Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप से दिलाएगी मुक्ति : नई शिक्षा नीति-2020

लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप से दिलाएगी मुक्ति : नई शिक्षा नीति-2020

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-5 डॉ गीता भट्ट  मातृभाषा से शिक्षा देने के महत्व को महात्मा गांधी ने इस प्रकार व्यक्त किया है “मां के दूध के साथ जो संस्कार और मीठे शब्द मिलते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिये, वह विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से टूट जाता है. इस संबंध को तोड़ने वालों का उद्देश्य पवित्र ही क्यों न हो, फिर भी वे जनता के दुश्मन हैं.” आज अगर गांधी होते, तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की समग्रता और राष्टीय चेतना से संचित रूपरेखा देख अत्यंत संतुष्ट होते. 34 वर्षों के उपरांत एक नीति जो रचनांतर होने के साथ-साथ शैक्षणिक मापदंडों में एक नयी सोच को लायी है और आने वाले समय में शिक्षा पर लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप को मूलतः भारतीय करने में मील का पत्थर साबित होगी. शिक्षा नीति पर विमर्श और प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी. शिक्षा मंत्री रमेश...
करछी में अंगार

करछी में अंगार

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—16 रेखा उप्रेती कुछ अजीब-सा शीर्षक है न… नहीं, यह कोई मुहावरा नहीं, एक दृश्य है जो कभी-कभी स्मृतियों की संदूकची से बाहर झाँकता है… पीतल की करछी में कोयले का अंगार ले जाती रघु की ईजा… जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती… अपने घर की ओर जाती ढलान पर उतर रही है, बहुत सम्हल कर… कि करछी से अंगार गिरे भी नहीं और बुझे भी नहीं. चूल्हा कैसे जलेगा वरना… तीस-चालीस साल पहले जो पहाड़ में रह चुके हैं या बचपन पहाड़ों में बिताया है, उनके लिए यह दृश्य अपरिचित नहीं होगा. चूल्हे में आग बचाकर रखना या ज़रुरत पड़ने पर दूसरे घरों से आग जलाने के लिए जलता कोयला ले जाना, उस वक़्त की ज़रुरत भी थी और सीमित संसाधनों के बीच एक ऐसी जीवन-शैली का उदाहरण भी, जहाँ मामूली से मामूली वस्तु भी ‘यूज़ एंड थ्रो’ की ‘कैटेगरी’ में नहीं थी. मुझे याद है सुबह का भोजन बन जाने के बाद अधजली लकड़ियों को बुझा कर अलग रख दिया ज...
पहाड़ और परोठी…

पहाड़ और परोठी…

साहित्‍य-संस्कृति
आशिता डोभाल पहाड़ों की संस्कृति में बर्तनों का एक अलग स्थान रहा है और ये सिर्फ हमारी संस्कृति ही नहीं हमारी धार्मिक आस्था का केंद्र भी रहे है, जिसमें हमारी सम्पन्नता के गहरे राज छुपे होते हैं. धार्मिक आस्था इसलिए कहा कि हमारे घरों में मैंने बचपन से देखा कि दूध से भरे बर्तन या दही, मठ्ठा का बर्तन हो उसकी पूजा की जाती थी और खासकर घर में जब नागराजा देवता (कृष्ण भगवान) की पूजा होती है, तो घर में निर्मित धूप (केदारपाती, घी,मक्खन) का धूपाणा इन बर्तनों के पास विशेषकर ले जाकर पूजा की जाती थी, जिससे हमें कभी भी दूध दही की कमी न हो और न हुई. हमारे घर में 6, 4, 2 सेर की एक, एक परोठी हुआ करती थी और मठ्ठा बनाने के लिए एक बड़ा—सा जिसे स्थानीय बोली में परेडू कहा जाता है, होता था और मठ्ठा मथने की एक निश्चित जगह होती थी, उस जगह पर मथनी, रस्सी और दीवार पर मकान बनाते समय ही दो छेद बनाए जाते हैं, जिस...
“लॉर्ड  मैकाले की कैद से मुक्ति दिलाती नई शिक्षा नीति” 

“लॉर्ड  मैकाले की कैद से मुक्ति दिलाती नई शिक्षा नीति” 

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-4 डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा “अरुण” लगभग 34 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और कर्मठ केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल “निशंक” के प्रयासों के परिणाम स्वरूप भारत को नई शिक्षा नीति के रूप में वस्तुतः 'लॉर्ड मैकाले की मानसिक कैद' से मुक्ति मिली है. माननीया श्रीमती इंदिरा गाँधी की निर्मम हत्या के बाद जब उनके सुपुत्र श्री राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने, तो उनके दिमाग में शिक्षा का कोई रूप अगर था, तो वह था “दून स्कूल, देहरादून” की अंग्रेजी से लदी-फदी 'कान्वेंट' की शिक्षा का और उन्होंने इसी लिए भारत को एक बार फिर से विदेशी अवधारणा के अनुसार चलाने का स्वप्न संजोया. उस समय राजीव गाँधी के सलाहकार थे सैम पित्रोदा, जो स्वयं विदेशी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे. इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के “शिक्षा मंत्रालय” का नाम ...
पाथा: पहाड़ी मानक पात्र

पाथा: पहाड़ी मानक पात्र

साहित्‍य-संस्कृति
विजय कुमार डोभाल पहाड़ में गांववासी अपने उत्पादन (अनाज, दालें, सब्जी या दूध -घी) आदि से यह अनुमान लगाते थे कि उनके पास अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए यह काफी होगा कि कुछ कमी हो सकती है. ‘मापन’ की कोई व्यवस्था न होने से वे किसी से उधार न तो ले सकते थे और न दे सकते थे. धीरे-धीरे सभ्यता के विकास के साथ ‘मापन -पात्रों’ की खोज भी हुई जिससे आदान-प्रदान सरल हो गया. प्रसिद्ध पहाड़ी कहावत- ‘नाता बढ़ा कि पाथा’ से भी पाथे की मापन क्षमता का पता चलता है. हमारे गांव में नाप-तौल के लिए बाट-तराजू का प्रयोग बहुत सीमित होता है क्योंकि बाट-तराजू कुछ ही परिवारों के पास होता है जबकि प्रत्येक परिवार के पास पूर्वजों की धरोहर के रूप में कई मापन-पात्र सुरक्षित तथा कार्यकारी अवस्था में हैं. हमारे जिस पात्र में जितना अनाज या द्रव पदार्थ समाता है उसे उसकी धारिता कहते हैं. यह मापन-पात्र मुट्ठी, अदुड़ी, माणी (सेर), ...
पहाड़ों में ‘छन’ की अपनी दुनिया

पहाड़ों में ‘छन’ की अपनी दुनिया

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—42 प्रकाश उप्रेती आज बात "छन" की. छन मतलब गाय-भैंस का घर. छन के बिना घर नहीं और घर के बिना छन नहीं.  पहाड़ में घर बनाने के साथ ही छन बनाने की भी हसरत होती थी. एक अदत छन की इच्छा हर कोई पाले रहता है. ईजा को घर से ज्यादा छन ही अच्छा लगता है. उन्हें बैठना भी हो तो छन के पास जाकर बैठती हैं. छन की पूरी संरचना ही विशिष्ट थी. ईजा के लिए छन एक दुनिया थी जिसमें गाय-भैंस से लेकर 'किल' (गाय-भैंस बांधने वाला), 'ज्योड़' (रस्सी), 'अड़ी' (दरवाजे और बाउंड्री पर लगाने वाली लकड़ी) 'मोअ' (गोबर), 'कुटो'(कुदाल), 'दाथुल' (दरांती),  'डाल' (डलिया), 'फॉट' (घास लाने वाला),  'लठ' (लाठी), 'सिकोड़' (पतली छड़ी) और 'घा' (घास) आदि थे. इन्हीं में ईजा खुश रहती थीं. हम कम ही छनपन जाते थे लेकिन ईजा कभी-कुछ, कभी-कुछ के लिए चक्कर लगाती ही रहती थीं. हमें 'किल घेंटने' के लिए जरूर कहती थीं- "...
भारतीय शिक्षा में नवोन्मेष का आवाहन

भारतीय शिक्षा में नवोन्मेष का आवाहन

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-3 प्रो. गिरीश्वर मिश्र भारत विकास और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो रहा एक जनसंख्या-बहुल देश है. इसकी जनसंख्या में युवा वर्ग का अनुपात अधिक है और आने वाले समय में यह और भी बढ़ेगा जिसके लाभ मिल सकते हैं, बशर्ते शिक्षा के कार्यक्रम में जरूरी सुधार किया जाए. यह आवश्यक होगा कि कुशलता के साथ सर्जनात्मक योग्यता को भी यथोचित स्थान मिले. शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का माध्यम होती है और उसी से समाज की चेतना और मानसिकता का निर्माण होता है. कहना न होगा कि भारत के पास ज्ञान और शिक्षा की एक समृद्ध और व्यापक परम्परा रही है, किन्तु अंग्रेजी उपनिवेश के दौर में एक भिन्न दृष्टिकोण को लागू करने के लिए और साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के अनुरूप यहां की अपनी ज्ञान-परम्परा और शिक्षा-पद्धति को प्रश्नांकित करते हुए लार्ड मैकाले द्वारा निर्दिष्ट व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा थोपी गई. इसने द...
शिक्षा प्रणाली में नव-युग की आहट

शिक्षा प्रणाली में नव-युग की आहट

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-2 डॉ. अरुण कुकसाल मैकाले ने तत्कालीन गर्वनर जनरल विलियम वैंटिक को संबोधित अपने 2 फरवरी, 1935 के एक विवरण पत्र (Macaulay's Minute Of 1935) में मात्र 3 सुझाव देकर भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को बिट्रिश सरकार की जबरदस्त इच्छा-शक्ति और सार्मथ्य की साहयता से पूर्णतया बदलवा दिया था. स्वाधीनता के बाद विविध समय अन्तरालों में शिक्षा पर बनी सभी नीतियां एवं कार्यक्रम अपने समय-काल के अनुरूप और भविष्य की दूरदर्शिता की दृष्टि से उपयोगी और कारगर थे. बस, उनके क्रियान्वयन में हमारी सरकारें कमजोर से कमजोर साबित हुई हैं. नतीजन, शिक्षा के क्षेत्र में हम हर बार शून्य से आगे बढ़ने की कोशिश में लगे जैसे दिखते हैं. नई शिक्षा नीति में सहमति, असहमति और आशंकाओं के कई बिन्दु हैं. परन्तु ये सब ज्यादा मायने नहीं रखते हैं. मायने तो यह है कि देश के सभी विद्यार्थियों, शिक्षकों ...
‘धर्म की स्थापना और दुष्टों के विनाश के लिए मनुष्य का रूप धरते हैं’

‘धर्म की स्थापना और दुष्टों के विनाश के लिए मनुष्य का रूप धरते हैं’

लोक पर्व-त्योहार
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष ज्योतिर्मयी पंत कृष्ण जन्माष्टमी, कृष्ण जयंती, गोकुलाष्टमी आदि कई नामों से सुप्रसिद्ध यह दिन हिन्दुओं  का एक अति विशिष्ट पर्व है. इस दिन विष्णु भगवान ने धरती पर श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया. यह विष्णु का आठवाँ  अवतार माना जाता है. इसी दिन को कृष्ण  के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसे जन्माष्टमी भी कहा जाता है. भगवान कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि जब-जब धरती पर धर्म का ह्रास होता है. पाप और अत्याचार बढ़ जाते हैं तब-तब धर्मकी रक्षा और सज्जनों के परित्राण के लिए वह स्वयं मानव रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं ... यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति  भारत.. अभ्युथानमधर्मस्य  तदात्मानम सृजाम्यहम्   परित्राणाय साधूनाम् , विनाशाय च दुष्कृताम् . धर्म संस्थापनाय संभवामि युगे युगे. इसी कारण द्वापर युग में जब धरती पर अनेक असुर देवों और  लोगों को...
‘धर्म’ की सामाजिक विकृतियों से संवाद करते आए हैं कृष्ण

‘धर्म’ की सामाजिक विकृतियों से संवाद करते आए हैं कृष्ण

लोक पर्व-त्योहार
गीता का कालजयी चिंतन-1 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के अवसर पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व समूचे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. द्वापर युग में कंस के अत्याचार और आतंक से मुक्ति दिलाने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए इसी दिन विष्णु के आठवें अवतार के रूप में भगवान् कृष्ण ने जन्म लिया था. गीता में भगवान् कृष्ण का कथन है कि "जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तो मैं धर्म की स्थापना के लिए हर युग में अवतार लेता हूं- “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत. अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्.. परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् . धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे.."            -श्रीमद्भगवद्गीता‚ 4.7-8   गीता के परिप्रेक्ष्य में अवतार की अवधारणा यहां सज्जन के संरक्षण और दुर्जन के ...