Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
सागर से शिखर तक का अग्रदूत

सागर से शिखर तक का अग्रदूत

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी स्वामी मन्मथन जी की पुण्यतिथि पर विशेष। हमने 'क्रियेटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़' की ओर से हमेशा याद किया। हमने श्रीनगर में उनका पोस्टर भी जारी किया था। उन्हें याद करते हुये- हे ज्योति पुत्र! तेरा वज्र जहां-जहां गिरा ढहती कई दीवारें भय की स्वार्थ की, अह्म की, अकर्मण्यता की तू विद्युत सा कौंधा और खींच गया अग्निपथ अंधकार की छाती पर तुझे मिटाना चाहा तामसी शक्तियों ने लेकिन तेरा सूरज टूटा भी तो करोड़ों सूरजों में। उनकी हत्या के बाद गढ़वाल में शोक की लहर दौड़ गई। अंजणीसैंण (टिहरी गढ़वाल) में उनके द्वारा स्थापित श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के आनन्दमणि द्विवेदी ने इस कविता से अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। कौन है यह ज्योति पुत्र! निश्चित रूप से स्वामी मन्मथन। इस नाम से शायद ही कोई गढ़वाली अपरिचित हो। साठ-सत्तर के दशक में गढ़वाल में सामाजिक चेतना के अग्रदूत। एक ऐसा व्यक्तित्व ...
सामूहिक और सांस्कृतिक चेतना का मेला- स्याल्दे बिखौती

सामूहिक और सांस्कृतिक चेतना का मेला- स्याल्दे बिखौती

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी । सुप्रसिद्ध स्याल्दे-बिखौती मेला विशेष । सत्तर का दशक। 1974-75 का समय। हम बहुत छोटे थे। द्वाराहाट को जानते ही कितना थे। इतना सा कि यहां मिशन इंटर कॉलेज के मैदान में डिस्ट्रिक रैली होती थी। हमें लगता था ओलंपिंक में आ गये। विशाल मैदान में फहराते कई रंग के झंडे। चूने से लाइन की हुई ट्रैक। कुछ लोगों के नाम जेहन में आज भी हैं। एक चौखुटिया ढौन गांव के अर्जुन सिंह जो बाद तक हमारे साथ वालीबाल खेलते रहे। उनकी असमय मौत हो गई थी। दूसरे थे महेश नेगी जो वर्तमान में द्वाराहाट के विधायक हैं। ये हमारे सीनियर थे। एक थे बागेशर के टम्टा। अभी नाम याद नहीं आ रहा। उनकी बहन भी थी। ये सब लोग शाॅर्ट रेस वाले थे। अर्जुन को छोड़कर। वे भाला फेंक, चक्का फेंक जैसे खेलों में थे। महेश नेगी जी का रेस में स्टार्ट हमें बहुत पसंद था। वे स्पोर्टस कालेज चले गये। बाद में राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी जीते। हम ...
अलौकिक प्राकृतिक सुंदरता का खजाना-बण्डीधूर्रा ट्रैक

अलौकिक प्राकृतिक सुंदरता का खजाना-बण्डीधूर्रा ट्रैक

पर्यटन
कम और ना जाने, जाने वाले ट्रैंकिंग रूट – पार्ट-1 जे. पी. मैठाणी ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है पर्यटक स्थल पीपलकोटी। पीपलकोटी को एक वर्ष पूर्व ही नगर पंचायत बनाया गया। इसकी उत्तर पश्चित दिशा में अलकनन्दा नदी है और इसके आसपास विस्तारित है एक बड़ी घाटी जिसमें कई ग्राम पंचायत हैं। हालांकि पीपलकोटी को बद्रीनाथ एवं हेमकुण्ड का प्रमुख पड़ाव माना जाता है लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि पीपलकोटी के आसपास कई शानदार रोचक कम जाने जाने वाले ट्रैकिंग रूट्स हैं। इन्हीं में से एक बेहद रोमांचक थोड़ा कठिन लेकिन शानदार ट्रैकिंग रूट है पीपलकोटी बण्डीधूर्रा लाॅर्ड कर्जन पास ट्रैक। पीपलकोटी में बायोटूरिज़्म पार्क से नौरख, सल्ला-सोड़ियाणी तक ट्रैकिंग रूट सामान्य है और अधिकतर गाँव के बीच से होकर गुजरता है। सल्ला-सोड़ियाणी तक बीच में पानी के जल स्रोत हैं लेकिन स...
सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
दिनेश रावत रवाँई लोक महोत्सव ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है। लोक की सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित एवं संवर्धित करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला ‘रवाँई लोक महोत्सव’ ‘अनेकता में एकता’ का भाव समेटे रवाँई के ठेठ फते-पर्वत, दूरस्थ बडियार, सीमांत सरनौल व गीठ पट्टी के अतिरिक्त सुगम पुरोला, नौगांव, बड़कोट के विभिन्न ग्राम्य क्षेत्रों से आंचलिक विशिष्टतायुक्त परिधान, आभूषण, गीत, संगीत व नृत्यमयी प्रस्तुतियों के माध्यम से रवाँई का सांस्कृतिक वैशिष्टय मुखरित करता है। इस महोत्सव का प्रयास समूचे रवाँई के दूरस्थ ग्राम्य अंचलों से लोकपरक प्रस्तुत...
उनके जाने का अर्थ एक समय का कुछ पल ठहर जाना

उनके जाने का अर्थ एक समय का कुछ पल ठहर जाना

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्यिक-हलचल
डॉ. हेमचन्द्र सकलानी जब भी उनको फोन करता तो बड़ी देर तक उनके आशीर्वादों की झड़ी लगी रहती थी जो मेरी अंतरात्मा तक को भिगो जाती थी। वो उत्तराखंड की वास्तव में अनोखी ज्ञानवर्धक विभूति थीं। 6 मार्च को उत्तराखंड की विभूति वीणा पाणी जोशी जी के निधन का जब सामाचार मिला तो हतप्रभ रह गया। तीन माह पूर्व उनसे बसंत विहार में मिलने पहुंचा था, पता चला था गिरने के कारण कुछ अस्वस्थ हैं। यूं तो लगभग तीस वर्षों से उनसे परिचय था निरंतर संपर्क में भी था। एक पत्रिका ने उनके बारे में मुझसे कुछ जानना चाहा था तो मुझे भी मिलने की उत्सुकता थी। मुझे पहचानने में उन्हें एक दो मिनट का समय लगा। ध्यान आते ही उनका पहला प्रश्न था लेखन कैसा चाल रहा है और स्वास्थ कैसा है। दस वर्ष पूर्व जब से उन्हें पता चला था मेरा ऑपरेशन हुआ है तो स्वास्थ के सम्बन्ध में हमेशा पहले पूछती बाकी बातें बाद में होती। मुझे याद है सी.एम.आई.मे...
पहाड़ की अनूठी परंपरा है ‘भिटौली’

पहाड़ की अनूठी परंपरा है ‘भिटौली’

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति
दीपशिखा गुसाईं मायके से विशेष रूप से आए उपहारों को ही ‘भिटौली’ कहते हैं। जिसमें नए कपड़े, मां के हाथों  से बने कई तरह के पकवान आदि  शामिल हैं। जिन्हें लेकर भाई अपनी बहिन के घर ले जाकर उसकी कुशल क्षेम पूछता है। एक तरफ से यह त्यौहार भाई और बहिन के असीम प्यार का द्योतक भी है। पहाड़ की अनूठी परंपरा ‘भिटौली’ ‘अब ऋतु रमणी ऐ गे ओ चेत क मेहना,  भटोई की आस लगे आज सोरास बेना...’ यह गीत सुन शायद सभी पहाड़ी बहिनों को अपने मायके की याद स्वतः ही आने लगती है, ‘भिटौली’ मतलब भेंट... कुछ जगह इसे ‘आल्यु’ भी कहते हैं। चैत माह हर एक विवाहिता स्त्री के लिए विशेष होता है। अपने मायके से भाई का इंतजार करती, उससे मिलने की ख़ुशी में बार—बार रास्ते को निहारना... हर दिन अलसुबह उठकर घर की साफ—सफाई कर अपने मायके वालों के इंतजार में गोधूलि तक किसी भी आहट पर बरबस ही उठखड़े होना शायद कोई आया हो। मायके से विशेष रू...
मेरी फूलदेई मेरा बचपन 

मेरी फूलदेई मेरा बचपन 

उत्तराखंड हलचल, पर्यावरण, साहित्‍य-संस्कृति
प्रकाश चंद्र पहाड़ का जीवन, सुख- दुःख और हर्षोउल्लास सब समाया होता है। जीवन का उत्सव प्रकृति का उत्सव है और प्रकृति, जीवन का अविभाज्य अंग। इसलिए पहाड़ी जीवन के रंग में प्रकृति का रंग घुला होता है। बिना प्रकृति के न जीवन है न कोई उत्सव और त्यौहार। पहाड़ों की रौनक उसके जीवन में है। पहाड़ों का जीवन उसके आस-पास प्रकृति में बसा है। हर ऋतु में पहाड़ों की रौनक, मिज़ाज, खिलखिलाहट अद्भुत एवं रमणीय होती है। इसी में पहाड़ का जीवन, सुख- दुःख और हर्षोउल्लास सब समाया होता है। जीवन का उत्सव प्रकृति का उत्सव है और प्रकृति, जीवन का अविभाज्य अंग। इसलिए पहाड़ी जीवन के रंग में प्रकृति का रंग घुला होता है। बिना प्रकृति के न जीवन है न कोई उत्सव और त्यौहार। पहाड़ों में लंबी सर्दी और बर्फबारी के बाद वसंत के आगमन का संकेत पहाड़ों पर खिलने वाले लाल, हरे, पीले, सफेद, और बैंगनी फूलों से मिल जाता है। अब तक बर्फ की सफे...
बैराट खाई: जहां आज भी हैं राजा विराट के महल का खंडहर

बैराट खाई: जहां आज भी हैं राजा विराट के महल का खंडहर

इतिहास, उत्तराखंड हलचल, हिमालयी राज्य
मत्स्य देश यहां पांडवों ने बिताया था एक वर्ष का अज्ञातवास स्व. राजेंद्र सिंह राणा ‘नयन’ देहरादून जिले के पर्वतीय क्षेत्र जौनसार परगने में बैराट खाई नामक एक स्थान है। यह स्थान मसूरी-चकराता मार्ग पर मसूरी से 50 किमी., चकराता से 23 किमी. तथा हल्के वाहन मार्ग पर हरिपुर-कालसी से 30 किमी. की दूरी पर है। मसूरी-चकराता अथवा विकासनगर-लखवाड़ -चकराता मार्ग पर नियमित बस सेवा लखवाड़ से आगे नहीं है। मात्र इक्का-दुक्का जीपों या हल्के वाहन हरिपुर-कालसी होकर अथवा चकराता की ओर से चलते हैं। पर्यटकों को निजी अथवा टैक्सी आदि से जाना सुविधाजनक है। ठहरने और रात्रिविश्राम हेतु नागथात ही उपयुक्त स्थान है। बैराट खाई - नागथात से 4 किमी. आगे दोनों ओर बांज, बुराश आदि के सघन वन के मध्य से होते हुए एक सुरम्य घाटी में बैराट खाई नामक यह स्थान एक चतुष्पथ पर स्थित है। मसूरी-चकराता मार्ग से एक मार्ग हरिपुर-विकासनगर ...
बानर गीज गो…

बानर गीज गो…

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति
नीलम पांडेय ‘नील’ रामनगर, भाभर के जंगलों में जड़ी बूटी खोजते हुए मेरी माकोट की आमा मालू की उझली हुई बेलों से कभी-कभी उसके फल भी तोड़ती थी। कहती थी मालू की झाल में बंदर और भालू रहते हैं क्योंकि इसके अंदर धूप, सर्दी, पानी का असर कम होता है। मालू का फल जो कि थोड़ा लंबे आकार की फली के रूप में होता है जिसको हम टाटा कहते थे। वे इसे घर ले आती थी, कहती थी इसके बीज को भूनकर खाने से, ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बहुत बढ़ाते हैं। घर आकर आमा उन लंबी आकार की फलियों को आग में खूब अच्छे से भूनती, भून जाने से फली दो फ़ाड़ में बंट जाती तो उसमें से जो बीज निकलते थे, वे बीज थोड़े आकार में बड़े और खाने में बहुत स्वादिष्ट होते थे. पहले के समय के लोग जब चप्पल नहीं होती थी तो पैरों में इन्हीं फलियों के दो फाड़ को मालू की टहनियों के कच्चे रेशे को रस्सी की तरह बटकर फलियों के दोनों फाड़ो में चप्पल की ...
अच्छी किस्म का बीज ने मिलने से काश्तकार लाचार

अच्छी किस्म का बीज ने मिलने से काश्तकार लाचार

उत्तराखंड हलचल, समसामयिक
डा० राजेंद्र कुकसाल जिन सपनों को लेकर पहाड़ी राज्य की स्थापना की गई थी, वे सपने आज भी सपने बन कर रह गये है उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में, नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है। विभागीय आकड़ों के अनुसार 4876 हैक्टियर में अदरक की कास्त की जाती है, जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है।  अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं- 1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल । 2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा। 3- डॉ. यशवंत सिंघ परमार युनिवर्सिटी ऑफ़ हॉर्टिकल्चर एंड फोरेस्ट्री, नौणी सोलन, हिमाचल प्रदेश उद्यान विभाग विगत 20 - 30 बर्षो से 10 से 15 करोड़ रुपए का अदरक बीज उत्तर पूर्वी राज्यों से दलालों के माध्यम से मंगाता आ रहा है, यह बीज कृषकों को न तो समय पर मिलता है और न ही इस बीज से अच्छी उपज प्राप्त होती है किन्तु उद्...