Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
गढ़वाल में राजपूत जातियों का इतिहास

गढ़वाल में राजपूत जातियों का इतिहास

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
नवीन नौटियाल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न जातियों का वास है। गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-2 में गढ़वाल में निवास कर रही क्षत्रिय/राजपूत जातियों के बारे में बता रहे हैं नवीन नौटियाल क्षत्रिय/राजपूत : गढ़वाल में राजपूतों के मध्य निम्नलिखित विभाजन देखने को मिलते हैं- 1. परमार (पँवार) :- परमार/पँवार जाति के लोग गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास गढ़वाल राजवंश में हुआ। 2. कुंवर : इन्हें पँवार वंश की ही उपशाखा माना जाता है। ये भी गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास भी गढ़वाल राजवंश में हुआ । 3. रौतेला : रौतेला जाति को भी पंवार वंश की उपशाखा माना जाता है। 4. असवाल : असवाल जाति के लोगों का सम्बंध नागवंश से माना जाता है। ये दिल्ली के समीप रणथम्भौर से संवत 945 में यहाँ आए। कुछ विद्वान इनको चह्वान कहते हैं। अश्वारोही होने से ये असवाल कहल...
किन्नौर का कायाकल्प करने वाला डिप्टी कमिश्नर

किन्नौर का कायाकल्प करने वाला डिप्टी कमिश्नर

संस्मरण, हिमाचल-प्रदेश
कुसुम रावत मेरी मां कहती थी कि किसी की शक्ल देखकर आप उस ‘पंछी’ में छिपे गुणों का अंदाजा नहीं लगा सकते। यह बात टिहरी रियासत के दीवान परिवार के दून स्कूल से पढ़े मगर सामाजिक सरोकारों हेतु समर्पित प्रकृतिप्रेमी पर्वतारोही, पंडित नेहरू जैसी हस्तियों को हवाई सैर कराने वाले और एवरेस्ट की चोटी की तस्वीरें पहली बार दुनिया के सामने लाने वाले एअरफोर्स पायलट, किन्नौर की खुशहाली की कहानी लिखने वाले और देश में पर्यावरण के विकास का खाका खींचने वाले वाले दूरदर्शी नौकरशाह नलनी धर जयाल पर खरी बैठती है। देश के तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने वाले इस ताकतवर नौकरशाह ने हमेशा अपनी क्षमताओं से एक मील आगे चलने की हिम्मत दिखाई जिस वजह से वह भीड़ में दूर से दिखते हैं। जीवन मूल्यों के प्रति ईमानदारी, प्रतिबद्वता व संजीदगी से जीने का सलीका इस बेजोड़ 94 वर्षीय नौकरशाह की पहचान है। यह कहानी एक रोचक संस्मरण है कि क...
घर ही नहीं, मन को भी ज्योर्तिमय करता है ‘भद्याऊ’

घर ही नहीं, मन को भी ज्योर्तिमय करता है ‘भद्याऊ’

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
दिनेश रावत वर्षा काल की हरियाली कितना आनंदित करती है। बात गांव, घरों के आस-पास की हो, चाहे दूर-दराज़ पहाड़ियों की। आकाश से बरसती बूंदों का स्पर्श और धरती का प्रेम, पोषण पाकर वनस्पति जगत का नन्हा-सा नन्हा पौधा भी मानो प्रकृति का श्रृंगार करने को दिन दुगुनी, रात चैगुनी कामना के साथ आतुर, विस्तार पा रहा हो, तभी नज़र आती है धरती अनेकानेक वनस्पतियों से सुसज्जित। खेतों में लहलहाती फसलें जहां मन को मदमस्त कर देती है तो गांव, घरों के आस-पास खेतों, खलियानों, आंगन, गली, चैबारों में उगी अत्यधिक घास-फूस, झाड़ियां अनावश्यक परेशानी का सबब भी बन जाती हैं। बरसात के इस मौसम में चाद तो मानो कई-कई दिनों के लिए खुद को बादलों की गोद में छुपा लेता है। कीट-पतंग, सांप, चूहों की प्रजातियों को देख भी आभास होता है मानो अतिरेक विस्तार पा लिया हो। घरों के आस-पास तैयार मक्का, ककड़ी आदि की फसलों को देख जंगली जानवर भी इनका...
गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1

गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
नवीन नौटियाल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न जातियों का वास है। इस श्रृंखला में गढ़वाल में निवास कर रही ब्राह्मण जातियों के बारे में बता रहे हैं नवीन नौटियाल गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, दुमागी व देवप्रयागी चार श्रेणियों में बाँटते हैं। ब्राह्मण :- गढ़वाल में निवास करने वाली ब्राह्मण जातियों के बारे में यह माना जाता है कि 8वीं - 10वीं शताब्दी के बीच ये लोग अलग-अलग मैदानी भागों से आकर यहाँ बसे और तत्पश्चात यहीं के रैबासी (निवासी) हो गए। गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, द...
मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां

मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
ललित फुलारा युवा पत्रकार हैं। पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं। इस लेख के माध्यम से वह पहाड़ से खाली होते गांवों की पीड़ा को बयां कर रहे हैं। शहर हमें अपनी जड़ों से काट देता है. मोहपाश में जकड़ लेता है. मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां हैं. आंगन विरान पड़ा है. वो आंगन जिसमें पग पैजनिया थिरकती थीं. जिसकी धूल-मिट्टी बदन पर लिपटी रहती थी. जहां ओखली थी. बड़े-बड़े पत्थर पुरखों का इतिहास बयां करते थे. किवाड़ की दो पाटें खुली रहती थी. गेरुए रंग पर सफेद ऐपण, निष्पक्षता, निर्मलता और सादगी की परंपरा को समेटे हुई थी. ज्योतिष त्रिभुजाकार छतों पर जिंदगी के संघर्ष, उतार-चढ़ाव और सफलता में धैर्य और विनम्रता की सीख छिपी थी. पर अब सब कुछ विरान है. गांव खाली पड़ा है. आप चाहे तो उत्तराखंड के 1668 भुतहा गांवों में मेरे गांव को भी शामिल कर सकते हैं. पलायन के आंकड़ें रोज़गार पैदा करते तो...
अभिनेता और नाट्य निर्देशक भूपेश जोशी को मिलेगा 2018 का सफदर हाशमी पुरस्कार

अभिनेता और नाट्य निर्देशक भूपेश जोशी को मिलेगा 2018 का सफदर हाशमी पुरस्कार

समसामयिक
हिमांतर ब्यूरो  अपने अभिनय से किसी भी किरदार को सांरग बनाने और निर्देशन के जरिए नाटकों को समसामयिक मुद्दों और परिस्थियियों से जोड़ने में माहिर रंगकर्मी भूपेश जोशी को उत्तर प्रदेश की संगीत नाटक अकादमी की तरफ से 'सफदर हाशमी पुरस्कार 2018' दिए जाने की घोषणा हुई है। उन्हें यह पुरस्कार नाट्य निर्देशन की श्रेणी में दिया जाएगा। भूपेश जी पिछले 25 सालों से रंगमंच के क्षेत्र में सक्रिय हैं। 60 से ज्यादा नाटकों में अभिनय किया है। इन नाटकों के देश-विदेश में 400 से ज्यादा शो हुए हैं। अपनी मेहनत और लगन के बदौलत भूपेश दा ने 40 से भी ज्यादा नाटकों का निर्देशन किया है। अनेक नाट्य महोत्सवों में इन नाटकों के साथ भागीदारी की है। फीचर फिल्म पिंजर, चिंटू जी, किस्म लव पैसा दिल्ली, सौन चिरैया सहित विभिन्न फिल्मों में काम भी किया है। स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले सीरियल दहलीज और डीडी वन पर आने वाले तुम...
जनाधिकारों के लिए संघर्षरत एक लोककवि !

जनाधिकारों के लिए संघर्षरत एक लोककवि !

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण
व्योमेश जुगरान आज हिमालै तुमुकै धत्यूं छौ,  जागो - जागो ओ मेरा लाल बरसों पहले पौड़ी के जिला परिषद हॉल में गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ को पहली बार सुना था। खद्दर का कुर्ता पहने घने-लटदार बालों वाले इस शख़्स की बात ही कुछ और थी। उन्होंने माहौल से हटकर फ़ैज साहब का मशहूर कौमी तराना ‘दरबार-ए-वतन में जब इक दिन... सुनाया। ओजस्वी स्वर फूटे तो साज की दरकार ही कहां रही ! यह काम तो उनके पावों और बाहों की जुंबिशों ने संभाल लिया था। शास्त्रीय संगीत की जुगलबंदियां तो सुनी थी, लेकिन लोकगायकों की जुगलबंदी? यह अभिनव प्रयोग इतना सफल रहा कि इसकी गूंज सात समुंदर पार भी पहुंची। लेकिन यह सिर्फ गीत और गायिकी का आनंद भर नहीं था, बल्कि एक ऐसा प्रयोग था जिसने गढ़वाल और कुमाऊं से जुड़ी पहाड़ की सांस्कृतिक एकता के बचे-खुचे सूराख भी पाट दिए। तराने की हर बहर से आवाज के अंगार दहक रहे थे। मानो कोई कौमी हरकारा किस...
तिलाड़ी कांड: जब दहाड़ उठी रवाँई घाटी

तिलाड़ी कांड: जब दहाड़ उठी रवाँई घाटी

इतिहास
उत्तराखंड का जलियावाला बाग तिलाड़ी कांड सकलचन्द रावत आज रवाँई जौनपुर की नई पीढ़ी के किशोर कल्पना ही नहीं कर सकते कि सन 1930 में रवाँई की तरुणाई को आजादी की राह पर चलने में कितनी बाधाओं का सामना करना पड़ा था। because पौरुष का इतिहास खामोश था, वक्त की वाणी मूक थी, लेखक की कृतियां गुमशुम थी और बेड़ियों से जकड़ी हुई थी। आजादी जंगलात अफसर ने अपनी रिवाल्वर से निहत्थे किसानों पर फायर किये जिससे अजितू तथा झून सिंह ग्राम नगांणगांव वाले सदा के लिये सो गये। कई लोग घायल हुये। साथ because ही साथ मजिस्ट्रेट की जांघ पर भी गोली लगी। हत्यारा रतूड़ी भाग खड़ा हुआ। किसानों का दल घायलों सहित मजिस्ट्रेट को लेकर राजतर पहुंचे। गिरफ्तारी के लिये आई हुई पुलिस से जब हत्याकांड की बात सुनी तो भयभीत हो गये और जिन लोगों को गिरफ्तार कर लाये थे उन्हें छोड़ कर भाग गये। यूसर्क सन 1930, 17-18 गते ज्येष्ठ। उस दिन दह...
‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
व्योमेश जुगरान 'तेरी सौं' का वह युवा जो तब मैदान में पढ़ाई छोड़ एक जज्बाती हालात में उत्तराखंड आंदोलन में कूदा था, आज अधेड़ होकर ठीक वैसी ही भावना के वशीभूत पहाड़ की समस्याओं से जूझने को अभिशप्त है। पलायन की त्रासदी पर बनी गंगोत्री फिल्मस् की ‘मेरु गौं’ को कसौटी पर इसलिए भी कसा जाना चाहिए कि यह फिल्म पलायन, परिसीमन और गैरसैंण जैसे सरोकारों के अलावा इस प्रश्न से भी टकराती है कि 35 साल उम्र के बावजूद गढ़वाली सिनेमा क्या उतना परिपक्व हो पाया है! पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ 1983 में आई थी। हालांकि तब से लेकर करीब ढाई दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी फिल्में आ चुकी हैं। इनमें कुछेक जरूर कलात्मक दृष्टि से अच्छी कही जा सकती हैं किन्तु गढ़वाली सिनेमा के नामचीन निर्देशक अनुज जोशी की ‘तेरी सौं.. (2003) से लेकर ‘मेरु गौं.. (2019) के सफर को पैमाना मान लें तो तस्वीर उत्साह नहीं जगाती। इन दोनों पिक्चरों ...