Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

बागेश्‍वर
डॉ. मोहन चंद तिवारी इस साल कुमाऊं मंडल के बागेश्वर के शताब्दी वर्ष  का ऐतिहासिक उत्तरायणी मेला भी आखिर कोरोना की भेंट चढ़ गया. जिला प्रशासन की so ओर से मेले में धार्मिक अनुष्ठान के साथ केवल स्नान और जनेऊ संस्कार की अनुमति दी गई है और मेले की शोभा बढाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों और व्यापारिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है. कोरोना 14,जनवरी,1921 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले से ही उत्तराखंड के दोनों प्रान्तों कुमाऊं और गढ़वाल में कुली-बेगार कुप्रथा को समाप्त करने के लिए बद्रीदत्त पाण्डे और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में but अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जो जनआंदोलन चला,वह समूचे भारत में अपनी तरह का पहला और अभूतपूर्व राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुभारंभ भी था. कोरोना शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस वर्ष 14 जनवरी, 2021 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले के दिन उत्तराखंड के स्...
संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-33 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-4 उत्तराखंड के जल वैज्ञानिक डॉ. ए.एस. रावत तथा रितेश शाह ने ‘इन्डियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नौलिज’ (भाग 8 (2‚ अप्रैल 2009, पृ. 249-254) में प्रकाशित एक लेख‘ ट्रेडिशनल नॉलिज ऑफ वाटर मैनेजमेंट इन कुमाऊँ हिमालय’ में उत्तराखण्ड के परम्परागत जलसंचयन संस्थानों because पर जलवैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डालते हुए, इन जलनिकायों को उत्तराखण्ड के परम्परागत ‘वाटर हारवेस्टिंग’ प्रणालियों की संज्ञा दी है. स्थानीय भाषा में इन जल प्रणालियों के because परंपरागत नाम हैं- गूल‚ नौला‚धारा‚ कुण्ड, खाल‚ सिमार‚ गजार इत्यादि.उत्तराखण्ड के जल प्रबन्धन के सांस्कृतिक स्वरूप को जानने के लिए ‘पीपल्स साइन्स इन्स्टिट्यूट’‚ देहारादून से प्रकाशित डॉ.रवि चोपड़ा की लघु पुस्तिका ‘जल संस्कृति ए वाटर हारवेस्टिंग कल्चर’ भी उल्लेखनीय है. वाटर हारवैस्टिंग ...
क्या है जन्म-जन्मान्तर और सात जन्मों के रिश्ते की सच्चाई?

क्या है जन्म-जन्मान्तर और सात जन्मों के रिश्ते की सच्चाई?

साहित्‍य-संस्कृति
भुवन चन्द्र पन्त जब स्त्री व पुरूष वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं तो सनातन संस्कृति में इसे जन्म-जन्मान्तर का बन्धन अथवा सात जन्मों का बन्धन कहा जाता है. अगर कोई ये कहे कि हां, यह बात शत-प्रतिशत सही है तो संभव है कि उसे दकियानूसी ठहरा दिया जाय. because वर्तमान दौर वैज्ञानिक सोच का है, जब तक हम कारण व परिणाम पर तसल्ली नहीं कर लेते, उसे यों ही स्वीकार नहीं करते. वस्तुतः होना भी यहीं चाहिये, किसी भी विचार अथवा परम्परा को बिना तथ्यों व तर्कों के स्वीकार कर लेना कोई बुद्धिमानी भी नहीं है. लेकिन ये भी सच है कि सनातन संस्कृति की सभी अवधारणाऐं शोधपूर्ण एवं विज्ञानपरक एवं तार्किक हैं. ये बात अलग है कि हमने उनकी गहराइयों में न जाकर और मर्म को जाने बिना अपनी परम्परा का हिस्सा बना लिया.so यही कारण है कि आज के युवा आनुवंशिकी के जनक ग्रेकर जॉन मेंडल के सिद्धान्तों पर तो विश्वास करते हैं, जिन्होंने उन्नी...
स्वामी विवेकानंद जंयती पर विशेष : आध्यात्म से सामाजिक सम्पोषण का स्वप्न   

स्वामी विवेकानंद जंयती पर विशेष : आध्यात्म से सामाजिक सम्पोषण का स्वप्न   

शिक्षा
प्रो. गिरीश्वर मिश्र ‘संन्यास’ को अक्सर दीन-दुनिया से दूर आत्मान्वेषण की गहन और निजी यात्रा से जोड़ कर देखा जाता है. मुक्ति की ऐसी उत्कट अभिलाषा स्वाभाविक रूप से मनुष्य को अंतर्यात्रा की ओर अग्रसर करती है. इस आम धारणा के विरुद्ध उन्नीसवीं सदी के because अंत में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था एक अद्भुत चमत्कारी घटना हुई जिसने भारत के प्रसुप्त स्वाभिमान को जगाया और अंतर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया. यह घटना थी भारत भूमि पर स्वामी विवेकानंद के रूप में एक ऐसी प्रतिभा का अवतरण जिसने सन्यास के समीकरण को पुनर्परिभाषित किया और आध्यात्म के because सामाजिक आयाम को स्थापित किया. गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस के संस्पर्श से स्वामी विवेकानंद ने न केवल धर्म के अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त किया अपितु भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर मानव जाति के लिए एक नए युग का सूत्रपात किया. रामकृष्ण राजा राम मोहन रा...
विश्वजीत नेगी अध्यक्ष व आशुतोष डिमरी चुने गए महासचिव

विश्वजीत नेगी अध्यक्ष व आशुतोष डिमरी चुने गए महासचिव

देहरादून
स्टेट प्रेस क्लब उत्तराखंड के वार्षिक चुनाव संपन्न हिमांतर ब्‍यूरो, देहरादून स्टेट प्रेस क्लब उत्तराखंड के वार्षिक चुनाव में एक बार फिर सर्वसम्मति से निर्विरोध विश्वजीत नेगी को अध्यक्ष व आशुतोष डिमरी को महासचिव चुना गया. देहरादून स्थित बीजापुर राज्य अतिथि गृह में संपन्न हुए स्टेट प्रेस क्लब उत्तराखंड के वार्षिक चुनाव में उत्तराखंड के 13 जिलों के प्रेस क्लब से जुड़े प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. निर्विरोध रूप से संपन्न हुए इस चुनाव में एक बार फिर से अध्यक्ष पद पर विश्वजीत नेगी व महासचिव पद पर आशुतोष डिमरी की ताजपोशी की गई. चिंतामणि स्टेट प्रेस क्लब उत्तराखंड के उपाध्यक्ष पद पर गढ़वाल से गोविंद बिष्ट, कुमाऊं से राजकुमार फुटेला, सचिव पद पर सुनील थपलियाल उत्तरकाशी, देवेंद्र रावत चमोली, चंद्रशेखर जोशी देहरादून, गौरव गुप्ता नैनीताल, अरविंद मलिक हल्द्वानी, व विक्रम श्रीवास्तव को विशेष ...
पायलों की कथा…

पायलों की कथा…

ट्रैवलॉग
मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. so आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं.  नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्‍पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्‍यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है. इनकी लेखक की विभिन्न विधाओं को हम हिमांतर के माध्यम से 'मंजू दिल से...' नामक एक पूरी सीरिज अपने पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. पेश है मंजू दिल से... की 9वीं किस्त... ...
वो अद्भुत दाम्पत्य

वो अद्भुत दाम्पत्य

संस्मरण
वो लड़की गांव की भाग- 1 एम जोशी हिमानी एक कहावत है ' सुखद दाम्पत्य जीवन का बहुत बड़ा वरदान है'. बहुत भाग्यशाली होते हैं वे लोग, जिनके जीवन में यह कहावत चरितार्थ होती है. मैं भी भाग्यशाली हूं कि मैं ने अपनी आंखों से अपने आमा-बडबौज्यू (दादा-दादी) का ऐसा दाम्पत्य देखा है. बहुत से लोगों को मेरी बातें कपोल-कल्पित और अतिशयोक्ति पूर्ण लग सकती हैं लेकिन उससे मेरा सच बदल नहीं जाएगा. दीन-दुनियां की हाय-हाय, चिंताओं, परेशानियों से बहुत दूर थी मेरे बड़ बौज्यू की दुनिया. घर परिवार में रहते हुए भी वे अपनी आंतरिक दुनिया में मगन रहते थे. आमा का नाम तारा था परंतु वे उनको हमेशा 'हरि' नाम से बुलाते थे. अपने बच्चों के नाम भी उन्होंने लक्ष्मी दत्त, हरगोविंद, हरिप्रिया और तुलसी रखा था ताकि हर वक्त किसी न किसी रूप में ईश्वर का नाम उनकी जिह्वा पर बना रहे. बर्फ़ पड़ रही हो या बारिश, चाहे कैसा भी मौ...
दुनिया के सबसे बड़े बैंक कर रहे हैं प्लास्टिक प्रदूषण का वित्त पोषण!

दुनिया के सबसे बड़े बैंक कर रहे हैं प्लास्टिक प्रदूषण का वित्त पोषण!

पर्यावरण
निशांत आज जरी बैंकरोलिंग प्लास्टिक्स रिपोर्ट से पाता चलता है कि दुनिया के सबसे बड़े बैंक प्लास्टिक प्रदूषण के संकट के लिए सह-जिम्मेदार हैं, और अपने ग्राहकों की नाराजगी को अनदेखा कर रहें  हैं. यह पहली बार है जब वैश्विक बैंकों द्वारा प्लास्टिक आपूर्ति श्रृंखला को प्रदान किए गए ऋणों की जांच की गयी है. प्लास्टिक की आपूर्ति श्रृंखला में अंधाधुंध वित्तपोषण से ये बैंक वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण को प्रबल करने में अपनी भूमिका को स्वीकार करने में विफल रहे हैं. साथ ही, वे प्लास्टिक उद्योग से संबंधित किसी भी परिश्रम प्रणाली, आकस्मिक ऋण मानदंड, या वित्तपोषण बहिष्करण को शुरू नहीं कर रहे हैं. बैंकरोलिंग प्लास्टिक्स, प्लास्टिक की आपूर्ति श्रृंखला के साथ प्रमुख कंपनियों को प्रदान किए गए वित्त की पहली जांच, द्वारा पाया गया है कि प्रमुख बैंक प्लास्टिक प्रदूषण संकट को दूर करने के लिए कोई प्रयास किए बिना पूं...
भारतीय किसान की चुनौतियां सुलझाना जरूरी…

भारतीय किसान की चुनौतियां सुलझाना जरूरी…

समसामयिक
गाँव और शहर के बीच की बढ़ती खाई ने शहर को ही विकास की नीति का केंद्र बना दिया प्रो. गिरीश्वर मिश्र भारत बहुत दिनों से गाँवों की धरती के रूप में पहचाना जाता रहा है. भारत के परम्परागत सामाज के मौलिक प्रतिनिधि के रूप में गाव को लिया गया. so सन सैतालिस में पचासी प्रतिशत भारतवासी गाँवों में रहते थे. खेती-बाड़ी ही आम जन की आजीविका का मुख्य साधन था. तब भारत की राष्ट्रीय आय में 55 प्रतिशत हिस्सा खेती का था. किसान देश की मजबूती की कड़ी था. राष्ट्र के निर्माण में किसान मुख्य था. because असली  भारत का प्रतिनिधि था गाँव. आर्थिक विकास में सत्तर के दशक की हरित क्रांति के आधार पर भारत खाद्यान्न में आत्म निर्भर हुआ था. सात दशक बाद गाव की यह छवि बदल चुकी है. अब भारत तेजी से आगे बढ़ते शहरों और मध्यवर्ग की छवि वाला हो रहा है. भारत गांव या कृषि क्षेत्र एक बेवजह के भार जैसा, पिछड़ेपन, अशिक्षा और गरी...
अस्तित्व ने छूआ आसमान

अस्तित्व ने छूआ आसमान

उत्तरकाशी
नीरज उत्तराखंडी, पुरोला उत्‍तरकाशी   प्रतिभा उम्र की मौहताज नहीं होती, छोटी अवधि में बड़ी उपलब्धि. but जी हां ऐसा ही कर दिखाया रवांई की माटी के बाल लाल 13 वर्षीय अस्तित्व डोभाल ने. "उत्तराखंड के किस बालक ने soथाईलैंड रूरल टूर्नामेंट स्केटिंग प्रतियोगिता में दो स्वर्ण पदक जीते हैं?" पीसीएस पीसीएस की मैन परीक्षा में जब उक्त प्रश्न से because आप का सामना हो या प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों में आप से यह प्रश्न पूछा जाय और आप चक्कर में पड़ जाय तो घबराइए नहीं, इस प्रश्न का सही उत्तर दे कर यदि आप को परीक्षा में अपने लक्ष्य का अस्तित्व बचाना है, तो जिस बालक का नाम आप को अपनी उत्तर पुस्तिक पर लिखना है, because उससे सुनकर आप का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा. यह बालक कोई और नहीं देव भूमि उत्तराखंड की रवांई घाटी बड़कोट निवासी चक्रगांव के बाल लाल अस्तित्व डोभाल है. परीक्षा जनपद उत्तरक...