सन् 1848 : सिक्किम की अज्ञात घाटी में
- जोसेफ डाल्टन हूकर
कम्बचैन या नांगो के विपरीत दिशा को जाने वाली घाटी की ओर उसी नाम से पर्वत के दक्षिणी द्वार के ऊपर एक हिमोढ़ (Moraine) से कुछ मील नीचे एक चीड़ के जंगल में हमने रात बिताई. यह रिज यांगमा नदी को कम्बचैन से अलग करती है. यांगमा आगे लिलिप स्थान के समाने तम्बूर नदी में गिरती है.
यांगमा नदी लगभग 15 फीट चौड़ी है और रास्ता नदी के उस पार दक्षिण की खड़ी चढ़ाई से होता हुआ हिमन द्वारा लाए गए मलवे पर पहुंचता है. यहां पर घने बुरांश, चमखड़ीक (पहाड़ी ऐस), पुतली (मेपल) के पेड़ और जूनीपर की झाड़ियां आदि चारों ओर फैली हैं. जमीन पर भोजपत्र की रजत छाल व बुरांश के फूलों की मुलायम पंखुड़ियां, जो टिश्यू पेपर सी पाण्डु रंग की हैं, बिछी हुई हैं. मैंने इस प्रकार की बुरांश प्रजाति पहले कभी नहीं देखी है. इसके हरे चटकीले पत्ते, जो 16 इंट लंबे हैं, के सौंदर्य को देखकर मैं चकित रह गया.
पेड़ों ...