गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर
रंग यात्रा भाग—1
महावीर रवांल्टा
जीवन में पहली बार कब मुझे रामलीला या पौराणिक नाटक देखने का अवसर मिला होगा, कैसे मुझे उनमें रुचि होने लगी, इस समय यह बता पाना मुश्किल है लेकिन मेरी स्मृति में इतना जरूर दर्ज है कि महरगांव में अपने घर के बरांडे के नीचे ओबरों से बाहर की जगह पर हमने रामलीला की शुरुआत की थी. इसमें हमारे पड़ोस में रहने वाले भट्ट परिवार के बच्चे भी शामिल हुए थे. निश्चित तौर पर यह रामलीला हमारे अपनी समझ से उपजे संवाद एवं अभिनय के सहारे आगे बढ़ी होगी मुझे ऐसा लगता है.
इस रामलीला की इतनी चर्चा हो पड़ी थी कि हमारे व आसपास के गांव के किशोर भी इसमें शामिल हुए. हमारे घर के बाहर के आंगन मे इसे खेला गया था. घर में उपलब्ध माता जी की धोतियों का पर्दे के रूप में इस्तेमाल हुआ था. घर में उपलब्ध सामग्री व वेशभूषा के साथ ही गत्ते से बनाए गए मुकुट, लकड़ी के धनुष बाण और तलवार सभी ने अपनी स...