- सुनीता भट्ट पैन्यूली
रंग हैं, मौसम हैं, तालाब हैं पोखर हैं, मछली है, खेत हैं, खलिहान हैं, पुआल है, मवेशी, कुत्ता, गिलहरी हैं, ढिबरी है, बखरी है, बरगद है, पीपल हैं, पहाड़ हैं, पगडंडियां हैं,
आकाश है, ललछौंहा सूरज है, धूप है, बादल हैं, बुजुर्ग मा-बाबूजी हैं, बच्चे हैं, बीमारी है, षोडशी है, मेहनतकश जुलाहे की दिनचर्या है, भूख है, चुल्हा है, राख है तवा है, गोल रोटी है, मजबूरी है, संताप है, भूख है, परंपरायें हैं, रस्म हैं रिवाज हैं, लोक-परंपराओं और माटी की खूशबू है.किताबी तिलिस्म
ऐसा एक किताबी तिलिस्म
जिसमें सिमट आया है सबकुछ इंसानी जज़्बात, रिश्तों की जद्दोजहद, रोज़मर्रा की खींचतान जिंदगी से, साक्षात्कार दैनिक जीवन-मुल्यों का और विशेषकर आदमी की दैनंदिन उपभोग की मूलभूत आवश्यकताओं का.उपरोक्त जो भी मैंने लिखा
है मित्रों परिचय करा रही हूं मैं आदरणीय श्लेष अलंकार द्वारा लिखी गयी “किताब उजाले शेष हैं” से. किताब पढने के उपरांत जो भी विचारों का उत्स हुआ अपने शब्दों में आप सभी पाठकों तक पहुंचाने का मेरा सूक्ष्म प्रयास.किताबी तिलिस्म
“उजाले शेष हैं का प्रमुख आकर्षण ध्रुव गुप्त (Dhruv Gupt) द्वारा लिखा गया किताब का आमुख है, जहां कविताओं का मापदंड
और कविता के परिप्रेक्ष्य में श्लेष अलंकार की कविता कितनी खरी उतरती है की प्रभावपूर्ण समीक्षा ने “उजाले शेष हैं” में चार चांद लगा दिये हैं.शैलेश सर की “किताब
उजाले शेष हैं” 152 कविताओं का संग्रह है प्रत्येक कविता विविध विषय किंतु ग्रामीण परिवेश के एक ही रोचक ताने-बाने में गुथी हुई प्रतीत होती हैं.किताबी तिलिस्म
“उजाले शेष हैं” वास्तविकता की ज़मी पर कल्पनाशीलता का वह चरमोत्कर्ष है जहां सिर्फ़ स्वच्छ हवा, लहलहाते खेत, कच्ची पगडंडियां, पोखर में खिलते कुमुद, प्राची में उगता सूरज,
पूस के महीने में धूप की नरम गर्माईश, पगडंडी पर पसीने की खुशबू में सुकून से कलेवा खाता खेतिहर,खेत जोतते बैल, बसंत में अठखेलियां करती षोडसी किशोरियों के व्यापक दर्शन होते हैं.किताबी तिलिस्म
आदरणीय श्लेष अलंकार सर का काव्य
संग्रह “उजाले शेष हैं” से गुजरना एक ऐसे संसार एक एसे विशिष्ट परिवेश में पदार्पण करना है जहां बनावटीपन, भड़काऊपन,असहजता,बड़बोलेपन की निश्चित रूप से अवैधता है.मेरी समझ से आदरणीय श्लेष
अलंकार सर की कविताओं की प्रांजलता, उत्कृष्ट लेखन-कर्म और रचनात्मक कौशलता उनकी सजग एन्द्रियता का ही परिणाम है जहां उन्होंने जीवन के उन छोटे-छोटे पहलुओं, घटनाओं, परंपराओं, मान्यताओं को शब्दबद्ध किया है जिन्हें शायद आज की हम या भावी- पीढी बमुश्किल परिचित हैं.किताबी तिलिस्म
आज के मशीनी और औपचारिक
दौर में नितांत ज़रूरी है ऐसी कविताओं का सृजन होना जो हम सभी को हमारी मिट्टी, हमारी जड़ों, हमारे परिवेश, हमारे दैनिक मुल्यों से अवगत कराती हैं, निम्न परिप्रेक्ष्य में श्लेष सर की कवितायें खरी उतरती प्रतीत होती हैं.किताबी तिलिस्म
श्लेष सर की कविताओं के सरोकार के केंद्र में गरीबी व लाचारी से जुझता परिवार,अपने परिवार के वापस लौटने की पगडंडियों की राह तकता उम्रदराज, विलुप्त होती परंपरायें हैं
जो गहन विमर्श और विश्लेषण की अपेक्षा करती हैं. श्लेष सर की कविताएं आंचलिक परिवेश का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हैं विषय वस्तु वैविध्यपूर्ण, भाषा सहज व ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है.किताबी तिलिस्म
“उजाले शेष हैं”
कवि का किसी विशिष्ट परिवेश में वैविध्यपूर्ण अनुभव तथा उस विशिष्ट परिवेश की समस्याओं के प्रति गहन चिंतन तथा भावी पीढी को अपनी जड़ो से जुड़े रहने का सतत प्रयास और उसके पीछे छुपी कवि की आकुलता सहज ही दृष्टिगोचर होती है साथ ही कवितायें सकारात्मक संदेश देती हुई भी उजागर होती हैं.
किताबी तिलिस्म
काव्य संग्रह “उजाले शेष हैं” में जो मुख्य आकर्षण के केंद्र हैं वह हैं किरदारों के नाम जो पाठकों के हृदय में अमिट छाप छोड़ने का दावा करते हैं जैसे कि- मंगरू, सुरसतिया, रजमतिया, भंगुराहा चाची, भूंईलोटन महतो, बलचरना की माई इत्यादि,इत्यादि.
अंततः “उजाले शेष हैं”
कवि का किसी विशिष्ट परिवेश में वैविध्यपूर्ण अनुभव तथा उस विशिष्ट परिवेश की समस्याओं के प्रति गहन चिंतन तथा भावी पीढी को अपनी जड़ो से जुड़े रहने का सतत प्रयास और उसके पीछे छुपी कवि की आकुलता सहज ही दृष्टिगोचर होती है साथ ही कवितायें सकारात्मक संदेश देती हुई भी उजागर होती हैं. आदरणीय श्लेष सर की किताब “उजाले शेष हैं” सफलता के क्षितिज पर ललछौंहा सूरज बनकर दमके ऐसी मेरी शुभकामनाएं हैं.किताबी तिलिस्म
(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्र—पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)