पेट पालते पेड़ और पहाड़ 

मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—19

  • प्रकाश उप्रेती

आज बात उस पहाड़ की जो आपको भूखे नहीं रहने देता था. तस्वीर में आपको- तिमिल और कोराय के पेड़ नज़र आ रहे हैं. तिमिल की हमारे यहां बड़ी मान्यता थी. गाँव में तिमिल के तकरीबन 10-12 पेड़ थे. कहने को वो गाँव के अलग-अलग लोगों के थे लेकिन होते वो सबके थे. एक तरह से तिमिल साझी विरासत का पेड़ था.

तिमिल के पत्ते बहुत चौड़े होते थे. उन पत्तों का इस्तेमाल शादी-ब्याह में पत्तल और पूड (दोने) के तौर पर होता था. साथी ही ‘सज्ञान’ (कोई भी लोक पर्व या उत्सव) के दिन गाँव में तिमिल के पत्तों में रखकर ही ‘लघड़’ (पूरी) बांटते थे. ईजा ‘कौअ बाई’ (कौए के लिए पूरी) निकालने के लिए भी तिमिल के पत्तों का उपयोग करती थीं. इसलिए पेड़ किसी का भी हो अधिकार सबका होता था.

सज्ञान के दिन ईजा हमको सुबह-सुबह नहलाकर, पिठ्या लगाकर कहती थीं कि “च्यला जरा तिमिलेक पतेल ली हा”. हम दाथुल लेकर चल देते थे और 4-5 तिमिल की टहनियाँ काट लाते थे. घर लाने के बाद उनके पत्ते तोड़ते और ईजा को दे देते थे. ईजा उन्हीं पत्तों में हमें लघड़ और ‘भुड़’ देती थीं.

शादी- ब्याह के समय तो कुछ लड़कों की ड्यूटी ही तिमिल के पत्तों को काटने और फिर उन्हें तोड़ने की होती थी. हमारे गांव के ‘बगीच’ में सबसे ऊँचा तिमिल का पेड़ था.उसके पत्ते भी बड़े-बड़े होते थे.अक्सर उसी पेड़ से लाते थे. गाँव के बुज़ुर्ग लोगों का काम ‘सींक’ के सहारे तिमिल के पत्तों से पत्तल और ‘पूड'(दोने) बनाने का होता था. बहुत मजे से सब काम हो रहा होता था.

 

सज्ञान के दिन ईजा हमको सुबह-सुबह नहलाकर, पिठ्या लगाकर कहती थीं कि “च्यला जरा तिमिलेक पतेल ली हा”. हम दाथुल लेकर चल देते थे और 4-5 तिमिल की टहनियाँ काट लाते थे. घर लाने के बाद उनके पत्ते तोड़ते और ईजा को दे देते थे. ईजा उन्हीं पत्तों में हमें लघड़ और ‘भुड़’ देती थीं. साथ में कहती थीं “जल्दी खा ले फिर गौं पन सज्ञान बांटेणी तिकेँ”. हम जल्दी-जल्दी खाते फिर ईजा गांव के हर घर के लिए एक लघड़ और एक भुड़ तिमिल के पत्ते में रखकर छापडी में रख देती थीं. हम छापडी सर में रखकर सज्ञान बांटने चले जाते थे. सज्ञान के दिन जिनके घर भैंस नहीं होती थी उनके लिए दही और दूध अनिवार्य रूप से ले जाते थे. सुबह-सुबह ही ईजा सबके हिस्से की दही और दूध निकाल देती थीं…

ईजा कई बार कहती थीं कि “च्यला आज साग हैं तिमिलक बीं तोड़ ल्या”. हम पेड़ पर चढ़ते और तोड़ लाते थे. पके हुए तिमिल तो अक्सर हम पत्थर का निशाना लगाकर तोड़ते और खेत में बैठकर ही खा लेते थे.

तिमिल का जो फल है वह भी पकने के बाद बहुत मीठा होता था. अक्सर तिमिल के पेड़ में बंदर और लंगूर बैठे रहते थे. उनका वह स्थायी ठिकाना था. कच्चे तिमिल की तो सब्जी भी बनती थी. ईजा कई बार कहती थीं कि “च्यला आज साग हैं तिमिलक बीं तोड़ ल्या”. हम पेड़ पर चढ़ते और तोड़ लाते थे. पके हुए तिमिल तो अक्सर हम पत्थर का निशाना लगाकर तोड़ते और खेत में बैठकर ही खा लेते थे. तिमिल खाने में अलग-अलग स्वाद का होता था. जो शहद नुमा एकदम लाल होता था, वही खाने में सबसे स्वादिष्ट और मीठा होता था.

“च्यला तिमिल तो अब बनार ले नि खा में” मतलब अब बंदरों ने भी तिमिल खाना छोड़ दिया है. इंसानों के बारे में तो कहना ही मुनासिब नहीं है.

तिमिल और कोराय इसी मौसम में होते हैं. कोराय के कलियों की सब्जी बनती थी. ईजा कोराय का अचार भी डालती थीं. कोराय की सब्जी तो घर में सबको पसंद थी  लेकिन मुश्किल कोराय के बीज तोड़ने में होती थी. कोराय का पेड़ लंबा था और कलियां भी उसके बहुत ऊपर होती थीं. कभी डंडे तो कभी बड़ी मेहनत से पेड़ में चढ़कर हम तोड़ लाते थे. ईजा कोराय के पेड़ में चढ़ने से अक्सर मना करती थीं लेकिन हम कहाँ मानते थे…

कोराय का फूल भी बड़ा सुंदर होता है. फूल को हम घर सजाने के लिए तोड़ते थे. तिमिल और कोराय दोनों के पेड़ बहुत मजबूत नहीं होते थे. कोराय के पत्ते भैंस के खाने के काम आते थे. लाने को हम भैंस के लिए तिमिल के पत्ते भी लाते थे लेकिन उनका और भी प्रयोग था तो कम ही बच पाते थे.

आज पेड़ों पर तिमिल पककर जमीन में गिरे रहते हैं. कोराय की कलियों को कोई पूछता भी नहीं है. ईजा कहती हैं- “च्यला तिमिल तो अब बनार ले नि खा में” मतलब अब बंदरों ने भी तिमिल खाना छोड़ दिया है. इंसानों के बारे में तो कहना ही मुनासिब नहीं है.

मैंने जिस दिन पनीर बनाया था ईजा ने उस दिन तिमिल की सब्जी. ईजा ने फोन पर कहा “च्यला आज तिमिलक साग लगे रहो”. ईजा की आवाज में खुशी और उत्साह का मिश्रित भाव सुनकर, मैं नहीं कह सका कि मैंने पनीर बना रखा है….

आज भी ईजा सीजन में तिमिल, कोराय की सब्जी एक- दो बार खा लेती हैं कहती हैं-” ये हमर पहाडक धरती क होय… ये लीजिए ‘चाखि’ (स्वाद) लैण चहुँ”. हमारे लिए जो जंगली है ईजा के लिए वो पहाड़ की धरती का उपहार… ईजा उसको चाखि जरूर लेती हैं.

मैंने जिस दिन पनीर बनाया था ईजा ने उस दिन तिमिल की सब्जी. ईजा ने फोन पर कहा “च्यला आज तिमिलक साग लगे रहो”. ईजा की आवाज में खुशी और उत्साह का मिश्रित भाव सुनकर, मैं नहीं कह सका कि मैंने पनीर बना रखा है…

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं।)

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