- हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली
यात्रा, भूगोल की दूरी को नापना भर नहीं है बल्कि भूगोल के भीतर की विविधता को ठहर कर महसूस करना और समझना है. यही स्वानुभूति यात्रा- वृत्तांत का आत्मा और रस तत्व होता है. इसी स्वानुभूति की प्रमाणिकता को आत्मसात करने वाली पुस्तक है, ‘सिलपाटा से सियाचिन तक’. हिमांतर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का 13 जनवरी, 2023 को दिल्ली में संस्कृत अकादमी के सभागार में लोकार्पण हुआ. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक, घुमक्कड़ और साहित्यकार व इस पुस्तक की भूमिका लिखने वाले देवेन्द्र मेवाड़ी ने की, उन्होंने इस पुस्तक की प्रमाणिकता और फौजी जीवन के बीच बंदूक के साथ कलम हाथ में थामने वाले लेखक द्वारा पुस्तक में चित्रित सूक्ष्म विवरणों की ओर सबका ध्यान दिलाया. साथ ही उन्होंने कहा कि- यह यात्रा वृत्तांत सिर्फ विवरण भर नहीं है बल्कि इसके जरिए आप फ़ौजी जीवन के विविध आयामों और उत्तराखंड से लेकर कश्मीर तक के सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक संदर्भों को समझ सकते हैं.
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. जीतराम भट्ट ने कहा कि 28 वर्षों तक देश की सेवा करने के बाद प्रकाश चन्द्र पुनेठा ने आपने संस्मरणों को यात्रा वृत्तांत के रूप में पिरोया है. उन्होंने किताब की भाषा की तरफ पाठकों का ध्यानाकर्षण किया और कहा कि इस किताब की भाषा में हिंदी का माधुर्य नज़र आता है. किताब में जो शब्द चयन है वह बरबस पाठकों को आकर्षित करते हैं.
कार्यक्रम की विशिष्ट वक्ता डॉ. राजेश्वरी कापड़ी (उपनिदेशिका, शिक्षा विभाग, दिल्ली सरकार) ने कहा कि इस किताब को पढ़ते हुए मुझे अपना जीवन भी याद आ गया. इस किताब में जिन लोगों और स्थानों वर्णन किया है, उन सबके साथ मैं भी आत्मीय रूप से जुड़ी हूँ. उन्होंने कहा कि यह किताब एक बैठक में पढ़ी जाने वाली किताब है. इसमें एक, बेटा, विद्यार्थी, पति, जवान और सबसे ऊपर निश्छल मनुष्य की जीवन यात्रा व संघर्ष को भी पढ़ा जा सकता है.
वक्ता के तौर पर डॉ अनिता भारती ने विशेष रूप से प्रकाश चन्द्र पुनेठा की माता जी का जिक्र किया और उन्होंने कहा कि किताब को पढ़ते हुए मुझे पहाड़ के जीवन को समझने का मौका मिला. दूसरे वक्ता डॉ. रमेश प्रजापति ने कहा कि यह पुस्तक यात्रा वृत्तांत के साथ हिंदुस्तान के अलग-अलग क्षेत्रों को समझने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है.
पुस्तक के लेखक प्रकाश चन्द्र पुनेठा ने अपने विचार रखते हुआ कहा कि इस किताब को लिखने में पाँच वर्ष का समय लगा है. इस दौरान मेरे परिवार ने मुझे बड़ा सहयोग किया, तभी मैं इसे लिख पाया. उन्होंने अपने फौजी जीवन के बारे में श्रोताओं को बताया. कार्यक्रम का संचालन प्रकाश उप्रेती और शशिमोहन रंवाल्टा ने किया और धन्यवाद ललित फुलारा ने दिया. इस कार्यक्रम में साहित्य, संगीत और कला से जुड़े गंभीर अध्येता उपस्थित रहे.