Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
‘डूबता शहर’ की कथा-व्यथा सच है, पर दफ़्न है

‘डूबता शहर’ की कथा-व्यथा सच है, पर दफ़्न है

टिहरी गढ़वाल
पुरानी टिहरी के स्थापना दिवस, 30 दिसम्बर पर किशोरावस्था से मन-मस्तिष्क में बसी टिहरी को नमन करते हुए अग्रणी साहित्यकार स्वर्गीय ‘बचन सिंह नेगी’ का मार्मिक उपन्यास- डॉ. अरुण कुकसाल "...शेरू भाई! यदि इस टिहरी को डूबना है, तो ये लोग मकान क्यों बनाये जा रहे हैं? शेरू हंसा ‘चैतू! यही तो because निन्यानवे का चक्कर है, जिन लोगों के पास पैसा है,because वे एक का चार बनाने का रास्ता निकाल रहे हैं. डूबना तो इसे गरीबों के लिए है, बेसहारा लोगों के लिये है, उन लोगों के लिए है, जिन्हें जलती आग में हाथ सेंकना नहीं आता. जो सब-कुछ गंवा बैठने के भय से आंतकित हैं.' चैतू ...चैतू सोच में डूब जाता है, soउनका क्या होगा? आज तक रोजी-रोटी ही अनिश्चित थी, अब रहने का ठिकाना भी अनिश्चित हो रहा है.’’ (पृष्ठ, 9-10) टिहरी बांध बनने के बाद because ‘उसका, उसके परिवार और उनका क्या होगा?’ यह चिंता केवल चैतू की...
वरिष्ठ कवि व पत्रकार मंगलेश डबराल की स्मृति में

वरिष्ठ कवि व पत्रकार मंगलेश डबराल की स्मृति में

साहित्यिक-हलचल
कमलेश चंद्र जोशी वरिष्ठ कवि व साहित्यकार मंगलेश डबराल भौतिक रूप से अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन अपनी कविताओं, साहित्यिक रचनाओं व गंभीर पत्रकारिता के माध्यम से जिस लालटेन को वह जलता हुआ छोड़ गए हैं उसे जलाए रखने और रोशनी बिखेरने का काम वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों के हाथ में है. मंगलेश जी की स्मृति को अमूमन because सभी पत्रकारों, कवियों व साहित्य प्रेमियों ने सोशल, इलैक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के माध्यम से याद किया. कथाकारों, लेखकों व पत्रकारों द्वारा मंगलेश जी के साथ बिताए समय के बहुत से संस्मरण फेसबुक के माध्यम से पढ़ने को मिले जिससे यह समझ में आया कि वह किस कदर जमीन से जुड़े व्यक्ति थे और हमेशा पहाड़ और उसके रौशन होने के सपने को साथ लिये चलते रहे. पत्रकारिता देवेंद्र मेवाड़ी बताते हैं कि दिल्ली में जनसत्ता में नौकरी करते हुए मंगलेश जी बड़े परेशान रहा करते थे. कहते थे दिल्ली महानगर है...
भारतीय ज्ञान परम्परा और भाषा को बंधक से छुड़ाने का अवसर

भारतीय ज्ञान परम्परा और भाषा को बंधक से छुड़ाने का अवसर

शिक्षा
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  पिछले दिनों काशी में देव दीपावली because के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री जी ने देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति को, जिसे तस्करी में चुरा कर एक सदी पहले कनाडा की रेजिना यूनिवर्सिटी के संग्रहालय को पहुंचा दिया गया था, बंधक से छुड़ा कर देश को वापस सौंपे जाने की चर्चा की थी. तब वहां के कुलपति टामस चेज ने बड़ी मार्के की बात कही थी कि ’यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा जाय because और उपनिवेशवाद के दौर में दूसरे देशों की विरासत को जो नुकसान  पहुंचा है उसे ठीक करने की हर संभव कोशिश हो’. आशा की जाती है कि इस साल के अंत होते-होते यह मूर्ति अपने मूल स्थान पर पुन: विराजित हो जायगी. कुलपति दरअसल विपन्नता की स्थिति में because अपनी बहुमूल्य संपत्ति को गिरवी रखना और स्थि ति सुधरने पर उसे छुड़ा कर वापिस लाना कोई नई बात नहीं हैं और इसका दस्तूर अभी भी जारी  है. भारत की समृ...
जलवायु परिवर्तन से दुनिया को 2020 में हुई अरबों की हानि: रिपोर्ट

जलवायु परिवर्तन से दुनिया को 2020 में हुई अरबों की हानि: रिपोर्ट

पर्यावरण
निशांत रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित दस मुख्य घटनाओं की पहचान की गई है, जिनमें से प्रत्येक में 1.5 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है. because इन मुख्य घटनाओं में से नौ 5 बिलियन डॉलर से अधिक के नुकसान का कारण बनीं. बाढ़, तूफान, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और आग ने दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले ली. गहन एशियाई मानसून दस सबसे कम खर्चीली घटनाओं में से पांच से पीछे था. रिकॉर्ड तोड़ तूफान के मौसम और आग के कारण अमेरिका सबसे अधिक लागतों से प्रभावित हुआ था. जलवायु क्रिश्चियन एड की एक नई रिपोर्ट, because लागत 2020 की गणना: एक वर्ष की जलवायु टूटने से वर्ष की सबसे विनाशकारी जलवायु आपदाओं में से 15 की पहचान होती है. इन घटनाओं में से दस की लागत 1.5 बिलियन डॉलर या उससे अधिक है. इनमें से नौ में कम से कम 5 बिलियन डॉलर की क्षति होती है. इनमें से अधिकांश अनुमान केवल बीमित घाटे पर आधारित हैं, जिसका अ...
प्रेमचंद की वापसी…

प्रेमचंद की वापसी…

किस्से-कहानियां
व्यंग्य दलजीत कौर  स्वर्ग में कई दिन से उथल-पुथल because मची थी. ऐसा पहली बार हुआ था कि स्वर्ग में किसी ने धरना दिया हो. स्वर्ग में किसी ने अन्नजल त्याग दिया हो. यमदूत ने आकर यमराज को बताया- “एक व्यक्ति स्वर्ग छोड़ कर पृथ्वी पर जाना चाहता है. यमराज  ने हैरान हो कर so पूछा- “स्वर्ग छोड़ कर कौन मूर्ख पृथ्वी पर जाना चाहता है ?नरक से जाना चाहे तो बात समझ में आती है.” भ्रमित यमदूत ने बड़े अदब से because नाम लिया- “जी! महापुरुष प्रेमचंद.” यमराज अपने सिहाँसन so से उठ खड़े हुए- “क्या? मुंशी प्रेमचंद? लेखक प्रेमचंद? वही प्रेमचंद जिनकी but अभी-अभी जयंती मनाई गई पृथ्वी पर?” “जी हजूर जी.” because यमदूत लगातार हाँ में सिर हिला रहा था. मगर यमराज को यक़ीन so ही नहीं हो रहा था. उन्होंने फिर पूछा,  कफ़न, पूस की रात, गोदान, निर्मला वाले प्रेमचंद? “वह व्यक्ति जो मरने के इतने वर्ष बाद...
श्रीकोट का ‘गुयां मामा’

श्रीकोट का ‘गुयां मामा’

पौड़ी गढ़वाल
डॉ. अरुण कुकसाल मानवीय बसावत में जीवन के because कई रंग दिखाई देते हैं. ये बात अलग है कि कुछ रंगों को हम अपनी सुविधा से सामाजिक मान-प्रतिष्ठा देकर गणमान्य बना देते हैं. और, कुछ रंग सामाजिक जीवन में बिखरे-गुमनाम से यहां-वहां दिखाई देते हैं. वे अपने आपको समेटे, पर पूरी संपूर्णता के साथ मदमस्त जीवन जीते हैं. यद्यपि दुनियादारी में फंसे लोग उनके प्रति बेचारगी और सहानुभूति के भाव से ऊपर नहीं उठ पाते हैं. but लेकिन ऐसे मस्त फक्कडों की जीवंतता सामान्य लोगों को हैरान करती है. जिस दिन वो न दिखे तो उससे उपजा खालीपन मन को कचौटता है. ऐसे ही हैं श्रीकोट के 'गुंया मामा' जो हर शहर-देहात के वो चेहरा हैं जिनसे चंद ही लोग सही पर वे बे-पनाह मोहब्बत और सम्मान करते हैं. भ्रमित फक्कड़ी का मस्तमौला because बादशाह ‘गुयां मामा’ बोलते कम और हंसते ज्यादा है, दुनिया पर और अपने आप पर. बरस 72 में 27 की उमर की उमंग...
घने अंधेरे में जब गधेरे से बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी

घने अंधेरे में जब गधेरे से बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी

संस्मरण
ललित फुलारा मैं कुंवर चंद जी के साथ रात के because तीसरे पहर में सुनसान घाटी से आ रहा था. यह पहर पूरी तरह से तामसिक होता है. कभी भूत लगा हो, तो याद कर लें रात्रि 12 से 3 बजे का वक्त तो नहीं! अचानक कुंवर चंद जी मुझसे बोले 'अगर ऐसा लगे कि पीछे से को¬ई आवाज दे रहा है, तो मुड़ना नहीं. रोए, तो देखना नहीं. छल पर भरोसा मत करना, सीधे बढ़ना.. मन डरे, कुछ अहसास हो, तो हनुमान चालिसा स्मरण करो. मैं साथ हूं. कुंवर अचानक बच्चा रोया because और छण-छण शुरू हो गई. मैंने पीछे देखना चाहा, तो उन्होंने गर्दन आगे करते हुए 'बस आगे देखो. चलते रहो. छल रहा है. भ्रमित मत होना. कुछ भी दिखे यकीन मत करना. जो दिख रहा है, वो है नहीं और जो है, वह अपनी माया रच रहा है.' भ्रमित आसपास बस घाटियां थीं. झाड़ झंखाड़. because गधेरे. ऊपर जंगल और नीचे नदी जिसकी आवाज भी थम चुकी थी. अंधेरा घना. मैं आगे था और कुंवर चंद जी ...
नागरिकों को नैतिक होने के लिए सूचित करने की आवश्यकता…

नागरिकों को नैतिक होने के लिए सूचित करने की आवश्यकता…

साहित्‍य-संस्कृति
सलिल सरोज महात्मा गांधी ने महसूस किया कि शिक्षा से न केवल ज्ञान में वृद्धि होनी चाहिए बल्कि हृदय और साथ में संस्कृति का भी विकास होना चाहिए. गांधी हमेशा से और हित चरित्र because निर्माण के पक्ष में थे. चरित्र निर्माण के बिना शिक्षा उसके अनुसार शिक्षा नहीं थी. उन्होंने एक मजबूत चरित्र को एक अच्छे नागरिक का मूल गुण माना. आज के बच्चे और युवा राष्ट्र के भविष्य हैं. उन्हें गांधी के सामाजिक न्याय के सिद्धांतों, पर्यावरण के बारे में उनकी चिंताओं और उनके सिद्धांत के बारे में बताने की आवश्यकता है कि प्रकृति के पास हर किसी की जरूरतों के लिए पर्याप्त है लेकिन because उनके लालच के लिए नहीं और यही मूल मन्त्र है एक स्थायी और समावेशी अर्थव्यवस्था और समाज को बढ़ावा देने के लिए. गांधी ने राजनीतिक और आर्थिक विकेंद्रीकरण का प्रचार किया. राजनीतिक युवा मानस और आम because जनता में इन मूल्यों का अनुकरण कर...
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ!

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ!

कविताएं
सुधा भारद्वाज “निराकृति” अबोध भूली बाल स्वभाव वह... बहती थी सरिता सम वह... क्या सोच उसे समाज की... कुछ अजब रूढ़ी रिवाज की... परिणाम छूटी शि क्षा उसकी... नही हुई पूरी कोई आस उसकी... सपने देखे बहुत बड़े-बड़े थे... रिश्ते तब सब आन अड़े थे... छूट गयी सभी सखी सहेली... जीवन बना था एक पहेली... जिस उम्र में सखियाँ करती क्रीड़ा... वह झेल रही थी प्रसव पीड़ा... अबोध अशिक्षित अज्ञानी वह... क्या देगी बालक को शिक्षा... जीवन के हर कठिन मोड़ पर... काम तो आती है शिक्षा... परिस्थितियां विपरित भले हो... कार्य यदि हो सभी समय पर... नही उठाना पड़ता जोख़िम... हाथ बँटाती है शिक्षा... (विकासनगर उत्तराखण्ड)...
मिट्टी में बीज की तरह रोपे गए हैं कविता में शब्दों के बीज

मिट्टी में बीज की तरह रोपे गए हैं कविता में शब्दों के बीज

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. शशि मंगल प्रकृति से अत्यंत प्रेम becauseकरने वाली डॉ. कविता पनिया शिक्षिका भी हैं और कवयित्री भी जहाँ वह अपने विद्यार्थियों को बहुत कुछ सिखाती हैं वहीं प्रकृति से बहुत कुछ सीखती हैं अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए उन्हें गढ़ने  के लिए जहाँ पढ़ती हैं वहीं अपने जीवन को गढ़ने के लिए प्रकृति को पढ़ने का प्रयास करती हैं और उसके अनेकानेक रूपों से अपने मन को तथा रचनाओं को गढ़ती हैं. कविता पनिया का becauseकाव्य संग्रह “कविमित्रा” राजमंगल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है यह संग्रह संपूर्ण प्रकृति को समर्पित है. जिसमें कविता पनिया ने प्रकृति का मानवीकरण बखूबी किया है और प्रकृति से संवाद भी खूब किया हैं संवाद से रची इस कविता की पंक्तियों को देखिए –            अरे टहनी जरा becauseबताओ तो            हर वसंत तुम इतना becauseक्यों संवरती हो            फूलों के भार से हवाओं संग because कितना लचकती हो ...