसने किशन भगवान को बचपन में तेल लगाया था. बेटा, "अरे क्या कह रही हो यह काटती भी है?” मेरी बरसों से बनी धारणा धराशाई हो रही है, जो आमा ने मुझमें कूट कूट कर भरी थी. इधर, मीडिया भी कह रहा है कि मेरी किशन जी की ग्वाई दलों ने अब तक देश की 90 हजार हेक्टेयर से ज्यादा फसल नुकसान कर दी है, जल्दी ही वैज्ञानिक दल सभी पिंगट दाइयों का संहार कर देगा.  मैं चुप होकर बैठ गई हूं और सेब खाते हुए सोच रही हूं कि सेब के अंदर का बीज खाते हुए, जब कभी गलती से बीज मुंह में चब जाए तो मुंह के अंदर ही अंदर सनेस खाया होगा ऐसी महक  मह...
एक ऐतिहासिक-पुरातात्विक नगरी ‘लाखामण्डल’

एक ऐतिहासिक-पुरातात्विक नगरी ‘लाखामण्डल’

धर्मस्थल
इन्द्र सिंह नेगी यमुना को यह वर प्राप्त है कि जिधर से भी इसका प्रवाह आगे बढ़ेगा, वहाँ समृद्ध सभ्यता/संस्कृति का विकास स्वतः ही होता चला जायेगा. उसके उद्भव से लेकर संगम तक के स्थान अपने आप में ऐतिहासिक-सामाजिक- सांस्कृतिक रूप से समृद्धशाली हैं. हिन्दुओं में यह भी मान्यता है कि ‘यम द्वितीया’ के दिन यमुना-स्नान से समस्त पापों से मुक्ति मिल, मोक्ष की प्राप्ति होती है. यमुना के तट पर 1095 मी. की ऊँचाई पर स्थित ‘लाखामण्डल’ नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक-धार्मिक व पुरातात्विक महत्व को सहेजे हुए हैं. देहरादून के जौनसार-बावर परगने की चकराता तहसील के अन्तर्गत ‘लाखामण्डल’ दिल्ली-यमुनोत्तरी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जनपद उत्तरकाशी के बर्नीगाड से लगभग 5 किमी. की दूरी पर स्थित है. बर्नीगाड़ देहरादून से मसूरी होकर लगभग 107 किमी. व विकासनगर की ओर से आने पर 122 किमी. की दूरी पर...
उत्तराखंड में ठोस भूमि कानून की जरूरत

उत्तराखंड में ठोस भूमि कानून की जरूरत

उत्तराखंड हलचल
पलायन ‘व्यक्तिजनित’ नहीं ‘नीतिजनित’ है भाग-2 चारु तिवारी  कोरोना के चलते पहाड़ वापस आ रहे कामगारों को यहीं रोजगार देने के लिये सरकार ने प्रयास करने की बात कही है. पहाड़ से पेट के लिये लगातार हो रहे पलायन को रोकने की नीति तो राज्य बनने से पहले या अब राज्यत् बनने के शुरुआती दौर से ही बन जानी चाहिये थी. जब सरकार ने ऐसी मंशा व्यक्त की तो आज तक के अनुभवों को देखते हुये मैंने एक सिरीज शुरू की थी- ‘पलायन ‘व्यक्तिजनित’ नहीं ‘नीतिजनित’ है. इसकी पहली कड़ी में राज्य में मौजूदा कृषि भूमि की स्थिति को रखा. आज दूसरी कड़ी लिखने बैठा तो प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत जी का टीवी चैनल में साक्षात्कार देखा. उसमें उन्होंने वही घिसी-पिटी बातें कहीं, जिनके चलते लोगों को सरकार की नीतियों से विश्वास उठता रहा है. मुख्यमंत्री ने अपने साक्षात्कार में 2018 में अपनी उसी विवादास्पद ‘इंवेस्टर्स समिट’ का ...
बुदापैश्त डायरी

बुदापैश्त डायरी

संस्मरण
डॉ विजया सती दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से हाल में ही सेवानिवृत्त हुई हैं। इससे पहले आप विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दी – ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त, हंगरी में तथा प्रोफ़ेसर हिन्दी – हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़, सिओल, दक्षिण कोरिया में कार्यरत रहीं। साथ ही महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा, संस्मरण, आलेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं। विजया सती जी अब ‘हिमाँतर’ के लिए ‘देश-परदेश’ नाम से कॉलम लिखने जा रही हैं। इस कॉलम के जरिए आप घर बैठे परदेश की यात्रा का अनुभव करेंगे। देश—परदेश भाग—1 डॉ. विजया सती जनवरी के कुछ बचे हुए अंतिम दिन थे, जब लोहड़ी-मकर-सक्रांति-छब्बीस जनवरी की धूम के बाद गजक-रेवड़ी की कुछ खुशबू अपने साथ लिए मैं यूरोप के सर्द इलाके बुदापैश्त पहुँची, जो हंगरी की राजधानी और यूरोप  की प्रसिद्ध पर्यटन नगरी है. यह अवसर ‘भारतीय सांस्कृतिक सम...
मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का हुआ शुभारम्भ

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का हुआ शुभारम्भ

समसामयिक
हिमाँतर ब्यूरो, देहरादून मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने योजना का किया शुभारम्भ. विनिर्माण में 25 लाख रूपये और सेवा क्षेत्र में 10 लाख रूपये तक की परियोजनाओं पर मिलेगा ऋण. मार्जिन मनी, अनुदान के रूप में होगी समायोजित. राज्य के उद्यमशील एवं प्रवासी उत्तराखण्डवासियों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना मुख्य उद्देश्य. मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गुरूवार को सचिवालय में मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का शुभारम्भ किया. मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने अधिकारियों को निर्देश दिये कि इस योजना की जानकारी गांवगांव तक पहुंचाई जाय ताकि युवा इस योजना का लाभ उठा सकें. जन प्रतिनिधियों एवं जिलास्तरीय अधिकारियों के माध्यम से योजना का व्यापक प्रचारप्रसार किया जाय. मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, राज्य के उद्यमशील युवाओं और कोविड19 के कारण उत्तराखण्ड वापस लौटे लोगों को स्वरोजगार के अव...
कहाँ गए ‘दुभाणक संदूक’

कहाँ गए ‘दुभाणक संदूक’

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—11 प्रकाश उप्रेती आज बात 'दुभाणक संदूक'. यह वो संदूक होता था जिसमें सिर्फ दूध, दही और घी रखा जाता है. लकड़ी के बने इस संदूक में कभी ताला नहीं लगता है. अम्मा इसके ऊपर एक ढुङ्ग (पत्थर) रख देती थीं ताकि हम और बिल्ली न खोल सकें. हमेशा दुभाणक संदूक मल्खन ही रखा जाता था. एक तरह से छुपाकर... हमारे घर में गाय-भैंस और कुत्ता हमेशा रहे. भैंस को बेचने जैसा प्रावधान हमारे घर में नहीं था. वह एक बार आने के बाद हमारे 'गुठयार' (गाय- भैंस को बांधने की जगह) में ही दम तोड़ती थी. परन्तु कुत्ते जितने भी रहे कोई भी अपनी मौत नहीं मरे बल्कि सबको बाघ ने ही खाया. खैर, बात दुभाणक की... दूध, दही और घी रखने के बर्तनों को ही दुभाणा भन कहा जाता था. दूध की कमण्डली को ईजा छुपाकर 'छन' (गाय- भैंस का घर) ले जाती थीं. दूध भी छुपाकर लातीं और फिर गोठ में उसको एक नियत स्थान पर रख देती थ...
कोरोना काल में बदलती उत्तराखण्ड के गाँवों की सामाजिक-सांस्कृतिक तस्वीर

कोरोना काल में बदलती उत्तराखण्ड के गाँवों की सामाजिक-सांस्कृतिक तस्वीर

समसामयिक
डॉ अमिता प्रकाश बड़ा अजीब संकट है. अपनी भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति के तमाम दावों के बावजूद मानव जितना असहाय आज दिख रहा है उतना पहले कभी नहीं दिखा. एक अतिसूक्ष्म जीव जिसे न सजीव कहा जा सकता है न निर्जीव, ने ईश्वर की स्वघोषित सर्वश्रेष्ठ कृति को आईना दिखाने का काम कर दिया है. यह संकट जिसे समझना वैश्विक समुदाय के लिए टेड़ी खीर होता जा रहा है,  ने मानव समुदाय में ही नहीं प्रकृति के प्रत्येक घटक में एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है. हम जानते हैं कि परिवर्तन कभी भी एक आयामी नहीं होता,  इसके कई पहलू होते हैं. कुछ लोग जिन्हें सरकार से किसी प्रकार की उम्मीद नहीं है, वे अपने बंजर खेतों में सब्जी बो कर या अपनी टूटी गोशालाओं के पत्थर आदि ढूंढने लगे हैं इस उम्मीद से कि भविष्य में संभवतः यही उनके अर्थोपार्जन का सहारा बनेंगें. अस्तु यहाँ पर मनुष्य समाज में, और वह भी विशेषकर उत्तराखण्ड के गाँवों के समाज...