Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
लोक के विविध रंगों से रंगा एक महोत्सव

लोक के विविध रंगों से रंगा एक महोत्सव

धर्मस्थल
- दिनेश रावत उत्तराखंड का रवांई क्षेत्र अपने सांस्कृतिक वैशिष्टय के लिए सदैव विख्यात रहा है. लोकपर्व, त्योहार, उत्सव, मेले, थोले यहां की संस्कृति सम्पदा के अभिन्‍न अंग कहे जा सकते हैं. कठिन दैनिकचर्या की चक्की में पीसता मानव इन्हीं अवसरों पर अपने आमोद-प्रमोद, मनरंजन, मेल-मिलाप हेतु वक्त चुराकर न केवल शारीरिक, मानसिक थकान मिटाकर तन-मन में नयी स्फूर्ति का संचार करता था, बल्कि जीवन के लिए उपयोगी सामग्री का संग्रह भी. सुदूर हिमालयी क्षेत्र में होने वाले मेले, शहरी मेलों से पूरी तरह अलग लोक के विविध रंगों से रंगे नजर आते थे किन्तु वर्तमान में वैश्वीकरण की आबो-हवा के चलते लोक संस्कृति के संवाहक रूपी मेले से वर्तमान पीढ़ी का मोहभंग होता जा रहा है, जिसके चलते इनके अस्तित्व पर ही संकट के मेघ मंडराने लगे हैं. वर्षों पूर्व अपार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होने वाले कई मेले जहाँ अपने अस्तित्व के लिए जूझ...
जहां विराजते हैं सूर्य सुता यमुना व शनि

जहां विराजते हैं सूर्य सुता यमुना व शनि

धर्मस्थल
— दिनेश रावत देवभूमि उत्तराखंड के दिव्यधाम सदियों के लोगों के आस्था एवं विश्वास के केन्द्र रहे हैं. सांसारिक मोह-माया में फंसा व्यक्ति, आत्मीकशांति की राह तलाशते हुए अन्ततः इसी क्षेत्र का रूख करता है. कारण पंचब्रदी, पंचकेदार, पंचप्रयाग तथा अनेकानेक देवी-देवताओं के दैवत्व से दैदीप्यमान, ऋषि-मुनियों के तपोबल से तरंगित, पांडवों के पराक्रम को प्रतिबिंबित करती और प्राणी जगत को नवजीवन प्रदान करती गंगा, यमुना, अलकनंदा मंदाकिनी, भागीरथी, भिलंगना जैसी पावन सलीलाओं की सतत् प्रवाहमान अमृतमय जलधाराएं. उत्तराखंड के चार धामों में यमुनोत्री का महत्त्व इसलिए बढ़ जाता है कि इन चारों धामों की यात्रा का शुभारंभ यहीं से अर्थात माँ यमुना का पावन आशीष और सूर्य कुंड की तप्त जलधारा में स्नान करने के साथ ही माना जाता है. स्यानाचट्टी, रानाचट्टी, हनुमानचट्टी, नारदचट्टी से होते हुए जानकीचट्टी वह अंतिम पड़ाव है, जहां ...
त्रिजुगी नारायण के अवतार माने जाते हैं कौल देवता!

त्रिजुगी नारायण के अवतार माने जाते हैं कौल देवता!

धर्मस्थल
दिनेश सिंह रावत लोक मान्यतानुसार कौंल देवता का संबंध केदारनाथ से है. इन्हें त्रिजुगी नारायण का अवतार माना जाता है और इसी के चलते हर बारहवें वर्ष कौंल देवता से केदारनाथ की यात्रा करवाई जाती है। सालरा के अतिरिक्त आराकोट, बरनाली तथा धारा में भी कौंल देवता का प्राचीन मन्दिर अवस्थित हैं.   देवभूमि उत्तराखण्ड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के दूरस्थ विकास क्षेत्र मोरी के सालरा व बंगाण क्षेत्र में कौंल देवता को आराध्य इष्ट के रूप में पूजा जाता है. कौंल देवता के संबंध में यहां कुछ पौराणिक लोकगीत प्रचलित हैं जिनके अंश इस प्रकार से हैं- 'ऊब सालरे देवा, उन्द से मेसाई के घोर। तेरे देवरा कौंल देवा सांदौणी सादों, तू देंदू पुतर वर।।' अर्थात हे कौंल देवता! सालरा गांव में ऊपर आपका मन्दिर है, नीचे पूजारियों का घर. आपके मन्दिर में जो सच्चे मन से उपासना करता है, उसे आप पुत्र का वर देते हैं. सालरा गांव म...