Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
अपेक्षायें

अपेक्षायें

किस्से-कहानियां
लघु कथा डॉ. कुसुम जोशी  "ब्वारी मत जाया करना रात सांझ उस पेड़ के तले से... अपना तो टक्क से becauseरस्सी में लटकी और चली गई, पर मेरे लिये और केवल' के लिये जिन्दगी भर का श्राप छोड़ गई. श्राप तीन साल से एक रात भी हम मां बेटे चैन से नही सोये... but आंखें बंद होने को हों तो सामने खड़ी हो जाय... कसती है  "देखती हूं कैसे लाती हो दूसरे खानदान से ब्वारी...". अब ले तो आई हूं तुझे,  अपना और केवल का ध्यान रखना…. तारी ने सास धर्म का पालन करते हुये बहू को आगाह किया. “किसे पता… क्या दिमाग फिरा उसका… कुछ लोगों को सुख नही सहा जाता है ना, सोलह साल हो गये थे ब्याह के… गरभ से एक पत्थर तक न पड़ा… केवल ने सारे वैध… हकीम… शहर के बड़े डाक्टर तक एक कर दिये… बांझ थी वो.., फिर भी सबने दिल में पत्थर रख लिया था” सास कांप उठी थी चन्दा सास की बात सुन कर, soधीरे से बोली "ऐसा क्यों किया बड़ी ने"? "किसे पता...
विकृत इतिहास चेतना की भेंट चढ़ता ‘खतड़ुवा’ पर्व

विकृत इतिहास चेतना की भेंट चढ़ता ‘खतड़ुवा’ पर्व

लोक पर्व-त्योहार
पशुधन की कुशलता की कामना का पर्व  है 'खतडुवा' डॉ. मोहन चंद तिवारी 'कुमाऊं का स्वच्छता अभियान से जुड़ा 'खतडुवा' because पर्व वर्षाकाल की समाप्ति और शरद ऋतु के प्रारंभ में कन्या संक्रांति के दिन आश्विन माह की प्रथमा तिथि को मनाया जाने वाला एक सांस्कृतिक लोकपर्व है. अन्य त्योहारों की तरह 'खतड़ुवा' भी एक ऋतु से दूसरी ऋतु के संक्रमण का सूचक है. प्रारंभ से ही यह कुमाऊं, गढ़वाल व नेपाल के कुछ क्षेत्रो में मनाया जाने वाला पारंपरिक त्यौहार है. कुमाऊं 'खतड़ुवा' शब्द की उत्पत्ति “खातड़” या but “खातड़ि” शब्द से हुई है. कुमाऊं में 'खातड़' यानी रजाई-गद्दे को कहा जाता है. चौमास में सिलन के कारण ये सभी रजाई-गद्दे आदि बिस्तर सिल जाते हैं. इसलिए खतुड़वे के दिन प्रातःकाल ही घर की सभी वस्तुओं को इस दिन धूप दिखाकर सुखाया जाता है. मास गौरतलब है कि अश्विन मास की शुरुआत so(सितम्बर मध्य) से पहाड़ों में ...
ब्राह्मण ग्रन्थों में ब्रह्मांड चेतना से अनुप्रेरित पितर अवधारणा 

ब्राह्मण ग्रन्थों में ब्रह्मांड चेतना से अनुप्रेरित पितर अवधारणा 

साहित्‍य-संस्कृति
एक दार्शनिक चिंतन डॉ.  मोहन चंद तिवारी  'ऐतरेय ब्राह्मण' में सोमयाग सम्बन्धी एक सन्दर्भ वैदिक कालीन पितरों की ब्रह्मांड से सम्बंधित आध्यात्मिक अवधारणा को समझने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है ब्राह्मण "अन्यतरोऽनड्वान्युक्तः स्यादन्यतरो विमुक्तोऽथ राजानमुपावहरेयुः. यदुभयोर्विमुक्तयोरुपावहरेयुः पितृदेवत्यंbecause राजानं कुर्युः. यद्युक्तयोरयोगक्षेमःbut प्रजा विन्देत्ताः प्रजाःso परिप्लवेरन्. योऽनड्वान् विमुक्तस्तच्छालासदां प्रजानां रूपं यो becauseयुक्तस्तच्च क्रियाणां, ते ये युक्तेऽन्ये butविमुक्तेऽन्य उपावहरन्त्युभावेव ते क्षेमयोगौ soकल्पयन्ति." -ऐ.ब्रा.1.14 ब्राह्मण उपर्युक्त सोमयाग प्रकरण में सोमलता because को यज्ञ वेदी तक दो बैलों (अनड्वाहौ) से जुते शकट (गाडी) में ढोकर लाया गया है. तभी यह धर्मशास्त्रीय प्रश्न उठाया गया है कि सोम को शकट से उतारने से पहले एक बैल (बलीव...
जागर, बूबू और मैं

जागर, बूबू और मैं

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—49 प्रकाश उप्रेती आस्था, विश्वास का केंद्र बिंदु है. पहाड़ के लोगों की आस्था कई तरह के विश्वासों पर टिकी रहती है. ये विश्वास जीवन में नमक की तरह घुले होते हैं. ऐसा ही "जागर" को लेकर भी है. because "जागर" आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर भी है. 'हुडुक' सिर्फ देवता अवतार करने का वाद्ययंत्र नहीं है बल्कि पहाड़ की सांस्कृतिक पहचान का अटूट अंग है. आज इसी 'जागेरी', 'हुडुक' के साथ मैं, और 'बुबू' (दादा). जागरी बुबू जागरी लगाते थे और मैं उनके सानिध्य में सीख रहा था. ईजा को मेरा जागरी लगाना पसंद नहीं था. तब 'जगरी' (जागेरी लगाने वाला) को लेकर समाज में एक सम्मान का भाव तो था लेकिन दूसरों की हाय, पाप, और गाली खाने की गुंजाइश भी हमेशा रहती थी. ईजा को लगता था कि बेटे का भविष्य 'जगरी' बन जाने से तबाह हो जाएगा. but उनको मेरा शहर में पढ़ना या बर्तन धोना मंजूर था ...
आज बहुत याद आते हैं ‘हिरदा कुमाउंनी’

आज बहुत याद आते हैं ‘हिरदा कुमाउंनी’

स्मृति-शेष
हीरा सिंह राणा के जन्मदिन (16 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी 16 सितंबर को उत्तराखंड लोक गायिकी के पितामह, लोकसंगीत के पुरोधा तथा गढ़वाली-कुमाउंनी  और जौनसारी अकादमी, दिल्ली सरकार के उपाध्यक्ष रहे श्री हीरा सिंह राणा जी का जन्मदिन है. बहुत  दुःख की बात है कि कुमाउंनी लोक संस्कृति को अपनी पहचान से जोड़ने वाले 'हिरदा कुमाउंनी ' आज हमारे बीच नहीं हैं. becauseअभी कुछ महीने पहले उनका निधन हो गया है. विश्वास नहीं होता है कि “लस्का कमर बांध, हिम्मत का साथ फिर भोल उज्याई होलि,  कां ले रोलि रात”- जैसे ऊर्जा भरे बोलों से जन जन को कमर कस के हिम्मत जुटाने का साहस बटोरने और रात के अंधेरे को भगाकर उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देने वाले 'हिरदा' इतनी जल्दी अपने चाहने वालों से विदा ले लेंगे. लोक संस्कृति के संवाहक राणा जी का अचानक चला जाना समूचे उत्तराखण्डी समाज के लिए बहुत दुःखद है और पर्वतीय ...
वैदिक पितृपूजा का ऐतिहासिक और धार्मिक विकास क्रम

वैदिक पितृपूजा का ऐतिहासिक और धार्मिक विकास क्रम

साहित्‍य-संस्कृति
धार्मिक मान्यता के अनुसार सत्य और श्रद्धा से किया गया कर्म 'श्राद्ध' कहलाता डा. मोहन चंद तिवारी  सामान्य तौर पर पितृपक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध-तर्पण आदि कृत्य पूर्वजों, माता-पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है. धार्मिक मान्यता के अनुसार सत्य और श्रद्धा से किया गया कर्म 'श्राद्ध' कहलाता है और जिस कर्म से माता-पिता और आचार्य तृप्त हों, वह 'तर्पण' है. जहां तक वैदिक परंपरा की बात है, संहिता ग्रन्थों में कहीं because‘श्राद्ध’ शब्द का उल्लेख नहीं है किन्तु इसके लिए  ‘पितृयज्ञ’ का उल्लेख मिलता है, जिसे प्रकारान्तर से पितरों की समाराधना से जुड़ी यज्ञविधि ही माना जा सकता है. वैदिक काल में आहिताग्नि द्वारा प्रत्येक मास की अमावस्या को सम्पादित किया जाने वाला यज्ञ 'पिण्ड-पितृयज्ञ' कहलाता था. महा-पितृयज्ञ चातुर्मास्य में सम्पादित होता था एवं 'अष्टका' यज्ञ का भी आरम्भिक वैदिक साहित्य मे...
हमारी समृद्ध परंपरा और खुशहाली के प्रतीक हैं हमारे त्यौहार

हमारी समृद्ध परंपरा और खुशहाली के प्रतीक हैं हमारे त्यौहार

लोक पर्व-त्योहार
लगातार 6 दिनों तक मनाया जाता है 'मगोच' डॉ. दीपा चौहान राणा हमारे उत्तराखंड में 12 महीनों के बारह त्यौहार मनाए जाते हैं और हर त्यौहार का अपना एक खास महत्व है. हम उत्सवधर्मी लोग हैं. हमारे रीति—रिवाज हमारी संस्कृति की एक खास पहचान हैं. butहमारे यहां तीज—त्यौहार, उत्सव तो बहुत हैं लेकिन आज मैं एक विशेष त्यौहार की बात कर रही हूं, वह त्यौहार जो हर वर्ष 25 गते पौष यानी 9 जनवरी से हमारे पहाड़ों (रवांई-जौनपुर एवं जौनसार-बावर) में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वह त्यौहार हैं 'माघ के मगोच'. माघ मतलब जनवरी का महीना और मगोच का मतलब त्यौहार! त्यौहार मगोच लगातार 6 दिनों तक चलने वाला एक विशेष त्यौहार है. becauseइसमें लोग हर दिन के त्यौहार अगल—अलग नाम देते है और दिन अलग—अलग पकवान बनाते हैं. यह त्यौहार पीढ़ी—दर—पीढ़ी हमारी परंपरा के अनुसार बनाए जाते हैं. इनकी शुरुआत कई वर्ष पूर्व हमारे ...
शांति और मानवीय-चेतना के अभ्यासी आचार्य विनोबा भावे

शांति और मानवीय-चेतना के अभ्यासी आचार्य विनोबा भावे

स्मृति-शेष
विनोबा भावे की 125वीं जयंती  पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र एक ओर दुःस्वप्न जैसा कठोर यथार्थ और दूसरी ओर कोमल आत्म-विचार! दोनों को साथ ले कर दृढ़ता पूर्वक चलते हुए अनासक्त भाव से जीवन के यथार्थ से becauseजूझने को कोई सदा तत्पर रहे यह आज के जमाने में कल्पनातीत ही लगता है. परंतु ‘संत’ और ‘बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध भारतीय स्वातंत्र्य की गांधी-यात्रा के अनोखे सहभागी शांति के अग्रदूत श्री बिनोवा भावे की यही एक व्याख्या हो सकती है. but वे मूलतः एक देशज चिंतक थे जिन्होने स्वाध्याय और स्वानुभव के आधार पर अपने विचारों का निर्माण किया था. उनका गहरा सरोकार अध्यात्म से था पर उनका अध्यात्म जीवंत और लोक-जीवन से जुड़ा था. वे अपनी अध्ययन-यात्रा के दौरान विभिन्न धर्म-परम्पराओं के सिद्धांतों और अभ्यासों से परिचित होते रहे. अनेक भाषाएँ सीखीं और साधारण जीवन का अभ्यास किया. यात्रा उनकी अविचल निष्ठा लौ...
शहीद 30 ड्राइवर-कंडक्टर भाईयों को याद एवं नमन

शहीद 30 ड्राइवर-कंडक्टर भाईयों को याद एवं नमन

स्मृति-शेष
सतपुली त्रासदी की पुण्यतिथि (14 सितम्बर, 1951) पर विशेष डॉ. अरुण कुकसाल द्वी हजार आठ भादों का मास, सतपुली मोटर बोगीन खास.... हे पापी नयार कमायें त्वैकू, मंगसीरा मैना ब्यो छायो मैकू....... मेरी मां मा बोल्यान नी रयीं आस, सतपुली मोटर बोगीन खास. सतपुली (सतपुली नयार बाढ़ दुर्घटना-गढ़माता के निरपराध ये वीर पुत्र मोटर मजदूर जन यातायात की सेवार्थ 14 सितम्बर, 1951 ई. को अपनी गाड़ियों सहित सतपुली नयार नदी की प्रचन्ड बाढ़ में सदैव के because लिए विलीन हो गये. यह स्मारक उन बिछड़े हुए साथियों की यादगार के लिए यातायात के मजदूरों के पारस्परिक सहयोग से गढ़वाल 14 सितम्बर मोटर मजदूर यूनियन द्वारा स्थापित किया गया है- गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन द्वारा निर्मित.) नयार सतपुली बाजार से पूर्वी नयार नदी के दांये ओर बिजली दफ्तर परिसर में स्थापित स्मारक पर उक्त पंक्तियां लिखी हैं. आज से 69 सा...
“वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ में भूमिगत जलशिराओं का सिद्धान्त”

“वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ में भूमिगत जलशिराओं का सिद्धान्त”

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-15 डॉ. मोहन चंद तिवारी (12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आईआईटी’ रुड़की में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए becauseगए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से सम्बद्ध चर्चित और संशोधित लेख) अखबारों प्राचीन काल के कुएं बावड़ियां,नौले आदि जो आज भी लोगों को पेयजल की आपूर्त्ति के महत्त्वपूर्ण जल संसाधन हैं,उनमें बारह महीने निरंतर रूप से शुद्ध और स्वादिष्ट जल पाए जाने का so एक मुख्य कारण यह भी है कि ये कुएं,बावड़ियां या नौले हमारे पूर्वजों द्वारा वराहमिहिर द्वारा अन्वेषित 'बृहत्संहिता’ में भूगर्भीय जलान्वेषण की पद्धतियों का अनुसरण करके बनाए गए थे. अखबारों भारतीय जलविज्ञान का सैद्धांतिक स्वरूप अन्तरिक्षगत मेघविज्ञान और वृष्टिविज्ञान के स्वरूप को जा...