उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों में झंगोरा (सामा चावल या बर्नयार्ड मिलेट) से बनी खीर एक ऐसा व्यंजन है जो स्वाद और स्वास्थ्य का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है. यह न केवल स्थानीय संस्कृति का अभिन्न अंग है, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पौष्टिकता के लिए पहचान बना चुकी है. इस खीर को व्रत-त्योहारों से लेकर राजकीय भोजों तक विशेष स्थान प्राप्त है. 2013 में ब्रिटिश राजकुमार प्रिंस चार्ल्स और कैमिला पार्कर के उत्तराखंड दौरे के दौरान इस खीर को परोसा गया, जिसके बाद उन्होंने इसकी विधि जानने की इच्छा व्यक्त की. 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे राष्ट्रपति भवन के मेन्यू में शामिल करवाया. यह घटना झंगोरा की खीर को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में मील का पत्थर साबित हुई.
पोषक तत्वों का समृद्ध स्रोत
झंगोरा में भारी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिज पाए जाते हैं, जो इसे एक संपूर्ण आहार बनाते हैं. इसका उपयोग पारंपरिक व्यंजनों जैसे खिचड़ी, पुलाव और खीर बनाने में किया जाता है. लोकल 18 के साथ बातचीत में उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित कायाकल्प हर्बल क्लीनिक के डॉ राजकुमार (डी.यू.एम) ने बताया कि झंगोरा के सेवन से शरीर को कई बीमारियों से बचाया जा सकता है.
झंगोरा के औषधीय गुणों की बात करें, तो इसमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जो इसे डायबिटीज के मरीजों के लिए उपयुक्त बनाता है. यह धीरे-धीरे शुगर को रिलीज करता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित रहता है. इसमें मौजूद फाइबर पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है. झंगोरा ग्लूटेन फ्री होता है, इसलिए यह उन लोगों के लिए आदर्श है, जिन्हें ग्लूटेन एलर्जी होती है. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं, जो शरीर से हानिकारक तत्वों को निकालने में सहायक होते हैं और इम्युनिटी को बढ़ाते हैं. झंगोरा में मौजूद मैग्नीशियम और पोटैशियम हृदय को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं. यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में सहायक है.
पारंपरिक ज्ञान का पुनरुत्थान
झंगोरा की खीर ने सदियों के कृषि ज्ञान और समकालीन पोषण विज्ञान के समन्वय से एक सुपरफूड का दर्जा प्राप्त किया है. मधुमेह, हृदय रोग और मोटापे जैसी वैश्विक चुनौतियों के समाधान में इसकी भूमिका अहम है. स्थानीय किसानों को प्रोत्साहन देकर तथा जैव-प्रसंस्करण तकनीकों के माध्यम से प्रोटीन पाउडर जैसे उत्पाद विकसित कर इसकी उपयोगिता बढ़ाई जा सकती है. 2023 के राष्ट्रीय मिलेट वर्ष ने इस अनाज के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भविष्य में सतत पैकेजिंग और डिजिटल मार्केटिंग रणनीतियों के माध्यम से इसे वैश्विक ‘सुपरफूड’ के रूप में स्थापित किया जा सकता है.
शास्त्रीय पहाड़ी पद्धति
तांबे के बर्तन में 2 लीटर दूध को धीमी आंच पर उबालकर आधा किया जाता है. भीगे हुए झंगोरा (300 ग्राम), गुड़/चीनी (150 ग्राम), और इलायची डालकर 15-20 मिनट पकाया जाता है. अंत में केसर, बादाम और गुलाब जल से सजाया जाता है. इस विधि में मैदा या रिफाइंड तेल का उपयोग नहीं होता.
झंगोरा की खेती में धान की तुलना में 70% कम पानी की आवश्यकता होती है. यह 45-50°C तापमान सहन कर सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में महत्वपूर्ण है. रासायनिक उर्वरकों के बिना उगाने की क्षमता इसे जैविक खेती के लिए आदर्श बनाती है.