- वाई एस बिष्ट, नई दिल्ली
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज राज्यसभा में पूर्वी लद्दाख के मौजूदा हालात की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पैंगोंग झील इलाके में चीन के साथ पीछे हटने को लेकर समझौता हो गया है. पिछले 8 महीने से ज्यादा समय से भारत और चीन की सेनाएं आमने सामने हैं. राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं सदन को यह भी बताना चाहता हूं कि भारत ने चीन को हमेशा यह कहा है कि द्विपक्षीय संबंध दोनों पक्षों के प्रयास से ही विकसित हो सकते हैं, साथ ही सीमा के प्रश्न को भी बातचीत के जरिए हल किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति में किसी प्रकार की प्रतिकूल स्थिति का हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर बुरा असर पड़ता है. कई उच्च स्तरीय संयुक्त बयानों में भी यह जिक्र किया गया है कि एलएसी तथा सीमाओं पर शांति कायम रखना द्विपक्षीय संबंधों के लिए अत्यंत आवश्यक है. पिछले वर्ष मैंने इस सदन को अवगत कराया था कि एलएसी के आस-पास पूर्वी लद्दाख में टकराव के कई इलाके बन गए हैं.
हमारे सशस्त्र सेनाओं द्वारा भी भारत की सुरक्षा की दृष्टि से उचित तथा प्रभावी तैनाती की गई है. मुझे यह बताते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि भारतीय सेनाओं ने इन सभी चुनौतियों का डटकर सामना किया है तथा अपने शौर्य एवं बहादुरी का परिचय पैंगोंग झील के दक्षिण और उत्तरी किनारे पर दिया है. भारतीय सेनाएं अत्यंत बहादुरी से लद्दाख की ऊंची दुर्गम पहाड़ियों तथा कई मीटर बर्फ के बीच में भी सीमाओं की रक्षा करते हुए अडिग हैं. हमारी सेनाओं ने इस बार भी यह साबित करके दिखाया है कि भारत की संप्रभुता एवं अखंडता की रक्षा करने में वे सदैव हर चुनौती से लड़ने के लिए तत्पर हैं.
टकराव वाले क्षेत्रों में सैनिकों के पीछे हटने के लिए भारत का यह मत है कि 2020 की फॉरवर्ड तैनाती जो एक-दूसरे के बहुत नजदीक हैं, वे दूर हो जाएं और दोनों सेनाएं वापस अपनी-अपनी स्थायी एवं मान्य चैकियों पर लौट जाएं. बातचीत के लिए हमारी रणनीति तथा अप्रोच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दिशा निर्देश पर आधारित है कि हम अपनी एक इंच जमीन भी किसी और देश को नहीं लेने देंगे. हमारे दृढ़ संकल्प का ही यह फल है कि हम समझौते की स्थिति पर पहुंच गए हैं. इन दिशा निर्देशों के दृष्टिगत सितम्बर, 2020 से लगातार सैन्य और राजनयिक स्तर पर दोनों पक्षों में कई बार बातचीत हुई है कि पीछे हटने का पारस्परिक स्वीकार्य तरीका निकाला जाए. अभी तक सीनियर कमांडर्स के स्तर पर 9 दौर की बातचीत हो चुकी है.
मुझे सदन को यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे इस अप्रोच तथा सतत बातचीत के फलस्वरूप चीन के साथ पैंगोंग झील के उत्तर एवं दक्षिण किनारे पर डिसइंगेजमेंट का समझौता हो गया है. पैंगोंग लेक एरिया में चीन के साथ पीछे हटने का जो समझौता हुआ है उसके अनुसार दोनों पक्ष फॉरवर्ड तैनाती को चरणबद्ध, समन्वित और सत्यापित तरीके से हटाएंगे.
राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं इस सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि इस बातचीत में हमने कुछ भी खोया नहीं है. सदन को यह जानकारी भी देना चाहता हूं कि अभी भी एलएसी पर तैनाती तथा पेट्रोलिंग के बारे में कुछ मसले बचे हैं. इन पर हमारा ध्यान आगे की बातचीत में रहेगा. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि द्विपक्षीय समझौते तथा प्रोटोकॉल के तहत पूर्ण रूप से पीछे हटने को जल्द से जल्द कर लिया जाए.
भारत और चीन के बीच सीमा पर मई की शुरुआत से गतिरोध जारी है. 29-30 अगस्त की रात चीन ने घुसपैठ की कोशिश की. इसके कारण दोनों देशों के रिश्तों में तनाव और ज्यादा बढ़ गया. चीन की सेना ने पेंगोंग झील के दक्षिणी छोर की पहाड़ी पर कब्जा करने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय जवानों ने नाकाम कर दिया. चार दिन बाद चीन के फिर घुसपैठ की कोशिश की और इस बार भी भारतीय जवानों ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया.
भारत और चीन के सेनाओं के बीच बोर्डर पर चल रही तनातनी के बीच मास्को में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच बातचीत हुई. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अपने अपने देश का प्रतिनिधित्व किया. दोनों शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए मॉस्को पहुंचे थे. उस समय दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए पांच बिंदुओं पर सहमति बनी थी.
जुलाई में एनएसए अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री और स्टेट काउंसलर वांग यी के बीच सीमा पर तनाव कम करने के लिए बातचीत हुई थी. दोनों देश भविष्य में गलवान घाटी जैसी घटनाओं को रोकने के लिए सहमत हुए. इस बैठक में दोनों पक्ष इस बात पर सहमत दिखे कि जल्दी से जल्दी से विवादित क्षेत्र से सेनाएं पीछे हट जाएं और वहां शांति बहाली हो. लेकिन इस बातचीत के बाद 29-30 अगस्त की रात चीनी सेना ने एलएसी पर चाल चली, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया था.
भारत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहता है लेकिन अगर कोई देश हमारी सीमाओं की ओर बुरी नजर से देखेगा तो उसे इसका परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा.
चीन शुरू से ही सीमा विस्तार की नीति पर काम करता रहा है वह अपने देश से लगने वाली सीमा पर लगातार यहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास और उसको विस्तार करता आया है और जब भारत भी इस तरह से अपनी सीमा में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करने लगा तो यह उसको नागवार गुजर रहा है. यही बात उसको रास नहीं आ रही है और इसी का परिणाम है कि उसने भारत से लगने वाली सीमा पर अपनी सेना का जमावड़ा बढा दिया है.
भारत ने काफी समय पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहता है लेकिन अगर कोई देश हमारी सीमाओं की ओर बुरी नजर से देखेगा तो उसे इसका परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा. अब चीन की भी समझ में आ गया है कि भारत से पंगा लेना उचित नहीं होगा.