Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
आदमी को भूख जिंदा रखती है

आदमी को भूख जिंदा रखती है

साहित्यिक-हलचल
-  नीलम पांडेय "नील" ना जाने क्यों लगता है कि इस दुनिया के तमाम भूखे लोग लिखते हैं,  कविताएं या कविताओं की ही भाषा बोलते हैं। जो जितना भूखा, उसकी भूख में उतनी ही जिज्ञासाएं और उतने ही प्रश्न छिपे होते हैं। अक्सर कविताएं भी छुपी होती हैं। ताज्जुब यह भी है कि उस भूखे के पास अपने ही उत्तर भी होते हैं जो कभी—कभी आसमान से तारे तोड़ लाने जैसे होते हैं, और तो और उसकी भूख में दुखों को याद करने के लिऐ पहाड़े  होते हैं, बारहखड़ी, इमला होती है और कई बार बड़े-बड़े निबंध भी होते हैं बस उनको पढ़ने, सुनने और समझने वाला शायद कोई होता है। लिखने वाले को भाषा की भूख भी है, वह जितना लिखने का भूखा है उतना ही अपने देश—प्रदेश और स्थानीय भाषा के करीब होता चला जाता है, जिनकी भूख इनसे जुदा है वे किसी भी भाषा से काम चला लेने का दावा कर रहे हैं, उनको रचनाकार होने की नहीं, रचनाकार को खरीदने की भूख है। और किसी-किसी की...
‘एक प्रेमकथा का अंत’ का लोकार्पण

‘एक प्रेमकथा का अंत’ का लोकार्पण

समसामयिक
रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा गजू मलारी पर आधारित नाटक 'एक प्रेम कथा का अंत' — महाबीर रवांल्टा सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति (सेवा) व टीम रवांई लोक महोत्सव के संयुक्त तत्वावधान में यमुना वैली पब्लिक स्कूल नौगांव में आयोजित कार्यक्रम में रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा गजू मलारी पर आधारित नाटक एक प्रेमकथा का अंत का लोकार्पण हेमवतीनन्दन बहुगुणा गढ़वाल(केन्द्रीय)विश्व विद्यालय श्रीगर गढ़वाल के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डा अजीत पंवार, जिला शैक्षणिक प्रशिक्षण संस्थान बडकोट के प्राचार्य वी पी सेमल्टी, रंगकर्मी पृथ्वीराज कपूर, वयोवृद्ध कवि खिलानन्द बिजल्वाण, डा मनमोहन रावत, युवा कवि दिनेश रावत, क्षेत्र पंचायत प्रमुख रचना बहुगुणा की मंच पर उपस्थिति के साथ हुआ ।अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्य क्रम का आरम्भ हुआ। लोक गायक जितेन्द्र राण...
सांस्कृति परंपरा और मत्स्य आखेट का अनोखा त्यौहार

सांस्कृति परंपरा और मत्स्य आखेट का अनोखा त्यौहार

साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
अमेन्द्र बिष्ट मौण मेले के बहाने जीवित एक परंपरा जौनपुर, जौनसार और रंवाई इलाकों का जिक्र आते ही मानस पटल पर एक सांस्कृतिक छवि उभर आती है. यूं तो इन इलाकों के लोगों में भी अब परंपराओं को निभाने के लिए पहले जैसी गम्भीरता नहीं है लेकिन समूचे उत्तराखण्ड पर नजर डालें तो अन्य जनपदों की तुलना में आज भी इन इलाकों में परंपराएं जीवित हैं. पलायन और बेरोजगारी का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड के लोग अब रोजगार की खोज में मैदानी इलाकों की ओर रूख कर रहे हैं लेकिन रंवाई—जौनपुर एवं जौनसार—बावर के लोग अब भी रोटी के संघर्ष के साथ-साथ परंपराओं को जीवित रखना नहीं भूलते. बुजुर्गो के जरिये उन तक पहुंची परंपराओं को वह अगली पीड़ी तक ले जाने के हर संभव कोशिश कर रहे हैं. मौण मेला उत्तराखण्ड की परंपराओं में अनूठा मेला है, जिसमें दर्जनों गांव के लोग सामूहिक रूप से मछलियों का शिकार करते हैं. यूं तो इन इलाकों में बहुत सा...
वाचिक परम्परा में संरक्षित महाभारतकालीन प्रसंग 

वाचिक परम्परा में संरक्षित महाभारतकालीन प्रसंग 

इतिहास
— दिनेश रावत वसुंधरा के गर्भ से सर्वप्रथम जिस पादप का नवांकुर प्रस्फुटित हो जीवजगत के उद्भव का आधार बना है, लोकवासियों द्वारा उसे आज भी पूजा-अर्चना में शामिल किया जाता है. इसे लोकवासी ‘छामरा’ के रूप में जानते हैं। लोककाव्य के गुमनाम रचनाकार ऐसी काव्यमयी रचनाएं लोक को समर्पित कर गए, जो कालजयी होकर लोकवासियों की कंठासीन बनी हुई हैं. ये रचनाएं जीवित होकर आज भी उस काल, समय तथा सौरभ लिए प्रत्यक्ष रूप में लोकवासियों के लिए स्वीकार्य एवं हृदयग्राही बनी हुई है. मध्य हिमालयी क्षेत्र में प्रचलित लोकसाहित्य की इन विधाओं में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं समसामयिक विषयों के साथ-साथ महाभारत एवं रामायणकालीन प्रसंग भी लोक भाषा के विशिष्ट लावण्य से रचे बसे हैं. लोक के अनाम कवियों ने ऐसी ही एक रचना में महाभारत के कालक्रम यानी आदि से अंत को समेटने का साहसिक प्रयास मिलता है. महाभारतकालीन देशकाल, परिस्थितियो...
शहीदों को समर्पित फोटोग्राफी व पेंटिंग प्रदर्शनी

शहीदों को समर्पित फोटोग्राफी व पेंटिंग प्रदर्शनी

कला-रंगमंच
— वाई एस बिष्ट इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट गैलरी, नई दिल्ली में 16 से 18 फरवरी को फोटोग्राफी और पेंटिंग प्रदर्शनी 'अनुभूति' का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम इनक्रेडिबल आर्ट एंड कल्चर फाउंडेशन द्वारा किया गया, इसमें कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रकार की फोटोग्राफी लगाई गई थी, जो प्रकृति, नाइट स्काई इत्यादि थी. इसी प्रकार पेंटिंग भी ज्वलन्त मुददों पर आधारित थी. कलाकारों ने लैंडस्केप और कई रूपों में अपनी पेंटिंग को कैनवास पर उतारा है. विज्ञान और प्रोद्योगिकी मंत्री डाॅ हर्ष वर्धन ने 16 फरवरी को इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया. इसी के साथ ही तीन दिन की फोटोग्राफी तथा पेंटिंग प्रदर्शनी की शुरूआत हुई. डाॅ हर्ष वर्धन ने सभी फोटो और पेंटिंग को देखा और जिन लोगों ने इनको बनाया उनकी खूब तारीफ की. डाॅ हर्ष वर्धन और अनूप साह की उपस्थिति में डा चिराग उप्रेती की पुस्तक ‘अमेजिंग नाइट स्काई’ का विमोचन कि...
सन् 1848 : सिक्किम की अज्ञात घाटी में

सन् 1848 : सिक्किम की अज्ञात घाटी में

इतिहास
- जोसेफ डाल्‍टन हूकर कम्‍बचैन या नांगो के विपरीत दिशा को जाने वाली घाटी की ओर उसी नाम से पर्वत के दक्षिणी द्वार के ऊपर एक हिमोढ़ (Moraine) से कुछ मील नीचे एक चीड़ के जंगल में हमने रात बिताई. यह रिज यांगमा नदी को कम्‍बचैन से अलग करती है. यांगमा आगे लिलिप स्‍थान के समाने तम्‍बूर नदी में गिरती है. यांगमा नदी लगभग 15 फीट चौड़ी है और रास्‍ता नदी के उस पार दक्षिण की खड़ी चढ़ाई से होता हुआ हिमन द्वारा लाए गए मलवे पर पहुंचता है. यहां पर घने बुरांश, चमखड़ीक (पहाड़ी ऐस), पुतली (मेपल) के पेड़ और जूनीपर की झाड़ियां आदि चारों ओर फैली हैं. जमीन पर भोजपत्र की रजत छाल व बुरांश के फूलों की मुलायम पंखुड़ियां, जो टिश्‍यू पेपर सी पाण्‍डु रंग की हैं, बिछी हुई हैं. मैंने इस प्रकार की बुरांश प्रजाति पहले कभी नहीं देखी है. इसके हरे चटकीले पत्‍ते, जो 16 इंट लंबे हैं, के सौंदर्य को देखकर मैं चकित रह गया. पेड़ों ...
पलायन की पीड़ा को प्रोडक्शन में बदलेंगे : जेपी

पलायन की पीड़ा को प्रोडक्शन में बदलेंगे : जेपी

अभिनव पहल
- प्रेम पंचोली केसर का नाम सुनते ही लगता है बात जम्मू-कश्मीर की हो रही है. अपने देश में केसर की खेती सिर्फ जम्मू-कश्मीर में होती है. लेकिन अब लोगों ने नए—नए प्रयोग (अनुसंधान) करके केसर को अपने गमलों तक ला दिया. हालांकि गमलों में यह प्रयोग सफल तो नहीं हुआ, मगर केसर की खेती का प्रचार-प्रसार जरूर बढा. देहरादून में सहस्रधारा के पास एक गांव में कैप्टन कुमार भण्डारी वैद्य केसर की खेती कर रहे है. उनका यह परीक्षण सफल रहा है. कह सकते हैं कि प्राकृतिक संसाधनो से परिपूर्ण उत्तराखण्ड राज्य में यदि केसर की खेती को राज्य सरकार बढावा दें तो यह राज्य धन-धान्य हो सकता है. खैर! केसर की खेती के नफा-नुकसान पर वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता जगतम्बा प्रसाद ने एक रिपोर्ट निकाली है. वे अपनी रिपोर्ट के मार्फत बता रहे हैं कि ‘केसर खेती’ इस राज्य का भविष्य बना सकती है. हालांकि यह काम बहुत ही मंहगा है. इतिहा...
सन् 639 : हिमालय की तलहट में ह्वेनसांग 

सन् 639 : हिमालय की तलहट में ह्वेनसांग 

इतिहास
(गुरु पद्मसंभव की तिब्‍बत यात्रा से पूर्ण मध्‍य एशियाई बौद्ध समाज में कई मत-मतांतरों का जन्‍म हो चुका था. ह्वेनसांग मूलत: चीन के तांग राजवंश का बौद्ध धर्म गुरु था. चीन में तब महायान और हीनयान दो मुख्‍य बौद्ध धाराएं थीं. जीवन शाश्‍वत है या नहीं, इस विषय पर इन दोनों में गहरा मतभेद था. पुनर्जन्‍म तथा ऐसे अनेकानेक पक्षों पर गहराते मतभेदों को स्‍पष्‍ट करने की मंशा लेकर ह्वेनसांग बौद्ध की जन्‍मस्‍थली भारत की यात्रा पर निकला. ह्वेनसांग नंगा पर्वत की कोख में बसे चित्राल-उदयन से लेकर बल्तिस्‍तान, तक्षशिला, पुंछ, राजौरी, जम्‍मू, कुल्‍लू तक और वर्तमान  उत्‍तराखंड के पाद प्रदेश से लेकर उत्‍तर पूर्व हिमालय में बसे कामरूप शासक भाष्‍करबर्मन के दरबार तक पहुंचा. उत्‍तर भारत में तब हर्षवर्धन का साम्राज्‍य था. हर्षवर्धन की राजधानी में उसे पूर्ण राजकीय सम्‍मान मिला. भारत में रहकर उसने बौद्ध धर्म कें सभी मत्‍व...
गढ़वाल में बद्री-केदार तो कुमाऊं में प्रसिद्ध है छिपला केदार

गढ़वाल में बद्री-केदार तो कुमाऊं में प्रसिद्ध है छिपला केदार

धर्मस्थल
— दिनेश रावत भारत भू-भाग का मध्य हिमालय क्षेत्र विभिन्न देवी-देवताओं की दैदीप्यमान शक्ति से दीप्तिमान है। इसी मध्य हिमालय के लिए ‘हिमवन्त’ का वर्णन किया गया है. धार्मिक साहित्य यथा ‘केदारखंड’ (अ.101) में ‘हिमवत्-देश’ कभी केवल केदारदेश को ही माना गया है. हिमवन्त  के अंतर्गत अनेक पर्वतों का वर्णन है। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं— 1 गन्धमादनपर्वत— यह बदरिकाश्रम से संबद्ध गढ़वाल का महा-हिमवन्त है। ‘कैलासपर्वत श्रेष्ठे गन्धमादनपर्वत’ (केदारखण्ड, अ. 60). हरिवंश पुराण के अनुसार यह राजा पुरूरवा और गान्धर्वी उर्वशी का रमण-स्थल माना गया है. तीर्थयात्रा काल के दौरान पांडवों ने यहां प्रवेश किया था, जहां बदरीविशाल तथा नरनारायणाश्रम हैं. 2 शतश्रृंगपर्वत— इसे पांडु की तपस्या स्थली के रूप में जाना जाता है. संतान प्राप्ति की कामना के साथ पांडु ने इसी पर्वत पर कुन्ती व माद्री के साथ तपस्या की थी. जिसके उपरां...
बधाई हो रवांई के लाल बधाई हो…

बधाई हो रवांई के लाल बधाई हो…

अभिनव पहल
— शशि मोहन रवांल्टा नरेश भाई! रवांई का मान—सम्मान बढ़ाने के लिए आपको हार्दिक बधाई। 26 जनवरी के दिन उत्तरखंड के मुखिया के हाथों आपको 'देव भूमि रत्न' सम्मान मिलने पर बहुत ही प्रसन्नता हुई। साथ ही उत्तराखंड पत्रकार यूनियन का हार्दिक आभार जिनके द्वारा यह आयोजन आयोजित किया गया और आपका चयन इस सम्‍मान के लिए हुआ। एक साधारण-सा दिखने व्यक्ति बहुत ही असाधारण काम कर रहा है। बातों ही बातों में पता चला कि नरेश भाई रवांई घाटी से पहाड़ी खाद्यानों को वहां के किसानों से एकत्रित करके देहरादून—दिल्ली—मुंबई जैसे महानगरों में स्टॉलों के माध्यम से लोगों को पहाड़ी खाद्य सामग्री मुहैया करवाते हैं। साथ ही यह भी पता चला कि नरेश भाई से यमुना घाटी के 500 किसान सीधे जुड़े हुए हैं वैसे से तो नरेश भाई मेरे क्षेत्र रवांई घाटी से ही हैं लेकिन मेरा इनसे पहले से कोई खास परिचय नहीं था। यदि परिचय था भी तो बस इतना भर कि न...