वो लड़की गांव की भाग- 1
- एम जोशी हिमानी
एक कहावत है ‘ सुखद दाम्पत्य जीवन का बहुत बड़ा वरदान है’.
बहुत भाग्यशाली होते हैं वे लोग, जिनके जीवन में यह कहावत चरितार्थ होती है.
मैं भी भाग्यशाली हूं कि मैं ने अपनी आंखों से अपने आमा-बडबौज्यू (दादा-दादी) का ऐसा दाम्पत्य देखा है. बहुत से लोगों को मेरी बातें कपोल-कल्पित और अतिशयोक्ति पूर्ण लग सकती हैं लेकिन उससे मेरा सच बदल नहीं जाएगा.
दीन-दुनियां की हाय-हाय, चिंताओं, परेशानियों से बहुत दूर थी मेरे बड़ बौज्यू की दुनिया. घर परिवार में रहते हुए भी वे अपनी आंतरिक दुनिया में मगन रहते थे.
आमा का नाम तारा था परंतु वे उनको हमेशा ‘हरि’ नाम से बुलाते थे.
अपने बच्चों के नाम भी उन्होंने लक्ष्मी दत्त, हरगोविंद, हरिप्रिया और तुलसी रखा था ताकि हर वक्त किसी न किसी रूप में ईश्वर का नाम उनकी जिह्वा पर बना रहे.
बर्फ़ पड़ रही हो या बारिश, चाहे कैसा भी मौसम हो, बड़ बौज्यू ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नैनी से लगभग दो फर्लांग ऊपर पहाड़ से निकलने वाले झरने में स्नान करने चले जाते थे. स्नान के बाद वहां बने भाड़ी के शिव मंदिर में जलाभिषेक कर घर लौटते थे. एक बार माघ मास में जब बर्फ से सब पहाड़, जंगल, नैनी ढके हुए थे, उस दिन बड़बौज्यू को समय का अंदाजा नहीं लग पाया था और वे ब्रह्म मुहूर्त से बहुत पहले ही झरने की तरफ बढ़ चले थे. बर्फ़बारी के बाद यूं भी दिन रात का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है. झरने से कुछ पहले बड़बौज्यू को एक ओट में बैठ जाना पड़ा था. क्योंकि उस समय उस झरने में दो स्त्रियां स्नान करते हुए उनको दूर से दिख गईं थीं.
बड़बौज्यू समझ गए थे कि उनको साक्षात भगवती मां ने दर्शन दिए हैं परन्तु वे पहले उस बात को समझ नहीं पाए वरना वे मां के पैरों में लोटपोट हो जाते. उस दिन वे आंखों में आंसू लिए घर लौटे थे. उनके लौटने के घंटे भर बाद आमा जागीं थीं. तब सबको समझ में आया था कि बड़बौज्यू शायद उजाले के धोखे में उस दिन ढाई-तीन बजे रात्रि को ही झरने में चले गए थे.
कुछ देर को बड़बौज्यू चकरा गए थे क्योंकि वे स्त्रियां इस लोक की नहीं प्रतीत हो रही थीं. लग रहा था जैसे दोनों से प्रकाश की किरणें निकल रही हों. बड़बौज्यू खुद को उलाहना दे रहे थे मन ही मन कि ठंड के कारण उनकी नींद आज देर से टूटी. इसलिए इस झरने में सर्वप्रथम स्नान करने का उनका नियम आज टूट गया. बड़बौज्यू काफी देर तक उन स्त्रियों की वापसी का इंतजार करते रहे लेकिन वे लौटीं नहीं. कुछ देर में उपर शिव मंदिर से घंटी- आरती की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ने लगी. बड़बौज्यू स्नान करने के बाद मंदिर में जलाभिषेक को गए तो उन्होंने वहां दिव्य ज्योति को जलते हुए देखा, जो उनके मंदिर में प्रवेश करते ही गायब हो गई थी. वे दोनों स्त्रियां भी अंतर्ध्यान हो चुकी थीं.
बड़बौज्यू समझ गए थे कि उनको साक्षात भगवती मां ने दर्शन दिए हैं परन्तु वे पहले उस बात को समझ नहीं पाए वरना वे मां के पैरों में लोटपोट हो जाते. उस दिन वे आंखों में आंसू लिए घर लौटे थे. उनके लौटने के घंटे भर बाद आमा जागीं थीं. तब सबको समझ में आया था कि बड़बौज्यू शायद उजाले के धोखे में उस दिन ढाई-तीन बजे रात्रि को ही झरने में चले गए थे.
बड़बौज्यू के लौटने तक घर पर आमा भी तब तक स्नान कर चुकी होती थीं क्योंकि स्वास्थ्य कारणों से वे अपने पति के साथ उतनी जल्दी झरने तक नहीं जा पातीं थीं. एक थाली और जल का लोटा लिए आमा तैयार रहतीं थीं. बड़बौज्यू के लौटते ही वे उस थाली में अपने पति के दाहिने पैर का अंगूठा धोकर उस जल को अपने सिर पर छिड़कतीं थीं.
उसके बाद बड़बौज्यू अपना इकतारा लिए ब्रह्मा नंद के भजनों से पूरे वातावरण में दिव्य तान गुंजा देते थे-
अब जाग मुसाफिर भोर भई…
कर भजन ईश का प्यारे. ब्रह्मा नंद कहे सुन चेला…
हरि आए मिलन को तेरे
तू सोवत है सब खोवत है …
मेरी दस वर्ष की उम्र तक आमा-बडबौज्यू दोनों ने ही यह नश्वर संसार छोड़ दिया था. मेरा बाल्यकाल आमा -बड़बौज्यू के ही इर्दगिर्द घूमता रहा था क्योंकि काफी समय तक परिवार में मैं ही एकमात्र बच्ची थी इसलिए भी उनका विशेष प्यार और देखभाल पा जाती थी.
आमा का अपने पति के पैर की धोवन को अपने ऊपर छिड़कना बहुत से स्त्री- विमर्श वालों को नागवार लग सकता है. लेकिन प्यार एवं समर्पण के सबके अपने-अपने तरीके हो सकते हैं. यदि वे तरीके कोई बिना किसी दबाव के अपनी मर्ज़ी से अपने जीवन में उतारता है तो दूसरों को उसमें कुछ कहने का हक भी नहीं बनता है.
ऐसा नहीं था कि उनके बीच में कभी तकरार ही नहीं होती थी. आमा तो उनको बहुत उलाहने भी दिया करती थीं कि घर-ग्रहस्थी की बातों में वे कोई रूचि नहीं लेते हैं.
वे कुछ-कुछ इस तरह बड़बौज्यू को उलाहना दिया करती थीं-
‘ओ जोगिया कभी तो छोड़ जोगतम अपना,
कभी तो इक नज़र डाल घर-बार पै अपने….’
बावजूद इसके वो दोनों हरपल साथ रहते. बड़बौज्यू अनपढ़ आमा को कल्याण ग्रंथ, रामायण, भागवत आदि की कथाएं पढ़ कर सुनाया करते थे और दोनों का अधिकतर समय हरिचर्चा में व्यतीत होता था.
बड़बौज्यू ज्योतिष के प्रकांड विद्वान तो थे ही, इसके अलावा वे पशु-पक्षियों की बोली भी समझते थे.
घर के बाहर लगे पेड़ों में अथवा मुंडेर पर बैठ कर कौव्वे जब भी कांव-कांव में कुछ कहते, बडबौज्यू सही-सही बता दिया करते थे कि कागराज यह कह रहे हैं. और बाद में वह बात सच्ची भी निकलती थी.
उस दिन भी आमा- बड़बौज्यू दोपहर का भोजन करके घर के बाहर बनी बड़ी सी खुली जगह में बैठे बातचीत कर रहे थे. बड़बौज्यू को कुछ देर में लोड़ी के जंगलों के रास्ते एक विवाह समारोह संपन्न कराने जाना था. उसी समय हमारे घर के बगल में खड़े विशाल अखरोट के पेड़ पर बैठकर कौव्वा बेहद उदास स्वर में कांव-कांव करने लगा था. उसे सुनकर बड़बौज्यू बहुत गंभीर हो गए थे और आमा उसको पत्थर मारकर भगाने लगीं थीं -‘ भाज अपशकुनियां…’
सब अपने अपने कामों में लग गए थे और बड़बौज्यू भी थोड़ी देर में अपनी पैदल यात्रा में चल पड़े थे. उसी समय उनकी अनंत की यात्रा शायद शुरू हो गई थी. वे फिर कभी नहीं लौटे थे. लड़की की विदाई के बाद दूसरे सुदूर गांव में ही उनकी देह छूट गई थी.
कौव्वे को भगाने के बाद वे चिंता की लकीरें अपने माथे पर खींचे गंभीर मुद्रा में बैठे बड़बौज्यू से पूछने लगीं थीं- ‘आप तो खग की भाषा समझते हैं, बताइए यह क्यों रो सा रहा था?
मेरा दिल धड़क रहा है किसी अनहोनी की आशंका से…’
बड़बौज्यू के चेहरे पर पहली बार सबने तनाव देखा था. वे इतना ही बोले थे – ‘उसने जो बोलना था बोल दिया. हरि !! तुम सबका ख्याल रखना पहले की तरह. मैं तो ऐसा ही ठैरा जोगी…’
बात आई-गई हो गई. सब अपने अपने कामों में लग गए थे और बड़बौज्यू भी थोड़ी देर में अपनी पैदल यात्रा में चल पड़े थे. उसी समय उनकी अनंत की यात्रा शायद शुरू हो गई थी. वे फिर कभी नहीं लौटे थे. लड़की की विदाई के बाद दूसरे सुदूर गांव में ही उनकी देह छूट गई थी.
उतनी दूर और कठिन रास्ते से उनके पार्थिव शरीर को घर तक लाना संभव नहीं था. इसलिए वहीं के श्मशान घाट में वहां के उनके भक्तों और चाहने वालों ने शुद्ध देसी घी और चंदन की लकड़ियों में उनकी अन्त्येष्टि की थी.
आमा उस सदमे से उबर नहीं पाईं और दो वर्ष के भीतर उन्होंने भी इस दुनियां से विदाई ले ली थी.
(लेखिका पूर्व संपादक/पूर्व सहायक निदेशक— सूचना एवं जन संपर्क विभाग, उ.प्र., लखनऊ. देश की विभिन्न नामचीन पत्र/पत्रिकाओं में समय-समय पर अनेक कहानियाँ/कवितायें प्रकाशित. कहानी संग्रह-‘पिनड्राप साइलेंस’ व ‘ट्यूलिप के फूल’, उपन्यास-‘हंसा आएगी जरूर’, कविता संग्रह-‘कसक’ प्रकाशित)