क्या सच में गाँधी तुम घटते जा रहे हो!..

गांधी जयंती (2 अक्टूबर) पर विशेष

प्रकाश उप्रेती

देखो गाँधी तुम्हारे चेले कितनी मौज में हैं. because तुम हाड़-मांस की काया के भीतर थे लेकिन तुम्हारे चेले उसके बाहर हैं. इस देश में सबसे आसान और सबसे कठिन गाँधीवादी बनना है. अगर गाँधी का मतलब नैतिक बल, स्वयं को संशोधित करना, आचरण की शुद्धता और अभ्यास है तो वो सबसे मुश्किल है लेकिन अगर कुर्ता, पजामा, टोपी, झोला और कोल्हापुरी चप्पलों का अर्थ ही गाँधीवादी होना है तो सबसे आसान है. because मुझे पता है गाँधी तुम भी अब इस दूसरी जमात वाले लोगों को ही चाहते हो.

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आज तुम्हारे चेले इसी जमात के तो हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो वो वहाँ नज़र आते जहाँ किसान आंदोलन कर रहे हैं, जहाँ एक माँ अपनी बेटी के लिए आँचल फैला रही है, जहाँ because भात-भात कहते हुए एक लड़की प्राण त्याग देती है, जहाँ सैकडों मजदूर सड़कों पर थे, जहाँ महामारी में इलाज के लिए लोग तड़प रहे थे, जहाँ एक- दूसरे समुदाय पर बंदूकें तनी हुई थी, जहाँ शिक्षा के लिए हजारों छात्र सड़कों पर थे लेकिन तुम्हारे चेले इनमें से कहीं नहीं थे. वह थे तो बस किसी टीवी की डिबेट, विश्वविद्यालय के वातानुकूलित चैम्बर, भव्य इमारतों के अंदर और शिमला, मनाली जैसी ठंडी जगहों पर, उनको यहीं तो होना था.

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उनके लिए गाँधी-वाद का मतलब because शांति ही तो है जिसे वो ‘पीस’ के रूप में देखते हैं. सच कहो, अगर तुम होते तो कहाँ होते, शिमला में या सड़कों पर ? हवेलियों में या हाथरस में? राजघाट पर या सीलमपुर में ? बोलो न!

गाँधी मैंने कई वर्ष तुम्हारी because एक कर्मस्थली में बिताए हैं. उस कर्मस्थली में भी तुम बस आवरणों में ही बचे हुए थे. मैं जब-जब सेवाग्राम जाता था तो तुमको भागते हुए ही पाता था. गाँधी क्यों भाग रहे थे ! बोलो न…

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मैंने तुम्हारे नाम पर बने विश्वविद्यालय because को भी करीब से देखा है. वहाँ भी तुम अकादमिक छाया से बहुत दूर ‘हिल’ पर विराजमान हो. अब, वैसे भी वही तुम्हारी सही जगह है. मैंने कई बार तुम्हारी उस आदमकद मूर्ति को देखा है लेकिन उसे हर 2 अक्टूबर को पहले से छोटा ही पाया है. क्या सच में गाँधी तुम घटते जा रहे हो?

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मैं जब-जब तुम्हारे सफेद, स्वघोषित because अनुयायियों से मिला हूँ उन्हें हर बार तुम्हारी ओर पीठ करे ही पाया है. यही तो नैतिकता है न गाँधी ! तुम भी तो यही चाहते हो न गाँधी!

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अच्छा गाँधी, तुमको पता है because कल 2 अक्टूबर है. तुम्हारी जयंती! कल तुम पर पुष्प-वर्षा होगी, धूल खाती तुम्हारी समाधि को पोंछ दिया जाएगा. अगल-बगल के कांटे उखाड़ दिए जाएंगे. कुछ समय मौन होगा उसके बाद चीख़. कल अखबारों के पन्नों, न्यूज़ के प्रोग्रामों, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के पटलों से लेकर सड़क किनारे लगे होर्डिंग् पर गाँधी तुम ही तुम होगे. पूरे दिन टीवी तुम्हारी असत्य फिल्में ही चलाएगा. और तो और हर ‘कुजात गाँधीवादी’ सफेद लिबास में तुम्हारे स्मारकों को खोजते फिरेगा.

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गाँधी यह पक्का मानो कि कल because तुम्हारा कोई न कोई चेला तुम्हें समाधि से बाहर खींच ही लाएगा. समाधि से याद आया… तुम भी सुनो भीष्म साहनी ने लिखा है-

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“अंधेरा उतर रहा था, जब हम राजघाट पहुँचे. मैं तनिक चौंका. यहाँ पहले वाले राजघाट की बात नहीं थी. कुछ रास्ता पहले ही सड़क ऊबड़- खाबड़ हो रही थी. गाड़ी गड्ढों पर से हिचकोले खाती आगे बढ़ रही थी. प्रवेश पथ पर अंधी मेहराब तो थी, पर ऊँची दीवार खस्ता हो रही थी. जगह-जगह से ईंटें टूट-टूटकर गिर रही थी. मैं अंदर गया. because महिला-ड्राइवर ने ठीक ही कहा था, यहाँ झाड़-झंझाड़ के अलावा कुछ नहीं था. चबूतरा भी झाड़ियों के नीचे जैसे दबा हुआ था. सायंकाल के बढ़ते अंधेरे में खंडहर सा लग रहा था. झाड़ियों से अटे चबूतरे के पास खड़ा होते हुए मुझे डर भी लग रहा था कि कहीं कोई बिच्छू या साँप काट न खाए! चबूतरे से थोड़ी दूरी पर चार-पाँच बेघर से लोग बैठे गाँजे के कश लगा रहे थे- मुझे ऐसा ही जान पड़ा”. सुन लिया न!

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ऐसा व्यक्ति एक नहीं कई जगह तुम पर बोलेगा. हर जगह उसका परिचय तुमसे होगा जैसे- गाँधीवादी चिंतक, गाँधी विचारक, गाँधी के जानकार, गाँधी पर किताब लिखने वाले लेखक, because गाँधी के नाम पर बनी संस्था के निर्देशक, गाँधी के अध्येता, गाँधी को पढ़ाने वाले, गाँधी कुर्ता पहनने वाले, गाँधी पर फ़िल्म बनाने वाले, गाँधी शव  विशेषज्ञ, गाँधी पीठा-सीन के अलाना-फलाना, गाँधी के मर-मर -ज्ञ, आदि अनादि. जब-जब उसका यह परिचय दिया जाएगा तो उसकी बाँछे खिल जाएंगी.

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पता है न तुमको, because कल तुम अचानक हर आत्मा में प्रकट हो जाओगे और सबसे ज्यादा छली, प्रपंची, झूठा, हिंसक, अनैतिक व्यक्ति तुम पर सबसे लंबा व्याख्यान देगा. तुम उसकी आत्मा में समा जाओगे. उसके व्याख्यान से ऐसा भान होगा कि-

 “आ साजन मोरे because नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ.
न मैं देखूँ औरन को, न तोहे देखन दूँ..”

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ऐसा व्यक्ति एक नहीं कई जगह तुम पर बोलेगा. हर जगह उसका परिचय तुमसे होगा जैसे- गाँधीवादी चिंतक, गाँधी विचारक, गाँधी के जानकार, गाँधी पर किताब लिखने वाले लेखक, गाँधी के नाम पर बनी संस्था के निर्देशक, गाँधी के अध्येता, गाँधी को पढ़ाने वाले, गाँधी कुर्ता पहनने वाले, गाँधी पर फ़िल्म बनाने वाले, गाँधी शव  विशेषज्ञ, because गाँधी पीठा-सीन के अलाना-फलाना, गाँधी के मर-मर -ज्ञ, आदि अनादि. जब-जब उसका यह परिचय दिया जाएगा तो उसकी बाँछे खिल जाएंगी. गाँधी, तुम भी तो यही चाहते हो न?  सच कहो…

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अब एक अंतिम बात गाँधी और सुन लो क्या तुमको पता है? कल तुम्हारे ‘सपनों के भारत’ पर भी बात होगी लेकिन वो तो अभी सपनों में ही है. वैसे भी जाग कर करना क्या है! because सपने में रहने से कम से कम सोए हुए का भ्रम तो बना रहता है. जाग गए तो यह भ्रम भी टूट जाएगा. क्यों तुम भी यही चाहते हो न?

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देखना कल तुम हर जगह होगे, बस जहाँ होना चाहिए वहीं नहीं रहोगे. इसलिए तुमको एक बात बताता चलूं कि तुम्हारी जयंती अपने लिए खास है क्योंकि इस दिन अपनी छुट्टी रहती है. because तुम तो कहते थे न कि “जिस दिन मैं कोई श्रम नहीं करता उस दिन मुझे अन्न ग्रहण करने का कोई हक नहीं है” लेकिन देखो तुम्हारी जयंती पर अपनी छुट्टी है, मैं कल पसेरी भर भात खाऊंगा और तुम पर व्याख्यान भी दूँगा. देखो, है न कमाल की बात! तुम भी तो यही चाहते हो न!

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अब एक अंतिम बात गाँधी because और सुन लो क्या तुमको पता है? कल तुम्हारे ‘सपनों के भारत’ पर भी बात होगी लेकिन वो तो अभी सपनों में ही है. वैसे भी जाग कर करना क्या है! सपने में रहने से कम से कम सोए हुए का भ्रम तो बना रहता है. जाग गए तो यह भ्रम भी टूट जाएगा. क्यों तुम भी यही चाहते हो न? सच- सच कहो गाँधी इसके बाद भी तुमको अपनी जयंती से डर नहीं लगता है… बताओ न! कहो न! सच बोलो क्या तुम हर 2 अक्टूबर को घट नहीं रहे हो!..

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(डॉ. प्रकाश उप्रेती दिल्ली विश्वविद्यालय because में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं हिमांतर पत्रिका के संपादक हैं और
पहाड़ के सवालों को लेकर हमेशा मुखर रहते हैं.)

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