Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
चारधाम परियोजना पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते चारधाम घाटियों के लोग

चारधाम परियोजना पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते चारधाम घाटियों के लोग

समसामयिक
एकजुट राज्य चारधाम हाई पावर कमेटी ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर खुशी जताई हिमांतर ब्‍यूरो एकजुट राज्य चारधाम हाई पावर कमेटी एवं उत्तराखंड की आम जनता, विशेषकर प्रांत के ग्रामीण निवासी और चारधाम परियोजना सड़क चौड़ीकरण के पर्यावरणीय और सामाजिक सरोकारों को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 8 सितम्बर, 2020 के इस विषय में आए निर्णय का स्वागत करते हैं. परियोजना के अन्तर्गत प्रस्तावित सड़क की चौड़ाई रोड ट्रांसपोर्ट so अपने खुद के 5.5 मीटर सड़क के पैमाने को ताक पर रख कर 12मीटर (डबल लेंन पेव शोल्डर) के मानक पर तूल देते हुए जिस तरह अंधाधुन पहाड़ खोद रहे थे, उस पर न्यायलय द्वारा रोक लगाते हुए, MoRTH के खुद के मानक को स्वीकारने का और सही मानक के आधार पर पहाड़ काटने का फैसला बहुत सराहनीय है. ज्ञात ज्ञात हो कि केंद्र व राज्य सरकार पहाडी मानकों के विपरीत अपने मनमाने तरीके से इस परि...
हिंदी का श्राद्ध अर्थात ‘हिंदी दिवस’  

हिंदी का श्राद्ध अर्थात ‘हिंदी दिवस’  

शिक्षा
हिन्‍दी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष प्रकाश उप्रेती हर वर्ष की तरह आज फिर से हिंदी पर गर्व और विलाप का दिन आ ही गया है. हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों को इस दिन कई जगह ‘जीमना’ होता है. मेरे एक शिक्षक कहा करते थे कि “14 सितंबर को हिंदी का श्राद्ध होता है और हम जैसे  हिंदी के पंडितों का यही दिन होता जब हम सुबह से लेकर शाम तक बुक रहते हैं”. कहते तो सही थे. because इन 67 वर्षों में हिंदी प्रेत ही बन चुकी है. तभी तो स्कूल इसकी पढाई कराने से डरते हैं और अभिभावक इस भाषा को पढ़ाने में संकोच करते हैं. सरकार ने इसके लिए खंडहर बना ही रखा है. अब और कैसे कोई भाषा प्रेत होगी. because हिंदी का बूढ़ा और नौजवान विद्वान (वैसे तो हिंदी पट्टी का हर व्यक्ति अपने को हिंदी का विद्वान माने बैठा होता है) जिसको की विद्वान होने की मान्यता विश्वविद्यालयों में चलने वाले हिंदी के विभाग, राजेन्द्र यादव इन्हें ‘ज्ञा...
दक्षिणी राज्यों का दबाव नहीं बल्कि राजनीतिक साजिश का शिकार हुई हिन्दी

दक्षिणी राज्यों का दबाव नहीं बल्कि राजनीतिक साजिश का शिकार हुई हिन्दी

शिक्षा
हिन्‍दी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष भुवन चन्द्र पन्त  सामान्य हिन्दी प्रेमी के मानस पर यह प्रश्न अवश्य उभरता होगा कि जब भारत सम्प्रभु राष्ट्र है, इसका अपना संविधान है, जो हमारी संविधान सभा द्वारा स्वयं तैयार किया गया, 100 करोड़ से भी अधिक लोग हिन्दी जानते हैं और हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने के पक्षधर हैं, फिर वे कौन से कारण हैं, जो आजादी के 73 साल बाद भी हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं दे पाये. सोचना स्वाभाविक है, जब देश धारा 370 जैसे विवादित अनुच्छेद को समाप्त कर सकता है तो हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने के because लिए संवैधानिक संशोधन में अड़चन क्या है? आम आम हिन्दी प्रेमी हो अथवा सत्ता पर बैठे राजनेता हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान न मिलने पर अपनी व्यथा व्यक्त करते नहीं चूकते, विशेष रूप से हिन्दी दिवस soके मौके पर. जब सत्ता में बैठे लोग ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा क...
प्रशासनिक हिन्दी शब्दावली के शब्द शिल्पी डॉ. नारायण दत्त पालीवाल

प्रशासनिक हिन्दी शब्दावली के शब्द शिल्पी डॉ. नारायण दत्त पालीवाल

शिक्षा
हिन्‍दी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी 14 सितम्बर का दिन समूचे देश में 'हिन्‍दी दिवस' के रूप में मनाया जाता है. आजादी मिलने के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्‍दी को राजभाषा बनाने का फैसला लिया गया था. तब से हर साल 14 सितंबर को हिन्‍दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन सरकारी विभागों में राजभाषा हिन्‍दी के प्रचार-प्रसार के प्रति संकल्प को दुहराते हुए सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा बहुत धूमधाम से 'हिन्‍दी दिवस' समारोह का आयोजन किया जाता है. इस समारोह का भविष्य के लिए संकल्प का जितना महत्त्व है and उतना ही इसका यह भी महत्त्व है कि हिन्‍दी के प्रचार-प्रसार और सरकारी काम-काज में हिन्‍दी के अधिकाधिक प्रोत्साहन देने और इसे व्यवहार में उपयोगी बनाने के लिए विद्वानों द्वारा अब तक किए गए प्रयासों का सिंहावलोकन भी किया जाए. सरकारी इसी परिप्रेक्ष्य में हम आज हिन्‍...
माता सुंदरी कॉलेज में संकाय संवर्धन कार्यक्रम का आयोजन

माता सुंदरी कॉलेज में संकाय संवर्धन कार्यक्रम का आयोजन

समसामयिक
15 सितंबर  को होगा  ‘सूचना एवं संप्रेषण तकनीक (ICT) आधारित ई-शिक्षण और ई-अधिगम का नव परिप्रेक्ष्य: डिजिटल शिक्षाशास्त्र’ का आयोजन  हिमांतर ब्यूरो माता सुंदरी कॉलेज और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पंडित मदनमोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण मिशन, शिक्षक अध्ययन केंद्र, रामानुज कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान but में आगामी 15 सितंबर से ‘सूचना एवं संप्रेषण तकनीक (ICT) आधारित ई-शिक्षण और ई-अधिगम का नव परिप्रेक्ष्य: डिजिटल शिक्षाशास्त्र’ विषय पर द्विसाप्ताहिक संकाय संवर्धन कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. डिजिटल दरअसल कोविड-19 वैश्विक महामारी ने पारंपरिक भारतीय शिक्षा-व्यवस्था को काफी प्रभावित किया है. महामारी के चलते शिक्षण-व्यवस्था में काफी बदलाव हुए हैं और शिक्षा व्यवस्था ने डिजिटल शिक्षण पद्धति को अपनाया है. डिजिटल शिक्षण पद्धति का उपयोग इलेक्ट्रोनिक प्रौद्योगिकी शिक्षण और शिक्...
पंडित नैन सिंह रावत: महान लेकिन गुमनाम अन्वेषक

पंडित नैन सिंह रावत: महान लेकिन गुमनाम अन्वेषक

इतिहास
जिन्होंने हिमालय को नापा और तिब्बत की खोज की प्रकाश चन्द्र पुनेठा हमारे देश भारत में अनेक महान, साहसी तथा कर्तब्यनिष्ठ व्यक्तियों का जन्म हुवाँ है. जिन्होंने बिना किसी लोभ मोह लालसा के, अपने प्राणों का मोह त्याग कर अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है. असाधारण कर्मठता व प्रतिभा के विरले व्यक्तित्व के महान व्यक्तियों ने भारत के प्रत्तेक कालखण्ड में जन्म लिया है. पराधीन भारत की सत्ता केन्द्र के शीर्ष में बैठे शासकों ने उनको यथा योग्य सम्मान भी दिया था. विदेशों का बौद्धिक वर्ग भी उनकी असाधारण कर्मठता एवम् विद्वता का कायल हुवाँ था. because लेकिन स्वतंत्र भारत में उनको वह सम्मान नही मिला, जिस सम्मान के वह अधिकारी थे. महान विश्वविख्यात अन्वेषक पंडीत नैन सिंह रावत भी देश की अनमोल व विरल विभूतियों में से एक थे. नैन सिंह पंडीत नैन सिंह रावत का जन्म सीमांत जिला पिथौरागढ़ के मुनस्यारी तहसील के...
संसारभर का दुख बाँटती महादेवी  

संसारभर का दुख बाँटती महादेवी  

साहित्यिक-हलचल
मीना पाण्डेय महादेवी mahadevi vermaनिशा को, धो देता राकेश चाँदनी में जब अलकें खोल, कली से कहता था मधुमास बता दो मधुमदिरा का मोल; गए तब से कितने युग बीत हुए कितने दीपक निर्वाण! नहीं पर मैंने पाया सीख तुम्हारा सा मनमोहन गान. महादेवी महादेवी जितनी छायावाद की एक महान कवयित्री के रूप में महत्वपूर्ण हैं उतनी ही महत्वपूर्ण है उनकी जीवन यात्रा और दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ संकीर्ण विचार वाले समाज में अपनी शर्तों के साथ जीवन जीने का प्रयास और काफी हद तक उसमें विजय होना. कविता को संसार का सुख-दुख बांटने का माध्यम मान स्वयं एक सर्वप्रिय कवियत्री के so...
‘एक अध्यापक की कोशिश और कशिश की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति’

‘एक अध्यापक की कोशिश और कशिश की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति’

संस्मरण
डॉ. अरुण कुकसाल जीवन के पहले अध्यापक को भला कौन भूल सकता है. अध्यापकों में वह अग्रणी है. शिक्षा और शिक्षक के प्रति बालसुलभ अवधारणा की पहली खिड़की वही खोलता है. जाहिर है एक जिम्मेदार और दूरदर्शी पहला अध्यापक बच्चे की जीवन दिशा में हमेशा मार्गदर्शी रहता है. चंगीज आइत्मातोव का विश्व चर्चित उपन्यास ‘पहला अध्यापक’ का नायक इसी भूमिका में है. यह उपन्यास जड़ समाज को जीवंतता की ओर ले जाने वाले एक अध्यापक की कोशिश और कशिश की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है. ‘पहला अध्यापक’ उपन्यास 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में सोवियत संघ के किरगीजिया पहाड़ी इलाके के कुरकुरेव गांव की सच्ची घटनाओं से शुरू होता है. उपन्यास के सभी पात्रों ने वही जीवन जिया जो उपन्यास में है. चंगीज आइत्मातोव ने केवल उनके जीवन की बातों और घटनाओं को साहित्यिक प्रवाह दिया है. ‘पहला अध्यापक’ उपन्यास 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में सोवियत संघ...
वैदिक साहित्य में पितर अवधारणा और उसका उत्तरवर्त्ती विकास

वैदिक साहित्य में पितर अवधारणा और उसका उत्तरवर्त्ती विकास

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी पितृपक्ष चर्चा पितृपक्ष के इस कालखंड में पितर जनों के स्वरूप और उसके ऐतिहासिक विकासक्रम की जानकारी भी बहुत जरूरी है. इस लेख में वैदिक काल से लेकर धर्मशात्रों और निबन्धग्रन्थों (मध्यकाल) तक की पितर परम्परा का विहंगमावलोकन किया गया है. भारतीय चिंतन परम्परा में वैदिक काल से ही समूचे ब्रह्मांड व्यवस्था के सन्दर्भ में मुख्य रूप से तीन लोकों की परिकल्पना की गई है. ये तीन लोक हैं- देव लोक, पितृ लोक और मनुष्य लोक. देव लोक में रहने वाली दिव्यात्माओं और पितृलोक रहने वाली पितर आत्माओं से ही मनुष्य आदि की उत्पत्ति होती है और ये आत्माएं बहुत शक्तिशाली मानी जाती हैं. पक्ष, मास,ऋतुओं के कारक भी देवता और पितृगण ही माने गए हैं. पितृपक्ष में यदि पितर गण श्राद्ध कर्म से प्रसन्न हो जाएं तो अपनी संतानों को दीर्घायु,संतति, धन, यश एवं सभी प्रकार के सुख का आशीर्वाद देते हैं.चौरासी लाख योनि...
शुभदा

शुभदा

किस्से-कहानियां
कहानी डॉ. अमिता प्रकाश यही नाम था उसका शुभदा! शुभदा-शुभता प्रदान करने वाली. शुभ सौभाग्य प्रदायनी. हँसी आती है आज उसे अपने इस नाम पर और साथ ही दया के भाव भी उमड़ पड़ते हैं उसके अन्तस्थल में, जब वह इस नाम को रखने वाले अपने पिता को याद करती है.... कितने लाड़ और गर्व से, कितना सोच-समझकर, कितने सपने बुनकर उन्होंने उसका नाम रखा होगा- शुभदा. वह अपने माता -पिता की दूसरी सन्तान थी. पहले बड़ा भाई और फिर छोटी लाडली बहन.... “माँ-बाप फूले नहीं समा रहे होंगे कि चलो परिवार पूरा हुआ. भले ही उस जमाने में जब चार -पाँच बच्चे पैदा करना सामान्य और भाग्य की बात हुआ करती थी तब माता-पिता ने परिवार के पूरे होने के बारे में सोचा होगा ऐसा सम्भव नहीं था. यह मात्र उसकी अपनी सोच थी, शायद अपने को दिलासा देने का एक झूठा आसरा. वरना वह जमाना ही कुछ और था, कि परिवार में एक लड़का हुआ तो डाल को दोहरी करना जरूरी समझा जाता थ...