Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
उत्‍तराखंड में कीवी की बागवानी…

उत्‍तराखंड में कीवी की बागवानी…

खेती-बाड़ी
डॉ. राजेन्द्र कुकसाल कीवी फल (चायनीज गूजबेरी) का उत्पति स्थान चीन है, पिछले कुछ दशकों से ये फल विश्वभर में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है. न्यूजीलैण्ड इस फल के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि इस देश ने कीवी फल को व्यवसायिक रूप दिया इसका उत्पादन व निर्यात न्यूजीलैंड में बहुत अधिक है. कीवी फल भारत में 1960 में सर्वप्रथम बंगलौर में लगाया गया था लेकिन बंगलौर की जलवायु में प्रर्याप्त शीतकाल (चिलिंग) न मिल पाने के कारण सफलता नहीं मिली. वर्ष 1963 में राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, क्षेत्रीय संस्थान के शिमला स्थित केन्द्र फागली में कीवी की सात प्रजातियों के पौधे आयातित कर लगाये गये जहां पर कीवी के इन पौधों से सफल उत्पादन प्राप्त किया गया. उत्तराखंड में वर्ष 1984-85 में भारत इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा टेहरी गढ़वाल में इटली के वैज्ञानिकों की देख.रेख में इटली से आयतित कीवी क...
राबर्ट तुम कहां हो

राबर्ट तुम कहां हो

किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी मैकलॉडगंज के साधना केन्द्र में बाहर घना अंधेरा छाया है. सौर ऊर्जा से जलने वाला बल्ब धीमी रोशनी से अंधेरे को दूर करने की असफल कोशिश कर रहा है. लीला नेगी साधना केन्द्र के बाहरी हिस्से में स्थित प्राकृतिक सिला पर इस हाड़ कंपाती सर्दी में बैठी है. वह दूर धौलागिरि की पहाड़ियों को देखने का असफल प्रयास कर रही है इतनी अंधेरी रात में पहाड़ियों को स्पष्ट दिखना असम्भव है परन्तु रोज-रोज इन पर्वतमालाओं को देखने की आदत के कारण वह उनकी बनावट, उनकी ऊँचाई, उन पर ढ़की बर्फ की चादर को स्पष्ट देख पा रही है. रोज ही वह इन पर्वत मालाओं को देखकर अपने अन्दर कुछ अच्छा सा महसूस करती है. बसन्त के बाद जब इन पर्वत मालाओं से बर्फ पिघलने लगती है तो पहाड़ियाँ बीच-बीच में से अपना अस्तित्व दिखाने का प्रयास करती दिखती हैं. तब वह सोचती है कि समय-समय पर वह भी इन पर्वत मालाओं की भांति अपना अस्तित्व, अपन...
‘हस्त’ नक्षत्र में ही क्यों होता है कूर्माचल के सामवेदी ब्राह्मणों का ‘उपाकर्म’?

‘हस्त’ नक्षत्र में ही क्यों होता है कूर्माचल के सामवेदी ब्राह्मणों का ‘उपाकर्म’?

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी जन्माष्टमी की भांति इस बार हरतालिका का पर्व भी दो दिन मनाया जा रहा है, 21 अगस्त को और 22 अगस्त को. वैसे कलेंडर और पंचांगों में हरतालिका तीज (हरताई) इस बार 21अगस्त की बताई गई है और 22 अगस्त को सामवेदी ब्राह्मणों का 'उपाकर्म' पर्व बताया गया है.वर्त्तमान समय में 'उपाकर्म' का अर्थ है यज्ञोपवीत धारण और रक्षासूत्र बन्धन का धार्मिक अनुष्ठान. प्रायः देखा गया है कि हरतालिका तीज और हस्त नक्षत्र एक ही तिथि को आते हैं. किन्तु इस बार ग्रह नक्षत्रों की कुछ विचित्र स्थिति चल रही है. तिथि और नक्षत्र एक दूसरे से अलग हो रहे हैं.यही कारण है कि इस बार जन्माष्टमी की तिथि को रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं मिल पाया.वैसा ही कुछ हरतालिका और हस्त नक्षत्र को लेकर भी इस साल हो रहा है.दोनों अलग अलग दिन आ रहे हैं.हरतालिका 21 अगस्त को है किंतु हस्त नक्षत्र में उपाकर्म का प्रातःकालीन मुहूर्त 22 अगस्त...
मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-8 प्रो. गिरीश्वर मिश्र देश की नई शिक्षा नीति के संकल्प के अनुकूल भारत सरकार का मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब “शिक्षा मंत्रालय” के नाम से जाना जायगा. इस पर राष्ट्रपति जी की मुहर लग गई  है और गजट भी प्रकाशित हो गया है. इस फौरी कारवाई के लिये सरकार निश्चित ही बधाई की पात्र है. यह कदम भारत सरकार की मंशा को भी व्यक्त करता है. पर सिर्फ मंत्रालय के नाम की तख्ती बदल देना काफी नहीं होगा अगर शेष सब कुछ पूर्ववत ही चलता रहेगा. आखिर पहले भी शिक्षा मंत्रालय का नाम  तो था ही. स्वतंत्र भारत में मौलाना आजाद, के एल श्रीमाली जी,  छागला साहब,  नुरुल हसन साहब और प्रोफेसर वी के आर वी राव  जैसे लोगों के हाथों में इसकी बागडोर थी और संसद में पूरा समर्थन भी हासिल  था. सितम्बर 1985 में जब ‘मानव संसाधन’ का नामकरण हुआ तो श्री पी वी नरसिम्हा राव जी प्रधानमंत्री थे और इस मंत्रालय...
महात्मा रामरत्न थपलियाल-एक गुमनाम संत और वैज्ञानिक

महात्मा रामरत्न थपलियाल-एक गुमनाम संत और वैज्ञानिक

स्मृति-शेष
डॉ. अरुण कुकसाल महात्मा रामरत्न थपलियाल जी की लिखित सन् 1930 में प्रकाशित पुस्तक 'विश्वदर्शन' को पढ़कर दो बातें एक साथ मेरे मन-मस्तिष्क में कौंधी, कि हम कितना कम जानते हैं अपने आस-पास के परिवेश को, और अपनों को. दूसरी बात कि हमारे स्थानीय समाज में अपने घर-परिवार-इलाके-समाज के व्यक्तित्वों की विद्वता एवं उनके प्रयासों-कार्यों को यथोचित सहयोग-सम्मान देने की मनोवृत्ति क्यों नहीं विकसित हो पाई है? 'विश्वदर्शन' किताब दार्शनिक जगत की बहुचर्चित रचना है. विश्चस्तर पर यह पुस्तक जानी जाती है. 'महात्मा गांधी', 'महामना मदन मोहन मालवीय', 'रवीन्द्रनाथ टैगोर', 'पुरुषोत्तम दास टंडन', 'महिर्षि अरविन्द', आदि ने इस किताब पर महत्वपूर्ण प्रशंसनीय टिप्पणियां दी हैं. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद के कल्जीखाल विकासखंड के 'चिलोली' गांव में सन् 1901 में जन्मे, बड़े हुए और आजीवन अपने गांव में रहे महात्मा रामरत्...
जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

पुस्तक-समीक्षा
कॉलम: किताबें कुछ कहती हैं... प्रकाश उप्रेती इस किताब ने 'भाषा में आदमी होने की तमीज़' के रहस्य को खोल दिया. 'काशी का अस्सी' पढ़ते हुए हाईलाइटर ने दम तोड़ दिया. लाइन- दर- लाइन लाल- पीला करते हुए because कोई पेज खाली नहीं जा रहा था. भांग का दम लगाने के बाद एक खास ज़ोन में पहुँच जाने की अनुभूति से कम इसका सुरूर नहीं है. शुरू में ही एक टोन सेट हो जाता और फिर आप उसी रहस्य, रोमांस, और औघड़पन की दुनिया में चले जाते हैं. यह उस टापू की कथा है जो सबको लौ... पर टांगे रखता है और उसी अंदाज में कहता है- "जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में". ज्योतिष "धक्के देना और धक्के खाना, जलील करना और जलील होना, गालियां देना और गालियां पाना औघड़ संस्कृति है. अस्सी की नागरिकता के मौलिक अधिकार और कर्तव्य. because इसके जनक संत कबीर रहे हैं और संस्थापक औघड़  कीनाराम. चंदौली के गांव से नगर आए एक आप्रवासी संत....
‘वड’ झगडै जड़

‘वड’ झगडै जड़

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—43 प्रकाश उप्रेती आज बात “वड” की. एक सामान्य सा पत्थर जब दो खेतों की सीमा निर्धारित करता है तो विशिष्ट हो जाता है. 'सीमा' का पत्थर हर भूगोल में खास होता है. ईजा तो पहले से कहती थीं कि-because “वड झगडै जड़” (वड झगड़े का कारण). 'वड' उस पत्थर को कहते हैं जो हमारे यहाँ दो अलग-अलग लोगों के खेतों की सीमा तय करता है. सीमा विवाद हर जगह है लेकिन अपने यहाँ 'वड' विवाद होता है. पहाड़ में वाद-विवाद और 'घता-मघता' (देवता को साक्षी मानकर किसी का बुरा चाहना) का एक कारण 'वड' भी होता था. ईजा के जीवन में भी वड का पत्थर किसी न किसी रूप में दख़ल देता था . ज्योतिष जब भी परिवार में भाई लोग “न्यार” (भाइयों के बीच बंटवारा) होते थे तो जमीन के बंटवारे में, वड से ही तय होता था कि इधर को तेरा, उधर को मेरा. 'पंच', खेत को नापकर बीच because में वड रख देते थे. यहीं से तय हो जाता था...
“पहाड के गांधी” और उत्तराखंड आंदोलन के जन नायक इंद्रमणि बडोनी      

“पहाड के गांधी” और उत्तराखंड आंदोलन के जन नायक इंद्रमणि बडोनी      

स्मृति-शेष
बडोनी जी की पुण्यतिथि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 18 अगस्त को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में ‘पहाड के गांधी’ के रूप में याद किए जाने वाले श्री इन्द्रमणि बडोनी जी की पुण्यतिथि है. मगर दुःख के साथ कहना पड़ता है कि उत्तराखंड की जनता के द्वारा इस जन नायक की पुण्यतिथि जिस कृतज्ञतापूर्ण हार्दिक संवेदनाओं के साथ मनाई जानी चाहिए उसका अभाव ही नजर आता है. इससे सहज में ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड की राजनीति आज किस प्रकार की विचारशून्य, स्वार्थपूर्ण और निराशा के दौर से विचरण कर रही है? इतिहास साक्षी है कि जो कौम या समाज अपने स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुला देता है, वह ज्यादा दिनों तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकता. उत्तराखंड की सम्पूर्ण जनता अपने महानायक के पीछे लामबन्द हो गयी थी. बीबीसी ने तब कहा था, ‘‘यदि आपने जीवित एवं चलते फिरते गांधी को देखना है तो...
पलायन का दर्द

पलायन का दर्द

किस्से-कहानियां
पार्वती जोशी ओगला में बस से उतरते ही पूरन और उसके साथी पैदल ही गाँव की ओर चल दिए. सुना है अब तो गाँव तक सड़क बन गई है. मार्ग में अनेक परिचित गाँव मिले; जिन्हें काटकर सड़क बनाई गई है . वे गाँव अब बिल्कुल उजड़ चुके हैं. वे गाँव वाले सरकार से अपने खेतों का मुआवज़ा लेने के लिए गाँव आए होंगे; उसके बाद किसी ने गाँव की सुध भी नहीं ली होगी. जो लोग गाँव छोड़कर नहीं जा पाए, दूर-दूर उनके खंडहर नुमा घर दिखाई दे रहे हैं. दूसरों को क्या दोष दें ,वे लोग भी तो आठ साल बाद गाँव लौट रहे हैं. अभी भी कहाँ लौट पाते, अगर करोना नाम की महामारी ने मुम्बई शहर को पूरी तरह से अपने चपेट में नहीं ले लिया होता. एक तरह से वे लोग जान बचाकर ही भागें हैं. पूरन सोच रहा है कि जिस स्कूल में उन्हें क्वॉरंटीन में रखा जाएगा,वहीं से तो कक्षा पाँच पास करके वह हरिद्वार भाग गया था. वहीं के गुरुकुल महाविद्यालय से पूर्व मध्यमा...
प्राकृतिक आपदाओं से कराहते लोग…

प्राकृतिक आपदाओं से कराहते लोग…

संस्मरण
बंगाण क्षेत्र की आपदा का एक वर्ष… लोगों का दर्द और मेरे पैरों के छाले… आशिता डोभाल बंगाण क्षेत्र का नाम सुनते ही मानो दिल और दिमाग पल भर के लिए थम से जाते हैं  क्योंकि बचपन से लेकर आजतक न जाने कितनी कहानियां, दंत कथाएं वहां के सांस्कृतिक और धार्मिक परिवेश पर सुनी हैं, बस अगर कहीं कमी थी, तो वो ये कि वहां की सुन्दरता और सम्पन्नता को देखने का मौका नहीं मिल पा रहा था जो सौभाग्यवश इस भ्रमण के दौरान देखने को भी मिल गया था. विगत वर्ष दिनांक 17.08.19 व 18.08.19 को बारिश के कहर से पूरी बगांण वैली का तबाह होना या यूं कहें कि एक पूरी सभ्यता की रोजी-रोटी (स्वरोजगार) के साधनों का तबाह होना किसी भी सभ्यता के लिए अच्छे संकेत तो बिल्कूल भी नहीं थे, साधन विहीन हो चुकी बगांण वैली इस वेदना से गुजर रही थी, जिसकी चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं था. आसमान का कहर उनका इतने कम समय में सब कुछ खत्म कर देगा,...