Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
पहाड़ों से विलुप्त होते घराट…

पहाड़ों से विलुप्त होते घराट…

साहित्‍य-संस्कृति
खजान पान्डे परम्परागत तौर पर पहाड़ के लोगों की वैज्ञानिक सोच और दृष्टिकोण को देखना हो तो घराट जिसे घट भी कहा जाता है एक नायाब नमूना है. आधुनिकता की दौड़ में पहाड़ so और इसकी जीवनशैली से जुड़ी कुछ चीजें जो लगभग समाप्ति की और हैं उनमें घराट प्रमुख है. यूँ तो आज घर-घर में अनाज पीसने के लिए छोटी-छोटी बिजली से चलने वाली मशीनें लग चुकी हैं किन्तु पर्वतीय क्षेत्रों में घराट वैज्ञानिक पद्धति से निर्मित स्थानीय तकनीक है जिसके द्वारा सैकडों वर्षों तक लोगों द्वारा अनाज पिसा जाता रहा है. अनाज पीसने के लिए छोटी-छोटी बिजली नदियों के किनारे बने घराट में गाड़-गधेरों से नहरों (गूल) द्वारा पानी को लकड़ी से बने पनाले द्वारा पानी को निचले तल पर बने पंखेदार चक्र में छोड़ा जाता है. ऊपर के तल में दो पाटे (गोल पत्थर) बने हुए होते हैं जिसमें निचला पाटा स्थिर रहता है but और ऊपर का पाटे में चक्र के सीधे खड़े हिस्से (...
भारतीय हिमालय क्षेत्र से मानवीय पलायन के बहुआयामों पर सार्थक चर्चा करती पुस्तक

भारतीय हिमालय क्षेत्र से मानवीय पलायन के बहुआयामों पर सार्थक चर्चा करती पुस्तक

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल अपने गांव चामी की धार चमधार में बैठकर मित्र प्रो. अतुल जोशी के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय हिमालय क्षेत्र से पलायन: चुनौतियां एवं समाधान- Migration from Indian Himalaya Region: Challenges and Strategies' का अध्ययन मेरे लिए आनंददायी रहा है. इस किताब के because बहाने कुछ बातें साझा करना उचित लगा इसलिए आपकी की ओर मुख़ातिब हूं. उत्तराखंड ‘मेरी उन्नति अपने ग्राम और इलाके की उन्नति के साथ नहीं हुई है, उससे कटकर हुई है. जो राष्ट्रीय उन्नति स्थानीय उन्नति को खोने की कीमत पर होती है, वह कभी स्थाई नहीं because हो सकती. उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों का देश की उन्नति में कितना ही बड़ा योगदान हो, उत्तराखंड की समस्याओं से अलगाव और उन्नति में योगदान से उदासीनता उनके जीवन की बड़ी अपूर्णता है. यह राष्ट्र की भी बड़ी त्रासदी है.’ वरिष्ठ सामाजिक चिंतक और अर्थशास्त्री प्रो. पी. सी. जोशी...
गढ़वाल की प्रमुख बोलियाँ एवं उपबोलियाँ

गढ़वाल की प्रमुख बोलियाँ एवं उपबोलियाँ

साहित्‍य-संस्कृति
संकलनकर्ता : नवीन नौटियाल उत्तराखंड तैं मुख्य रूप सै गढ़वाळ और कुमौ द्वी मंडलूं मा बंट्यु च, जौनसार क्षेत्र गढ़वाळ का अधीन होणा बावजूद अपणी अलग पैचाण बणाण मा सफल रै। इले ही यु अबि बि विवादौकु बिसै च कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा च कि गढ़वळी की एक उपबोली च। [उत्तराखंड को मुख्य रूप से गढ़वाल और कुमाऊँ दो मंडलों में विभाजित किया गया है, जौनसार क्षेत्र गढ़वाल के अधीन होने के बावज़ूद अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में सफल हुआ है। इसीलिए यह अभी भी विवाद का विषय है कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा है या गढ़वाली की ही एक उपबोली है।] गढ़वळी का अंतर्गत आंण वळी मुख्य बोली और उपबोली ई छन – [गढ़वाली के अंतर्गत आने वाली प्रमुख बोलियाँ और उपबोलियाँ इस प्रकार हैं –] #जौनसारी - गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले के पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र जौनसार-बावर में #जौनपुरी - टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में #रवाँल्टी - उत्तरकाशी ज...
प्रकृति और जैविक उत्पादों से दिखाई स्वरोजगार की राह…

प्रकृति और जैविक उत्पादों से दिखाई स्वरोजगार की राह…

चमोली, देहरादून
अनीता मैठाणी स्थानीय संसाधन आधारित स्वरोजगार को मूल मंत्र मानने वाले निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे जगदम्बा प्रसाद मैठाणी वर्ष 1997 से अपने जन्म स्थान पीपलकोटी चमोली और उसके because आसपास स्वरोजगार के नवाचारी प्रयासों के लिए कृत संकल्प हैं. उनके ज्यादातर मित्र उन्हें जेपी के नाम से जानते हैं. शुरुआत में नेशनल एडवेंचर फाउंडेशन से जुड़े होने की वजह से एडवेंचर टूरिज्म और इकोटूरिज्म के प्रति सदैव because रूझान रहा. लेकिन वो जानते थे कि उत्तराखंड में इकोटूरिज्म या इससे मिलते-जुलते स्वरोजगार के संसाधन जैसे- जैविक उत्पाद, हस्तशिल्प, जड़ी-बूटी की खेती और फल तथा उद्यानिकी पहाड़ों में रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं. उत्तराखंड उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वरोजगार के ना होने की वजह से ही पलायन हो रहा है. इसलिए अगर स्थानीय संसाधनों जैसे उद्यानिकी, बायोटूरिज्म, so ...
पहाड़ के सपूत लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमरी ने संभाला सेंट्रल कमांड का दायित्व

पहाड़ के सपूत लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमरी ने संभाला सेंट्रल कमांड का दायित्व

इंटरव्‍यू
हिमांतर ब्यूरो उत्तराखंड के सपूत लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमरी ने 1 अप्रैल 2021 को देश की सबसे बड़ी कमान के आर्मी कमांडर का पद संभाल लिया. इससे पहले लेफ्टिनेंट जनरल because डिमरी चीफ ऑफ स्टाफ वेस्टर्न कमांड थे. लेफ्टिनेंट जनरल डिमरी ने लेफ्टिनेंट जनरल आईएस घुम्मन का स्थान लिया, जो 31 मार्च को रिटायर हो गये. उत्तराखंड लेफ्टिनेंट जनरल डिमरी ने so इंजीनियरिंग कोर में साल 1983 में कमीशन प्राप्त किया था. वह एनडीए खड़गवासला और आईएमए देहरादून से पासआउट हैं. यहां आर्डर ऑफ मेरिट में प्रथम आने पर ले. जनरल डिमरी को राष्ट्रपति मेडल प्रदान किया गया था. उत्तराखंड लेफ्टिनेंट जनरल डिमरी ने मध्य कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ का पदभार संभालने के बाद छावनी स्थित मध्य कमान युद्ध स्मारक स्मृतिका पर बलिदानियों को because नमन किया. उन्होंने गार्ड ऑफ ऑनर की सलामी ली. मध्य कमान की यूपी, उत्तराखंड,...
पर्वतारोहण और ट्रैकिंग से स्वरोजगार की पहल…

पर्वतारोहण और ट्रैकिंग से स्वरोजगार की पहल…

चमोली, पर्यटन
शशि मोहन रवांल्टा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्रीराम शर्मा के गीत ‘करो राष्ट्र निर्माण बनाओ मिट्टी से सोना’ जी हां! इस गीत की पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है उत्तरकाशी जिले because के दूरस्थ गांव सौड़-सांकरी के चैन सिंह रावत ने. उन्होंने पर्वतारोहण और ट्रैकिंग के काम को पर्यटन व्यवसाय से जोड़ा है. अब उनके गांव के हर नौजवान के पास ‘होम स्टे’ के रूप में स्वरोजगार है. बसंत ऋतु उत्तरकाशी जिले के so सीमान्त विकासखण्ड मोरी के दूरस्थ गांव सांकरी में वर्ष के 10 माह तक पर्यटकों की आमद देखने को मिलती है. जनवरी और फरवरी माह में यह सम्पूर्ण घाटी बर्फ से ढक जाती है. यहां पर हरे-भरे जंगल, गोविंद पशु विहार नेशनल पार्क और सैंचुरी (Govind Pashu Vihar National Park & Sanctuary), सेब के बागान, पास में बह रही सुपीन नदी, हरकीदून बुग्याल, केदारकांठा ट्रैक, जुड़ी ताल की सैर, इसके अलावा इस घाटी में स...
होली रे होली, चित्रों से बोली!

होली रे होली, चित्रों से बोली!

लोक पर्व-त्योहार
आब-ए-पाशी   मंजू दिल से… भाग-13 मंजू काला बसंत ऋतु के प्रसिद्ध एवम भारतीय संस्कृति के प्रतीक होली पर्व का अभिप्राय है-आनंद, उल्सास, अथवा हास-परिहास! इस पर्व का आगमन ही ऐसे मौसम में होता है, so जब प्रकृति की आभा पूर्ण यौवन पर रहती है! because मंद-मंद पवन से वातावरण आमोदित-प्रमोदित होता रहता है! सम्पूर्ण सृष्टि उत्साह उमंग से झूम उठती है! टेसु और सेमल के फूल ऐसे लगते हैं, जैसे नव-वधू श्रंगार कर अपने अरसिक प्रिय को रिझाने के लिए बैठी हो! बसंत ऋतु यह पर्व पूरे भारत तथा नेपाल में खूब धूमधाम और उमंग के साथ मनाया जाने वाला पर्व हैं.पर्व का प्रारम्भ होलिकादहन से होता है. अगले दिन जनमानस अबीर, गुलाल so और गीले रंगों के साथ तथा पर्यावरण प्रेमी , फूलों व हर्बल गुलाल के साथ होली के पर्व का आनंद मनाते हैं. कहीं – कहीं यह पर्व आज भी अपनी प्राचीन परम्परा के अनुरूप ही  सप्ताह भर तक मनाया जाता ह...
होरी खेरे तो अइयो मेरे गांव!

होरी खेरे तो अइयो मेरे गांव!

लोक पर्व-त्योहार
फाल्गुनी में धमार का सौरव मंजू दिल से… भाग-12 मंजू काला होली पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है! राग, अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगी छटा के साथ अपनी पूर्णता को प्राप्त हो जाती है! फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं. होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है. उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है. इस दिन से फाग और धमार का गायन प्रारंभ हो जाता है. खेतों में सरसों खिल उठती है. बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है. पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं. खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं. देश के बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं! चारों तरफ़ रंगों की ...
कुमाऊंनी होली संग, झूमता बसंत

कुमाऊंनी होली संग, झूमता बसंत

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. पुष्पलता भट्ट 'पुष्प' हिमालय  के प्रांगण में स्थित, देवताओ की अवतार स्थली ,ऋषि मुनियों की तपोभूमि  उत्तराखंड अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विश्व भर में जाना जाता है. अभाव,कठोर परिश्रम,संघर्ष  में भी वहां के  लोग अपने लिए खुशियों के पल जुटा ही लेते हैं. जीवन यापन का प्रमुख साधन खेती होने के कारण  वहां तीज- त्योहार,  मेले- उत्सव सभी  कृषि से जुड़े होते हैं. होली ऐसा ही एक परम्परागत त्योहार है,  जो वहां के संघर्ष भरे जीवन में नव उमंग व नव उत्साह लेकर आता है. उत्तराखंड में बसंत पंचमी (इसे माघ शुक्ल पंचमी भी कहते हैं ) से शीत ऋतु की समाप्ति  मानी जाती है. पूरी धरती प्योली, बुराँस, दुदभाति, दाड़िम,सरसों के पुष्पों का पिछौड़ा (चूनर) ओढ़ दुल्हन सी इठलाती है. नई फसल कटकर खलिहानों से घर आती है. और अगली फसल के लिए खेतों में बुआई का काम शुरू हो जाता है. प्रकृति नाचती है, तो मन भी नाचता है. ...
पाती प्रेम की

पाती प्रेम की

कविताएं
यामिनी नयन गुप्ता इतिहास के पन्नों में जाकर कालातीत होने को अभिशप्त हो गई परीपाटी चिट्ठियों की वह सुनहरा दौर, डाकिए का इंतजार साइकिल की घंटी डाक लाया का शोर, अब नजर नहीं आतीं लाल रंग की पत्र पेटियां प्रियतम की पाती का दौर; बूढ़ी आंखों की प्रतीक्षा कुशलक्षेम का समाचार, गौने की राह तकती नवयुवती का इंतजार आपसी संवाद का जरिया, संदेशे प्रेम के खलिहानों का दौर; सुदूर कंक्रीट के शहरों में जा बसे बेटे का खत… फक्त कागज का पुर्जा ना था, पुरानी चिट्ठियों को उलट-पलटकर बार-बार पढ़ने का सुख, रोजी-रोटी की टोह में सब हो गई बातें बीते समय की धैर्य मानो गया है चुक; अब नहीं भाता किसी को इंतजार प्रतीक्षा प्रत्युत्तर की, कभी समय मिले तो लगाओ हिसाब तकनीक ने कितना लिया और क्या दिया, चिट्ठियों के जरिए बांटा गया अपनापन रिश्तो को सहेजने-सवांरने का ढंग अब कभी लौटकर नहीं आयेंग...