बगरौ बसंत है

  • प्रो. गिरीश्वर मिश्र

सृष्टि चक्र का आंतरिक विधान सतत परिवर्तन का है और भारत देश का सौभाग्य कि वह इस गहन क्रम का साक्षी बना है. तभी ऋत और सत्य के विचार यहां के चिंतन में गहरे पैठ गए हैं और नित्य-अनित्य का विवेक so करना दार्शनिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी रही. यहां ऋतुओं का क्रम कुछ इस भांति संचालित होता है कि पृथ्वी समय बीतने के साथ रूप, रस और गंध के भिन्न-भिन्न स्वाद से अभिसिंचित होती रहती है. because वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत नामों से ख्यात ये छह ऋतुएं प्रकृति के संगीत के अलग-अलग राग, लय और सुर के साथ जीवन के सत्य को उद्भासित करती हैं. वह पशु, पक्षी और वनस्पति समेत सभी प्राणियों को यह संदेश देती रहती है कि तैयार रहो और गतिशील बने रहो जिससे जीवन का क्रम बना रहा.

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शिशिर

प्रकृति की कूट (कोड) भाषा because सभी पढ़ भी लेते हैं, शायद मनुष्य से अधिक सटीक ढंग से और प्रकृति की लीला में सहचर बन जाते हैं. मनुष्य अपनी प्रगति को देख-देख अभिमान से चूर हुआ जा रहा है. वह कुछ इस क़दर आत्मलीन सा हुआ जा रहा है कि उसे अपने अलावे कुछ दिखता ही नहीं. पूरी सृष्टि पर क़ब्ज़ा जमाना ही उसका एक मात्र लक्ष्य हुआ जा रहा है. चंद्र विजय के बाद अब हर कोई मंगल ग्रह पर धावा बोल रहा है. because लगता है मनुष्य प्रकृति के साथ दो दो हाथ करने को आतुर है. जल, थल और नभ हर कहीं उसकी दस्तक जारी है. पर इन उलझनों से दूर अभी भी गांव, क़स्बे और महा नगर में बसा मध्य वर्ग वसंत पंचमी का उत्सव मनाता है. प्रयाग में इस दिन माघ मेला में विशेष स्नान का आयोजन भी होता है.

शरद

वसंत की दस्तक अनेक अर्थों में अनूठी होती है. बीतती ठंड और हल्की गर्मी के बीच की प्रीतिकर गर्माहट लिए यह मौसम यदि ऋतुराज कहा जाता है तो वह अन्यथा नहीं है. because पेड़ पौधों की हरियाली और नाना प्रकार के फूलों की सुरभि से परिवेश सुवासित रहता है. कालिदास के शब्दों में वसंत में सब कुछ चारुतर यानी अतिसुंदर और प्रीतिकर हो उठता है: सर्वम प्रिय म चारुतरम वसंते. उनके ऋतु संहार में मन में, वन में और पवन में मादकता का मनोहारी चित्रण मिलता है. इस काल को मधुमास भी कहा जाता है जो मस्ती और उल्लास से ओत प्रोत मनोभाव because और प्रकृति की रमणीयता को रेखांकित करता है. देव, सेनापति, घन आनंद, पदमाकर जैसे हिंदी कवियों ने शृगार, माधुर्य, लावण्य और सौंदर्य को लेकर अविस्मरणीय काव्य रचा है. आधुनिक कवियों में निराला, पन्त और अज्ञेय ने वासंती प्रकृति का जीवंत चित्र खींचा है.

शरद

स्मरणीय है कि सरस्वती का because उल्लेख नदी के रूप में प्राचीन साहित्य में मिलता है परंतु कालक्रम में वह लुप्त हो गई. प्रयाग अभी भी गंगा यमुना और प्रच्छन्न सरस्वती के संगम के रूप में श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.

शरद

रम्य परिवेश सर्जनात्मकता की ओर उन्मुख because करता है इसलिए वाग्देवी की कृपा के लिए सभी उत्सुक रहते हैं. वेद के वाक्सूक्त में वाक् की महिमा अनेक तरह से की गई है .

शरद

अध्ययन अध्यापन से जुड़े बुद्धिजीवी वर्ग because वसंत पंचमी को ‘सरस्वती पूजा‘ यानी ज्ञान के उत्सव के रूप में मनाते हैं. स्वच्छ पीले परिधान में विद्यार्थी गण सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर विद्यालयों और छात्रावासों में ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की आराधना की जाती है. श्वेत कमल पर विराजती शुभ्र वस्त्रों से सुशोभित धवल द्युति वाली देवी सरस्वती वीणा और पुस्तक को धारण करती हैं. सारे देवता उनकी वंदना करते हैं. because उनसे प्रार्थना की जाती है कि वे बुद्धि की जड़ता के अंधकार को दूर करें. सुकुमार मति विद्यार्थी अपनी पुस्तक सरस्वती की प्रतिमा के निकट रख विद्या प्राप्ति की अभिलाषा भी ज्ञापित करते हैं.

शरद

युवा पीढ़ी आपने प्यार so और रोमांस की अभिव्यक्ति के लिए अवसर ढूँढने को तत्पर रहता है. प्यार की पेंग बढ़ाने और पारस्परिक आकर्षण की यात्रा को सहज बनाता वालेंटाइन-डे का युवाओं को इंतज़ार है. वासंती मन का यह नया संस्करण नागर सभ्यता का वैश्वीकरण की ओर बढ़ता कदम लगता है.

शरद

स्मरणीय है कि सरस्वती का उल्लेख because नदी के रूप में प्राचीन साहित्य में मिलता है परंतु कालक्रम में वह लुप्त हो गई. प्रयाग अभी भी गंगा यमुना और प्रच्छन्न सरस्वती के संगम के रूप में श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.

शरद

वसंत की मादकता के साथ अब एक और because आयाम भी जुड़ गया है. नए दौर में आधुनिक युवक युवतियाँ वेलेंटाइन-डे और सप्ताह के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. इस बार गुलाबी गंध के साथ शुरू हो वैलेंटाइन दिवस पर चौदह फ़रवरी को पूर्णता प्राप्त होगा. युवा पीढ़ी आपने प्यार और रोमांस की अभिव्यक्ति के लिए अवसर ढूँढने को तत्पर रहता है. प्यार की पेंग बढ़ाने और पारस्परिक आकर्षण की यात्रा को सहज बनाता because वालेंटाइन-डे का युवाओं को इंतज़ार है. वासंती मन का यह नया संस्करण नागर सभ्यता का वैश्वीकरण की ओर बढ़ता कदम लगता है.

वसंत का संदेश है कि जीवन में उत्सुकता और आह्लाद को आमंत्रित करो. प्रेम और प्रीति का रंग भर कर ही जीवन सम्पूर्णता को प्राप्त करता है.

(लेखक शिक्षाविद् एवं पूर्व कुलपतिमहात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा हैं.)

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