- कमलेश चंद्र जोशी
वरिष्ठ कवि व साहित्यकार मंगलेश डबराल भौतिक रूप से अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन अपनी कविताओं, साहित्यिक रचनाओं व गंभीर पत्रकारिता के माध्यम से जिस लालटेन को वह जलता हुआ छोड़ गए हैं उसे जलाए रखने और रोशनी बिखेरने का काम वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों के हाथ में है. मंगलेश जी की स्मृति को अमूमन
सभी पत्रकारों, कवियों व साहित्य प्रेमियों ने सोशल, इलैक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के माध्यम से याद किया. कथाकारों, लेखकों व पत्रकारों द्वारा मंगलेश जी के साथ बिताए समय के बहुत से संस्मरण फेसबुक के माध्यम से पढ़ने को मिले जिससे यह समझ में आया कि वह किस कदर जमीन से जुड़े व्यक्ति थे और हमेशा पहाड़ और उसके रौशन होने के सपने को साथ लिये चलते रहे.पत्रकारिता
देवेंद्र मेवाड़ी बताते हैं कि दिल्ली में जनसत्ता में नौकरी करते हुए मंगलेश जी बड़े परेशान रहा करते थे. कहते थे दिल्ली महानगर है, उससे उन्हें बड़ा डर लगता है. जो दिल्ली जाता है वहीं फँस जाता है. पहाड़ों से उतरकर शहर को जानने निकले तो शहर का ही होकर रह जाने पर एक खीझ जो उनके अंदर पैदा हुई उसे उन्होंने बखूबी अपनी कविता में कुछ इस तरह पिरोया है:
“मैंने शहर को देखा
और मुस्कुराया
वहॉं कोई कैसे रह सकता है
यह जानने मैं गया
और वापस नहीं आया”
पत्रकारिता
पहाड़ों में बीते बचपन की याद
हो या फिर स्त्री विमर्श, डबराल जी ने लगभग हर उस विषय पर लिखा जो मानव संवेदना से जुड़ा हो. एक कवि के रूप में मंगलेश जी को याद करने व उनकी स्मृति को हमेशा के लिए कविता पोस्टरों के माध्यम से अमर कर देने का काम “जश्न-ए-बचपन” ग्रुप के तमाम बच्चों व उनके सहायक गुरूजनों ने किया. सप्ताह के सात दिनों को मंगलेश जी की स्मृति को समर्पित कर न सिर्फ उनकी कविताओं के पोस्टर बनाए गए बल्कि कविताओं को संगीत के माध्यम से लयबद्ध भी किया गया. रूद्रपुर से संगीत वादक अमितांशु जी के संरक्षण में बच्चों ने मंगलेश जी की कविताओं को सुरबद्ध किया तथा अपने साथियों व विभिन्न श्रोताओं तक पहुँचाने की कोशिश की.पत्रकारिता
पौड़ी गढ़वाल से बाल साहित्यकार शिक्षक
मनोहर चमोली ने बच्चों को डबराल जी के जीवन के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी व उनकी प्रसिद्ध कविता “एक भाषा में अ लिखना चाहता हूँ” तथा “इन ढलानों पर वसन्त आएगा” को विस्तार से समझाया. चमोली जी ने बच्चों को बताया कि मंगलेश जी की कविताएँ कालजयी हैं जिन्हें पढ़ने के बाद यथार्थ का अनुभव होता है. ग्रुप से जुड़े तमाम बच्चों व वयस्क गुरूजनों ने डबराल जी की तमाम कविताओं के ऑडियो व विडियो संस्करण भी रिकॉर्ड कर के भेजे.पत्रकारिता
स्कूल की पढ़ाई तो कोर्स के
हिसाब से होती ही है उसके अलावा हमें अपनी रुचि से दूसरे विषय भी पढ़ने चाहिए. तभी तो विज्ञान के विद्यार्थी भी कविता-कहानी का आनंद ले सकेंगे और कला वर्ग के विद्यार्थी विज्ञान की खोजों तथा प्रकृति के रहस्यों को समझ सकेंगे.
पत्रकारिता
सप्ताह का सबसे विशेष दिन था मंगलेश जी के बेहद करीबी रहे बाल कथा विज्ञान लेखक देवेंद्र मेवाड़ी को सुनना.
मेवाड़ी जी का अंदाज़-ए-बयॉं व बच्चों को कहानियाँ व संस्मरण सुनाने के लिए आतुर रहना बेहद रोचक लगता है. बच्चों से उनकी गुफ़्तगू की शुरूआत उन्हीं के शब्दों में कुछ यूँ होती है:पत्रकारिता
“घूम फिर कर कल फिर शुक्रवार
आ ही गया दोस्तों और शुक्रवार माने विज्ञान की बात. तो कल सुनाऊंगा मैं तुम्हें कवि और विज्ञान की बात. चौंक गए? कवि और विज्ञान? लोग समझते हैं ये तो दो अलग विषय हैं लेकिन मैं इस बात को नहीं मानता दोस्तों. मैं तो यह मानता हूं कि यह हमारी दुनिया है इसलिए इसका हर विषय हमारा है. हमें तो अपनी दुनिया के बारे में जानना है, अधिक से अधिक. जब हम विभिन्न विषयों को जानेंगे तभी तो दुनिया को पूरी तरह समझेंगे. स्कूल की पढ़ाई तो कोर्स के हिसाब से होती ही है उसके अलावा हमें अपनी रुचि से दूसरे विषय भी पढ़ने चाहिए. तभी तो विज्ञान के विद्यार्थी भी कविता-कहानी का आनंद ले सकेंगे और कला वर्ग के विद्यार्थी विज्ञान की खोजों तथा प्रकृति के रहस्यों को समझ सकेंगे.पत्रकारिता
हमारे प्रिय और जाने-माने कवि
मंगलेश डबराल बेहतरीन कविताएं रचते थे और विज्ञान में भी बहुत रुचि रखते थे. उन्होंने विज्ञान की खूब रचनाएं प्रकाशित की. नए विज्ञान लेखक तैयार किए. विज्ञान में बहुत रुचि होने के कारण उनकी कविताओं में वैज्ञानिक दृष्टि रहती है. उनकी कविताएं हमें प्रगतिशील विचारों की रोशनी देती हैं. कल मैं इसीलिए तुम्हें कवि मंगलेश जी की बात बताऊंगा और बताऊंगा कि किस तरह उन्होंने मेरे विज्ञान लेखन को आगे बढ़ाया. और हां, मैं तुम्हें उनकी एक कविता भी सुनाऊंगा. सुनना मेरे दोस्तों, कल सुबह ठीक 8 बजे.”पत्रकारिता
अगले दिन मेवाड़ी जी ने मंगलेश
जी के साथ के अपने संस्मरणों व उनकी एक कविता “छुपम-छुपाई”को रिकॉर्ड कर बच्चों के ग्रुप में भेजा व विमर्श को आगे बढ़ाया. मंगलेश जी को याद करते हुए मेवाड़ी जी कहते हैं कि “कवि एक संवेदनशील मनुष्य होता है. एक संवेदनशील मनुष्य ही कवि हो सकता है.” अक्सर ही विज्ञान और साहित्य को विरोधाभासी दिखाया जाता है लेकिन मंगलेश डबराल विज्ञान और कल्पना को साथ लेकर चलने वाले कवि थे. वह सिर्फ कवि ही नहीं बल्कि लेखक, पत्रकार व संपादक भी थे. इलाहाबाद में अमृत प्रभात समाचार पत्र में रहते हुए उन्होंने न सिर्फ इलाहाबाद के बल्कि देश भर के लेखकों को विज्ञान पर लिखने के लिए प्रेरित किया.पत्रकारिता
दिल्ली जनसत्ता में साहित्य सम्पादक
रहते हुए उन्होंने मुझसे रविवारीय जनसत्ता के लिए विज्ञान पर आधारित अनेकों लेख लिखवाए और प्रकाशित किये. मेवाड़ी की कहते हैं कि मंगलेश जी के साथ की तो उनके पास तमाम यादें हैं लेकिन सबको बयॉं कर पाना आसान नहीं है.पत्रकारिता
सप्ताह के अंतिम दो
दिनों का संचालन रामनगर से वरिष्ठ चित्रकार सुरेश लाल जी ने किया जिनके दिशा निर्देशन में बच्चों ने डबराल जी की कविताओं पर कविता पोस्टर बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. भले ही सम्मानित कवि मंगलेश डबराल हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी यादें और उनके विचार कविता व उनकी लेखनी के रूप में लालटेन की तरह हमेशा हमारे बीच जगमगाते रहेंगे.(लेखक एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में शोधार्थी है)