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अपनी संस्कृति से अनजान महानगरीय युवा पीढ़ी

अपनी संस्कृति से अनजान महानगरीय युवा पीढ़ी

समसामयिक
अशोक जोशी पिछले कुछ सालों से मैं उत्तराखंड के बारे में अध्ययन कर रहा हूं और जब भी अपने पहाड़ों के तीज-त्योहारों, मेलों, मंदिरों, जनजातियों, घाटियों, बुग्यालो, वेशभूषाओं, मातृभाषाओं, लोकगीतों, लोकनृत्यों, धार्मिक यात्राओं, चोटियों, पहाड़ी फलों, खाद्यान्नों, रीति-रिवाजों के बारे में पढ़ता हूं तो खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मैंने देवभूमि उत्तराखंड के गढ़देश गढ़वाल में जन्म लिया है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे संसाधनों के अभाव में हमारे लोग रोजी—रोजी की तलाश में महानागरों की ओर पलायन किया है. समय के साथ-साथ पहाड़ों से पलायन इस कदर होने लगा कि गांव—गांव के खाली होने लगे। हमारे पहाड़ की समृद्ध मातृ भाषा (गढ़वाली—कुमाऊंनी), सहयोगात्मक लोक परंपराएं, पहाड़ी भोज्य पदार्थ (आलू, मूली की थींचवाणी, गहत का फाणू, भट की भट्टवाणी आदि) धार्मिक क्रियाकलाप (रामलीला, पांडवलीला, मंदिरों में नवरात्...
उत्तराखंड हिमालय के जलस्रोतों से अनुप्रेरित वैदिक सभ्यता के आदिस्रोत

उत्तराखंड हिमालय के जलस्रोतों से अनुप्रेरित वैदिक सभ्यता के आदिस्रोत

साहित्‍य-संस्कृति
भारत की जल संस्कृति-2 डॉ० मोहन चन्द तिवारी "या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री, ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्धम्. यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः, प्रत्यक्षाभिः प्रसन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः ॥"    -'अभिज्ञानशाकुंतलम्',1.1 आज 'अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस' है. महाकवि कालिदास के विश्व प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' में आए उपर्युक्त अष्टमूर्ति शिव की वंदना से ही मैं अपनी पर्यावरण के मुख्य तत्त्व जल की चर्चा प्रारम्भ करता हूं.महाकवि  कालिदास ने  'अभिज्ञानशाकुंतलम्' के इस नांदीश्लोक में शिव की जिन आठ मूर्तियों की वंदना से अपने नाटक का प्रारम्भ किया है,उनके नाम हैं- जल, अग्नि, यजमान, सूर्य, चंद्रमा, वायु, आकाश और पृथ्वी.इनमें भी सबसे पहली मूर्ति जलरूपा 'आद्यासृष्टि' है. सृष्टिविज्ञान की दृष्टि स...
पहाड़ों में गुठ्यार वीरान पड़े…

पहाड़ों में गुठ्यार वीरान पड़े…

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—16 प्रकाश उप्रेती ये है हमारा- छन और गुठ्यार. इस गुठ्यार में दिखाई देने वाली छोटी, 'रूपा' और बड़ी, 'शशि' है. गाय-भैंस का घर छन और उनका आँगन गुठ्यार कहलाता है. गाय- भैंस को जिनपर बांधा जाता है वो 'किल'. किल जमीन के अंदर घेंटा जाता है. हमारी एक भैंस थी 'प्यारी', वह इसी बात के लिए ख्यात थी कि कितना ही मजबूत ज्योड़ (रस्सी) हो और कितना ही गहरा किल घेंटा जाय, वह ज्योड़ तोड़ देती थी और किल उखाड़ देती थी. ईजा उस से परेशान रहती थीं. अमूमन किल घेंटना हर रोज का काम हो गया था. ईजा कहती थीं कि "आज ले किल निकाली है, यो भ्यो घुरुणलें".. च्यला फिर घेंट दे... बुबू कहते थे कि "जिन्दार उई होंछ जाक गुठ्यार में भाबेरी ब्लद बांधी रहनी". बैलों को कोई मार दे या उनके लिए घास की कमी हो जाए तो बुबू गुस्सा हो जाते थे. बैलों पर वह 'मक्खी नहीं बैठने देते थे'. भैंस ईजा और अम्मा...
बुदापैश्त डायरी-3

बुदापैश्त डायरी-3

संस्मरण
देश—परदेश भाग—3 डॉ. विजया सती विभाग में हमारे पास एक बहुत ही रोचक पाठ-सामग्री थी, यह विभाग के पहले विजिटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दी लेखक असग़र वजाहत जी के सहयोग से मारिया जी ने तैयार की थी. इसका नाम था– विनोद. बाद में इन पाठों का पुस्तक रूप में प्रकाशन हुआ. ये पाठ विनोद के माध्यम से भारतीय जीवन का पूरा परिचय कराते थे– भारतीय परिवार, पारस्परिक व्यवहार, बचपन, शिक्षा, रोज़गार, शहर, सम्बन्ध और तमाम परिवर्तन. विद्यार्थी विनोद के माध्यम से भारत की सैर कर लेते थे. और जब वे भारत आने का अवसर पाते तो विनोद के घर, शहर, बाजार घूम लेना चाहते. अकबर-बीरबल के किस्सों के माध्यम से भी हमने विद्यार्थियों को हिन्दी से जोड़ने का प्रयास किया.भारतीय फ़िल्में और गीत उन्हें बहुत प्रिय थे. हर सप्ताह फिल्म क्लब में वे चुनी हुई हिन्दी फिल्म देखते और उस पर चर्चा भी करते. बौलीवुड नृत्य समूह की प्रस्तुतियों में वे हिन्दी ग...
पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी 5 जून को हर साल ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाने का खास दिन है. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से स्वीडन स्थित स्टॉकहोम में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन 5 जून, सन् 1972 को आयोजित किया गया था, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी के सिद्धान्त को वैश्विक धरातल पर मान्यता मिली. इसी सम्मेलन में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) का भी जन्म हुआ. तब से लेकर प्रति वर्ष 5 जून को भारत में भी ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है तथा प्रदूषण एवं पर्यावरण की समस्याओं के प्रति आम जनता के मध्य जागरूकता पैदा की जाती है.पर चिन्ता की बात है कि अब ‘पर्यावरण दिवस’ का आयोजन भारत के संदर्भ में महज एक रस्म अदायगी बन कर रह गया है. दुनिया के तमाम देश भी ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चिन्...
जनपद चमोली में लहलहाने लगा चाइनीज़ बैम्बू/मोसो बांस

जनपद चमोली में लहलहाने लगा चाइनीज़ बैम्बू/मोसो बांस

पर्यावरण
पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष जे. पी. मैठाणी उत्तराखण्ड में जनपद चमोली की टंगसा गाँव स्थित वन वर्धनिक की नर्सरी में उगाया गया चाइनीज़ बैम्बू बना आकर्षण का केन्द्र. चाइनीज़ बैम्बू को ग्रीन गोल्ड यानी हरा सोना कहा जाता है. यह नर्सरी गोपेश्वर बैंड से लगभग 6 किमी0 की दूरी पर पोखरी मोटर मार्ग पर स्थित है. रिवर्स माइग्रेशन कर आ रहे पहाड़ के युवा जिनके गाँव 1200 मीटर से अधिक ऊँचाई पर हैं उन गाँवों के लिए चाइनीज़ बैम्बू स्वरोजगार के बेहतर और स्थायी रास्ते खोल सकता है. हस्तशिल्प उत्पाद, फर्नीचर, होम स्टे की हट्स और घेरबाड़. हमने अपने जीवन में सामान्यतः कई तरह के बांस के पौधे या झुरमुट देखे होंगे. ये आश्चर्य की बात है कि बांस को कभी पेड़ का दर्जा दिया गया था, जिससे उसके काटने और लाने ले जाने के लिए वन विभाग से परमिट की आवश्यकता पड़ती थी. लेकिन कुछ समय पूर्व भारत सरकार द्वारा पुनः वन कानून में पर...
पहाड़ का वह इंत्यान 

पहाड़ का वह इंत्यान 

संस्मरण
हम याद करते हैं पहाड़ को… या हमारे भीतर बसा पहाड़ हमें पुकारता है बार-बार? नराई दोनों को लगती है न! तो मुझे भी जब तब ‘समझता’ है पहाड़ … बाटुइ लगाता है…. और फिर अनेक असम्बद्ध से दृश्य-बिम्ब उभरने लगते हैं आँखों में… उन्हीं बिम्बों में बचपन को खोजती मैं फिर-फिर पहुँच जाती हूँ अपने पहाड़… रेखा उप्रेती दिल्ली विश्वविद्यालय, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के हिंदी विभाग में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. प्रस्तुत है रेखा उप्रेती द्वारा लिखित ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़ की 9वीं सीरीज… ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—9 रेखा उप्रेती परीक्षाएँ तो हमने भी बहुत दीं, पर तब न नंबरों का पारा ऐसे चढ़ता था, न माँ-बाप हमें सूली पर चढ़ाकर रखते थे. हमारे बाबूजी ने एक कंडीशन ज़रूर रखी हुई थी कि जो फेल होगा उसे आगे नहीं पढ़ाएँगे. इस विषय में बाबूजी कितने गंभीर थे मालूम नहीं क्योंकि किसी भाई-बहन ने कभी फ़ेल होने की...
परिपक्वता

परिपक्वता

किस्से-कहानियां
डॉ अमिता प्रकाश “मैडम, आज रोहिणी आ रही है." सुनीता ने मुझसे कहा तो रोहिणी की अनेकों स्मृतियाँ कौंध उठीं. शादी के एक साल बाद रोहिणी अपने घर आ रही थी. अपना घर...? वह घर जहाँ उसने जन्म लिया था. वह घर जिसके आँगन में खेलकूद कर वह बड़ी हुयी थी. वह घर जिसकी कई चीजों को उसने अपने हाथों से एक रूप दिया था. आँगन के नीचे वाले खेत में लगे कई माल्टे के पेड़ जो आज बड़े होकर उसके स्वेद के मोतियों को ही मानो फलों के रूप में धारण कर रहे थे, उसने अपने हाथों से उन्हें लगाया था. जिस उम्र में बच्चे अपने गुड्डे-गुड़ियाओं में मस्त होते हैं उस उम्र के उसके ये साथी आज उसी की तरह फलित होने लगे हैं... वह भी तो पेट से है, सोचकर चिन्ता की कई रेखाएँ मेरे चेहरे पर तैर आती हैं. उसका वही अपना घर. लेकिन अब कहाँ अपना रह गया था? शादी के दूसरे दिन ‘दोहरबाट’के लिए आयी थी. मात्र रस्म निबाहने के लिये. उसी समय उसने सोचा था कि अब म...
पुरखे निहार रहे मौन, गौं जाने के लिए तैयार है कौन?

पुरखे निहार रहे मौन, गौं जाने के लिए तैयार है कौन?

संस्मरण
ललित फुलारा सुबह-सुबह एक तस्वीर ने मुझे स्मृतियों में धकेल दिया. मन भर आया, तो सोशल मीडिया पर त्वरित भावनाओं को उढ़ेल दिया. ‘हिमॉंतर’ की नज़र पढ़ी, तो विस्तार में लिखने का आग्रह हुआ. पूरा संस्मरण ही एक तस्वीर से शुरू हुआ और विमर्श के केंद्र में भी तस्वीर ही रही. तस्वीर के बहाने ही गौं (गांव), होम स्टे और सड़क समेत कई मुद्दों पर टिप्पणियां हुई. कुसम जोशी जी और रतन सिंह असवाल जी ने सक्रियता दिखाते हुए, कई नई चीजों की तरफ ध्यान खींचा. ज्ञान पंत जी की कुमाऊंनी क्षणिका दर्ज शब्दों पर एकदम सटीक बैठी. बाकी, अन्य साथियों ने सराहा और गौं, पहाड़ और कुड़ी की बातचीत में अपने चंद सेकेंड खपाए. सभी का आभार. तस्वीर भेजने के लिए मोहन फुलारा जी का दिल से शुक्रिया.....!!!! प्रकाशित करने के लिए ‘हिमॉंतर’ को ढेरों प्यार. जिस तस्वीर को देखकर मन भर आया वो मेरी कुड़ी (मकान) है. तस्वीर आपको दिख ही रही होगी. ...
मेरी ओर देखो

मेरी ओर देखो

अध्यात्म
भूपेंद्र शुक्लेश योगी धरती के भीतर का पानी शरीर के “रीढ़ की हड्डी के पानी” जैसा होता है, रीढ़ की हड्डी का पानी जिसे CSF (Cerebrospinal Fluid) कहते हैं जो मस्तिष्क व रीढ़ आधारित अंगों के क्रियान्वयन के लिए अमृत समान है ....! सामान्यतः मस्तिष्क में ट्यूबरक्लोसिस के संबंध जानकारी प्राप्त करने के लिए CSF जाँच की जाती है वह भी तब जब अन्य सभी मार्ग बंद हो गए हों और विषय बहुत गंभीर हों ... सोचिए ! भूमिगत जल भी पृथ्वी के आंतरिक संचालन के लिए अति आवश्यक है, बाह्य प्रयोगों हेतु तो प्रकृति ने नदी, सरोवर, झील, झरने, जल स्त्रोत, वर्षा जल आदि दिये थे जो पर्याप्त था. यदि इस FLUID को जब चाहे, जैसे चाहे वैसे निकाला जाये तो इसका परिणाम कितना भयानक होगा... इसके दुष्परिणाम स्वरूप शरीर के लकवाग्रस्त होने, स्मृति भ्रम होने के साथ-साथ अन्य रोग उत्पन्न होने की संभावना रहती है. अब इस उपरोक्त स्थिति को भू...